“यांत्रिक अपील पर सुप्रीम कोर्ट की फटकार : ‘स्टेट बनाम शशिकांत जोगी’ मामले में विधिक प्रावधानों की अनदेखी पर न्यायपालिका का कठोर संदेश”
भूमिका
भारतीय आपराधिक न्याय प्रणाली में अभियोजन पक्ष की भूमिका अत्यंत महत्वपूर्ण होती है। विशेष रूप से बच्चों के विरुद्ध यौन अपराधों से जुड़े मामलों में, जहाँ Protection of Children from Sexual Offences Act, 2012 (POCSO Act) जैसे विशेष कानून लागू होते हैं, वहाँ राज्य से यह अपेक्षा की जाती है कि वह अत्यंत सतर्कता, संवेदनशीलता और विधिक समझ के साथ कार्य करे। State Versus Shashikant Jogi प्रकरण में मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय तथा अंततः सर्वोच्च न्यायालय के समक्ष यही प्रश्न उभर कर सामने आया कि क्या राज्य द्वारा दायर अपील विधिक प्रावधानों के अनुरूप थी या मात्र एक औपचारिक, यांत्रिक कार्यवाही।
यह निर्णय न केवल अभियोजन एजेंसियों की कार्यशैली पर प्रश्नचिह्न लगाता है, बल्कि यह भी स्पष्ट करता है कि कानून की अनदेखी कर दायर की गई अपीलें न्यायिक समय की बर्बादी हैं।
मामले की पृष्ठभूमि
State Versus Shashikant Jogi का मामला POCSO अधिनियम के अंतर्गत दर्ज एक गंभीर आपराधिक प्रकरण से संबंधित था। निचली अदालत द्वारा अभियुक्त को एक सीमित दायरे में दोषसिद्ध (conviction) किया गया था। राज्य सरकार इस निर्णय से असंतुष्ट थी और उसने उच्च न्यायालय के समक्ष अपील दायर की।
राज्य की ओर से यह तर्क दिया गया कि निचली अदालत ने अपराध की गंभीरता को ठीक प्रकार से नहीं समझा और अभियुक्त को अपेक्षाकृत हल्का दंड दिया गया। किंतु जब उच्च न्यायालय ने अपील की सामग्री और उसके आधारों का परीक्षण किया, तो एक गंभीर कमी सामने आई।
राज्य की अपील में पाई गई खामियाँ
मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय ने स्पष्ट शब्दों में कहा कि राज्य द्वारा दायर अपील mechanically prepared थी, अर्थात् बिना विधिक परीक्षण और बिना यह देखे कि POCSO अधिनियम के कौन-कौन से प्रावधान लागू होते हैं।
न्यायालय ने यह पाया कि—
- अपील में POCSO अधिनियम की विशिष्ट धाराओं का सही उल्लेख नहीं किया गया।
- यह नहीं दर्शाया गया कि निचली अदालत ने किस विधिक प्रावधान का उल्लंघन किया।
- अपील के आधार सामान्य और रूढ़िबद्ध थे, जो लगभग हर आपराधिक अपील में लिख दिए जाते हैं।
- यह स्पष्ट नहीं किया गया कि दंड में वृद्धि या दोषसिद्धि में संशोधन का कानूनी आधार क्या है।
POCSO अधिनियम : विशेष कानून की विशेष जिम्मेदारी
POCSO अधिनियम एक special legislation है, जिसे बच्चों के यौन शोषण से सुरक्षा के उद्देश्य से बनाया गया है। इस अधिनियम के अंतर्गत—
- विशेष अदालतों की स्थापना
- सख्त प्रक्रिया
- पीड़ित के हितों की प्राथमिकता
- अभियोजन की विशेष जिम्मेदारी
जैसे प्रावधान शामिल हैं।
न्यायालय ने टिप्पणी की कि जब राज्य स्वयं इस अधिनियम के अंतर्गत अपील दायर कर रहा है, तो उससे यह अपेक्षा की जाती है कि वह कानून की गहन समझ के साथ ऐसा करे, न कि केवल औपचारिकता निभाने के लिए।
उच्च न्यायालय का दृष्टिकोण
मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय ने राज्य की अपील को खारिज करते हुए कहा कि—
“राज्य द्वारा दायर की गई अपील में यह नहीं दिखाया गया कि निचली अदालत का निर्णय किस प्रकार कानून के विपरीत है। यह अपील केवल एक यांत्रिक अभ्यास प्रतीत होती है, जिसमें POCSO अधिनियम के प्रावधानों की कोई वास्तविक जांच नहीं की गई।”
न्यायालय ने यह भी जोड़ा कि ऐसी अपीलें न केवल न्यायिक समय की बर्बादी हैं, बल्कि अभियोजन की गंभीरता पर भी प्रश्न उठाती हैं।
सुप्रीम कोर्ट के समक्ष मामला
जब यह मामला सर्वोच्च न्यायालय के समक्ष पहुँचा, तो न्यायालय ने उच्च न्यायालय के दृष्टिकोण से सहमति व्यक्त की। सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि—
- अपील का अधिकार असीमित नहीं है।
- प्रत्येक अपील विधिक आधारों पर आधारित होनी चाहिए।
- विशेष कानूनों के मामलों में राज्य से अधिक जिम्मेदारी की अपेक्षा की जाती है।
सुप्रीम कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि केवल इसलिए कि मामला बच्चों से संबंधित है, राज्य को यह छूट नहीं दी जा सकती कि वह बिना कानून देखे अपील दायर करे।
न्यायिक टिप्पणियाँ और संदेश
इस निर्णय के माध्यम से सर्वोच्च न्यायालय ने एक स्पष्ट संदेश दिया—
- यांत्रिक अपीलें अस्वीकार्य हैं।
- विशेष कानूनों में अभियोजन की भूमिका और अधिक जिम्मेदार हो जाती है।
- अपील दायर करना केवल एक प्रशासनिक कार्य नहीं, बल्कि एक विधिक प्रक्रिया है।
न्यायालय ने अप्रत्यक्ष रूप से यह भी कहा कि यदि राज्य की अपीलें इस प्रकार की लापरवाही से भरी होंगी, तो इससे पीड़ितों के अधिकारों को भी नुकसान पहुँचेगा।
अभियोजन तंत्र पर प्रभाव
यह निर्णय राज्य अभियोजन अधिकारियों, लोक अभियोजकों और विधि विभागों के लिए एक चेतावनी है। उन्हें यह सुनिश्चित करना होगा कि—
- अपील दायर करने से पहले मामले का विधिक विश्लेषण किया जाए।
- POCSO जैसे विशेष अधिनियमों के प्रावधानों का सही प्रयोग हो।
- अपील केवल संख्या बढ़ाने के लिए नहीं, बल्कि न्याय के उद्देश्य से दायर की जाए।
न्यायिक समय और संसाधनों की रक्षा
सुप्रीम कोर्ट ने कई अवसरों पर यह कहा है कि न्यायालयों पर पहले से ही मामलों का अत्यधिक बोझ है। ऐसे में यदि राज्य स्वयं बिना तैयारी के अपील दायर करेगा, तो इससे—
- न्यायिक समय की बर्बादी होगी
- वास्तविक और गंभीर मामलों की सुनवाई में देरी होगी
- न्याय प्रणाली की विश्वसनीयता प्रभावित होगी
निष्कर्ष
State Versus Shashikant Jogi का यह निर्णय केवल एक अपील की अस्वीकृति नहीं है, बल्कि यह भारतीय आपराधिक न्याय प्रणाली के लिए एक महत्वपूर्ण दिशानिर्देश है। यह स्पष्ट करता है कि—
- कानून की अनदेखी कर न्याय की उम्मीद नहीं की जा सकती।
- राज्य को एक जिम्मेदार वादी (responsible litigant) की भूमिका निभानी होगी।
- विशेष कानूनों में लापरवाही को किसी भी स्तर पर स्वीकार नहीं किया जाएगा।
अंततः, यह निर्णय न्यायपालिका की उस प्रतिबद्धता को दर्शाता है, जिसमें कानून के शासन (Rule of Law) को सर्वोपरि माना गया है और यह संदेश दिया गया है कि न्याय केवल भावना से नहीं, बल्कि विधि और विवेक से होता है।