“लक्ष्य-आधारित छूट प्रतिस्पर्धा विरोधी नहीं: सुप्रीम कोर्ट ने CCI की याचिका खारिज की – Competition Commission of India v. Schott Glass India Pvt. Ltd.”
भूमिका:
भारतीय प्रतिस्पर्धा कानून का उद्देश्य है कि बाजार में प्रतिस्पर्धा बनी रहे और उपभोक्ताओं को अधिक विकल्प व उचित मूल्य मिले। इस संदर्भ में, Competition Commission of India (CCI) समय-समय पर विभिन्न कंपनियों के व्यापार व्यवहार की समीक्षा करता है, विशेष रूप से यह जांचने के लिए कि क्या कोई कंपनी अपने प्रभुत्व (dominant position) का दुरुपयोग (abuse) कर रही है।
हाल ही में, Competition Commission of India v. Schott Glass India Pvt. Ltd. मामले में सुप्रीम कोर्ट ने एक ऐतिहासिक निर्णय देते हुए स्पष्ट किया कि लक्ष्य-आधारित या वॉल्यूम-आधारित छूट (target or volume-based rebates) प्रतिस्पर्धा अधिनियम, 2002 के तहत “प्रभुत्व के दुरुपयोग” की श्रेणी में नहीं आतीं।
मामले की पृष्ठभूमि:
Schott Glass India Pvt. Ltd. ने अपने ग्राहकों को बड़ी मात्रा में खरीदारी करने पर लक्षित छूटें (rebates) प्रदान की थीं। CCI ने इस प्रथा पर आपत्ति जताते हुए यह दावा किया कि यह व्यवहार छोटे खिलाड़ियों को बाजार से बाहर करने का माध्यम बन सकता है, जो प्रतिस्पर्धा के लिए हानिकारक है।
CCI ने इस मामले को सुप्रीम कोर्ट तक पहुँचाया, लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने उनकी याचिका को खारिज कर दिया।
सुप्रीम कोर्ट की प्रमुख टिप्पणियाँ:
- वॉल्यूम-आधारित छूट व्यापार का सामान्य हिस्सा है:
न्यायालय ने माना कि यदि कोई कंपनी अपने ग्राहकों को ज्यादा खरीद पर छूट देती है, तो यह एक आर्थिक रणनीति हो सकती है, जो सामान्य व्यापारिक व्यवहार के अंतर्गत आती है। - प्रभुत्व का दुरुपयोग तभी होता है जब उद्देश्य प्रतिस्पर्धा को खत्म करना हो:
केवल यह तथ्य कि कोई कंपनी बाजार में बड़ी है, यह सिद्ध नहीं करता कि वह प्रभुत्व का दुरुपयोग कर रही है। जब तक यह साबित न हो कि छूट की नीति का उद्देश्य प्रतिस्पर्धियों को बाहर करना है, तब तक यह प्रतिस्पर्धा-विरोधी व्यवहार नहीं मानी जा सकती। - प्रोत्साहन और छूट बाजार के लिए फायदेमंद हो सकते हैं:
न्यायालय ने कहा कि छूट योजनाएं कभी-कभी उपभोक्ताओं के लिए कीमतों में गिरावट लाने और बाजार में अधिक प्रतिस्पर्धा उत्पन्न करने में मददगार भी होती हैं। - CCI को ठोस साक्ष्य प्रस्तुत करने चाहिए:
कोर्ट ने यह भी कहा कि CCI को केवल सैद्धांतिक आपत्ति के बजाय ठोस प्रमाण देना चाहिए, जिससे यह स्पष्ट हो सके कि छूट रणनीति वास्तव में बाजार को हानि पहुँचा रही है।
कानूनी विश्लेषण:
- Competition Act, 2002 – Section 4:
किसी कंपनी द्वारा अपनी प्रभुत्व की स्थिति का दुरुपयोग करना जैसे – मूल्य तय करना, भेदभावपूर्ण व्यवहार, या प्रतिस्पर्धियों को बाज़ार से बाहर करना। - “Abuse of Dominance” का परीक्षण:
इसमें देखा जाता है कि क्या कंपनी का व्यवहार प्रतिस्पर्धा को रोकने, सीमित करने या विकृत करने के लिए किया गया है।
न्यायालय का निष्कर्ष:
“लक्ष्य-आधारित छूट या वॉल्यूम छूट, यदि वे स्वेच्छा से और पारदर्शी रूप से दी जा रही हैं, तथा उनका उद्देश्य प्रतिस्पर्धा को समाप्त करना नहीं है, तो वे Competition Act, 2002 के तहत ‘दुरुपयोग’ नहीं मानी जाएंगी।“
निष्कर्ष:
सुप्रीम कोर्ट के इस निर्णय से यह स्पष्ट हो गया है कि व्यावसायिक छूट योजनाएं, जब तक वे पारदर्शी हैं और उनका उद्देश्य प्रतिस्पर्धियों को नष्ट करना नहीं है, तब तक वे प्रतिस्पर्धा कानून का उल्लंघन नहीं करतीं।
यह फैसला न केवल भारतीय कंपनियों को मूल्य नीति निर्धारण में स्वतंत्रता देता है, बल्कि CCI जैसे नियामक संस्थानों को भी न्यायिक संतुलन के साथ काम करने का संकेत देता है।