वन्यजीव संरक्षण अधिनियम, 1972 : जैव विविधता और वन्य प्राणियों की रक्षा हेतु
प्रस्तावना
भारत विविधताओं का देश है – यहाँ की संस्कृति, भाषाएँ, परंपराएँ और प्राकृतिक संसाधन अद्वितीय हैं। इसी विविधता का एक महत्त्वपूर्ण हिस्सा है जैव विविधता (Biodiversity), जिसमें वनस्पतियाँ, पशु-पक्षी, सूक्ष्मजीव और पारिस्थितिक तंत्र शामिल हैं। किंतु औद्योगीकरण, शहरीकरण, अवैध शिकार और प्राकृतिक संसाधनों के अंधाधुंध दोहन ने वन्य प्राणियों के अस्तित्व को गंभीर संकट में डाल दिया। इसी स्थिति से निपटने के लिए भारत ने वन्यजीव संरक्षण अधिनियम, 1972 (Wildlife Protection Act, 1972) लागू किया, जो आज भी वन्यजीवों और प्राकृतिक धरोहर की रक्षा का सबसे सशक्त कानूनी उपकरण है।
ऐतिहासिक पृष्ठभूमि
भारत में वन्यजीवों का संरक्षण प्राचीन काल से ही धार्मिक और सांस्कृतिक दृष्टिकोण से महत्त्वपूर्ण माना गया। वैदिक और पौराणिक ग्रंथों में पशु-पक्षियों को देवताओं से जोड़ा गया। परंतु औपनिवेशिक काल में शिकार एक शौक और प्रतिष्ठा का प्रतीक बन गया, जिससे कई दुर्लभ प्रजातियाँ विलुप्त हो गईं।
स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद भी राज्यों के पास अलग-अलग कानून थे, जिससे संरक्षण कार्य प्रभावी नहीं हो पा रहा था। 1972 में संयुक्त राष्ट्र के स्टॉकहोम सम्मेलन ने पर्यावरण संरक्षण के लिए वैश्विक चेतना जगाई। इसके बाद भारत ने राष्ट्रीय स्तर पर एक समान और कठोर कानून बनाने की आवश्यकता महसूस की और वन्यजीव संरक्षण अधिनियम, 1972 पारित किया।
अधिनियम के उद्देश्य
- जैव विविधता को सुरक्षित रखना।
- विलुप्तप्राय प्रजातियों को संरक्षित करना।
- अवैध शिकार, व्यापार और तस्करी पर रोक लगाना।
- राष्ट्रीय उद्यान, अभयारण्य और रिजर्व क्षेत्रों की स्थापना।
- वन्यजीवों और मानव के बीच संतुलन बनाए रखना।
अधिनियम की प्रमुख विशेषताएँ
1. संरक्षित क्षेत्र
अधिनियम के तहत विभिन्न प्रकार के संरक्षित क्षेत्र बनाए गए हैं –
- राष्ट्रीय उद्यान (National Parks) : यहाँ पूर्ण सुरक्षा दी जाती है और किसी भी प्रकार की मानवीय गतिविधि सीमित होती है।
- वन्यजीव अभयारण्य (Wildlife Sanctuaries) : यहाँ वन्यजीव संरक्षण प्राथमिक उद्देश्य है, किंतु कुछ नियंत्रित मानवीय गतिविधियाँ संभव होती हैं।
- टाइगर रिजर्व (Tiger Reserves) : ‘प्रोजेक्ट टाइगर’ के अंतर्गत बाघ संरक्षण हेतु स्थापित क्षेत्र।
- कंजर्वेशन रिजर्व और कम्युनिटी रिजर्व : स्थानीय समुदायों की भागीदारी से संरक्षण।
2. अनुसूचियाँ (Schedules)
अधिनियम में विभिन्न प्रजातियों की सुरक्षा स्तर निर्धारित करने हेतु पाँच अनुसूचियाँ बनाई गई हैं –
- अनुसूची I और II : सर्वोच्च स्तर की सुरक्षा (जैसे – बाघ, शेर, हाथी)।
- अनुसूची III और IV : अपेक्षाकृत कम सुरक्षा वाली प्रजातियाँ।
- अनुसूची V : शिकार योग्य प्रजातियाँ (जैसे – चूहा, कौआ आदि)।
3. दंड प्रावधान
- संरक्षित प्रजातियों का शिकार करने पर 3 से 7 वर्ष तक की सज़ा और भारी जुर्माना।
- संगठित शिकार या तस्करी पर और कठोर दंड का प्रावधान।
4. संस्थागत व्यवस्था
- वन्यजीव अपराध नियंत्रण ब्यूरो (WCCB) : अवैध शिकार व अंतर्राष्ट्रीय व्यापार रोकने हेतु।
- राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण (NTCA) : बाघ संरक्षण हेतु विशेष निकाय।
- वन्यजीव सलाहकार बोर्ड : नीतिगत निर्णयों में सहयोग।
प्रमुख संशोधन
1972 के बाद अधिनियम में कई संशोधन किए गए ताकि इसे और प्रभावी बनाया जा सके।
- 1991 संशोधन : शिकार पर और कठोर नियंत्रण।
- 2002 संशोधन : वन्यजीव अपराध नियंत्रण ब्यूरो की स्थापना।
- 2006 संशोधन : राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण (NTCA) का गठन।
- 2022 संशोधन : जैव विविधता से संबंधित अंतर्राष्ट्रीय दायित्वों को शामिल किया गया और CITES के प्रावधानों को लागू किया गया।
जैव विविधता की रक्षा में योगदान
- विलुप्तप्राय प्रजातियों का संरक्षण – बाघ, शेर, गैंडा और हाथी जैसी प्रजातियाँ संरक्षित की गईं।
- राष्ट्रीय उद्यानों और अभयारण्यों का विस्तार – वर्तमान में भारत में 100 से अधिक राष्ट्रीय उद्यान और 500 से अधिक अभयारण्य हैं।
- प्रोजेक्ट टाइगर और प्रोजेक्ट एलीफेंट – विशेष योजनाएँ शुरू की गईं।
- मानव-वन्यजीव संतुलन – ग्रामीण क्षेत्रों में जागरूकता अभियान और सह-अस्तित्व की नीतियाँ लागू की गईं।
न्यायिक दृष्टिकोण
भारतीय न्यायपालिका ने अधिनियम की संवैधानिक व्याख्या करते हुए इसे अनुच्छेद 21 (जीवन के अधिकार) का अभिन्न हिस्सा माना।
- के.एम. चिनप्पा केस (2002) – सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि पर्यावरण और वन्यजीव संरक्षण नागरिकों के जीवन का हिस्सा है।
- टी.एन. गॉडावर्मन केस (1997) – न्यायालय ने अवैध कटाई और शिकार पर सख्ती दिखाई।
- सेंट्रल एम्पॉवर्ड कमेटी का गठन कर न्यायालय ने निगरानी तंत्र को सशक्त बनाया।
अंतर्राष्ट्रीय सहयोग
भारत ने अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भी कई समझौतों में भाग लिया –
- CITES (Convention on International Trade in Endangered Species, 1973) – संकटग्रस्त प्रजातियों के व्यापार पर रोक।
- बायोडायवर्सिटी कन्वेंशन (CBD, 1992) – जैव विविधता संरक्षण का वैश्विक करार।
- रामसर कन्वेंशन (1971) – आर्द्रभूमियों और प्रवासी पक्षियों का संरक्षण।
इन समझौतों के प्रावधानों को अधिनियम में समय-समय पर जोड़ा गया।
चुनौतियाँ
- अवैध शिकार और तस्करी – अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर दुर्लभ प्रजातियों की मांग।
- मानव-वन्यजीव संघर्ष – जंगल सिकुड़ने से हाथी, बाघ आदि गाँवों में आ जाते हैं।
- आवास क्षेत्र का नुकसान – शहरीकरण और औद्योगिकीकरण के कारण।
- सीमित संसाधन और स्टाफ – निगरानी के लिए पर्याप्त व्यवस्था नहीं।
- जलवायु परिवर्तन – जैव विविधता पर दीर्घकालिक खतरा।
सुधारात्मक उपाय
- स्थानीय समुदायों की भागीदारी और इको-टूरिज्म का विकास।
- आधुनिक तकनीक जैसे ड्रोन सर्विलांस, GPS ट्रैकिंग का उपयोग।
- शिक्षा और जन-जागरूकता अभियान।
- वन्यजीव अपराध नियंत्रण ब्यूरो की क्षमताओं को बढ़ाना।
- अंतर्राष्ट्रीय सहयोग को और मजबूत करना।
निष्कर्ष
वन्यजीव संरक्षण अधिनियम, 1972 भारत की जैव विविधता और वन्य प्राणियों की रक्षा हेतु एक ऐतिहासिक और महत्त्वपूर्ण कानून है। इसने भारत की कई प्रजातियों को विलुप्त होने से बचाया, राष्ट्रीय उद्यान और अभयारण्य स्थापित किए तथा पर्यावरणीय संतुलन बनाए रखने में योगदान दिया। हालाँकि चुनौतियाँ अभी भी बनी हुई हैं, लेकिन यदि सरकार, न्यायपालिका और समाज मिलकर प्रयास करें, तो यह अधिनियम भारत की प्राकृतिक धरोहर को आने वाली पीढ़ियों के लिए सुरक्षित रख सकता है।
1. वन्यजीव संरक्षण अधिनियम, 1972 कब और क्यों लागू किया गया?
वन्यजीव संरक्षण अधिनियम, 1972 भारत सरकार द्वारा उस समय लागू किया गया जब देश में वन्य प्राणियों की कई प्रजातियाँ शिकार और अवैध व्यापार के कारण विलुप्त होने की कगार पर थीं। पहले विभिन्न राज्यों के पास अलग-अलग कानून थे, जिससे संरक्षण कार्य प्रभावी नहीं हो पा रहा था। 1972 में हुए स्टॉकहोम सम्मेलन के बाद पर्यावरण और जैव विविधता की रक्षा पर वैश्विक ध्यान आकर्षित हुआ। इसी पृष्ठभूमि में भारत ने एक समान और कठोर कानून बनाया। इसका मुख्य उद्देश्य शिकार पर रोक, राष्ट्रीय उद्यानों और अभयारण्यों की स्थापना, तथा वन्यजीवों को कानूनी संरक्षण प्रदान करना था। यह अधिनियम भारत की जैव विविधता की रक्षा का आधार स्तंभ बन गया।
2. वन्यजीव संरक्षण अधिनियम की मुख्य विशेषताएँ क्या हैं?
इस अधिनियम की प्रमुख विशेषताएँ हैं –
- संरक्षित क्षेत्र : राष्ट्रीय उद्यान, अभयारण्य, टाइगर रिजर्व और कंजर्वेशन रिजर्व की स्थापना।
- अनुसूचियाँ (Schedules) : विभिन्न प्रजातियों को संरक्षण स्तर के आधार पर पाँच अनुसूचियों में विभाजित किया गया।
- शिकार पर रोक : संरक्षित प्रजातियों के शिकार को अपराध घोषित किया गया।
- दंड प्रावधान : अपराध करने पर कारावास और जुर्माने की सख्त सजा।
- संस्थागत ढाँचा : वन्यजीव अपराध नियंत्रण ब्यूरो और राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण का गठन।
इन विशेषताओं ने वन्य प्राणियों को कानूनी सुरक्षा प्रदान की और भारत की जैव विविधता को संरक्षित करने में महत्त्वपूर्ण योगदान दिया।
3. अधिनियम में अनुसूचियों (Schedules) का क्या महत्त्व है?
वन्यजीव संरक्षण अधिनियम, 1972 की सबसे महत्वपूर्ण विशेषता इसकी अनुसूचियों की व्यवस्था है। इसमें प्रजातियों को सुरक्षा स्तर के आधार पर पाँच श्रेणियों में बाँटा गया है।
- अनुसूची I और II : इनमें आने वाली प्रजातियों को सर्वोच्च सुरक्षा दी गई है। जैसे – बाघ, शेर, गैंडा, हाथी।
- अनुसूची III और IV : इन प्रजातियों को भी संरक्षण दिया गया है, किंतु दंड अपेक्षाकृत कम है।
- अनुसूची V : इसमें कुछ प्रजातियाँ शामिल हैं जिनका शिकार किया जा सकता है, जैसे – चूहा और कौआ।
यह वर्गीकरण संरक्षण प्रयासों को सुव्यवस्थित करता है और यह तय करता है कि किन प्रजातियों को कितनी प्राथमिकता दी जानी चाहिए।
4. राष्ट्रीय उद्यान और अभयारण्य में क्या अंतर है?
राष्ट्रीय उद्यान और अभयारण्य दोनों ही संरक्षित क्षेत्र हैं, किंतु इनके नियम अलग हैं।
- राष्ट्रीय उद्यान : यहाँ पूर्ण सुरक्षा प्रदान की जाती है। वनों की कटाई, पशुओं का शिकार, चराई या किसी भी प्रकार की मानवीय गतिविधि पर कड़ी पाबंदी होती है। उदाहरण – काजीरंगा राष्ट्रीय उद्यान।
- अभयारण्य : यहाँ भी वन्यजीव संरक्षण प्राथमिक उद्देश्य है, किंतु नियंत्रित मानवीय गतिविधियों जैसे चराई या कुछ हद तक संसाधनों के उपयोग की अनुमति दी जा सकती है। उदाहरण – केवला देव अभयारण्य।
इस प्रकार, राष्ट्रीय उद्यान अधिक कठोर नियमों के अंतर्गत आते हैं जबकि अभयारण्य अपेक्षाकृत लचीले होते हैं।
5. वन्यजीव अपराध नियंत्रण ब्यूरो (WCCB) की भूमिका क्या है?
वन्यजीव अपराध नियंत्रण ब्यूरो (Wildlife Crime Control Bureau – WCCB) की स्थापना 2002 के संशोधन के बाद की गई। इसका मुख्य उद्देश्य वन्यजीवों से संबंधित अपराधों पर रोक लगाना है। यह ब्यूरो –
- अवैध शिकार और व्यापार पर निगरानी रखता है।
- अंतर्राष्ट्रीय तस्करी रोकने के लिए सीमा शुल्क अधिकारियों और पुलिस के साथ सहयोग करता है।
- CITES जैसे अंतर्राष्ट्रीय समझौतों के अनुपालन में कार्य करता है।
- राज्यों और केंद्र सरकार के बीच समन्वय स्थापित करता है।
WCCB ने कई बार अवैध हाथीदांत, बाघ की खाल और दुर्लभ पक्षियों की तस्करी को रोका है। यह संस्था अधिनियम को प्रभावी बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है।
6. प्रोजेक्ट टाइगर और प्रोजेक्ट एलीफेंट का क्या महत्व है?
प्रोजेक्ट टाइगर (1973) और प्रोजेक्ट एलीफेंट (1992) वन्यजीव संरक्षण अधिनियम के अंतर्गत शुरू की गई विशेष योजनाएँ हैं।
- प्रोजेक्ट टाइगर : इसका उद्देश्य बाघों की घटती संख्या को बचाना और उनके प्राकृतिक आवास की रक्षा करना है। इसके तहत भारत में 50 से अधिक टाइगर रिजर्व स्थापित किए गए।
- प्रोजेक्ट एलीफेंट : इसका उद्देश्य हाथियों की सुरक्षा, उनके प्रवास मार्ग (corridors) की रक्षा और मानव-हाथी संघर्ष को कम करना है।
इन दोनों परियोजनाओं ने भारत में जैव विविधता संरक्षण को मजबूती दी और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भारत की सकारात्मक छवि बनाई।
7. न्यायपालिका ने इस अधिनियम की व्याख्या किस प्रकार की है?
भारतीय न्यायपालिका ने वन्यजीव संरक्षण अधिनियम को अनुच्छेद 21 (जीवन का अधिकार) से जोड़ा है।
- के.एम. चिनप्पा केस (2002) में सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि पर्यावरण और वन्यजीव संरक्षण नागरिकों के जीवन के अधिकार का हिस्सा है।
- टी.एन. गॉडावर्मन केस (1997) में अदालत ने संरक्षित क्षेत्रों में अवैध गतिविधियों को रोकने के आदेश दिए।
- अदालत ने यह भी कहा कि वन्यजीवों का संरक्षण केवल सरकार की ही नहीं, बल्कि हर नागरिक की जिम्मेदारी है।
इस प्रकार, न्यायपालिका ने अधिनियम की संवैधानिक वैधता को मजबूत किया और इसे पर्यावरणीय न्याय से जोड़ा।
8. वन्यजीव संरक्षण अधिनियम और अंतर्राष्ट्रीय समझौतों का क्या संबंध है?
भारत ने कई अंतर्राष्ट्रीय समझौतों पर हस्ताक्षर किए हैं जिनका उद्देश्य जैव विविधता की रक्षा करना है।
- CITES (1973) : विलुप्तप्राय प्रजातियों के व्यापार पर रोक।
- CBD (Convention on Biological Diversity, 1992) : जैव विविधता संरक्षण और सतत उपयोग।
- रामसर कन्वेंशन (1971) : आर्द्रभूमियों और प्रवासी पक्षियों का संरक्षण।
वन्यजीव संरक्षण अधिनियम, 1972 में समय-समय पर संशोधन कर इन अंतर्राष्ट्रीय दायित्वों को शामिल किया गया। इससे भारत न केवल घरेलू स्तर पर बल्कि वैश्विक स्तर पर भी वन्यजीव संरक्षण में सक्रिय भूमिका निभाता है।
9. अधिनियम को लागू करने में प्रमुख चुनौतियाँ क्या हैं?
हालाँकि यह अधिनियम प्रभावी है, लेकिन कुछ चुनौतियाँ बनी हुई हैं –
- अवैध शिकार और अंतर्राष्ट्रीय तस्करी।
- मानव-वन्यजीव संघर्ष, विशेषकर ग्रामीण क्षेत्रों में।
- सीमित संसाधन और प्रशिक्षित कर्मचारियों की कमी।
- शहरीकरण और औद्योगिकीकरण के कारण वन्य आवास का सिकुड़ना।
- जलवायु परिवर्तन, जिससे जैव विविधता पर दीर्घकालिक खतरा है।
इन चुनौतियों का समाधान तभी संभव है जब सरकार, समाज और स्थानीय समुदाय मिलकर प्रयास करें।
10. वन्यजीव संरक्षण अधिनियम का महत्व क्यों है?
वन्यजीव संरक्षण अधिनियम भारत की प्राकृतिक धरोहर को सुरक्षित रखने का सबसे बड़ा कानूनी साधन है। इसके माध्यम से –
- कई प्रजातियाँ विलुप्त होने से बची हैं।
- राष्ट्रीय उद्यानों और अभयारण्यों की संख्या बढ़ी है।
- अवैध शिकार और व्यापार पर काफी हद तक नियंत्रण हुआ है।
- लोगों में जागरूकता आई है कि वन्यजीव केवल प्रकृति की शोभा ही नहीं बल्कि पारिस्थितिकी संतुलन के लिए भी आवश्यक हैं।
इस अधिनियम के बिना भारत की जैव विविधता को संरक्षित करना लगभग असंभव होता।