“यह हत्या नहीं, भाषण का मामला है — मंत्री विजय शाह के बयान पर मध्यप्रदेश हाईकोर्ट का सख्त रुख”

शीर्षक: “यह हत्या नहीं, भाषण का मामला है — मंत्री विजय शाह के बयान पर मध्यप्रदेश हाईकोर्ट का सख्त रुख”


परिचय:

मध्यप्रदेश के मंत्री विजय शाह के आपत्तिजनक बयान को लेकर जबलपुर हाईकोर्ट ने कड़ा रुख अपनाते हुए राज्य सरकार को फटकार लगाई है। मंत्री द्वारा दिए गए कथित रूप से सांप्रदायिक और अपमानजनक भाषण पर दर्ज एफआईआर को अदालत ने ‘खानापूर्ति’ करार दिया और साफ कहा कि यह कोई हत्या का मामला नहीं, बल्कि एक भाषण का विषय है, जिसकी जांच में अधिक समय की आवश्यकता नहीं है क्योंकि पूरा भाषण सार्वजनिक मंच से हुआ है और उसके वीडियो रिकॉर्ड उपलब्ध हैं।


मामले की पृष्ठभूमि:

मंत्री विजय शाह पर आरोप है कि उन्होंने एक सार्वजनिक भाषण के दौरान भारतीय सेना की महिला अधिकारी कर्नल सोफिया कुरैशी के खिलाफ अभद्र और आपत्तिजनक भाषा का प्रयोग किया, जो कि न केवल व्यक्तिगत मानहानि की श्रेणी में आता है, बल्कि सामाजिक और राष्ट्रीय एकता पर भी आघात करता है। इस बयान को लेकर व्यापक जन आक्रोश और मीडिया की तीव्र प्रतिक्रिया देखी गई।


हाईकोर्ट की टिप्पणी और आदेश:

  1. एफआईआर को बताया ‘खानापूर्ति’:
    जबलपुर हाईकोर्ट की डिवीजन बेंच — जस्टिस अतुल श्रीधरन और जस्टिस अनुराधा शुक्ला — ने सुनवाई के दौरान नाराजगी जताते हुए कहा कि पुलिस द्वारा दर्ज की गई एफआईआर में वे सभी धाराएं शामिल नहीं हैं जिनके लिए बुधवार को कोर्ट ने स्पष्ट निर्देश दिए थे।
  2. एफआईआर दोबारा दर्ज करने का आदेश:
    कोर्ट ने स्पष्ट रूप से कहा कि एफआईआर में भारतीय न्याय संहिता (BNS), 2023 की धारा 152 (सांप्रदायिक वैमनस्य), 196 (राष्ट्रीय एकता के विरुद्ध अपराध), और 197 (सार्वजनिक शांति को खतरे में डालना) को शामिल किया जाए।
  3. ‘यह हत्या का मामला नहीं’:
    कोर्ट ने महाधिवक्ता द्वारा दी गई इस दलील को खारिज कर दिया कि “मामले की जांच चल रही है”, और कहा कि यह कोई हत्या का जटिल प्रकरण नहीं है। भाषण सार्वजनिक मंच से हुआ है, रिकॉर्ड मौजूद हैं, अतः विस्तृत जांच की आवश्यकता नहीं है।
  4. सेना का अपमान बर्दाश्त नहीं:
    कोर्ट ने अपने 8 पन्नों के आदेश में लिखा कि “भारतीय सेना शायद देश की एकमात्र संस्था है जो आज भी बलिदान, अनुशासन और अखंडता का प्रतीक है। मंत्री द्वारा उस संस्था की महिला अधिकारी के खिलाफ गटर जैसी भाषा का प्रयोग अत्यंत आपत्तिजनक और निंदनीय है।”

विधिक और नैतिक प्रभाव:

  • राजनीतिक जवाबदेही:
    यह मामला स्पष्ट करता है कि सार्वजनिक पद पर आसीन व्यक्ति की जिम्मेदारी केवल प्रशासनिक नहीं बल्कि नैतिक और संवैधानिक भी है।
  • न्यायपालिका की सक्रिय भूमिका:
    कोर्ट का स्वत: संज्ञान लेकर हस्तक्षेप करना यह दर्शाता है कि न्यायपालिका लोकतंत्र में checks and balances का प्रभावी साधन है।
  • एफआईआर की पारदर्शिता और निष्पक्षता:
    आदेश यह भी इंगित करता है कि सत्ता में बैठे लोगों के खिलाफ भी objectivity और rule of law के तहत कार्रवाई की जानी चाहिए।

निष्कर्ष:

मध्यप्रदेश हाईकोर्ट द्वारा मंत्री विजय शाह के आपत्तिजनक बयान पर लिया गया कड़ा रुख इस बात का प्रतीक है कि लोकतंत्र में संविधान और कानून सर्वोपरि हैं। इस मामले ने यह स्पष्ट कर दिया है कि जनप्रतिनिधि यदि अपनी वाणी से सामाजिक ताने-बाने को क्षति पहुंचाते हैं, तो न्यायपालिका उन्हें दायरे में लाने से पीछे नहीं हटेगी। भाषण की स्वतंत्रता का अधिकार, घृणा फैलाने या गरिमा को ठेस पहुँचाने का लाइसेंस नहीं है।