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मोराटोरियम की अवधि में कॉर्पोरेट डेब्टर के खिलाफ उपभोक्ता शिकायत की स्वीकार्यता: कानूनी परिप्रेक्ष्य

मोराटोरियम की अवधि में कॉर्पोरेट डेब्टर के खिलाफ उपभोक्ता शिकायत की स्वीकार्यता: कानूनी परिप्रेक्ष्य

परिचय

भारत में दिवालियापन और दिवाला संहिता, 2016 (Insolvency and Bankruptcy Code, 2016 – IBC) के तहत, किसी कॉर्पोरेट डेब्टर के खिलाफ कॉर्पोरेट दिवाला समाधान प्रक्रिया (CIRP) की शुरुआत होते ही एक मोराटोरियम लागू होता है। यह मोराटोरियम धारा 14 के अंतर्गत लागू होता है और इसका मुख्य उद्देश्य कॉर्पोरेट डेब्टर की संपत्तियों की सुरक्षा करना और उसकी पुनर्निर्माण प्रक्रिया को बाधित होने से बचाना है।

मोराटोरियम के दौरान, कॉर्पोरेट डेब्टर के खिलाफ कानूनी कार्यवाही, संपत्ति वसूलने की कार्रवाई, और न्यायिक दावा लगभग सभी प्रकार के स्थगित कर दिए जाते हैं। इस अवधि का मुख्य लाभ यह है कि कॉर्पोरेट डेब्टर अपनी वित्तीय स्थिति को व्यवस्थित कर सके और बिना किसी बाहरी दबाव के अपनी व्यवसायिक गतिविधियों को संचालित कर सके।

हालांकि, एक महत्वपूर्ण और जटिल प्रश्न यह है कि क्या मोराटोरियम की अवधि में उपभोक्ता शिकायत (Consumer Complaint) कॉर्पोरेट डेब्टर के खिलाफ स्वीकार्य होती है। कई हालिया न्यायिक निर्णयों ने स्पष्ट किया है कि मोराटोरियम की अवधि में उपभोक्ता शिकायत की अमान्यता की स्थिति उत्पन्न हो सकती है।


मोराटोरियम का कानूनी आधार

धारा 14 (Section 14) IBC के अंतर्गत मोराटोरियम का प्रावधान इस प्रकार है:

  1. CIRP के प्रारंभ के साथ प्रभावी – जैसे ही एनआरआई (NCLT) या अन्य मान्यता प्राप्त प्राधिकरण CIRP शुरू करता है, मोराटोरियम स्वतः प्रभावी हो जाता है।
  2. संपत्ति की सुरक्षा – मोराटोरियम लागू होने पर किसी भी तरह के संपत्ति वसूली के प्रयास, लेन-देन की रोक, और कोर्ट या अन्य प्राधिकरण में दावा पर रोक लगती है।
  3. अवैध रोकथाम – कोई भी विविध कानूनी कार्यवाही, चाहे वह ऋण वसूली का मामला हो या अन्य अनुबंध संबंधी मामला, मोराटोरियम की अवधि में नहीं की जा सकती।

इसका मुख्य उद्देश्य यह है कि कॉर्पोरेट डेब्टर का पुनरुद्धार (Revival) सुचारू रूप से हो और उसे बाहरी कानूनी दावों या दबावों से सुरक्षा प्राप्त हो।


उपभोक्ता शिकायतों की स्वीकार्यता पर न्यायिक दृष्टिकोण

बॉम्बे हाई कोर्ट का निर्णय

हाल ही में, बॉम्बे हाई कोर्ट की नागपुर बेंच ने इस विषय पर महत्वपूर्ण निर्णय दिया। मामले में एक उपभोक्ता ने CIRP के दौरान कॉर्पोरेट डेब्टर के खिलाफ शिकायत दर्ज कराई, जिसमें उसने उत्पाद या सेवा में त्रुटि के कारण नुकसान की भरपाई मांगी थी।

कोर्ट ने स्पष्ट किया कि:

  1. मोराटोरियम के दौरान कॉर्पोरेट डेब्टर के खिलाफ कोई भी कानूनी कार्यवाही नहीं की जा सकती, और इसमें उपभोक्ता अदालत में शिकायत भी शामिल है।
  2. धारा 14 IBC का उद्देश्य केवल संपत्ति की सुरक्षा नहीं, बल्कि कॉर्पोरेट डेब्टर की व्यवसायिक गतिविधियों की स्थिरता भी है।
  3. इसलिए, CIRP के दौरान उपभोक्ता शिकायत को स्वीकार्य नहीं माना जा सकता, और इस मामले को मोराटोरियम समाप्त होने तक स्थगित किया जाना चाहिए।

इस निर्णय ने यह स्पष्ट किया कि मोराटोरियम केवल वित्तीय दावों पर ही लागू नहीं होता, बल्कि कानूनी दावों और उपभोक्ता अधिकारों पर भी इसका प्रभाव पड़ता है।

सुप्रीम कोर्ट के दृष्टिकोण

सुप्रीम कोर्ट ने भी IBC और मोराटोरियम के दायरे को लेकर कई मामलों में रुख स्पष्ट किया है। सुप्रीम कोर्ट के अनुसार, मोराटोरियम की अवधि में:

  • कोई भी न्यायालयीन कार्रवाई बिना एनसीएलटी की अनुमति के नहीं की जा सकती।
  • यह रोक सभी दावों पर लागू होती है, चाहे वे ऋणदाताओं, लेनदारों, या उपभोक्ताओं द्वारा उठाए गए हों।
  • मोराटोरियम का उद्देश्य कॉर्पोरेट डेब्टर को विघटन और वित्तीय दबाव से बचाना है।

इस प्रकार, सुप्रीम कोर्ट ने मोराटोरियम की अवधि में उपभोक्ता शिकायतों की अस्वीकार्यता को औपचारिक रूप से मान्यता दी है।


मोराटोरियम और उपभोक्ता शिकायतों के बीच अंतर

मोराटोरियम और उपभोक्ता शिकायतों के उद्देश्य अलग हैं:

  1. मोराटोरियम – कॉर्पोरेट डेब्टर की संपत्तियों और व्यवसाय को कानूनी दावों से सुरक्षा देना।
  2. उपभोक्ता शिकायत – उपभोक्ताओं के अधिकारों की रक्षा करना और उन्हें न्याय दिलाना।

हालांकि दोनों अलग-अलग उद्देश्यों से जुड़े हैं, CIRP के दौरान दोनों के बीच संतुलन बनाना चुनौतीपूर्ण होता है। न्यायालय ने यह स्पष्ट किया कि मोराटोरियम का लाभ कॉर्पोरेट डेब्टर को दिया जाएगा, जबकि उपभोक्ता की शिकायत को मोराटोरियम समाप्त होने तक स्थगित किया जा सकता है।


कानूनी प्रावधान और धारा 14 का महत्व

धारा 14 IBC का विशेष महत्व है:

  • यह मोराटोरियम की अवधि, CIRP की प्रक्रिया, और कॉर्पोरेट डेब्टर के अधिकारों को संरक्षित करता है।
  • मोराटोरियम लागू होने पर सभी प्रकार की दावों की कार्रवाई स्थगित होती है।
  • उपभोक्ता शिकायतें भी इसी प्रावधान के दायरे में आती हैं।

इसलिए, मोराटोरियम की अवधि में उपभोक्ता शिकायत दर्ज करना कानूनी रूप से स्वीकार्य नहीं है।


संभावित असंतुलन और न्यायालयीन विवेक

न्यायालय ने यह भी माना है कि मोराटोरियम की अवधि में उपभोक्ताओं के अधिकारों की सुरक्षा भी महत्वपूर्ण है। इसलिए:

  • CIRP पूरी होने के बाद उपभोक्ता शिकायतों को फिर से दायर किया जा सकता है।
  • न्यायालय की अनुमति से कुछ विशेष परिस्थितियों में दावों को स्वीकार किया जा सकता है, परंतु यह अपवाद है।
  • न्यायालय का उद्देश्य हमेशा यह होता है कि कॉर्पोरेट डेब्टर और उपभोक्ता दोनों के हित संतुलित रहें।

निष्कर्ष

मोराटोरियम की अवधि में कॉर्पोरेट डेब्टर के खिलाफ उपभोक्ता शिकायत की स्वीकार्यता एक जटिल कानूनी मुद्दा है।

  • IBC का उद्देश्य कॉर्पोरेट डेब्टर की संपत्तियों और व्यवसाय की सुरक्षा करना है।
  • उपभोक्ताओं के अधिकार भी महत्वपूर्ण हैं, लेकिन CIRP के दौरान उनका दायित्व सीमित हो जाता है।
  • न्यायालय ने स्पष्ट किया कि मोराटोरियम की अवधि में उपभोक्ता शिकायत स्वीकार्य नहीं है, लेकिन CIRP पूरी होने के बाद उपभोक्ता अपने अधिकारों की रक्षा कर सकते हैं।

इस प्रकार, मोराटोरियम और उपभोक्ता शिकायत के बीच संतुलन बनाए रखना आवश्यक है। यह संतुलन केवल न्यायालय की विवेकशीलता, IBC की धारा 14 की व्याख्या, और CIRP की प्रक्रियाओं के माध्यम से ही संभव है।


न्यायिक उदाहरण

  1. बॉम्बे हाई कोर्ट, नागपुर बेंच: मोराटोरियम की अवधि में उपभोक्ता शिकायत अमान्य।
  2. सुप्रीम कोर्ट: CIRP के दौरान किसी भी कानूनी कार्यवाही पर रोक।
  3. एनसीएलटी निर्णय: मोराटोरियम की अवधि में संपत्ति वसूली और दावों पर रोक।

इन उदाहरणों से यह स्पष्ट होता है कि मोराटोरियम केवल ऋणदाताओं के लिए नहीं, बल्कि सभी प्रकार के दावों और कानूनी कार्यवाहियों के लिए लागू है।