मौखिक बंटवारा: दावा करने वाले पर साक्ष्य प्रस्तुत करने का उत्तरदायित्व | मद्रास उच्च न्यायालय का निर्णय

🏛️ मौखिक बंटवारा: दावा करने वाले पर साक्ष्य प्रस्तुत करने का उत्तरदायित्व | मद्रास उच्च न्यायालय का निर्णय

प्रकरण: संपत्ति विवाद में मौखिक बंटवारे की वैधता | LAWS(MAD)-2023-7-48


🔹 परिचय:

भारतीय पारिवारिक संपत्ति विवादों में “मौखिक बंटवारा” (oral partition) एक सामान्य अवधारणा रही है, जहाँ लिखित दस्तावेज़ के बिना पारिवारिक सदस्य संपत्ति का बँटवारा कर लेते हैं। लेकिन न्यायिक दृष्टिकोण से, ऐसे दावों की वैधता को सिद्ध करना एक गंभीर चुनौती होता है। इसी संदर्भ में मद्रास उच्च न्यायालय ने एक महत्वपूर्ण निर्णय पारित करते हुए कहा:

“यदि कोई पक्ष मौखिक बंटवारे का दावा करता है, तो यह उसका कर्तव्य है कि वह स्पष्ट, ठोस और विश्वसनीय साक्ष्य के माध्यम से इस दावे को सिद्ध करे। केवल मौखिक दावे पर्याप्त नहीं हैं।”


🔹 मामले की पृष्ठभूमि:

  • यह मामला पारिवारिक संपत्ति विवाद से संबंधित था, जिसमें एक पक्ष ने यह दावा किया कि संपत्ति का मौखिक बंटवारा पहले ही हो चुका है, और उसके अनुसार हर सदस्य को अलग-अलग हिस्से दिए जा चुके हैं।
  • प्रतिवादी पक्ष ने मौखिक बंटवारे के अस्तित्व को अस्वीकार किया और अदालत से कहा कि कोई लिखित दस्तावेज़, रजिस्ट्री, या अन्य सबूत नहीं है जिससे यह साबित हो सके कि ऐसा कोई बंटवारा हुआ है।
  • इस संदर्भ में प्रश्न उठा कि मौखिक बंटवारा न्यायिक रूप से वैध है या नहीं, और यदि है तो किस पर इसका प्रमाण प्रस्तुत करने का भार होगा।

🔹 मुख्य विधिक प्रश्न:

  1. क्या मौखिक बंटवारा (oral partition) कानूनन वैध है?
  2. यदि हाँ, तो क्या सिर्फ दावा करना पर्याप्त है?
  3. मौखिक बंटवारे के दावे को साबित करने के लिए किस प्रकार के साक्ष्य अपेक्षित हैं?

🔹 अदालत का दृष्टिकोण:

मद्रास उच्च न्यायालय ने स्पष्ट किया कि:

  • भारतीय कानून में मौखिक बंटवारा मान्य है, विशेष रूप से तब जब वह परिवार के बीच सहमति से हुआ हो और उसका लंबे समय तक पालन भी हुआ हो।
  • लेकिन मात्र मौखिक रूप से बंटवारे का दावा करना पर्याप्त नहीं है।
  • दावे करने वाले पक्ष पर यह पूर्ण दायित्व होता है कि वह स्पष्ट, ठोस और विश्वसनीय साक्ष्य के माध्यम से सिद्ध करे कि:
    • बंटवारा वास्तव में हुआ था,
    • सभी पक्षों की सहमति से हुआ था,
    • और इसके बाद से उसका पालन व्यवहार में भी किया गया (जैसे, अलग-अलग कब्जा, अलग कर राजस्व रिकॉर्ड, कर भुगतान, आदि)।

🔹 प्रमुख टिप्पणियाँ:

  1. “Burden of Proof”:
    बंटवारे का दावा करने वाले व्यक्ति पर साक्ष्य का भार होता है। यह उस पक्ष का उत्तरदायित्व है कि वह अपने कथनों को विश्वसनीय बनाकर अदालत को संतुष्ट करे।
  2. मात्र मौखिक बयान पर्याप्त नहीं:
    यदि कोई पक्ष सिर्फ कहे कि “हमारा बंटवारा मौखिक रूप से हो गया था”, तो वह तब तक न्यायिक रूप से मान्य नहीं माना जाएगा जब तक उसके समर्थन में आचरण, दस्तावेज़, गवाह या व्यवहारिक प्रमाण न हों।
  3. साक्ष्य के प्रकार:
    • अलग-अलग हिस्सों का कब्जा
    • कर रिकॉर्ड में नाम
    • उपयोग का व्यवहार
    • अन्य पारिवारिक या सार्वजनिक दस्तावेज़
  4. अस्थिर दावों पर न्याय नहीं:
    बिना ठोस साक्ष्य के मौखिक बंटवारे के दावों से न्याय प्रणाली में अनिश्चितता उत्पन्न होगी, जिससे संपत्ति विवादों का दुरुपयोग हो सकता है।

🔹 न्यायालय का निर्णय:

मद्रास उच्च न्यायालय ने इस मामले में कहा कि:

  • मौखिक बंटवारे का सिर्फ दावा किया गया, लेकिन कोई विश्वसनीय साक्ष्य प्रस्तुत नहीं किया गया।
  • इसलिए, यह मानना उचित नहीं है कि वास्तव में कोई वैध मौखिक बंटवारा हुआ था।
  • मौखिक बंटवारे के दावे को अस्वीकार करते हुए न्यायालय ने निचली अदालत के निर्णय को बरकरार रखा।

🔚 निष्कर्ष:

इस निर्णय में मद्रास उच्च न्यायालय ने यह स्पष्ट संदेश दिया कि:

“मौखिक बंटवारा, भले ही कानूनी रूप से मान्य हो, परंतु उसे सिद्ध करने का भार पूर्णतः उस व्यक्ति पर है जो इसका दावा करता है।”

यह निर्णय पारिवारिक संपत्ति विवादों में एक मार्गदर्शक सिद्धांत प्रस्तुत करता है — कि संपत्ति के बंटवारे जैसे गंभीर और विवादास्पद मामलों में, प्रमाण और व्यवहार ही न्याय का आधार बन सकते हैं, न कि केवल मौखिक दावे।


📘 व्यवहारिक प्रभाव:

✅ परिवारों में संपत्ति बंटवारे के समय दस्तावेजी साक्ष्य रखने की आवश्यकता की पुनः पुष्टि।
✅ न्यायालयों में बंटवारा संबंधी मामलों की सुनवाई में साक्ष्य की महत्ता को बल।
✅ झूठे और मनगढ़ंत दावों पर रोक लगाना।
✅ पारदर्शिता और स्थायित्व की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम।