“लिखित बयान दाखिल करने में देरी: असाधारण परिस्थितियों में मिल सकती है राहत — मध्य प्रदेश हाईकोर्ट का न्यायपूर्ण दृष्टिकोण”
परिचय
मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय ने एक महत्वपूर्ण निर्णय में यह स्पष्ट किया है कि सिविल प्रक्रिया संहिता (CPC) की आदेश 8 नियम 1 (Order 8 Rule 1) के अंतर्गत निर्धारित समय सीमा से परे यदि कोई पक्ष असाधारण परिस्थितियों को सिद्ध करता है, तो लिखित बयान (Written Statement) दाखिल करने की अनुमति दी जा सकती है।
इस निर्णय से यह सिद्ध होता है कि न्याय की प्रक्रिया में लचीलापन और व्यावहारिकता भी आवश्यक है, और न्यायालय केवल तकनीकी प्रावधानों के आधार पर किसी पक्ष को सुनवाई से वंचित नहीं कर सकता।
मामले की पृष्ठभूमि
- ट्रायल कोर्ट ने देरी के कारण याचिकाकर्ता का लिखित बयान दाखिल करने का अधिकार समाप्त (closed) कर दिया था।
- याचिकाकर्ता ने इस आदेश को चुनौती देते हुए हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया।
- याचिकाकर्ता ने यह तर्क दिया कि देरी असाधारण परिस्थितियों के कारण हुई थी, और न्यायहित में सुनवाई का अवसर मिलना चाहिए।
मध्य प्रदेश हाईकोर्ट का निर्णय: प्रमुख बिंदु
- Order 8 Rule 1 – केवल निर्देशात्मक (Directory), अनिवार्य नहीं (Mandatory):
कोर्ट ने Supreme Court के प्रसिद्ध निर्णय Salem Advocate Bar Association v. Union of India पर भरोसा करते हुए कहा कि आदेश 8 नियम 1 की समयसीमा कोई कठोर बाध्यता नहीं है, बल्कि यह एक निर्देशात्मक प्रावधान है, जिसका उद्देश्य सुनवाई की गति बनाए रखना है, न कि न्याय को बाधित करना। - ‘Shall’ का प्रयोग अनिवार्यता नहीं दर्शाता:
कोर्ट ने यह स्पष्ट किया कि भले ही नियम में “shall” शब्द का प्रयोग हुआ है, यह परिस्थितियों के अनुसार लचीला माना जा सकता है। - असाधारण परिस्थितियों का महत्व:
यदि कोई पक्ष यह सिद्ध कर दे कि उसके द्वारा समयसीमा का उल्लंघन अनिवार्य परिस्थितियों या गंभीर कारणों के कारण हुआ, तो अदालत देरी को माफ कर सकती है और लिखित बयान स्वीकार कर सकती है। - प्रक्रियात्मक न्याय बनाम तकनीकी बाध्यता:
कोर्ट ने दोहराया कि प्रक्रिया का उद्देश्य न्याय सुनिश्चित करना है, न कि तकनीकी आधार पर किसी पक्ष को बाहर कर देना। - केस ट्रायल कोर्ट को वापस:
हाईकोर्ट ने मामला ट्रायल कोर्ट को वापस भेज दिया और याचिकाकर्ता को निर्देश दिया कि वह देरी की क्षमा याचना (delay condonation application) प्रस्तुत करे, जिसे ट्रायल कोर्ट उचित तरीके से विचार करेगा।
इस निर्णय का महत्व
- न्यायिक प्रक्रियाओं में मानवीय दृष्टिकोण अपनाने का स्पष्ट उदाहरण
- तकनीकी त्रुटियों के कारण किसी पक्ष को अनुचित रूप से नुकसान से बचाना
- सिविल वादों में निष्पक्ष सुनवाई की सांविधिक गारंटी को बल
- सुप्रीम कोर्ट के मार्गदर्शक निर्णयों का प्रभावी अनुप्रयोग
निष्कर्ष
मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय का यह निर्णय भारतीय न्याय प्रणाली में न्याय और प्रक्रिया के संतुलन का आदर्श उदाहरण प्रस्तुत करता है। यह निर्णय दर्शाता है कि न्यायालय केवल लिखे हुए नियमों के अनुयायी नहीं, बल्कि न्याय के संरक्षक भी हैं। जब भी असाधारण परिस्थितियां सामने आती हैं, अदालतें अपने विवेक से प्रक्रिया में लचीलापन दिखाकर न्याय की मूल आत्मा की रक्षा करती हैं।
संदर्भ:
- M.P. High Court Judgment – 2025
- CPC Order 8 Rule 1
- Salem Advocate Bar Association v. Union of India, Supreme Court
- CrPC Sections on Procedural Justice