लोकपाल और लोकायुक्त अधिनियम, 2013 : भ्रष्टाचार विरोधी एक क्रांतिकारी कदम

लोकपाल और लोकायुक्त अधिनियम, 2013 : भ्रष्टाचार विरोधी एक क्रांतिकारी कदम

परिचय :
भारत में सरकारी तंत्र में व्याप्त भ्रष्टाचार को जड़ से खत्म करने की मांग लंबे समय से उठती रही है। 2011 में अन्ना हजारे के नेतृत्व में हुए जन आंदोलन ने भ्रष्टाचार के खिलाफ जन-जागृति फैलाते हुए केंद्र सरकार पर दबाव डाला, जिसके परिणामस्वरूप “लोकपाल और लोकायुक्त अधिनियम, 2013” पारित हुआ। यह अधिनियम उच्च पदों पर आसीन लोक सेवकों, जैसे प्रधानमंत्री, मंत्रियों और सांसदों की जांच और जवाबदेही सुनिश्चित करने के उद्देश्य से बनाया गया है।


अधिनियम का उद्देश्य :

  • केंद्र व राज्य स्तर पर भ्रष्टाचार की शिकायतों की स्वतंत्र जांच व्यवस्था करना।
  • एक उच्च पदस्थ स्वतंत्र संस्था लोकपाल की स्थापना करना।
  • राज्यों में लोकायुक्त की नियुक्ति सुनिश्चित करना।
  • लोक सेवकों की जवाबदेही तय करना।
  • पारदर्शिता, नैतिकता और सुशासन को बढ़ावा देना।

लोकपाल की संरचना :

1. लोकपाल का गठन (Section 3):

  • लोकपाल एक बहु-सदस्यीय निकाय होता है।
  • इसमें एक अध्यक्ष और अधिकतम 8 अन्य सदस्य होते हैं।
  • कुल सदस्यों में कम से कम 50% न्यायिक सदस्य, और 50% अनुसूचित जाति, जनजाति, पिछड़ा वर्ग, महिलाएं या अल्पसंख्यक समुदाय से होना अनिवार्य है।

2. चयन समिति (Section 4):
लोकपाल की नियुक्ति के लिए एक उच्चस्तरीय चयन समिति गठित होती है, जिसमें निम्न सदस्य होते हैं—

  • प्रधानमंत्री (अध्यक्ष)
  • लोकसभा अध्यक्ष
  • विपक्ष के नेता
  • भारत के मुख्य न्यायाधीश या सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठतम न्यायाधीश
  • एक प्रतिष्ठित विधिशास्त्री (President द्वारा नामित)

लोकपाल की शक्तियाँ एवं कार्य :

  • प्रधानमंत्री, केंद्रीय मंत्री, सांसद, सरकारी अधिकारी, यहां तक कि NGOs भी इसके अधिकार क्षेत्र में आते हैं।
  • लोकपाल को भ्रष्टाचार की शिकायतों की जांच और अभियोजन की सिफारिश करने का अधिकार है।
  • सीबीआई और प्रवर्तन निदेशालय जैसी एजेंसियाँ लोकपाल के निर्देशों पर कार्य करने के लिए बाध्य हैं।
  • लोकपाल के पास संपत्ति विवरण, सार्वजनिक सुनवाई, और शिकायत निवारण की शक्तियाँ हैं।

लोकायुक्त : राज्यों के लिए प्रावधान

धारा 63 के अनुसार प्रत्येक राज्य को अपने राज्य स्तर पर लोकायुक्त की नियुक्ति करनी होती है।

  • यह राज्य के मुख्यमंत्री, मंत्रीगण, और सरकारी अधिकारियों की जांच कर सकता है।
  • लोकायुक्त की नियुक्ति, कार्यकाल और शक्तियाँ राज्य सरकारें तय करती हैं।
  • अब तक अधिकांश राज्यों ने लोकायुक्त की नियुक्ति कर दी है, यद्यपि उनकी शक्तियाँ भिन्न-भिन्न हैं।

महत्त्वपूर्ण विशेषताएँ :

  1. प्रधानमंत्री को भी शामिल किया गया है, यद्यपि राष्ट्रीय सुरक्षा, विदेश नीति आदि मामलों में अपवाद हैं।
  2. स्वतंत्र जांच एजेंसी की संकल्पना – CBI लोकपाल की निगरानी में कार्य करती है।
  3. सीमित समय में जांच पूर्ण करने का प्रावधान – प्राथमिक जांच 60 दिन में, पूर्ण जांच 6 महीने में समाप्त होनी चाहिए।
  4. Whistleblower की सुरक्षा का प्रावधान (हालाँकि अलग अधिनियम में)।
  5. NGOs और ट्रस्ट जो सरकारी सहायता प्राप्त करते हैं, वे भी अधिनियम के दायरे में आते हैं।

कमियाँ और चुनौतियाँ :

  • राज्यों में लोकायुक्त की नियुक्ति और शक्तियों की स्पष्टता नहीं है।
  • सीबीआई की पूर्ण स्वतंत्रता सुनिश्चित नहीं हो पाई।
  • कार्यान्वयन की गति धीमी रही है।
  • लोकपाल की नियुक्ति में भी काफी देरी हुई (पहली बार 2019 में नियुक्ति)।
  • जनभागीदारी और शिकायत प्रक्रिया को अधिक सुलभ बनाने की आवश्यकता है।

महत्त्वपूर्ण घटनाक्रम :

  • 2011 : अन्ना हजारे द्वारा जनलोकपाल आंदोलन शुरू।
  • 2013 : संसद द्वारा अधिनियम पारित।
  • 2019 : न्यायमूर्ति पिनाकी चंद्र घोष भारत के पहले लोकपाल नियुक्त किए गए।

निष्कर्ष :

लोकपाल और लोकायुक्त अधिनियम, 2013 भारत में भ्रष्टाचार के विरुद्ध एक महत्त्वपूर्ण विधिक हथियार है। यह अधिनियम सत्ता के उच्चतम स्तर पर पारदर्शिता और उत्तरदायित्व की परिकल्पना करता है। यद्यपि इसके कार्यान्वयन में कई व्यावहारिक बाधाएँ हैं, फिर भी यह भारत में जन उत्तरदायी शासन की दिशा में एक ठोस पहल है। यदि इसकी संरचना, शक्तियाँ और प्रक्रिया को पूर्णतः प्रभावी रूप से लागू किया जाए, तो यह भ्रष्टाचार पर लगाम लगाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है।