राजस्थान पुलिस थानों में CCTV कैमरों की विफलता पर सर्वोच्च न्यायालय की सख्ती — सरकार से पूछे गए 12 महत्वपूर्ण प्रश्न
परिचय:
भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने हाल ही में एक गंभीर चिंता व्यक्त करते हुए राजस्थान सरकार से पुलिस थानों में CCTV कैमरों की अनुपलब्धता, उनके खराब रखरखाव, और फुटेज के संरक्षण में लापरवाही को लेकर 12 विस्तृत प्रश्न पूछे हैं। न्यायालय ने कहा कि पुलिस थानों में सीसीटीवी की उपस्थिति केवल औपचारिकता नहीं है, बल्कि यह नागरिकों के मौलिक अधिकारों की रक्षा से जुड़ा विषय है।
यह मामला पुलिस हिरासत में मानवाधिकार उल्लंघन और न्यायिक पारदर्शिता से गहराई से जुड़ा हुआ है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि यदि पुलिस थानों में सीसीटीवी कैमरे ठीक से नहीं चल रहे या फुटेज को जानबूझकर नष्ट किया जा रहा है, तो यह Article 21 (जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता के अधिकार) का स्पष्ट उल्लंघन है।
मामले की पृष्ठभूमि:
सुप्रीम कोर्ट ने यह टिप्पणी एक जनहित याचिका (Public Interest Litigation) की सुनवाई के दौरान की, जिसमें यह आरोप लगाया गया था कि राजस्थान राज्य में अधिकांश पुलिस थानों में या तो सीसीटीवी कैमरे नहीं लगे हैं, या वे कार्यरत नहीं हैं, और जहाँ लगे हैं, वहाँ भी फुटेज को सुरक्षित नहीं रखा जाता।
याचिकाकर्ता ने यह भी कहा कि पुलिस थानों में हिरासत में लिए गए व्यक्तियों के साथ अमानवीय व्यवहार की शिकायतें लगातार बढ़ रही हैं, लेकिन सबूतों के अभाव में दोषियों को सजा नहीं मिलती क्योंकि CCTV फुटेज या तो रिकॉर्ड नहीं होता या समय से पहले मिटा दिया जाता है।
सुप्रीम कोर्ट का दृष्टिकोण:
सुप्रीम कोर्ट ने इस पर गंभीर चिंता व्यक्त करते हुए कहा कि –
“CCTV कैमरों की व्यवस्था केवल तकनीकी आवश्यकता नहीं है, बल्कि यह संविधान के अनुच्छेद 21 के अंतर्गत नागरिकों के मौलिक अधिकारों की रक्षा का एक महत्वपूर्ण साधन है।”
अदालत ने यह भी कहा कि 2020 के अपने ऐतिहासिक निर्णय Paramvir Singh Saini v. Baljit Singh & Ors. में उसने स्पष्ट आदेश दिया था कि देश के सभी पुलिस थानों, हिरासत कक्षों, और जांच एजेंसियों के कार्यालयों में कार्यशील CCTV कैमरे होने चाहिए और उनका फुटेज कम-से-कम 18 महीने तक सुरक्षित रखा जाना चाहिए।
राजस्थान सरकार से पूछे गए 12 महत्वपूर्ण प्रश्न:
सुप्रीम कोर्ट ने राजस्थान सरकार से निम्नलिखित 12 बिंदुओं पर जवाब मांगा है —
- राज्य के कुल कितने पुलिस थानों में CCTV कैमरे लगे हुए हैं?
- कितने थानों में CCTV कैमरे वर्तमान में कार्यशील हैं?
- क्या प्रत्येक थाने में CCTV कैमरे हिरासत कक्ष, पूछताछ कक्ष और मुख्य प्रवेश द्वार पर लगाए गए हैं?
- क्या फुटेज को सुरक्षित रखने के लिए कोई केंद्रीकृत सर्वर या क्लाउड सिस्टम स्थापित किया गया है?
- फुटेज कितने समय तक संरक्षित रखा जाता है? क्या यह 18 महीने की अवधि का पालन करता है?
- क्या CCTV कैमरों के रखरखाव के लिए कोई अधिकृत एजेंसी नियुक्त की गई है?
- क्या राज्य सरकार ने प्रत्येक जिले में CCTV निगरानी समिति (Monitoring Committee) का गठन किया है?
- क्या जिला न्यायाधीश या लोकपाल समिति को नियमित रिपोर्ट सौंपी जाती है?
- क्या कोई मानक संचालन प्रक्रिया (SOP) बनाई गई है ताकि CCTV फुटेज से छेड़छाड़ न हो सके?
- क्या सरकार ने पुलिस अधिकारियों को CCTV संचालन और डेटा संरक्षण पर कोई प्रशिक्षण दिया है?
- क्या CCTV फुटेज के अभाव में की गई जांचों पर कोई अनुशासनात्मक कार्रवाई की गई है?
- राज्य सरकार यह सुनिश्चित करने के लिए क्या ठोस कदम उठा रही है कि भविष्य में सभी थानों में कैमरे हमेशा कार्यरत रहें?
न्यायालय की टिप्पणी:
न्यायमूर्ति बी.आर. गवई और न्यायमूर्ति एस.वी.एन. भट्टी की पीठ ने कहा —
“यदि CCTV कैमरे नहीं चल रहे, तो यह केवल तकनीकी विफलता नहीं है, बल्कि यह संविधान द्वारा प्रदत्त मानवाधिकारों का उल्लंघन है। हिरासत में होने वाले किसी भी अमानवीय व्यवहार को रोकने का यह एकमात्र प्रभावी साधन है।”
अदालत ने आगे कहा कि राज्य सरकार का दायित्व है कि वह सुनिश्चित करे कि हर पुलिस थाना पारदर्शिता, जवाबदेही और मानवाधिकारों की रक्षा के सिद्धांतों के अनुरूप कार्य करे।
पूर्ववर्ती न्यायिक आदेशों का संदर्भ:
1. Paramvir Singh Saini v. Baljit Singh (2020, SC)
सुप्रीम कोर्ट ने निर्देश दिया था कि सभी पुलिस थानों और सीबीआई, ईडी जैसी जांच एजेंसियों के कार्यालयों में CCTV कैमरे लगाए जाएँ। साथ ही, रिकॉर्डिंग को न्यूनतम 18 महीने तक सुरक्षित रखा जाए।
2. D.K. Basu v. State of West Bengal (1997, SC)
यह ऐतिहासिक निर्णय पुलिस हिरासत में मानवाधिकार संरक्षण से संबंधित है। अदालत ने कहा था कि हर हिरासत में लिए गए व्यक्ति के अधिकारों की रक्षा की जानी चाहिए, और उसके साथ किसी भी प्रकार की यातना गैरकानूनी होगी।
3. Shafhi Mohammad v. State of Himachal Pradesh (2018, SC)
इस मामले में अदालत ने कहा कि पुलिस थानों में CCTV निगरानी से पारदर्शिता और जवाबदेही सुनिश्चित होती है।
संवैधानिक और कानूनी आधार:
सुप्रीम कोर्ट ने यह दोहराया कि CCTV कैमरों का अभाव या फुटेज न रखना सीधे तौर पर अनुच्छेद 21 (Right to Life and Personal Liberty) का उल्लंघन है।
- अनुच्छेद 21: प्रत्येक नागरिक को जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता का अधिकार है।
- अनुच्छेद 14: कानून के समक्ष समानता सुनिश्चित करता है।
- अनुच्छेद 32: न्यायालय से मौलिक अधिकारों की रक्षा हेतु प्रत्यक्ष राहत की मांग की जा सकती है।
अदालत ने कहा कि राज्य का यह दायित्व है कि वह नागरिकों के मौलिक अधिकारों की रक्षा के लिए आवश्यक तकनीकी उपाय सुनिश्चित करे।
राजस्थान सरकार की प्रतिक्रिया:
राजस्थान सरकार ने प्रारंभिक रिपोर्ट में स्वीकार किया कि कई पुलिस थानों में CCTV कैमरे कार्यशील नहीं हैं और फुटेज का संरक्षण प्रणालीगत रूप से नहीं हो पा रहा है।
हालांकि, सरकार ने यह भी बताया कि 2024 में एक राज्य स्तरीय निगरानी तंत्र (State-Level Monitoring Mechanism) शुरू किया गया है, जिसके तहत पुराने कैमरों को बदला जा रहा है और डेटा संरक्षण प्रणाली को क्लाउड-आधारित बनाया जा रहा है।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि केवल योजनाओं का उल्लेख पर्याप्त नहीं है; “व्यावहारिक क्रियान्वयन ही न्याय का असली पैमाना है।”
सामाजिक और कानूनी प्रभाव:
यह निर्णय देशभर में पुलिस सुधार और मानवाधिकार संरक्षण के लिए मील का पत्थर साबित हो सकता है।
पुलिस थानों में CCTV कैमरे केवल अपराध नियंत्रण के उपकरण नहीं हैं, बल्कि वे नागरिकों के सम्मान और सुरक्षा की गारंटी हैं।
इस निर्णय के संभावित प्रभाव:
- पुलिस थानों में पारदर्शिता बढ़ेगी।
- हिरासत में यातना और दुर्व्यवहार के मामलों में प्रमाण उपलब्ध रहेंगे।
- पुलिस अधिकारियों की जवाबदेही सुनिश्चित होगी।
- नागरिकों का पुलिस प्रशासन पर विश्वास बढ़ेगा।
- मानवाधिकार उल्लंघन पर न्यायिक हस्तक्षेप अधिक प्रभावी होगा।
सुप्रीम कोर्ट का अंतिम निर्देश:
अदालत ने राजस्थान सरकार को आदेश दिया कि —
- उपरोक्त सभी 12 प्रश्नों का विस्तृत उत्तर चार सप्ताह के भीतर प्रस्तुत किया जाए।
- प्रत्येक पुलिस थाना यह सुनिश्चित करे कि सभी CCTV कैमरे हमेशा कार्यशील रहें।
- फुटेज कम से कम 18 महीने तक सुरक्षित रखा जाए।
- जिला स्तर पर निगरानी समितियाँ हर तीन महीने में रिपोर्ट तैयार करें और राज्य मानवाधिकार आयोग को भेजें।
निष्कर्ष:
सुप्रीम कोर्ट का यह निर्णय न केवल राजस्थान बल्कि पूरे देश के लिए एक सख्त चेतावनी है कि कानून प्रवर्तन एजेंसियों को अब पारदर्शिता और जवाबदेही के सिद्धांतों से समझौता नहीं करने दिया जाएगा।
CCTV कैमरे आधुनिक युग में “न्याय के साक्षी” हैं। यदि ये साक्षी मौन या अनुपस्थित हैं, तो न्याय व्यवस्था अधूरी रह जाएगी।
इस फैसले ने यह सिद्ध किया कि संविधान द्वारा प्रदत्त अधिकारों की रक्षा केवल शब्दों में नहीं, बल्कि ठोस क्रियान्वयन में होनी चाहिए।
समापन टिप्पणी:
सर्वोच्च न्यायालय ने एक बार फिर यह स्पष्ट कर दिया है कि –
“राज्य की जिम्मेदारी केवल कानून बनाने तक सीमित नहीं, बल्कि नागरिकों के मौलिक अधिकारों की रक्षा सुनिश्चित करना भी उसका संवैधानिक कर्तव्य है।”
राजस्थान मामले में पूछे गए ये 12 प्रश्न केवल प्रशासनिक जवाबदेही नहीं मांगते, बल्कि यह देश की पुलिस प्रणाली में सुधार और नागरिक अधिकारों की रक्षा की दिशा में एक ऐतिहासिक कदम हैं।