लेख शीर्षक:
“लिव-इन रिलेशनशिप में दीर्घकालीन सहमति विवाह की मंशा नहीं दर्शाती: सुप्रीम कोर्ट ने दुष्कर्म के मामले में आरोपी को दी राहत”
भूमिका:
भारतीय समाज में विवाह, सहमति, और लिव-इन संबंधों को लेकर न्यायपालिका का दृष्टिकोण लगातार विकसित हो रहा है। इसी क्रम में सुप्रीम कोर्ट ने एक महत्त्वपूर्ण निर्णय में लंबे समय तक चले लिव-इन रिलेशनशिप को विवाह की मंशा के विपरीत माना और झूठे विवाह के वादे पर दुष्कर्म के आरोप को खारिज कर दिया। यह फैसला Ravish Singh Rana बनाम उत्तराखंड राज्य व अन्य मामले में सुनाया गया।
🔷 प्रकरण का संक्षिप्त विवरण:
- याचिकाकर्ता Ravish Singh Rana पर एक महिला ने दुष्कर्म (Section 376 IPC) का आरोप लगाया था, यह कहते हुए कि आरोपी ने झूठे विवाह के वादे पर शारीरिक संबंध बनाए।
- महिला और आरोपी कई वर्षों तक लिव-इन रिलेशनशिप में रहे थे।
- आरोपी ने FIR रद्द करने की याचिका सुप्रीम कोर्ट में दायर की थी।
⚖️ सुप्रीम कोर्ट की मुख्य टिप्पणियाँ:
✅ लंबे समय तक साथ रहना सहमति को दर्शाता है:
न्यायालय ने कहा कि जब कोई पुरुष और महिला स्वेच्छा से कई वर्षों तक साथ रहते हैं, तो यह मान लिया जाता है कि वे सिर्फ विवाह के उद्देश्य से साथ नहीं रह रहे थे, बल्कि सहमति से संबंध में थे।
✅ दुष्कर्म की परिभाषा में ‘झूठा वादा’ सावधानीपूर्वक लागू किया जाना चाहिए:
कोर्ट ने यह स्पष्ट किया कि झूठे वादे पर आधारित दुष्कर्म के आरोपों की जांच गंभीरता से और तथ्यों के आधार पर की जानी चाहिए, न कि केवल आरोपों के आधार पर।
✅ लिव-इन संबंध में विवाह की मंशा स्पष्ट नहीं होती:
“If a couple continues their live-in relationship for a long period, there is a presumption that they did not want marriage.”
✅ FIR रद्द की गई:
न्यायालय ने पाया कि इस मामले में बलात्कार के आरोप में आवश्यक आपराधिक मंशा (mens rea) का अभाव था, और FIR केवल बाद में उत्पन्न असहमति या संबंध टूटने का परिणाम थी। अतः इसे रद्द किया गया।
📚 महत्वपूर्ण विधिक बिंदु:
धाराएँ | विवरण |
---|---|
IPC Section 376 | बलात्कार की परिभाषा और सजा |
CrPC Section 482 | FIR रद्द करने के लिए उच्च न्यायालय या सुप्रीम कोर्ट की अंतर्निहित शक्तियाँ |
🔍 इस निर्णय का व्यापक प्रभाव:
- ✅ लिव-इन रिलेशनशिप को न्यायालयिक संरक्षण और स्पष्टता
- ✅ फर्जी या भावनात्मक रूप से प्रेरित आपराधिक मामलों पर नियंत्रण
- ✅ महिलाओं और पुरुषों दोनों के अधिकारों की रक्षा
- ✅ सहमति और अपराध के बीच स्पष्ट अंतर स्थापित किया गया
🔚 निष्कर्ष:
सुप्रीम कोर्ट का यह निर्णय न केवल झूठे वादों पर आधारित दुष्कर्म के मामलों में आवश्यक विधिक मानकों को स्पष्ट करता है, बल्कि यह भी सुनिश्चित करता है कि लिव-इन रिलेशनशिप जैसे संवेदनशील विषयों को न्याय के तराजू पर सावधानीपूर्वक तौला जाए। ऐसे मामलों में केवल भावनात्मक आधार पर नहीं, बल्कि कानूनी साक्ष्य और मंशा के आधार पर निर्णय किया जाना आवश्यक है।