“राज्यपाल द्वारा दोबारा पारित विधेयक को राष्ट्रपति के पास भेजना असंवैधानिक: सुप्रीम कोर्ट का ऐतिहासिक निर्णय”

शीर्षक: “राज्यपाल द्वारा दोबारा पारित विधेयक को राष्ट्रपति के पास भेजना असंवैधानिक: सुप्रीम कोर्ट का ऐतिहासिक निर्णय”
(The State of Tamil Nadu v. The Governor of Tamil Nadu & Anr, Supreme Court of India)


परिचय:

भारत का संविधान केंद्र और राज्यों के बीच शक्तियों का संतुलन बनाए रखता है, जहां राज्यपाल का पद एक संवैधानिक कड़ी के रूप में कार्य करता है। हाल ही में, The State of Tamil Nadu v. The Governor of Tamil Nadu & Anr मामले में सुप्रीम कोर्ट ने एक अहम फैसला सुनाया, जिसमें यह स्पष्ट किया गया कि राज्यपाल उस विधेयक को राष्ट्रपति के पास विचारार्थ आरक्षित नहीं कर सकते जिसे राज्य विधानसभा ने दोबारा पारित किया हो, विशेषकर जब पहली बार राज्यपाल ने उस पर अपनी स्वीकृति नहीं दी थी।


मामले की पृष्ठभूमि:

तमिलनाडु विधानसभा ने एक विशेष विधेयक पारित किया, जिसे राज्यपाल ने शुरू में स्वीकृति देने से इनकार कर दिया। इसके बाद राज्य सरकार ने उसी विधेयक को फिर से विधानसभा में प्रस्तुत किया और दोबारा पारित करवाया। इस बार राज्यपाल ने इसे राष्ट्रपति के विचारार्थ आरक्षित कर दिया, जिससे विवाद उत्पन्न हुआ। तमिलनाडु सरकार ने इसे संवैधानिक प्रावधानों के उल्लंघन के रूप में देखा और सर्वोच्च न्यायालय का रुख किया।


मुख्य संवैधानिक प्रश्न:

  • क्या राज्यपाल को यह अधिकार है कि वह ऐसा विधेयक जो दोबारा पारित किया गया हो, उसे राष्ट्रपति के पास भेजें?

सुप्रीम कोर्ट का निर्णय:

भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने स्पष्ट रूप से कहा:

  1. जब कोई विधेयक राज्यपाल द्वारा स्वीकृत नहीं किया जाता और राज्य विधानसभा उसे दोबारा पारित करती है, तो वह नया विधेयक नहीं होता, बल्कि वही विधेयक माना जाता है जिसे फिर से विचार के लिए राज्यपाल के समक्ष प्रस्तुत किया गया है।
  2. अनुच्छेद 200 के तहत दोबारा पारित विधेयक पर राज्यपाल के पास केवल दो विकल्प होते हैं:
    • स्वीकृति देना, या
    • फिर से अस्वीकृति प्रकट करना।
  3. ऐसे विधेयक को राष्ट्रपति के पास भेजना अनुच्छेद 200 की मर्यादा का उल्लंघन है और यह भारत के संघीय ढांचे की भावना के विरुद्ध है।
  4. राज्यपाल राज्य विधानमंडल की लोकतांत्रिक सर्वोच्चता को बाधित नहीं कर सकते।

संवैधानिक विश्लेषण:

  • अनुच्छेद 200 राज्यपाल को तीन विकल्प देता है – स्वीकृति, अस्वीकृति, या राष्ट्रपति के पास आरक्षण।
  • लेकिन दोबारा पारित विधेयक के मामले में, यह विकल्प सीमित हो जाते हैं।
  • यह निर्णय बताता है कि राज्यपाल को संविधान के अनुसार निष्पक्ष, तटस्थ और विधायी प्रक्रियाओं का सम्मान करने वाला पदाधिकारी होना चाहिए।

न्यायिक महत्व:

  • यह फैसला राज्यपाल की भूमिका की संवैधानिक सीमा तय करता है।
  • यह राज्य विधानसभाओं की सर्वोच्चता और विधायी शक्ति की पुष्टि करता है।
  • यह निर्णय यह सुनिश्चित करता है कि राजनीतिक या प्रशासनिक गतिरोध की स्थिति में जनता के प्रतिनिधियों के निर्णयों को बाधित नहीं किया जा सकता

निष्कर्ष:

The State of Tamil Nadu v. The Governor of Tamil Nadu & Anr में सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला भारतीय लोकतंत्र में विधायी प्रक्रिया की शुचिता बनाए रखने की दिशा में एक मील का पत्थर है। यह निर्णय यह सिद्ध करता है कि राज्यपाल का पद राजनीतिक बाधा नहीं, बल्कि संवैधानिक मार्गदर्शक होना चाहिए, जो जनहित में राज्य सरकार के वैध निर्णयों का सम्मान करे।