51. भारत में राष्ट्रपति की भूमिका और शक्तियाँ बताइए।
भारत के राष्ट्रपति संविधान के अनुच्छेद 52 के तहत भारत के राष्ट्राध्यक्ष होते हैं। वे एक नाममात्र शासक (Titular Head) होते हैं, जिनका कार्य प्रधानमंत्री और मंत्रिपरिषद की सलाह से होता है। उनके प्रमुख अधिकार –
- कार्यपालिका अधिकार (प्रधानमंत्री, मंत्री नियुक्त करना)
- विधायी अधिकार (संसद बुलाना, संबोधित करना, विधेयकों को स्वीकृति देना)
- न्यायिक अधिकार (क्षमा, माफी, दंड में कमी)
- आपातकालीन अधिकार (अनुच्छेद 352, 356, 360 के तहत)
हालाँकि राष्ट्रपति के सभी कार्य मंत्रिपरिषद की सलाह से होते हैं, लेकिन वे संविधान की गरिमा और स्थायित्व के प्रतीक हैं।
52. उपराष्ट्रपति की भूमिका स्पष्ट कीजिए।
भारतीय संविधान के अनुच्छेद 63 के अनुसार, भारत के उपराष्ट्रपति का पद एक महत्वपूर्ण संवैधानिक पद है। वे राज्यसभा के पदेन सभापति होते हैं और उसका संचालन करते हैं।
यदि राष्ट्रपति का पद रिक्त हो जाए, तो उपराष्ट्रपति कार्यवाहक राष्ट्रपति बनते हैं जब तक नया राष्ट्रपति चुना न जाए। उनका निर्वाचन राष्ट्रपति चुनाव के समान होता है लेकिन केवल संसद के सदस्यों द्वारा किया जाता है।
53. भारतीय प्रधानमंत्री की शक्तियाँ और भूमिका क्या है?
प्रधानमंत्री भारत की कार्यपालिका का वास्तविक मुखिया होता है। वह मंत्रिपरिषद का अध्यक्ष, राष्ट्रपति का मुख्य सलाहकार और संसद में सत्तारूढ़ दल का नेता होता है।
उनकी शक्तियाँ –
- मंत्रियों की नियुक्ति/त्याग
- नीतियाँ बनाना
- संसद में नेतृत्व
- अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारत का प्रतिनिधित्व
प्रधानमंत्री भारत सरकार के कार्यों का समन्वय करता है और उसे दिशा देता है। उनका पद अत्यधिक प्रभावशाली होता है।
54. भारत के मुख्य न्यायाधीश की भूमिका समझाइए।
भारत के मुख्य न्यायाधीश (Chief Justice of India – CJI) सुप्रीम कोर्ट के प्रमुख होते हैं। वे भारत की न्यायपालिका के सर्वोच्च अधिकारी हैं।
उनकी भूमिका –
- संविधान की व्याख्या
- संविधान पीठों का गठन
- महत्वपूर्ण मामलों की सुनवाई की अध्यक्षता
- न्यायिक प्रशासन का संचालन
वे न्यायिक स्वतंत्रता के संरक्षक और संविधान की रक्षा के प्रहरी होते हैं।
55. राज्यपाल की भूमिका और शक्तियाँ क्या हैं?
राज्यपाल राज्य का संवैधानिक प्रमुख होता है। वह केंद्र सरकार का प्रतिनिधि होता है।
उसकी शक्तियाँ –
- कार्यपालिका (मुख्यमंत्री नियुक्त करना)
- विधायी (विधानसभा को बुलाना/भंग करना)
- न्यायिक (दंड क्षमा, अनुशंसा)
- आपातकालीन (राष्ट्रपति शासन की अनुशंसा)
हालाँकि राज्यपाल की भूमिका प्रतीकात्मक है, परंतु संवैधानिक संकट में इनकी भूमिका महत्त्वपूर्ण हो जाती है।
56. विधान सभा और विधान परिषद में अंतर स्पष्ट कीजिए।
विधान सभा राज्य की निचली विधायिका है और जनता द्वारा सीधे चुनी जाती है।
विधान परिषद एक स्थायी उच्च सदन है, जो कुछ राज्यों में ही होता है (जैसे – उत्तर प्रदेश, बिहार)।
विधानसभा सरकार बनाती है, जबकि विधान परिषद सलाहकारी भूमिका निभाती है। विधान परिषद को संसद के राज्यसभा की तरह ही माना जा सकता है।
57. मौलिक अधिकारों और मौलिक कर्तव्यों में अंतर बताइए।
मौलिक अधिकार संविधान के भाग-III में दिए गए हैं और ये नागरिकों को न्यायालय द्वारा लागू योग्य अधिकार प्रदान करते हैं।
मौलिक कर्तव्य भाग-IV-A में अनुच्छेद 51A के तहत दिए गए हैं और नागरिकों का नैतिक उत्तरदायित्व दर्शाते हैं।
अधिकारों में व्यक्तिगत स्वतंत्रता का बल है जबकि कर्तव्यों में राष्ट्र के प्रति ज़िम्मेदारी।
58. संसद में शून्यकाल (Zero Hour) क्या होता है?
शून्यकाल संसद की कार्यवाही में वह अवधि होती है जो प्रश्नकाल और ध्यानाकर्षण प्रस्ताव के बीच होती है। इसमें सांसद बिना पूर्व सूचना के जनहित के मुद्दों को उठा सकते हैं।
यह भारतीय संसद की एक विशेषता है जो किसी नियम के अंतर्गत नहीं आती, लेकिन व्यावहारिक रूप से अत्यंत महत्त्वपूर्ण होती है।
59. जनहित याचिका (PIL) का महत्व क्या है?
जनहित याचिका वह कानूनी प्रक्रिया है जिसके माध्यम से कोई भी व्यक्ति, चाहे वह प्रत्यक्ष रूप से प्रभावित न हो, न्यायालय में जनहित के मुद्दे उठा सकता है।
इसकी शुरुआत भारत में 1980 के दशक में हुई। यह विशेष रूप से पर्यावरण, मानवाधिकार, बाल श्रम, भ्रष्टाचार आदि मामलों में प्रभावी साबित हुई है। यह न्याय की पहुँच को सशक्त करती है।
60. अंतरराष्ट्रीय राजनीति का क्या महत्व है?
अंतरराष्ट्रीय राजनीति देशों के बीच संबंधों, सहयोग, संघर्ष और रणनीति का अध्ययन है। इसमें कूटनीति, युद्ध, वैश्विक संस्थाएँ, वैश्वीकरण, संधियाँ और विदेश नीति शामिल हैं।
यह अध्ययन शांति स्थापना, वैश्विक व्यापार, सुरक्षा और मानवाधिकार की रक्षा जैसे विषयों को समझने और नीतिगत निर्णय लेने में सहायक होता है।
61. भारतीय विदेश नीति की प्रमुख विशेषताएँ क्या हैं?
भारतीय विदेश नीति की प्रमुख विशेषताएँ हैं –
- गुटनिरपेक्षता
- वैश्विक शांति और सह-अस्तित्व
- संप्रभुता का सम्मान
- विकासशील देशों से सहयोग
- संयुक्त राष्ट्र में विश्वास
भारत ने अफ्रीका, एशिया और अन्य देशों से मैत्रीपूर्ण संबंध बनाए हैं। आज “Act East”, “Neighbourhood First” जैसे सिद्धांतों पर यह नीति आधारित है।
62. लोकतंत्र में विपक्ष की भूमिका क्या है?
विपक्ष लोकतंत्र की आवश्यक रीढ़ है। इसका कार्य है –
- सरकार की आलोचना
- नीतियों पर वैकल्पिक सुझाव देना
- जनता की आवाज़ को उठाना
- सरकार की जवाबदेही सुनिश्चित करना
एक मजबूत विपक्ष लोकतंत्र को सशक्त करता है और तानाशाही प्रवृत्ति को रोकता है।
63. न्यायपालिका की स्वतंत्रता क्यों आवश्यक है?
न्यायपालिका की स्वतंत्रता से तात्पर्य है – राजनीतिक दबाव और प्रभाव से मुक्त निर्णय देना।
यह आवश्यक है क्योंकि –
- यह नागरिकों के मौलिक अधिकारों की रक्षा करती है
- विधायिका और कार्यपालिका पर नियंत्रण रखती है
- संविधान की सर्वोच्चता सुनिश्चित करती है
इसलिए संविधान में न्यायाधीशों की नियुक्ति, वेतन, और कार्यकाल सुरक्षित रखा गया है।
64. राष्ट्रीय एकता के लिए धर्मनिरपेक्षता क्यों आवश्यक है?
भारत विविधताओं का देश है – धर्म, जाति, भाषा और संस्कृति। धर्मनिरपेक्षता सभी धर्मों को समान सम्मान देती है, जिससे सामाजिक सद्भाव और राष्ट्र की एकता बनी रहती है।
धार्मिक भेदभाव या कट्टरता से समाज में विभाजन होता है। धर्मनिरपेक्षता से लोकतंत्र और संविधान की भावना को मजबूती मिलती है।
65. राजनीतिक विज्ञान का उद्देश्य क्या है?
राजनीतिक विज्ञान का उद्देश्य है – शासन, सत्ता, राज्य, सरकार और राजनीतिक संस्थाओं का वैज्ञानिक अध्ययन करना।
यह नागरिकों को उनके अधिकारों, कर्तव्यों, और सरकार की कार्यप्रणाली की जानकारी देता है। इससे लोकतंत्र में सक्रिय भागीदारी को बढ़ावा मिलता है।
यह विषय नीति निर्माण, चुनाव, अंतरराष्ट्रीय संबंध, संविधान, प्रशासन और समाज के अध्ययन को भी समाहित करता है।
66. भारत में संवैधानिक संसधन क्यों आवश्यक हैं?
संविधान को समय, समाज और परिस्थिति के अनुसार अनुकूल बनाने हेतु संविधान संशोधन आवश्यक होता है। भारतीय संविधान एक जीवंत दस्तावेज है, जो विकासशील समाज की आवश्यकताओं के अनुरूप परिवर्तनों की अनुमति देता है।
संविधान में अब तक 100+ संशोधन किए जा चुके हैं जिनमें –
- शिक्षा को मौलिक अधिकार बनाना (86वां संशोधन)
- पंचायतों को संवैधानिक दर्जा (73वां संशोधन)
- GST लागू करना (101वां संशोधन) आदि शामिल हैं।
इससे संविधान लचीला बनकर भी अपनी मूल संरचना को बनाए रखता है।
67. राजनीतिक दलों की भूमिका क्या है?
राजनीतिक दल लोकतंत्र की रीढ़ की हड्डी हैं। ये सरकार बनाते हैं, विपक्ष में रहते हुए आलोचना करते हैं, नीतियाँ बनाते हैं और जनता तथा शासन के बीच सेतु का कार्य करते हैं।
इनकी प्रमुख भूमिकाएँ हैं –
- चुनावों में भाग लेना
- जनसमस्याओं को उठाना
- जनता की राजनीतिक चेतना बढ़ाना
- सरकार में जवाबदेही सुनिश्चित करना
बिना राजनीतिक दलों के लोकतांत्रिक प्रणाली निष्क्रिय हो जाएगी।
68. भारत में जाति और राजनीति के संबंधों को स्पष्ट कीजिए।
भारत में जाति और राजनीति एक-दूसरे से गहराई से जुड़ी हुई हैं। जातियाँ न केवल सामाजिक ढाँचे में बल्कि चुनावी गणित में भी महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं।
राजनीतिक दल जातीय समीकरण के आधार पर टिकट बाँटते हैं और समर्थन प्राप्त करने के लिए जातीय नेताओं को बढ़ावा देते हैं। इससे
- वोट बैंक की राजनीति
- जाति आधारित आंदोलनों
- आरक्षण की माँग
आदि को बल मिलता है।
हालाँकि यह लोकतंत्र में सांप्रदायिकता और विभाजन का कारण भी बनता है।
69. लोकसभा और राज्यसभा की विधायी प्रक्रिया में मुख्य अंतर बताइए।
लोकसभा और राज्यसभा दोनों ही संसद के अंग हैं, परंतु विधायी शक्तियों में लोकसभा का वर्चस्व अधिक है।
- धन विधेयक केवल लोकसभा में ही प्रस्तुत किया जा सकता है।
- राज्यसभा इस पर केवल 14 दिनों के भीतर सिफारिश कर सकती है।
- संयुक्त बैठक में भी लोकसभा का संख्यात्मक वर्चस्व रहता है।
राज्यसभा एक विचारशील सदन है, जबकि लोकसभा लोकमत की अभिव्यक्ति करती है।
70. भारतीय चुनाव प्रणाली की विशेषताएँ लिखिए।
भारत में चुनाव प्रणाली की प्रमुख विशेषताएँ हैं –
- प्रत्यक्ष मतदान प्रणाली
- सर्वजनसुलभ वयस्क मताधिकार
- एकल-सदस्यीय निर्वाचन क्षेत्र
- पहले-पहले मत प्राप्त करने वाला विजयी
- निर्वाचन आयोग द्वारा निष्पक्ष संचालन
यह प्रणाली लोकतंत्र को मज़बूत करती है, हालाँकि धनबल, बाहुबल और जातिवाद जैसी चुनौतियाँ मौजूद हैं।
71. भारत के संघीय ढाँचे की आलोचना कीजिए।
भारतीय संघात्मक व्यवस्था को “केंद्र की ओर झुका हुआ संघ” कहा जाता है क्योंकि –
- केंद्र के पास अधिक विधायी शक्तियाँ हैं।
- अनुच्छेद 356 द्वारा राष्ट्रपति शासन लगाया जा सकता है।
- केंद्र शासित प्रदेशों में केंद्र का सीधा शासन होता है।
- वित्तीय संसाधनों पर भी केंद्र का नियंत्रण अधिक है।
इससे राज्यों को कभी-कभी अपनी स्वायत्तता की कमी महसूस होती है।
72. प्रस्तावना का संविधान में महत्त्व क्या है?
संविधान की प्रस्तावना संविधान की आत्मा मानी जाती है। यह भारत को एक संप्रभु, समाजवादी, धर्मनिरपेक्ष, लोकतांत्रिक गणराज्य घोषित करती है।
यह न्याय, स्वतंत्रता, समानता और बंधुता के मूल्यों की स्थापना करती है।
केशवानंद भारती केस में सुप्रीम कोर्ट ने प्रस्तावना को संविधान की मौलिक संरचना बताया।
73. भारत में आपातकालीन प्रावधानों की विशेषताएँ बताइए।
भारतीय संविधान में तीन प्रकार के आपातकाल हैं –
- राष्ट्रीय आपातकाल (अनु. 352)
- राज्य आपातकाल (अनु. 356)
- वित्तीय आपातकाल (अनु. 360)
आपातकाल में केंद्र की शक्तियाँ बढ़ जाती हैं, मौलिक अधिकार स्थगित किए जा सकते हैं, और लोकतांत्रिक प्रक्रिया प्रभावित होती है।
1975 का आपातकाल इसका सबसे चर्चित उदाहरण है।
74. सत्ता पृथक्करण का सिद्धांत समझाइए।
Montesquieu द्वारा प्रतिपादित सत्ता पृथक्करण सिद्धांत के अनुसार शासन की तीनों शाखाएँ –
- विधायिका (कानून बनाना)
- कार्यपालिका (लागू करना)
- न्यायपालिका (न्याय करना)
– स्वतंत्र होनी चाहिए।
इस सिद्धांत से तानाशाही पर नियंत्रण, न्यायपालिका की स्वतंत्रता और लोकतांत्रिक संतुलन स्थापित होता है।
75. राजनीतिक संस्कृति (Political Culture) क्या है?
राजनीतिक संस्कृति का अर्थ है – किसी समाज के राजनीतिक मूल्यों, विश्वासों और दृष्टिकोणों की प्रणाली।
यह तीन प्रकार की होती है –
- परंपरागत (Traditional)
- अधीनकारी (Subject)
- भागीदारी आधारित (Participant)
राजनीतिक संस्कृति नागरिकों के राजनीति में भागीदारी, सरकार के प्रति विश्वास और लोकतंत्र के विकास में सहायक होती है।
76. अंतरराष्ट्रीय संगठन क्या होते हैं?
अंतरराष्ट्रीय संगठन वे संस्थाएँ होती हैं जो विभिन्न देशों के बीच सहयोग, शांति, विकास और मानवाधिकारों की रक्षा हेतु कार्य करती हैं।
इनमें प्रमुख हैं –
- संयुक्त राष्ट्र संघ (UNO)
- विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO)
- विश्व बैंक (World Bank)
- अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF)
ये संगठन वैश्विक शांति और सहयोग के मुख्य स्तंभ हैं।
77. भारत में न्यायपालिका की त्रिस्तरीय संरचना क्या है?
भारत में न्यायपालिका तीन स्तरों में विभाजित है –
- सुप्रीम कोर्ट (राष्ट्रीय स्तर)
- हाईकोर्ट (राज्य स्तर)
- निचली अदालतें (जिला व सत्र न्यायालय)
इस व्यवस्था से न्याय तक पहुँच सुगम होती है, अपील की सुविधा मिलती है, और संविधान के अनुच्छेद 32, 226 के तहत मौलिक अधिकारों की रक्षा सुनिश्चित होती है।
78. विधायिका का कार्य क्या है?
विधायिका का प्रमुख कार्य है –
- कानून बनाना
- सरकार की जाँच करना
- बजट पारित करना
- जनता की समस्याओं को उठाना
लोकसभा और राज्य विधानसभा इसके उदाहरण हैं।
विधायिका लोकतंत्र की बुनियाद है जो जन-प्रतिनिधित्व का माध्यम बनती है।
79. भारत में क्षेत्रीय दलों का उदय क्यों हुआ?
भारत में क्षेत्रीय दलों का उदय हुआ क्योंकि –
- राज्यों की विशिष्ट सामाजिक, भाषाई, सांस्कृतिक पहचान
- केंद्र की उपेक्षा के विरुद्ध असंतोष
- स्थानीय मुद्दों पर जोर
उदाहरण: DMK, TMC, BJD, AAP आदि।
इन दलों ने क्षेत्रीय राजनीति को सशक्त किया और गठबंधन सरकारों की आवश्यकता को जन्म दिया।
80. विधि का शासन (Rule of Law) क्या है?
विधि का शासन का अर्थ है कि –
- कानून सभी पर समान रूप से लागू होगा।
- कोई व्यक्ति कानून से ऊपर नहीं।
- सभी विवादों का निर्णय न्यायपालिका द्वारा किया जाएगा।
यह सिद्धांत लोकतंत्र, समानता और न्याय की नींव है। भारत का संविधान इसका पालन करता है।
81. न्यायिक सक्रियता (Judicial Activism) क्या है?
न्यायपालिका जब संविधान और कानून की व्याख्या करते हुए नीतिगत मामलों में हस्तक्षेप करती है, तो उसे न्यायिक सक्रियता कहते हैं।
PIL और सामाजिक मुद्दों पर suo motu कार्रवाई इसके उदाहरण हैं।
यह लोकहित के मामलों में न्यायपालिका की सजग भूमिका को दर्शाता है, हालाँकि इससे शक्ति संतुलन पर बहस भी उठती है।
82. संवैधानिक नैतिकता (Constitutional Morality) क्या है?
संवैधानिक नैतिकता का अर्थ है – संविधान के मूल्यों का निष्ठापूर्वक पालन करना जैसे –
- समानता
- स्वतंत्रता
- न्याय
- गरिमा
यह संविधान की आत्मा है जो सरकार, न्यायपालिका और नागरिकों को नैतिक दिशा देती है।
नवतेज जोहर केस में सुप्रीम कोर्ट ने इसका विशेष उल्लेख किया।
83. भारत में लोकसभा अध्यक्ष की भूमिका क्या है?
लोकसभा अध्यक्ष सदन के संचालन के लिए उत्तरदायी होता है।
उसकी भूमिकाएँ हैं –
- कार्यवाही संचालित करना
- सदस्यों को बोलने की अनुमति देना
- अनुशासन बनाए रखना
- निर्णयों को अंतिम रूप देना
वह निष्पक्ष होता है और संविधान के अनुच्छेद 93 के अंतर्गत चुना जाता है।
84. भारत में दल-बदल विरोधी कानून क्या है?
1985 में 52वें संविधान संशोधन द्वारा दल-बदल विरोधी कानून लागू हुआ।
यदि कोई निर्वाचित सदस्य –
- अपनी पार्टी छोड़ता है
- पार्टी विरोधी मत देता है
तो उसकी सदस्यता समाप्त की जा सकती है।
यह कानून लोकतंत्र में राजनीतिक नैतिकता बनाए रखने का प्रयास है।
85. भारतीय न्यायपालिका और विधायिका में शक्ति संतुलन की आवश्यकता क्यों है?
लोकतंत्र में शक्ति का विभाजन और संतुलन आवश्यक है ताकि कोई अंग निरंकुश न हो।
- विधायिका कानून बनाती है,
- न्यायपालिका उसकी वैधानिकता की जाँच करती है।
यदि संतुलन न हो तो या तो तानाशाही आएगी या न्यायिक अतिक्रमण।
संविधान ने दोनों के कार्यक्षेत्र तय किए हैं।
86. भारत में समाजिक न्याय की अवधारणा क्या है?
सामाजिक न्याय का अर्थ है – समाज के कमजोर वर्गों को समान अवसर, सम्मान और संरक्षण प्रदान करना।
संविधान की प्रस्तावना, मौलिक अधिकार और नीति निदेशक तत्वों में इसका उल्लेख है।
आरक्षण, शिक्षा, रोजगार, कानूनों द्वारा दलितों, महिलाओं, पिछड़ों को संरक्षण देकर सामाजिक न्याय को साकार किया जा रहा है।
87. भारतीय लोकतंत्र की प्रमुख विशेषताएँ क्या हैं?
भारतीय लोकतंत्र की प्रमुख विशेषताएँ हैं:
- संविधान आधारित शासन प्रणाली
- प्रतिनिधिक लोकतंत्र – नागरिकों द्वारा चुने गए प्रतिनिधि शासन करते हैं।
- वयस्क मताधिकार – 18 वर्ष से ऊपर के सभी नागरिकों को वोट का अधिकार।
- मौलिक अधिकार और स्वतंत्रता
- न्यायपालिका की स्वतंत्रता
- बहुदलीय प्रणाली और विपक्ष की भूमिका
- संघीय ढाँचा और विकेंद्रीकरण
इन विशेषताओं से भारतीय लोकतंत्र विविधता में एकता, समानता और जवाबदेही को सुनिश्चित करता है।
88. भारत में धर्मनिरपेक्षता की अवधारणा को स्पष्ट कीजिए।
भारतीय संविधान में धर्मनिरपेक्षता का अर्थ है – राज्य और धर्म के बीच स्पष्ट विभाजन।
भारत में –
- राज्य किसी धर्म को समर्थन नहीं देता।
- सभी धर्मों को समान सम्मान और संरक्षण मिलता है।
- नागरिकों को धर्म की स्वतंत्रता है (अनुच्छेद 25-28)।
भारत का धर्मनिरपेक्ष स्वरूप सांप्रदायिक सौहार्द और समावेशी समाज के लिए अनिवार्य है।
89. भारत में चुनाव आयोग की भूमिका और शक्तियाँ क्या हैं?
चुनाव आयोग एक स्वतंत्र संवैधानिक संस्था है (अनुच्छेद 324)। इसकी भूमिका है –
- लोकसभा, विधानसभा, राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति चुनाव का संचालन
- आचार संहिता लागू करना
- राजनीतिक दलों का पंजीकरण
- चुनावी विवादों का समाधान
- पारदर्शिता बनाए रखना
यह लोकतंत्र की निष्पक्षता और पारदर्शिता का रक्षक है।
90. विधायिका और कार्यपालिका में संतुलन क्यों आवश्यक है?
विधायिका कानून बनाती है और कार्यपालिका उन्हें लागू करती है। यदि दोनों में संतुलन न हो तो –
- कार्यपालिका तानाशाही बन सकती है
- विधायिका अक्षम हो सकती है
भारतीय संविधान ने दोनों के कार्यक्षेत्र तय किए हैं।
संसदीय प्रणाली में कार्यपालिका, विधायिका को उत्तरदायी होती है, जिससे संतुलन बना रहता है।
91. संयुक्त राष्ट्र संघ (UNO) की प्रमुख भूमिकाएँ बताइए।
संयुक्त राष्ट्र संघ की स्थापना 1945 में हुई। इसकी प्रमुख भूमिकाएँ हैं:
- विश्व शांति और सुरक्षा बनाए रखना
- विकास सहयोग – स्वास्थ्य, शिक्षा, गरीबी उन्मूलन
- मानवाधिकारों की रक्षा
- जलवायु परिवर्तन और पर्यावरण संरक्षण
- शरणार्थियों और युद्ध पीड़ितों की सहायता
UNO एक वैश्विक मंच है जो विश्व समुदाय को एक साथ लाता है।
92. नीति निदेशक तत्व (DPSPs) और मौलिक अधिकारों में अंतर बताइए।
आधार | मौलिक अधिकार | नीति निदेशक तत्व |
---|---|---|
प्रकृति | न्यायालय द्वारा लागू | न्यायिक रूप से बाध्यकारी नहीं |
उद्देश्य | व्यक्तिगत अधिकारों की रक्षा | सामाजिक और आर्थिक कल्याण |
संविधान भाग | भाग III | भाग IV |
उदाहरण | समानता का अधिकार | समान वेतन, बाल संरक्षण |
दोनों मिलकर भारत में कल्याणकारी राज्य की स्थापना करते हैं।
93. भारत की संसद की संरचना बताइए।
भारतीय संसद द्विसदनीय है और इसमें तीन घटक होते हैं:
- राष्ट्रपति
- राज्यसभा (ऊपरी सदन)
- लोकसभा (निचला सदन)
राज्यसभा राज्यों का प्रतिनिधित्व करती है जबकि लोकसभा जनता द्वारा प्रत्यक्ष चुनी जाती है।
संसद कानून बनाने, सरकार की निगरानी, और बजट पारित करने का कार्य करती है।
94. भारतीय संविधान की विशेषताएँ क्या हैं?
भारतीय संविधान की विशेषताएँ:
- विश्व का सबसे लंबा लिखित संविधान
- संघात्मक व्यवस्था के साथ एकात्मक प्रवृत्ति
- न्यायपालिका की स्वतंत्रता
- मौलिक अधिकार और कर्तव्य
- धर्मनिरपेक्षता और समाजवाद
- संविधान संशोधन की प्रक्रिया (अनु. 368)
- संपूर्ण लोकतंत्र और बहुदलीय प्रणाली
यह संविधान भारतीय समाज की विविधता में एकता को कायम रखता है।
95. भारत की पंचायती राज प्रणाली की त्रिस्तरीय संरचना को समझाइए।
भारत में पंचायती राज प्रणाली तीन स्तरों पर आधारित है:
- ग्राम पंचायत – ग्राम स्तर
- पंचायत समिति – खंड स्तर
- जिला परिषद – जिला स्तर
73वें संविधान संशोधन (1992) द्वारा इसे संवैधानिक दर्जा मिला।
महिलाओं, SC/ST के लिए आरक्षण और 5 वर्षों का कार्यकाल इसकी प्रमुख विशेषताएँ हैं। यह ग्राम स्वराज का आधार है।
96. भारत के राष्ट्रपति को महाभियोग द्वारा कैसे हटाया जा सकता है?
अनुच्छेद 61 के तहत राष्ट्रपति को संविधान के उल्लंघन के आधार पर महाभियोग द्वारा हटाया जा सकता है।
प्रक्रिया:
- संसद के किसी भी सदन में प्रस्ताव लाना (कम से कम 1/4 सदस्य)
- 14 दिन की पूर्व सूचना
- दोनों सदनों में 2/3 बहुमत से पारित
- दोष सिद्ध होने पर राष्ट्रपति को पद से हटाया जा सकता है।
यह प्रक्रिया बहुत कठिन और संतुलित है।
97. भारत में मानवाधिकार आयोग की भूमिका क्या है?
राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (NHRC) 1993 में गठित हुआ। इसका कार्य है –
- मानवाधिकारों की रक्षा और संवर्धन
- पुलिस हिरासत, कस्टोडियल डेथ, फर्जी मुठभेड़ की जाँच
- सरकार को सिफारिश देना
- मानवाधिकार शिक्षा और जागरूकता
हालाँकि इसके पास दंड देने की शक्ति नहीं, पर इसकी सिफारिशें प्रभावशाली होती हैं।
98. राज्यसभा के विशेषाधिकार क्या हैं?
राज्यसभा के विशेषाधिकार:
- राष्ट्रपति शासन की सिफारिश (अनु. 249)
- अखिल भारतीय सेवाओं के गठन हेतु प्रस्ताव
- राज्यों के हितों की रक्षा
- संघ सूची में राज्य विषयों पर कानून बनाने की अनुमति
हालाँकि राज्यसभा को धन विधेयक पर सीमित अधिकार हैं, परंतु यह संतुलन और विशेषज्ञता का मंच है।
99. भारत में “न्याय तक पहुँच” के लिए किए गए प्रयास कौन से हैं?
न्याय तक पहुँच के लिए भारत सरकार और न्यायपालिका ने अनेक कदम उठाए हैं:
- निःशुल्क विधिक सहायता (Legal Aid)
- लोक अदालतों का गठन
- ई-कोर्ट्स परियोजना
- जनहित याचिकाएँ (PIL)
- फास्ट ट्रैक कोर्ट्स
इनसे गरीब, महिला, दलित, ग्रामीण जनता को न्याय सुलभ बनाया गया है।
100. भारत में राजनीतिक जागरूकता बढ़ाने के उपाय क्या हो सकते हैं?
राजनीतिक जागरूकता लोकतंत्र के लिए आवश्यक है। इसे बढ़ाने के उपाय:
- राजनीतिक शिक्षा का प्रचार
- चुनाव आयोग द्वारा जागरूकता अभियान
- मीडिया का सकारात्मक उपयोग
- युवा सहभागिता को प्रोत्साहन
- स्वयंसेवी संगठनों की भागीदारी
राजनीतिक जागरूकता से नागरिक सरकार को जवाबदेह बनाते हैं और नीति निर्माण में भाग लेते हैं।