लेख शीर्षक:
“रिटायरमेंट के बाद पद लेना न्यायपालिका की निष्पक्षता पर प्रश्नचिन्ह : CJI बी.आर. गवई की ब्रिटेन में सख्त टिप्पणी”
मुख्य बिंदु:
🔷 ब्रिटिश सुप्रीम कोर्ट में भारत के CJI का बयान
भारत के प्रधान न्यायाधीश (CJI) बी.आर. गवई ने लंदन स्थित ब्रिटेन की सुप्रीम कोर्ट में आयोजित एक अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन में यह स्पष्ट किया कि न्यायाधीशों द्वारा सेवानिवृत्ति के तुरंत बाद सरकारी पद स्वीकार करना या चुनाव लड़ना, जनता के भरोसे को कमजोर करता है और न्यायपालिका की स्वतंत्रता और निष्पक्षता पर प्रश्नचिन्ह लगाता है।
🔷 न्यायिक निर्णयों की मंशा पर उठ सकते हैं सवाल
सीजेआई ने कहा कि यदि कोई न्यायाधीश रिटायर होते ही किसी सरकारी पद को स्वीकार करता है, तो यह संदेह पैदा करता है कि उसके द्वारा लिए गए न्यायिक निर्णय कहीं निजी या राजनीतिक लाभ से प्रेरित तो नहीं थे।
🔷 न्यायपालिका की विश्वसनीयता के लिए प्रतिबद्धता
उन्होंने यह भी बताया कि उन्होंने स्वयं और उनके कई सहयोगियों ने यह सार्वजनिक रूप से घोषित किया है कि वे रिटायरमेंट के बाद कोई सरकारी पद नहीं स्वीकार करेंगे, जिससे न्यायपालिका की स्वतंत्रता और गरिमा बनी रहे।
🔷 न्याय केवल होना नहीं, बल्कि होते हुए दिखना भी जरूरी
सीजेआई ने जोर देकर कहा –
“न्यायपालिका को न सिर्फ न्याय देना चाहिए, बल्कि उसे सत्ता के समक्ष सत्य कहने वाली संस्था के रूप में विश्वसनीय भी दिखना चाहिए।”
🔷 जनता का भरोसा न्यायिक वैधता की नींव
उन्होंने कहा कि न्यायपालिका की वैधता संविधान के मूल्यों, स्वतंत्रता, निष्पक्षता और पारदर्शिता से अर्जित होती है। अदालतों के निर्णयों में तर्क और पारदर्शिता होनी चाहिए ताकि जनता को समझ में आ सके कि न्याय क्यों और कैसे हुआ।
🔷 भ्रष्टाचार और अनुशासनहीनता से बचाव आवश्यक
सीजेआई गवई ने चेताया कि भ्रष्टाचार और कदाचार की घटनाएं न्यायपालिका में जनता का विश्वास डगमगा सकती हैं। ऐसे मामलों में तेज, निर्णायक और पारदर्शी कार्रवाई से ही भरोसे को फिर से प्राप्त किया जा सकता है।
निष्कर्ष:
भारत के प्रधान न्यायाधीश बी.आर. गवई का यह बयान न केवल न्यायिक नैतिकता का संदेश है, बल्कि यह संविधान की आत्मा और न्यायिक गरिमा की रक्षा का संकल्प भी है। जब न्यायाधीश स्वयं पारदर्शिता और निष्पक्षता के लिए प्रतिबद्ध होते हैं, तभी न्यायपालिका पर जनता का भरोसा अडिग रहता है।