शीर्षक: राजस्थान उच्च न्यायालय का ऐतिहासिक निर्णय – पिनहोल कैमरे की रिकॉर्डिंग को प्राथमिक साक्ष्य माना गया
प्रकरण:
Preeti v/s Kunal
AIR 2016 Raj 153
🔍 मामले की पृष्ठभूमि:
यह मामला पति कुनाल द्वारा पत्नी प्रीति के विरुद्ध पारिवारिक न्यायालय में दायर एक याचिका से संबंधित था, जिसमें उन्होंने यह आरोप लगाया कि उनकी पत्नी का किसी अन्य व्यक्ति के साथ अवैध संबंध है। अपने आरोप को प्रमाणित करने हेतु पति ने एक पिनहोल कैमरे द्वारा गुप्त रूप से रिकॉर्ड की गई वीडियो क्लिपिंग को साक्ष्य के रूप में प्रस्तुत किया।
📹 प्रमुख कानूनी प्रश्न:
क्या पिनहोल कैमरे से प्राप्त वीडियो रिकॉर्डिंग को इलेक्ट्रॉनिक साक्ष्य के रूप में, बिना भारतीय साक्ष्य अधिनियम, 1872 की धारा 65-B के अनुपालन के, अदालत में मान्य किया जा सकता है?
⚖️ राजस्थान उच्च न्यायालय का निर्णय:
- प्राथमिक साक्ष्य की मान्यता:
- न्यायालय ने माना कि यदि वीडियो क्लिपिंग पिनहोल कैमरे से प्राप्त मूल हार्ड डिस्क पर मौजूद है, तो यह प्राथमिक साक्ष्य (Primary Evidence) है।
- इसलिए ऐसी स्थिति में धारा 65-B की अनिवार्यता नहीं होगी, क्योंकि यह धारा सिर्फ सेकेंडरी इलेक्ट्रॉनिक साक्ष्य पर लागू होती है।
- परिवार न्यायालय की प्रक्रिया:
- Family Courts Act, 1984 की धारा 14 के अंतर्गत पारिवारिक न्यायालय को यह विशेष अधिकार प्राप्त है कि वह किसी भी प्रकार की सूचना, दस्तावेज़, रिपोर्ट या साक्ष्य को स्वीकार कर सकता है यदि वह मामले के न्यायसंगत निपटारे में सहायक हो।
- इस धारा के अनुसार, परिवार न्यायालय Evidence Act की कठोर प्रक्रियाओं से बाध्य नहीं होता।
📚 महत्वपूर्ण टिप्पणियाँ:
- इस फैसले ने यह स्पष्ट कर दिया कि इलेक्ट्रॉनिक साक्ष्य के संबंध में प्राथमिक बनाम द्वितीयक साक्ष्य के बीच अंतर को समझना आवश्यक है।
- साथ ही, परिवार न्यायालयों को दी गई विशेष प्रक्रिया संबंधी छूट का भी स्पष्ट उदाहरण प्रस्तुत हुआ है।
🧩 न्यायिक नीतिगत दृष्टिकोण:
- यह निर्णय एक तरफ तो निजता के अधिकार और दूसरी ओर सत्य को उजागर करने के अधिकार के बीच संतुलन पर आधारित था।
- कोर्ट ने कहा कि जहां वैवाहिक संबंधों की पवित्रता पर प्रश्न उठ रहे हों, वहां विश्वसनीय और वास्तविक साक्ष्य को नकारना न्याय के विरुद्ध होगा।
📌 निष्कर्ष:
Preeti v/s Kunal (AIR 2016 Raj 153) एक महत्वपूर्ण निर्णय है जिसने इलेक्ट्रॉनिक साक्ष्य की स्वीकृति और परिवार न्यायालयों की प्रक्रिया में लचीलापन दोनों को न्यायिक रूप से मान्यता दी है। यह फैसला न केवल तकनीकी प्रगति के युग में कानून के अनुकूल विकास को दर्शाता है, बल्कि यह भी सुनिश्चित करता है कि न्याय में सत्य की विजय हो, न कि तकनीकीताओं की।