🧾 “वकीलों को मध्यस्थ बनने के लिए नई कला सीखनी होगी — बोलने से अधिक सुनना जरूरी”: सुप्रीम कोर्ट का ऐतिहासिक अवलोकन
भूमिका (Introduction)
भारतीय न्यायपालिका के इतिहास में सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court of India) ने समय-समय पर ऐसे निर्णय और टिप्पणियाँ दी हैं, जिन्होंने न्याय प्रणाली की दिशा और चरित्र दोनों को परिवर्तित किया है।
हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने एक अत्यंत विचारोत्तेजक टिप्पणी की, जिसमें कहा गया कि —
“यदि वकील (Lawyers) मध्यस्थ (Mediators) की भूमिका निभाना चाहते हैं, तो उन्हें एक अलग तरह की कला और दृष्टिकोण विकसित करना होगा।
मध्यस्थता (Mediation) में सफलता बोलने से नहीं, बल्कि सुनने की क्षमता (Art of Listening) से आती है।”
यह टिप्पणी न केवल न्याय प्रणाली में वैकल्पिक विवाद समाधान (ADR – Alternative Dispute Resolution) की बढ़ती आवश्यकता को रेखांकित करती है, बल्कि वकीलों की भूमिका को भी एक नए आयाम में प्रस्तुत करती है।
मामले का संदर्भ (Context of the Observation)
यह अवलोकन सुप्रीम कोर्ट की एक पीठ द्वारा उस समय किया गया, जब न्यायालय मध्यस्थता प्रक्रिया को सुदृढ़ और प्रभावी बनाने के उपायों पर विचार कर रहा था।
न्यायालय ने कहा कि भारत जैसे देश में जहां अदालतों पर मुकदमों का बोझ बढ़ता जा रहा है, वहां मध्यस्थता (Mediation) ही भविष्य की न्याय प्रणाली का व्यावहारिक समाधान बन सकती है।
परंतु, इस दिशा में सबसे बड़ी चुनौती यह है कि —
“वकील, जो तर्क और बहस में पारंगत हैं, उन्हें अब सुनने, समझने और समाधान सुझाने की कला सीखनी होगी।”
न्यायालय की प्रमुख टिप्पणी (Supreme Court’s Key Observation)
सुप्रीम कोर्ट ने कहा —
“Lawyers are trained to argue, persuade and convince the court, but mediators are expected to listen, empathize, and facilitate communication between parties.
To double up as mediators, lawyers must unlearn certain habits and adopt new skills that promote dialogue over debate.”
न्यायालय ने आगे कहा कि मध्यस्थता कोई “कमज़ोर विकल्प” नहीं, बल्कि एक परिपक्व न्यायिक प्रक्रिया है जो विवादों को सौहार्दपूर्वक सुलझाने में सक्षम है।
पृष्ठभूमि (Background of Mediation in India)
भारत में मध्यस्थता (Mediation) को विधिक मान्यता सिविल प्रक्रिया संहिता (CPC) के Order X Rule 1A–1C और Arbitration and Conciliation Act, 1996 के Part III के अंतर्गत दी गई है।
साथ ही, 2023 में पारित “Mediation Act, 2023” ने भारत में वैकल्पिक विवाद समाधान प्रणाली को एक स्वतंत्र और सशक्त कानूनी आधार प्रदान किया है।
इस अधिनियम का उद्देश्य है —
- न्यायिक बोझ कम करना,
- आपसी समझ से विवाद सुलझाना,
- और न्याय को जनसुलभ बनाना।
वकील और मध्यस्थ के बीच मूलभूत अंतर (Lawyer vs Mediator – Fundamental Differences)
| पहलू (Aspect) | वकील (Lawyer) | मध्यस्थ (Mediator) |
|---|---|---|
| मुख्य भूमिका | अपने मुवक्किल की पैरवी करना | दोनों पक्षों को समझौते तक पहुंचाना |
| कार्यप्रणाली | तर्क और विधिक विश्लेषण पर आधारित | संवाद, समझ और सहानुभूति पर आधारित |
| लक्ष्य | मुकदमे में जीत सुनिश्चित करना | विवाद का शांतिपूर्ण समाधान खोजना |
| कौशल (Skill) | बोलने, मनवाने और बहस करने की कला | सुनने, समझने और संतुलन बनाने की कला |
| परिणाम | न्यायालय का निर्णय | दोनों पक्षों की सहमति से समझौता |
सुप्रीम कोर्ट की दृष्टि (Supreme Court’s Vision)
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि भारत में “मध्यस्थता संस्कृति” (Culture of Mediation) विकसित करने की आवश्यकता है।
इसके लिए केवल कानून नहीं, बल्कि वकीलों और न्यायिक अधिकारियों के व्यवहारिक दृष्टिकोण (Behavioural Mindset) में बदलाव जरूरी है।
न्यायालय ने विशेष रूप से कहा —
“Mediation is not about winning or losing; it is about finding a middle path acceptable to both sides.”
यह विचार उस पारंपरिक न्यायिक दृष्टिकोण से भिन्न है जिसमें हर मुकदमे का एक विजेता और एक पराजित होता है।
वकीलों को क्यों बदलनी होगी अपनी दृष्टि (Why Lawyers Need to Transform Their Approach)
सुप्रीम कोर्ट का यह कहना कि “वकीलों को बोलने से ज्यादा सुनना सीखना होगा”, सिर्फ एक सलाह नहीं, बल्कि पेशेवर चेतावनी है।
क्योंकि:
- मुकदमेबाजी (Litigation) अब अत्यधिक समय, धन और ऊर्जा लेने वाली प्रक्रिया बन चुकी है।
- जनता अब तेज, सुलभ और सस्ते समाधान चाहती है।
- मध्यस्थता (Mediation) से रिश्ते टूटते नहीं, बल्कि सुधरते हैं।
इसलिए, वकीलों को अब केवल “कानूनी तर्ककर्ता” नहीं, बल्कि “संवाद-साधक” बनना होगा।
मध्यस्थ बनने के लिए आवश्यक कौशल (Essential Skills for Lawyers to Become Mediators)
- सुनने की कला (Active Listening):
मध्यस्थता में सबसे अहम है कि आप दोनों पक्षों की बात ध्यान से सुनें, बीच में टोके बिना। - सहानुभूति (Empathy):
यह समझना कि हर विवाद के पीछे भावनाएँ और परिस्थितियाँ छिपी होती हैं। - तटस्थता (Neutrality):
किसी एक पक्ष का पक्षपात न करना और निष्पक्ष रहना। - संचार कौशल (Communication Skills):
शब्दों का चयन, आवाज़ का स्वर और व्यवहारिक भाषा का प्रयोग अत्यंत महत्वपूर्ण है। - संघर्ष प्रबंधन (Conflict Management):
जब पक्ष भावनात्मक रूप से उत्तेजित हों, तो उन्हें शांत और संतुलित दिशा में ले जाना। - गोपनीयता (Confidentiality):
मध्यस्थता में कही गई बातों को बाहर न आने देना — यही प्रक्रिया की आत्मा है।
सुप्रीम कोर्ट के अवलोकन का सामाजिक महत्व (Social Significance of the Observation)
सुप्रीम कोर्ट की यह टिप्पणी केवल वकीलों के लिए नहीं, बल्कि पूरी न्यायिक व्यवस्था के लिए चेतावनी और मार्गदर्शन दोनों है।
यह इस बात का संकेत है कि —
- न्याय का अर्थ केवल निर्णय नहीं, बल्कि समाधान भी है।
- मध्यस्थता न्याय के मानवीय स्वरूप को पुनर्जीवित करती है।
- वकीलों को अब समाज सुधारक और संवाद-सृजनकर्ता की भूमिका निभानी होगी।
वर्तमान परिदृश्य (Current Scenario)
भारत में प्रति वर्ष लाखों नए मुकदमे दर्ज होते हैं।
केंद्रीय कानून मंत्रालय के आंकड़ों के अनुसार:
- देशभर में 4.5 करोड़ से अधिक मुकदमे लंबित हैं।
- एक मुकदमे को निष्कर्ष तक पहुंचने में औसतन 5–10 वर्ष लगते हैं।
ऐसे में, यदि वकील मध्यस्थता की भूमिका अपनाते हैं, तो यह न केवल न्यायालयों का बोझ कम करेगा, बल्कि समाज में सौहार्द और सहयोग की भावना भी बढ़ाएगा।
मध्यस्थता अधिनियम, 2023 की भूमिका (Role of Mediation Act, 2023)
सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी Mediation Act, 2023 की भावना को और मजबूती देती है।
यह अधिनियम निम्नलिखित सिद्धांतों पर आधारित है:
- पूर्व-मुकदमा मध्यस्थता (Pre-litigation Mediation):
अदालत जाने से पहले पक्षों को मध्यस्थता का अवसर दिया जाएगा। - समझौते की वैधता:
मध्यस्थता से प्राप्त समझौते को डिक्री का दर्जा दिया जाएगा। - मान्यता प्राप्त मध्यस्थ केंद्र (Recognized Mediation Centers):
सरकार ऐसे केंद्र स्थापित करेगी जहां प्रशिक्षित मध्यस्थ कार्य करेंगे।
इस अधिनियम के माध्यम से भारत में मध्यस्थता को “वैकल्पिक” नहीं, बल्कि “प्राथमिक” विवाद समाधान तंत्र बनाने की कोशिश की जा रही है।
सुप्रीम कोर्ट की दूरदर्शिता (Supreme Court’s Visionary Perspective)
न्यायालय ने यह भी कहा कि आने वाले समय में न्यायपालिका को “मुकदमे से समाधान” की दिशा में काम करना होगा।
“Courts must evolve from being mere adjudicators to becoming facilitators of resolution.”
इस दिशा में न्यायालय ने यह भी सुझाव दिया कि कानून कॉलेजों में मध्यस्थता प्रशिक्षण (Mediation Training) को अनिवार्य किया जाए, ताकि आने वाले पीढ़ी के वकील संवाद और समाधान दोनों में दक्ष हों।
कानूनी पेशे का भविष्य (Future of Legal Profession)
सुप्रीम कोर्ट की यह टिप्पणी वकालत पेशे के भविष्य की दिशा तय करती है।
अब आने वाले वर्षों में “लॉयर-मीडिएटर” (Lawyer-Mediator) की भूमिका तेजी से बढ़ेगी।
वकीलों को चाहिए कि वे:
- मध्यस्थता की औपचारिक ट्रेनिंग लें,
- मानव मनोविज्ञान और व्यवहारिक कानून की समझ विकसित करें,
- और कानून की भाषा से आगे बढ़कर संवाद की भाषा सीखें।
प्रेरणादायक विचार (Inspirational Message)
“A good lawyer speaks well,
but a great mediator listens better.”
सुप्रीम कोर्ट का यह दृष्टिकोण न्यायिक मानवता की ओर लौटने का आह्वान है।
यह हमें याद दिलाता है कि न्याय केवल कानून की धाराओं में नहीं, बल्कि मनुष्यता की समझ में बसता है।
निष्कर्ष (Conclusion)
सुप्रीम कोर्ट की यह टिप्पणी भारतीय न्याय प्रणाली के लिए एक परिवर्तनकारी संकेत (Transformative Signal) है।
इसने वकीलों को यह सोचने पर मजबूर किया है कि क्या वे केवल बहस करने वाले पेशेवर हैं या समाज में शांति स्थापित करने वाले सेतु-निर्माता?
मध्यस्थता की सफलता उसी दिन संभव होगी, जब वकील “विवाद के पक्ष” से हटकर “समाधान के पक्ष” में खड़े होंगे।
सुनने की क्षमता, सहानुभूति, और संवाद – यही तीन स्तंभ एक सफल मध्यस्थ की पहचान हैं।
इसलिए, सुप्रीम कोर्ट का यह कहना कि —
“Lawyers must learn to listen more and speak less”
सिर्फ एक न्यायिक टिप्पणी नहीं, बल्कि भारतीय न्यायशास्त्र के विकास का नया अध्याय है।
🔖 सारांश:
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि जो वकील मध्यस्थ की भूमिका निभाना चाहते हैं, उन्हें अपनी पारंपरिक वकालत की शैली में बदलाव लाना होगा। मध्यस्थता की सफलता तर्क में नहीं, बल्कि सुनने, समझने और संवाद स्थापित करने की क्षमता में निहित है। वकीलों को अब “बोलने वाले प्रतिनिधि” नहीं, बल्कि “सुनने वाले समाधानकर्ता” बनना होगा। यह भारत की न्याय प्रणाली को मुकदमेबाजी से संवाद-आधारित न्याय की ओर ले जाने का मार्ग है।