“वसीयत का पंजीकरण: प्रमाणिकता की गारंटी नहीं, परंतु क्रियान्वयन में महत्वपूर्ण – सुप्रीम कोर्ट का निर्णय: धनी राम बनाम शिव सिंह (C.A. No. 8172/2009, निर्णय दिनांक 6 अक्टूबर 2023)”
भूमिका:
भारतीय उत्तराधिकार अधिनियम, 1925 की धारा 63(c) और भारतीय साक्ष्य अधिनियम के तहत, वसीयत (Will) की वैधता और उसे सिद्ध करने के नियम अत्यंत महत्वपूर्ण हैं। सुप्रीम कोर्ट ने धनी राम (मृतक) बनाम शिव सिंह मामले में यह स्पष्ट किया कि वसीयत का पंजीकरण, उसकी वैधता और प्रमाणिकता की स्वतः पुष्टि नहीं करता। यद्यपि पंजीकरण प्रक्रिया एक सहायक कारक हो सकती है, परंतु वसीयत को वैध सिद्ध करने का दायित्व उसके प्रस्तोता (propounder) पर ही होता है।
मामले की पृष्ठभूमि:
इस अपील में, अपीलकर्ता धनी राम (मृतक) के कानूनी प्रतिनिधियों ने दावा किया कि शिव सिंह द्वारा वसीयत को चुनौती देना अनुचित है क्योंकि वसीयत विधिपूर्वक पंजीकृत थी। उनका तर्क था कि पंजीकरण अपने आप में यह दर्शाता है कि वसीयत सही, स्वैच्छिक और प्रमाणिक है।
प्रश्न यह था:
क्या केवल वसीयत का पंजीकरण यह सिद्ध करने के लिए पर्याप्त है कि वह विधिपूर्वक और स्वेच्छा से बनाई गई थी, और उस पर विधिवत हस्ताक्षर व गवाहों की उपस्थिति थी?
सुप्रीम कोर्ट का निर्णय और टिप्पणियाँ:
दिनांक 6 अक्टूबर 2023 को सुप्रीम कोर्ट ने अपने निर्णय में कहा:
“Registration of a Will does not guarantee its authenticity, but it is crucial for its execution and attestation. Propounders must prove the Will was duly executed, valid, and proper, as per Section 63(c) of the Succession Act.”
प्रमुख न्यायिक निष्कर्ष:
- वसीयत का पंजीकरण:
- पंजीकरण केवल एक प्रारंभिक सबूत हो सकता है, लेकिन यह वसीयत की स्वेच्छा, प्रमाणिकता और वैध निष्पादन को स्वतः सिद्ध नहीं करता।
- यह दस्तावेज की तारीख और प्रस्तुति के समय गवाहों की उपस्थिति का संकेत हो सकता है, लेकिन निष्कर्ष नहीं।
- धारा 63(c), उत्तराधिकार अधिनियम:
- वसीयत बनाने वाले द्वारा वसीयत पर हस्ताक्षर करना या अंगूठा लगाना अनिवार्य है।
- दो या अधिक गवाहों द्वारा उसकी उपस्थिति में हस्ताक्षर किया जाना आवश्यक है।
- इन शर्तों की पूर्ति वसीयत को वैध बनाती है, न कि केवल उसका पंजीकरण।
- प्रस्तोता (Propounder) का दायित्व:
- वसीयत को सिद्ध करने वाले को यह साबित करना होता है कि:
- वसीयत बनाने वाले की मंशा स्वतंत्र और दबाव रहित थी।
- वसीयत विधिपूर्वक निष्पादित और सत्यापित हुई थी।
- गवाहों की उपस्थिति और विश्वसनीयता सुनिश्चित की गई थी।
- यदि कोई संदेह हो, तो उसका निवारण उचित रूप से किया गया।
- वसीयत को सिद्ध करने वाले को यह साबित करना होता है कि:
पूर्ववर्ती निर्णयों का समर्थन:
यह निर्णय सुप्रीम कोर्ट के पूर्व के कई महत्वपूर्ण निर्णयों की पुनः पुष्टि करता है, जैसे:
- H. Venkatachala Iyengar v. B.N. Thimmajamma, AIR 1959 SC 443
- S.R. Srinivasa v. S. Padmavathamma, (2010) 5 SCC 274
- Jaswant Kaur v. Amrit Kaur, (1977) 1 SCC 369
इन मामलों में भी यह कहा गया कि वसीयत की वैधता का निर्धारण केवल दस्तावेज की उपस्थिति से नहीं होता, बल्कि पूरे निष्पादन, गवाहों और मानसिक स्थिति के परीक्षण से होता है।
निष्कर्ष:
सुप्रीम कोर्ट ने यह स्पष्ट किया कि वसीयत का पंजीकरण एक सहायक प्रमाण अवश्य हो सकता है, लेकिन वसीयत की प्रमाणिकता को सिद्ध करने के लिए केवल यही पर्याप्त नहीं है। वास्तविकता, निष्पादन की प्रक्रिया, स्वतंत्र मंशा, गवाहों की भूमिका और संभावित संदेहों का निवारण आवश्यक है।
महत्व और प्रभाव:
- न्यायिक दृष्टिकोण स्पष्ट हुआ कि पंजीकृत दस्तावेज भी चुनौती के अधीन हैं।
- उत्तराधिकार विवादों में केवल दस्तावेजी पंजीकरण नहीं, बल्कि संपूर्ण प्रक्रिया की वैधता महत्वपूर्ण है।
- वसीयत बनाने वालों और उनके सलाहकारों के लिए यह निर्णय एक चेतावनी है कि केवल पंजीकरण कराने से उत्तराधिकार विवादों से मुक्ति नहीं मिलेगी।