“वक्फ विवाद में यदि विशेष न्यायाधिकरण का अधिकार क्षेत्र लागू नहीं होता, तो उच्च न्यायालय अनुच्छेद 226 के तहत हस्तक्षेप कर सकता है: कर्नाटक उच्च न्यायालय का निर्णय”

“वक्फ विवाद में यदि विशेष न्यायाधिकरण का अधिकार क्षेत्र लागू नहीं होता, तो उच्च न्यायालय अनुच्छेद 226 के तहत हस्तक्षेप कर सकता है: कर्नाटक उच्च न्यायालय का निर्णय”


विस्तृत लेख:

कर्नाटक उच्च न्यायालय ने एक महत्वपूर्ण निर्णय में स्पष्ट किया है कि यदि वक्फ संबंधी कोई विवाद Waqf Tribunal के विशेष अधिकार क्षेत्र (Exclusive Jurisdiction) के अंतर्गत नहीं आता है, विशेषतः जब विवाद में स्वामित्व (Title) या कब्जे (Possession) से संबंधित कोई वास्तविक विवाद नहीं है, तो उच्च न्यायालय संविधान के अनुच्छेद 226 के अंतर्गत अपनी रिट शक्तियों का प्रयोग कर सकता है।


📌 पृष्ठभूमि:

इस मामले में याचिकाकर्ता ने वक्फ बोर्ड द्वारा पारित एक आदेश को चुनौती दी थी। वक्फ बोर्ड ने संपत्ति को वक्फ संपत्ति घोषित किया था, किंतु याचिकाकर्ता का तर्क था कि इस प्रक्रिया में न्यायसंगत सुनवाई का पालन नहीं हुआ और कोई वास्तविक विवाद भी नहीं था जो ट्रिब्यूनल में परीक्षण की आवश्यकता रखे।


⚖️ कर्नाटक उच्च न्यायालय का निर्णय:

न्यायालय ने निम्नलिखित प्रमुख बिंदुओं को रेखांकित किया:

  1. Waqf Act के तहत स्थापित वक्फ ट्रिब्यूनल का अधिकार क्षेत्र उन मामलों पर लागू होता है जिनमें:
    • वक्फ संपत्ति का स्वामित्व विवादित हो,
    • कब्जे का मामला विवादित हो,
    • या ऐसा कोई तथ्यात्मक प्रश्न हो जिसके लिए मौखिक साक्ष्य और परीक्षण आवश्यक हो।
  2. ✅ यदि कोई विवाद केवल प्रशासनिक आदेश की वैधता से संबंधित है और उसमें कोई तथ्यात्मक विवाद नहीं है, तो यह वक्फ ट्रिब्यूनल के क्षेत्राधिकार में नहीं आता।
  3. ✅ ऐसे मामलों में, अनुच्छेद 226 के तहत उच्च न्यायालय को अधिकार प्राप्त है कि वह उस आदेश की वैधता की समीक्षा कर सके।
  4. ✅ इस निर्णय में न्यायालय ने यह भी कहा कि:

    “जहाँ केवल विधिक प्रश्न उठते हैं और तथ्यों की कोई जटिलता नहीं है, वहाँ न्यायिक समीक्षा का अधिकार उच्च न्यायालय के पास सुरक्षित रहता है।”


🧾 निर्णय का कानूनी महत्व:

  • यह निर्णय यह स्पष्ट करता है कि केवल इस आधार पर कि मामला वक्फ से संबंधित है, उच्च न्यायालय स्वतः अपना अधिकार क्षेत्र नहीं छोड़ सकता।
  • यह संवैधानिक उपचारों की उपलब्धता का समर्थन करता है, विशेष रूप से तब जब विधिक प्रक्रिया में त्रुटि या प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों का उल्लंघन हुआ हो।
  • इससे यह भी स्पष्ट होता है कि न्यायिक प्रणाली में संतुलन बनाए रखने के लिए, ट्रिब्यूनल और उच्च न्यायालय की भूमिकाएं परस्पर पूरक हैं।

🔍 उदाहरण के तौर पर:

यदि वक्फ बोर्ड बिना किसी पूर्व सूचना या सुनवाई के किसी निजी संपत्ति को वक्फ संपत्ति घोषित कर देता है, और इस प्रक्रिया में किसी प्रकार की तथ्यात्मक जांच की आवश्यकता नहीं है, तो पीड़ित पक्ष सीधे उच्च न्यायालय में रिट याचिका दाखिल कर सकता है।


📚 निष्कर्ष:

कर्नाटक उच्च न्यायालय का यह निर्णय संविधान और विशेष कानूनों के अंतर्गत उपलब्ध उपचारों के बीच सामंजस्य स्थापित करता है।
यह एक बार फिर से इस सिद्धांत को पुष्ट करता है कि:

“जहाँ न्यायालय का अधिकार क्षेत्र रोका नहीं गया है, वहाँ उसे निष्क्रिय नहीं होना चाहिए, विशेषकर जब नागरिक के मौलिक अधिकारों पर प्रभाव पड़ रहा हो।”

यह निर्णय वक्फ कानून की व्याख्या और High Court की न्यायिक समीक्षा शक्ति के बीच संतुलन के संदर्भ में एक दिशा-निर्देशक (landmark) भूमिका निभाएगा।