रुतु मिहिर पांचाल एवं अन्य बनाम भारत संघ एवं अन्य: सुप्रीम कोर्ट का ऐतिहासिक निर्णय – कानूनों के क्रियान्वयन की ऑडिटिंग और मूल्यांकन पर जोर
प्रस्तावना
सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में रुतु मिहिर पांचाल एवं अन्य बनाम भारत संघ एवं अन्य के एक महत्वपूर्ण मामले में ऐतिहासिक निर्णय सुनाया। कोर्ट ने स्पष्ट किया कि किसी भी कानून के उद्देश्यों की पूर्ति के लिए उसका ऑडिट (performance audit) और मूल्यांकन करना ‘कानून के शासन’ (Rule of Law) का अभिन्न हिस्सा है। न्यायालय ने यह भी कहा कि न्यायपालिका को कार्यपालिका को यह निर्देश देने का अधिकार और कर्तव्य दोनों है कि वह किसी कानून के कार्यान्वयन की निगरानी करे और सुनिश्चित करे कि उसके उद्देश्य सही ढंग से पूरे हो रहे हैं।
मामला और पृष्ठभूमि
इस याचिका में रुतु मिहिर पांचाल एवं अन्य याचिकाकर्ताओं ने भारत संघ (यानी केंद्र सरकार) के विरुद्ध याचिका दायर कर यह आरोप लगाया था कि एक विशिष्ट कानून के तहत नीतियों और योजनाओं का क्रियान्वयन सही ढंग से नहीं हो रहा है। उनका कहना था कि कानून लागू तो किया गया, लेकिन उसके प्रावधानों के पालन और लाभार्थियों को उसका लाभ मिलना संदिग्ध है। इसलिए उन्होंने सुप्रीम कोर्ट से यह मांग की कि वह सरकार को इस कानून के क्रियान्वयन का ‘परफॉरमेंस ऑडिट’ करने का निर्देश दे।
न्यायालय की महत्वपूर्ण टिप्पणियां
न्यायमूर्ति बी. आर. गवई और न्यायमूर्ति विक्रम नाथ की पीठ ने कहा कि:
- Rule of Law केवल कानून के बनाने और उसके लागू होने तक सीमित नहीं है; बल्कि यह सुनिश्चित करना भी उतना ही महत्वपूर्ण है कि उस कानून के उद्देश्य वास्तव में पूरे हो रहे हैं।
- कार्यपालिका की जिम्मेदारी है कि वह न केवल कानून बनाए बल्कि उसे प्रभावी ढंग से लागू भी करे ताकि आम जनता को उसका लाभ मिल सके।
- न्यायपालिका को संविधान के अनुच्छेद 32 और 226 के तहत यह शक्ति और दायित्व है कि वह कार्यपालिका को कानूनों के कार्यान्वयन की निगरानी करने और आवश्यकतानुसार performance audit करने का निर्देश दे सके।
ऑडिट का महत्व
कोर्ट ने कहा कि किसी कानून का क्रियान्वयन कैसा हो रहा है, यह जानने के लिए performance audit जरूरी है ताकि यह पता चल सके कि सरकार की योजनाएं और नीतियां ज़मीनी स्तर पर कितनी प्रभावी हैं। ऑडिट से यह स्पष्ट होता है कि लाभार्थियों तक कानून का लाभ पहुंच रहा है या नहीं, और यदि नहीं, तो कहां सुधार की जरूरत है।
संविधान और कानूनी सिद्धांत
न्यायालय ने अपने फैसले में संविधान के अनुच्छेद 14 (समानता का अधिकार), अनुच्छेद 21 (जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता का अधिकार), और संविधान के मूलभूत ढांचे में निहित ‘Rule of Law’ के सिद्धांत का उल्लेख करते हुए कहा कि यदि कानून का क्रियान्वयन प्रभावी नहीं होता तो कानून बनाने का उद्देश्य ही अधूरा रह जाएगा।
कार्यपालिका को निर्देश
सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार को यह निर्देश दिया कि संबंधित कानून के कार्यान्वयन का performance audit किया जाए और उसकी रिपोर्ट सुप्रीम कोर्ट में प्रस्तुत की जाए। कोर्ट ने कहा कि यह ऑडिट एक स्वतंत्र और निष्पक्ष एजेंसी से कराया जाए ताकि इसकी निष्पक्षता बनी रहे।
निष्कर्ष
सुप्रीम कोर्ट का यह निर्णय प्रशासनिक जवाबदेही और कानून के शासन को सशक्त करता है। इससे यह संदेश जाता है कि सिर्फ कानून बनाना ही काफी नहीं है, बल्कि यह देखना भी जरूरी है कि वह वास्तव में लाभार्थियों तक पहुंच रहा है और अपने उद्देश्य पूरे कर रहा है या नहीं। यह निर्णय कानून के शासन (Rule of Law) और सुशासन (Good Governance) की दिशा में एक ऐतिहासिक कदम है।