“रिमांड क्या है? – पुलिस रिमांड और न्यायिक रिमांड की संपूर्ण जानकारी”
🔎 रिमांड क्या है?
जब पुलिस किसी व्यक्ति को किसी आपराधिक मामले में गिरफ़्तार करती है, तो भारतीय क़ानून के अनुसार उसे 24 घंटे के भीतर मजिस्ट्रेट (कोर्ट) के सामने पेश करना अनिवार्य होता है।
इस समय कोर्ट यह तय करता है कि आरोपी को पुलिस रिमांड में भेजा जाए या न्यायिक रिमांड (जेल) में।
👮♂️ पुलिस रिमांड (Police Custody)
- इसका मतलब है कि आरोपी को पुलिस की निगरानी में थाने में या किसी अन्य जांच एजेंसी के पास रखा जाएगा।
- इसका उद्देश्य:
- पुलिस को पूछताछ,
- सबूत जुटाने,
- अन्य आरोपियों की पहचान,
- या घटना के पुनः निर्माण के लिए समय देना।
- अवधि:
अधिकतम 15 दिन तक पुलिस रिमांड दी जा सकती है (CRPC की धारा 167 के अंतर्गत)। - पुलिस को अदालत से यह साबित करना होता है कि रिमांड की ज़रूरत क्यों है।
⚖️ न्यायिक रिमांड (Judicial Custody)
- इसका मतलब है कि आरोपी को जेल भेजा जाता है, यानी अब वह पुलिस की हिरासत में नहीं बल्कि न्यायिक निगरानी में रहेगा।
- इसमें पुलिस आरोपी से सीधी पूछताछ नहीं कर सकती जब तक कि कोर्ट से विशेष अनुमति न मिले।
- अवधि:
- पहले 15 दिन के बाद, न्यायिक रिमांड को 90 दिन (गंभीर अपराध) या 60 दिन (साधारण अपराध) तक बढ़ाया जा सकता है, जब तक चार्जशीट दाखिल न हो।
- यदि इस अवधि में चार्जशीट दाखिल नहीं होती, तो आरोपी जमानत का हकदार हो जाता है।
📌 पुलिस रिमांड और न्यायिक रिमांड में अंतर
पहलू | पुलिस रिमांड | न्यायिक रिमांड |
---|---|---|
निगरानी | पुलिस की | जेल प्रशासन की |
उद्देश्य | पूछताछ, जांच | न्यायिक प्रक्रिया तक आरोपी को रोकना |
अवधि | अधिकतम 15 दिन | 60/90 दिन तक संभव |
स्थान | पुलिस लॉकअप/थाना | जेल/कारागार |
अनुमति | मजिस्ट्रेट की अनुमति आवश्यक | कोर्ट का आदेश आवश्यक |
📚 कानूनी आधार:
- दंड प्रक्रिया संहिता (CrPC), धारा 167
- भारतीय संविधान का अनुच्छेद 22(2) – गिरफ़्तारी के 24 घंटे के भीतर मजिस्ट्रेट के समक्ष पेशी।
📝 निष्कर्ष:
रिमांड किसी भी आपराधिक प्रक्रिया में एक महत्वपूर्ण चरण है, जो यह सुनिश्चित करता है कि:
- आरोपी के अधिकारों की रक्षा हो,
- जांच निष्पक्ष रूप से हो,
- और न्याय प्रक्रिया में कोई बाधा न आए।
रिमांड का अनुचित प्रयोग न हो, इसके लिए अदालतें सावधानीपूर्वक कारणों का मूल्यांकन करती हैं।