वन्यजीवों की रक्षा हेतु भारत का प्रमुख कानून –वन्यजीव संरक्षण अधिनियम, 1972 (Wildlife Protection Act, 1972)
परिचय
वन्यजीव संरक्षण अधिनियम, 1972 भारत सरकार द्वारा पारित एक व्यापक और ऐतिहासिक कानून है, जिसका मुख्य उद्देश्य भारत के वन्यजीवों, उनकी प्रजातियों और उनके प्राकृतिक आवास की रक्षा करना है। यह अधिनियम 9 सितंबर 1972 को संसद द्वारा पारित हुआ और 9 सितंबर 1973 से पूरे भारत में लागू किया गया, सिवाय जम्मू-कश्मीर के, जहाँ उस समय का राज्य कानून लागू था। इस कानून ने भारत में पहली बार वन्यजीवों की रक्षा हेतु एक संगठित कानूनी ढांचा प्रदान किया।
अधिनियम का उद्देश्य
वन्यजीव संरक्षण अधिनियम, 1972 के मुख्य उद्देश्य निम्नलिखित हैं:
- दुर्लभ और संकटग्रस्त प्रजातियों की रक्षा करना।
- शिकार पर प्रतिबंध लगाना।
- राष्ट्रीय उद्यानों और अभयारण्यों की स्थापना करना।
- अवैध वन्यजीव व्यापार को नियंत्रित करना।
- वन्यजीव अपराधों के लिए दंडात्मक प्रावधानों की व्यवस्था करना।
प्रमुख विशेषताएँ
- अनुसूचियाँ (Schedules):
अधिनियम में कुल 6 अनुसूचियाँ हैं, जिनमें विभिन्न प्रजातियों के संरक्षण का स्तर निर्धारित किया गया है:- अनुसूची-I और II (भाग-I): अत्यंत संरक्षित प्रजातियाँ (उदाहरण: बाघ, सिंह)। इनके शिकार पर सख्त प्रतिबंध और कठोर दंड का प्रावधान है।
- अनुसूची-II (भाग-II), III और IV: कम संरक्षित प्रजातियाँ। इनके संरक्षण का भी प्रावधान है, परंतु दंड की तीव्रता थोड़ी कम है।
- अनुसूची-V: वे जानवर जिन्हें हानिकारक माना गया है और जिनका शिकार वैध है (जैसे – चूहा, कौआ)।
- अनुसूची-VI: संरक्षित पौधों की सूची।
- राष्ट्रीय उद्यान और वन्यजीव अभयारण्य:
अधिनियम के तहत राज्यों को राष्ट्रीय उद्यान, अभयारण्य, संरक्षण रिज़र्व और सामुदायिक रिज़र्व स्थापित करने का अधिकार है, जहाँ मानव गतिविधियों पर कड़ी निगरानी होती है। - वन्यजीव अपराध नियंत्रण ब्यूरो (WCCB):
2007 में गठित यह संस्था अवैध वन्यजीव व्यापार और अपराधों की जाँच करती है। - शिकार पर प्रतिबंध:
अधिनियम के तहत सभी संरक्षित प्रजातियों का शिकार करना, पकड़ना, फँसाना, या मारना दंडनीय अपराध है। - अनुमति और लाइसेंस प्रणाली:
किसी भी वन्यजीव उत्पाद के व्यापार या संग्रहण के लिए केंद्र या राज्य सरकार की अनुमति आवश्यक होती है।
महत्वपूर्ण धाराएँ (Sections)
- धारा 9: वन्यजीवों के शिकार पर पूर्ण प्रतिबंध।
- धारा 11: विशेष परिस्थितियों में शिकार की अनुमति (जैसे मानव जीवन की रक्षा)।
- धारा 18-35: अभयारण्यों और राष्ट्रीय उद्यानों की स्थापना से संबंधित प्रावधान।
- धारा 38J: किसी भी संरक्षित क्षेत्र में अतिक्रमण निषिद्ध।
- धारा 50: अधिकारियों को तलाशी, जब्ती और गिरफ्तारी की शक्ति।
दंडात्मक प्रावधान
- अनुसूची-I और II (भाग-I) के उल्लंघन पर: 7 वर्ष तक की कैद और ₹25,000 से ₹1,00,000 तक का जुर्माना।
- पुनरावृत्ति पर: अधिक कठोर दंड जैसे आजीवन कारावास तक का प्रावधान।
संशोधन
वन्यजीव संरक्षण अधिनियम में समय-समय पर अनेक संशोधन किए गए हैं, जैसे:
- 1991 संशोधन: चिड़ियाघर की परिभाषा जोड़ी गई और अनुसंधान को अनुमति दी गई।
- 2002 संशोधन: सामुदायिक और संरक्षण रिज़र्व का प्रावधान किया गया।
- 2006: राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण (NTCA) की स्थापना।
- 2022 (प्रस्तावित संशोधन): CITES (Convention on International Trade in Endangered Species) के अनुरूप संरचना तैयार करने का प्रयास।
चुनौतियाँ
- बढ़ता हुआ अवैध व्यापार – विशेष रूप से बाघ और गैंडे की खाल/सींग।
- मानव-वन्यजीव संघर्ष – जनसंख्या वृद्धि के कारण वन क्षेत्रों में अतिक्रमण।
- प्रवर्तन की कमजोरी – ग्रामीण क्षेत्रों में निगरानी की कमी।
- राज्यों के बीच समन्वय की कमी – कई बार अंतर-राज्यीय अपराधों पर प्रभावी नियंत्रण नहीं हो पाता।
उपसंहार
वन्यजीव संरक्षण अधिनियम, 1972 भारत में वन्यजीवों और उनके प्राकृतिक आवास के संरक्षण का एक मजबूत कानूनी आधार है। हालाँकि इसके प्रभावी क्रियान्वयन में कई व्यावहारिक चुनौतियाँ हैं, परंतु यह अधिनियम भारत की जैव विविधता को बनाए रखने में अत्यंत महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। समय-समय पर इसके संशोधनों और प्रभावी प्रवर्तन के माध्यम से भारत वन्यजीव संरक्षण के क्षेत्र में एक सशक्त उदाहरण प्रस्तुत कर सकता है।