लैंगिक चयन और भ्रूण हत्या पर कानूनी प्रतिबंध – एक विस्तृत कानूनी एवं सामाजिक विश्लेषण
भूमिका
लैंगिक चयन (Sex Selection) और भ्रूण हत्या (Foeticide) भारतीय समाज में लंबे समय से एक गंभीर सामाजिक एवं नैतिक समस्या रही है। यह प्रथा न केवल महिलाओं के प्रति भेदभाव को बढ़ावा देती है, बल्कि लिंगानुपात (Sex Ratio) में खतरनाक असंतुलन भी पैदा करती है। विज्ञान और चिकित्सा के विकास के साथ-साथ भ्रूण के लिंग का पता लगाना आसान हो गया, लेकिन इस तकनीक का दुरुपयोग लड़कियों के भ्रूण को गर्भ में ही समाप्त करने के लिए किया जाने लगा। इस अमानवीय कृत्य को रोकने के लिए भारत में कई कानूनी प्रतिबंध लागू किए गए हैं, जिनमें सबसे प्रमुख है “पूर्व गर्भाधान और प्रसव पूर्व निदान तकनीक (PCPNDT) अधिनियम, 1994”।
लैंगिक चयन और भ्रूण हत्या का अर्थ
- लैंगिक चयन (Sex Selection)
- यह वह प्रक्रिया है जिसमें संतान का लिंग गर्भधारण से पहले या गर्भावस्था के दौरान विभिन्न तकनीकों के माध्यम से निर्धारित किया जाता है, और विशेष रूप से किसी एक लिंग (अधिकतर लड़का) के चयन के लिए गर्भधारण किया जाता है।
- भ्रूण हत्या (Foeticide)
- यह भ्रूण को गर्भ में ही नष्ट करने का कार्य है। जब यह कार्य भ्रूण के लिंग का पता लगने के बाद केवल इसलिए किया जाता है क्योंकि भ्रूण लड़की है, तो इसे महिला भ्रूण हत्या (Female Foeticide) कहा जाता है।
समस्या की पृष्ठभूमि
- भारत में परंपरागत रूप से बेटों को परिवार का वारिस और आर्थिक सहारा माना गया, जबकि बेटियों को बोझ समझा गया।
- दहेज प्रथा, सामाजिक रूढ़िवादिता और पितृसत्तात्मक सोच के कारण महिला भ्रूण हत्या की घटनाएं बढ़ीं।
- 2011 की जनगणना के अनुसार भारत में 0-6 वर्ष आयु वर्ग का लिंगानुपात 919 लड़कियाँ प्रति 1000 लड़के था, जो इस समस्या की गंभीरता को दर्शाता है।
लैंगिक चयन और भ्रूण हत्या को बढ़ावा देने वाले कारण
- सामाजिक कारण
- पितृसत्तात्मक समाज व्यवस्था
- दहेज प्रथा
- परिवार का नाम और संपत्ति का उत्तराधिकार केवल बेटों को मिलना
- वृद्धावस्था में बेटों पर निर्भरता की सोच
- आर्थिक कारण
- बेटियों के पालन-पोषण और शादी में अधिक खर्च
- बेटियों को “पराया धन” मानने की मानसिकता
- तकनीकी कारण
- अल्ट्रासोनोग्राफी और भ्रूण परीक्षण तकनीकों का दुरुपयोग
- IVF और अन्य गर्भाधान तकनीकों में लिंग चयन की सुविधा
- कानूनी प्रवर्तन में ढिलाई
- PCPNDT अधिनियम के सख्त प्रावधानों के बावजूद निगरानी और कार्यवाही में कमी
- भ्रूण लिंग जांच करने वाले डॉक्टरों और केंद्रों पर समय पर कार्रवाई न होना
भारत में कानूनी प्रतिबंध
1. भारतीय दंड संहिता (IPC) के प्रावधान
- धारा 312-316: गर्भपात और भ्रूण हत्या को दंडनीय अपराध माना गया है।
- धारा 315: जन्म से पहले बच्चे को नष्ट करने का प्रयास करने पर 10 वर्ष तक की सजा।
- धारा 316: गर्भस्थ शिशु की मृत्यु का कारण बनने पर आजीवन कारावास या 10 वर्ष तक की सजा और जुर्माना।
2. चिकित्सा गर्भपात अधिनियम, 1971 (Medical Termination of Pregnancy Act, 1971)
- कुछ वैध परिस्थितियों (जैसे गर्भवती महिला का स्वास्थ्य खतरे में होना या भ्रूण में गंभीर विकृति) में गर्भपात की अनुमति देता है, लेकिन लिंग के आधार पर गर्भपात प्रतिबंधित है।
3. पूर्व गर्भाधान और प्रसव पूर्व निदान तकनीक अधिनियम, 1994 (PCPNDT Act, 1994)
- उद्देश्य: भ्रूण के लिंग निर्धारण और चयन को रोकना।
- मुख्य प्रावधान:
- गर्भ से पहले और गर्भ के दौरान लिंग निर्धारण पर पूर्ण प्रतिबंध।
- केवल चिकित्सकीय आवश्यकता होने पर ही भ्रूण परीक्षण की अनुमति।
- उल्लंघन करने वाले डॉक्टर, लैब या केंद्र का पंजीकरण रद्द और दंड।
- पहली बार अपराध पर 3 साल की कैद और ₹10,000 का जुर्माना, पुनरावृत्ति पर 5 साल की कैद और ₹50,000 का जुर्माना।
4. सर्वोच्च न्यायालय के महत्वपूर्ण निर्णय
- Centre for Enquiry into Health and Allied Themes (CEHAT) v. Union of India, 2003
- सुप्रीम कोर्ट ने PCPNDT अधिनियम के सख्त प्रवर्तन का आदेश दिया और राज्यों को नियमित निरीक्षण करने को कहा।
प्रवर्तन में चुनौतियाँ
- ग्रामीण क्षेत्रों में जागरूकता की कमी।
- अवैध क्लीनिकों और डॉक्टरों का नेटवर्क।
- भ्रष्टाचार और राजनीतिक संरक्षण।
- सामाजिक दबाव के कारण शिकायत दर्ज न करना।
समस्या का सामाजिक प्रभाव
- लिंगानुपात में असंतुलन → भविष्य में विवाह योग्य महिलाओं की कमी।
- महिलाओं पर हिंसा में वृद्धि → तस्करी, जबरन विवाह, यौन शोषण।
- सामाजिक संरचना में असंतुलन → अपराध दर में वृद्धि।
- मानवाधिकार हनन → लड़की भ्रूण का जीवन अधिकार छीनना।
समाधान और सुझाव
- कानूनी प्रवर्तन को मजबूत बनाना
- PCPNDT अधिनियम का कड़ाई से पालन।
- गुप्त जांच और त्वरित कार्रवाई।
- सामाजिक जागरूकता
- “बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ” जैसी योजनाओं को प्रभावी बनाना।
- शिक्षा और मीडिया अभियान के माध्यम से मानसिकता बदलना।
- आर्थिक प्रोत्साहन
- बेटियों के लिए छात्रवृत्ति, विवाह सहायता और रोजगार के अवसर।
- तकनीकी निगरानी
- अल्ट्रासोनोग्राफी मशीनों की ट्रैकिंग और डेटा रिकॉर्डिंग अनिवार्य।
निष्कर्ष
लैंगिक चयन और भ्रूण हत्या केवल कानूनी अपराध नहीं, बल्कि एक गंभीर सामाजिक बुराई है जो आने वाली पीढ़ियों के संतुलन को प्रभावित करती है। कानून ने स्पष्ट रूप से इसे प्रतिबंधित किया है, लेकिन जब तक समाज की मानसिकता नहीं बदलेगी, केवल कानून से इस समस्या का समाधान संभव नहीं। प्रत्येक नागरिक की जिम्मेदारी है कि वह बेटी को बराबर सम्मान और अधिकार दे, ताकि एक संतुलित और न्यायपूर्ण समाज का निर्माण हो सके।