लेख शीर्षक:
“वरिष्ठ नागरिक अधिनियम, 2007 की सीमा और प्रयोज्यता: Kulwant Kaur बनाम Appellate Authority & Ors, 2025 (पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय)”
परिचय:
वरिष्ठ नागरिकों की सुरक्षा और कल्याण सुनिश्चित करने के उद्देश्य से बनाए गए वरिष्ठ नागरिकों का भरण-पोषण और कल्याण अधिनियम, 2007 (Maintenance and Welfare of Parents and Senior Citizens Act, 2007) की व्याख्या करते हुए, पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय ने Kulwant Kaur बनाम Appellate Authority cum District Magistrate, Fatehgarh Sahib and Others (CWP No. 4819 of 2023, 2025) में एक महत्त्वपूर्ण निर्णय दिया। इस निर्णय में न्यायालय ने स्पष्ट किया कि जब कोई वरिष्ठ नागरिक संपत्ति का हस्तांतरण (जैसे गिफ्ट डीड) किसी ऐसे व्यक्ति के पक्ष में करता है जो न तो उसका “बच्चा” है और न ही “रिश्तेदार”, तो अधिनियम की धाराएं उस पर लागू नहीं होतीं।
मामले की पृष्ठभूमि:
याचिकाकर्ता Kulwant Kaur, एक वरिष्ठ नागरिक, ने अधिनियम के तहत यह याचिका दायर की कि उसने जो संपत्ति उत्तरदाता को गिफ्ट डीड के माध्यम से दी थी, उसे रद्द किया जाए। याचिका का आधार यह था कि उपहार प्राप्तकर्ता (beneficiary) ने उनके साथ ठीक व्यवहार नहीं किया। लेकिन उक्त उत्तरदाता वरिष्ठ नागरिक की संतान या पारिवारिक सदस्य नहीं था।
प्रमुख विधिक प्रश्न:
- क्या Maintenance and Welfare of Parents and Senior Citizens Act, 2007 के तहत कोई वरिष्ठ नागरिक ऐसी संपत्ति वापसी की मांग कर सकता है जो उसने ऐसे व्यक्ति को दी हो जो न तो उसकी संतान है और न ही निकट संबंधी?
- अधिनियम की धारा 23 के अंतर्गत “children” और “relative” की परिभाषा की सीमाएं क्या हैं?
न्यायालय का निर्णय:
उच्च न्यायालय ने याचिका खारिज करते हुए निम्नलिखित प्रमुख बिंदु स्पष्ट किए:
- अधिनियम की धारा 23 केवल उन्हीं मामलों में लागू होती है जहाँ वरिष्ठ नागरिक अपनी संपत्ति “अपेक्षित देखभाल और भरण-पोषण” की शर्त पर अपने बच्चों या रिश्तेदारों को स्थानांतरित करता है।
- यदि उपहार प्राप्तकर्ता (beneficiary) न तो “child” है और न ही “relative” की श्रेणी में आता है, तो वरिष्ठ नागरिक को इस अधिनियम के अंतर्गत संरक्षण नहीं मिल सकता।
- इस विशेष मामले में, उत्तरदाता का कोई वैधानिक संबंध (legal relationship) याचिकाकर्ता के साथ नहीं था। अतः अधिनियम की उपयुक्त धाराएं लागू नहीं हो सकतीं।
न्यायिक दृष्टिकोण और विधिक प्रभाव:
यह निर्णय यह स्पष्ट करता है कि अधिनियम का उद्देश्य परिवारजन के साथ रहने वाले वरिष्ठ नागरिकों की रक्षा करना है—विशेषकर जब वे अपने बच्चों या रिश्तेदारों के हाथों उपेक्षित या प्रताड़ित होते हैं। यह कानून सार्वभौमिक रूप से प्रत्येक संपत्ति स्थानांतरण को कवर नहीं करता, बल्कि इसका दायरा उन्हीं पर सीमित है जो पारिवारिक रिश्ते में आते हैं।
यह निर्णय इस बात को भी रेखांकित करता है कि यदि कोई वरिष्ठ नागरिक किसी अजनबी या गैर-संबंधी को उपहार स्वरूप संपत्ति देता है, तो वह केवल सामान्य सिविल कानून के तहत ही रद्दीकरण या अन्य राहत प्राप्त कर सकता है; वरिष्ठ नागरिक अधिनियम के विशेष प्रावधानों का उस पर कोई प्रभाव नहीं होगा।
निष्कर्ष:
Kulwant Kaur v. Appellate Authority का निर्णय यह स्पष्ट करता है कि वरिष्ठ नागरिक अधिनियम, 2007 की धाराएं सीमित परिप्रेक्ष्य में लागू होती हैं, और इसका दुरुपयोग यह सोचकर नहीं किया जा सकता कि प्रत्येक गिफ्ट डीड को वापस लिया जा सकता है। यह निर्णय न्यायालय के सुसंगत, व्याख्यात्मक और संतुलित दृष्टिकोण का उदाहरण है, जो अधिनियम की मूल भावना और विधिक सीमाओं का आदर करता है।