मैटरनिटी लीव प्रजनन अधिकारों का हिस्सा: तीसरे बच्चे पर लीव से इनकार करना असंवैधानिक – सुप्रीम कोर्ट

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मैटरनिटी लीव प्रजनन अधिकारों का हिस्सा: तीसरे बच्चे पर लीव से इनकार करना असंवैधानिक – सुप्रीम कोर्ट

लंबा लेख:

सुप्रीम कोर्ट ने एक महत्वपूर्ण फैसले में कहा है कि मातृत्व अवकाश (Maternity Leave) महिला के प्रजनन अधिकार (Reproductive Rights) का अभिन्न हिस्सा है, जो संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत प्रदत्त जीवन और स्वतंत्रता के अधिकार में निहित है। न्यायालय ने यह टिप्पणी एक महिला कर्मचारी की याचिका पर की, जिसे तीसरे बच्चे के जन्म पर मातृत्व अवकाश देने से इनकार कर दिया गया था।

मामले का संक्षिप्त विवरण:
एक महिला सरकारी कर्मचारी ने तीसरे संतान के जन्म पर मातृत्व अवकाश की मांग की थी, जिसे उसकी नियोक्ता संस्था ने खारिज कर दिया। संस्था का तर्क था कि नियमों के अनुसार केवल पहले दो बच्चों पर ही मातृत्व अवकाश अनुमन्य है। महिला ने इस फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी।

न्यायालय का अवलोकन:
न्यायमूर्ति बी. वी. नागरत्न और न्यायमूर्ति ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह की खंडपीठ ने कहा:

“मातृत्व एक प्राकृतिक प्रक्रिया है, और महिला को इससे जुड़े अधिकारों से वंचित करना, विशेषकर मातृत्व अवकाश से, उसके जीवन, स्वास्थ्य और गरिमा के अधिकार का उल्लंघन है। तीसरे बच्चे के लिए मातृत्व अवकाश न देना महिला की प्रजनन स्वतंत्रता पर रोक लगाने जैसा है।”

संविधान और अधिकारों की व्याख्या:

  • अनुच्छेद 21: जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता का अधिकार
  • प्रजनन अधिकार: महिलाओं को संतान उत्पत्ति के संबंध में निर्णय लेने की स्वतंत्रता शामिल है।
  • कार्यस्थल पर समानता: मातृत्व अवकाश से वंचित करना लैंगिक भेदभाव की ओर इशारा करता है।

कोर्ट ने कहा:

“कार्यस्थल पर एक महिला को उसके मातृत्व से दंडित नहीं किया जा सकता। मातृत्व अवकाश केवल एक सुविधा नहीं बल्कि एक संवैधानिक संरक्षण है।”

फैसले के परिणाम:

  • सुप्रीम कोर्ट ने नियोक्ता संस्था का आदेश रद्द किया।
  • याचिकाकर्ता महिला को तीसरे बच्चे के लिए भी वैधानिक मातृत्व अवकाश देने के निर्देश दिए गए।
  • कोर्ट ने यह भी कहा कि मातृत्व को सीमित करने वाले नियमों की पुनः समीक्षा होनी चाहिए।

निष्कर्ष:
यह ऐतिहासिक निर्णय न केवल महिलाओं के अधिकारों की सुरक्षा करता है, बल्कि मातृत्व को गरिमा और संवेदनशीलता के साथ देखने की दिशा में न्यायपालिका का प्रगतिशील दृष्टिकोण भी दर्शाता है। सुप्रीम कोर्ट ने यह सुनिश्चित किया कि मातृत्व न तो बाधा है और न ही अपराध, बल्कि यह महिला के अस्तित्व और गरिमा का महत्वपूर्ण पहलू है।