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“मेडिकल राय अंतिम सत्य नहीं: गैर-इरादतन हत्या मामले में आरोपी को मुकदमे का सामना करना होगा” P&H हाईकोर्ट का महत्वपूर्ण फैसला

“मेडिकल राय अंतिम सत्य नहीं: गैर-इरादतन हत्या मामले में आरोपी को मुकदमे का सामना करना होगा” P&H हाईकोर्ट का महत्वपूर्ण फैसला

    गैर-इरादतन हत्या (Culpable Homicide) मामले में आरोप तय करने से पूर्व डिस्चार्ज का आग्रह अस्वीकार धारा 227 दंड प्रक्रिया संहिता के तहत आवेदन खारिज पंजाब एवं हरियाणा उच्च न्यायालय का महत्वपूर्ण निर्णय

       पंजाब एवं हरियाणा उच्च न्यायालय ने गैर-इरादतन हत्या (Culpable Homicide) से जुड़े एक गंभीर आपराधिक मामले में यह स्पष्ट किया है कि केवल पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट (Post-Mortem Report) अपने आप में आरोपी को दोषमुक्त (Discharge) करने का एकमात्र आधार नहीं बन सकती। न्यायालय ने कहा कि धारा 227 दंड प्रक्रिया संहिता, 1973 (CrPC) के अंतर्गत डिस्चार्ज के चरण पर अदालत को केवल यह देखना होता है कि क्या अभियोजन के रिकॉर्ड पर उपलब्ध सामग्री से प्रथमदृष्टया (Prima Facie) मामला बनता है या नहीं, न कि साक्ष्यों का सूक्ष्म परीक्षण।

इसी सिद्धांत को दोहराते हुए उच्च न्यायालय ने डिस्चार्ज हेतु दायर आवेदन को खारिज कर दिया और यह माना कि आरोप तय करने (Framing of Charge) की अवस्था पर पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट सहित समस्त परिस्थितिजन्य साक्ष्यों को समग्र रूप से देखना आवश्यक है


मामले की पृष्ठभूमि

प्रकरण में अभियोजन पक्ष का आरोप था कि—

  • एक घटना के दौरान
  • आरोपी के कृत्य से
  • पीड़ित की मृत्यु हुई,
  • जो कि धारा 299/304 IPC के अंतर्गत
    गैर-इरादतन हत्या की श्रेणी में आती है।

घटना के पश्चात—

  • पुलिस द्वारा प्राथमिकी दर्ज की गई,
  • जांच पूरी कर
  • आरोप पत्र (Charge-Sheet) न्यायालय में प्रस्तुत किया गया।

अभियुक्त ने आरोप तय होने से पहले
धारा 227 CrPC के तहत
डिस्चार्ज का आवेदन दाखिल किया।


डिस्चार्ज आवेदन में आरोपी की दलीलें

आरोपी की ओर से यह तर्क दिया गया कि—

  1. पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट में
    • मृत्यु का कारण
    • आरोपी के कृत्य से सीधे तौर पर नहीं जुड़ता।
  2. मेडिकल रिपोर्ट के अनुसार
    • चोटें साधारण प्रकृति की थीं
    • और वे मृत्यु के लिए पर्याप्त नहीं थीं।
  3. अभियोजन का पूरा मामला
    • केवल अनुमान और संदेह पर आधारित है।
  4. जब चिकित्सीय साक्ष्य
    • अभियोजन के कथन का समर्थन नहीं करता,
    • तब आरोपी को मुकदमे का सामना कराने का कोई औचित्य नहीं है।

इन्हीं आधारों पर आरोपी ने
डिस्चार्ज की मांग की।


राज्य/अभियोजन पक्ष की दलीलें

राज्य की ओर से
डिस्चार्ज आवेदन का विरोध करते हुए कहा गया कि—

  • पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट
    • केवल साक्ष्यों का एक हिस्सा है,
  • इसके अतिरिक्त—
    • प्रत्यक्षदर्शी बयान,
    • परिस्थितिजन्य साक्ष्य,
    • घटना की परिस्थितियां,
    • और अभियुक्त की भूमिका
      रिकॉर्ड पर मौजूद हैं।

अभियोजन ने तर्क दिया कि—

“डिस्चार्ज के चरण पर अदालत को साक्ष्यों की गहन समीक्षा नहीं करनी चाहिए, बल्कि यह देखना चाहिए कि क्या अभियुक्त के विरुद्ध मुकदमा चलाने का पर्याप्त आधार है।”


धारा 227 CrPC का कानूनी दायरा

उच्च न्यायालय ने
धारा 227 CrPC के दायरे को स्पष्ट करते हुए कहा कि—

  • इस प्रावधान का उद्देश्य
    • केवल निराधार अभियोजन को
      प्रारंभिक स्तर पर समाप्त करना है।
  • अदालत को यह नहीं देखना होता कि—
    • अभियोजन अंततः सफल होगा या नहीं,
  • बल्कि केवल यह देखना होता है कि—
    • क्या रिकॉर्ड पर उपलब्ध सामग्री
      आरोपी के विरुद्ध
      प्रथमदृष्टया मामला बनाती है।

उच्च न्यायालय का विश्लेषण

पंजाब एवं हरियाणा उच्च न्यायालय ने
विस्तृत विश्लेषण करते हुए कहा कि—

  1. पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट निर्णायक साक्ष्य नहीं होती।
    • यह केवल चिकित्सा विशेषज्ञ की राय है।
  2. यदि—
    • अन्य साक्ष्य
    • अभियोजन के कथन का समर्थन करते हों,
    • तो केवल मेडिकल रिपोर्ट के आधार पर
      आरोपी को दोषमुक्त नहीं किया जा सकता।
  3. डिस्चार्ज के चरण पर
    साक्ष्यों का तुलनात्मक मूल्यांकन वर्जित है।
  4. अभियोजन के संपूर्ण रिकॉर्ड को
    • एक इकाई के रूप में देखा जाना चाहिए।

न्यायालय ने यह भी कहा कि—

“यदि अभियोजन सामग्री से यह प्रतीत होता है कि आरोपी का कृत्य मृत्यु से संबंधित हो सकता है, तो आरोप तय करने का मार्ग अवरुद्ध नहीं किया जा सकता।”


पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट की सीमाएं

न्यायालय ने स्पष्ट किया कि—

  • पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट
    • घटना की परिस्थितियों को पूर्णतः प्रतिबिंबित नहीं करती।
  • कई बार—
    • मृत्यु का वास्तविक कारण
      परिस्थितिजन्य साक्ष्यों से ही स्पष्ट होता है।

अतः—

“केवल पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट के आधार पर
आरोपी को मुकदमे से बाहर कर देना
न्यायसंगत नहीं होगा।”


चार्ज फ्रेमिंग बनाम डिस्चार्ज

उच्च न्यायालय ने
चार्ज फ्रेमिंग और डिस्चार्ज के बीच
महत्वपूर्ण अंतर को भी रेखांकित किया—

  • चार्ज फ्रेमिंग:
    • प्रथमदृष्टया संतोष पर्याप्त।
  • डिस्चार्ज:
    • अभियोजन का मामला पूरी तरह
      निराधार होना चाहिए।

वर्तमान मामले में—

  • अभियोजन का मामला
    निराधार नहीं पाया गया।

पूर्व निर्णयों का संदर्भ

न्यायालय ने
सुप्रीम कोर्ट के कई पूर्व निर्णयों का उल्लेख करते हुए कहा कि—

  • डिस्चार्ज के स्तर पर
    • अदालत ट्रायल नहीं कर सकती।
  • मेडिकल साक्ष्य और मौखिक साक्ष्य के बीच
    • संभावित विरोधाभास
      ट्रायल के दौरान ही तय किया जाना चाहिए।

न्यायालय का अंतिम निष्कर्ष

उपरोक्त सभी पहलुओं पर विचार करते हुए
पंजाब एवं हरियाणा उच्च न्यायालय ने यह निष्कर्ष निकाला कि—

  • केवल पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट के आधार पर
    आरोपी को दोषमुक्त नहीं किया जा सकता।
  • अभियोजन सामग्री से
    प्रथमदृष्टया मामला बनता है।
  • अतः
    धारा 227 CrPC के तहत दायर
    डिस्चार्ज आवेदन को खारिज किया जाता है।

निर्णय का महत्व

यह निर्णय विशेष रूप से महत्वपूर्ण है क्योंकि—

  • यह स्पष्ट करता है कि
    मेडिकल साक्ष्य अपने आप में अंतिम सत्य नहीं होते।
  • आपराधिक मामलों में
    • समस्त साक्ष्यों का
      सामूहिक मूल्यांकन आवश्यक है।
  • यह फैसला
    • ट्रायल कोर्ट्स को
      डिस्चार्ज आवेदन पर निर्णय लेते समय
      सही कानूनी दृष्टिकोण अपनाने का मार्गदर्शन करता है।

निष्कर्ष

पंजाब एवं हरियाणा उच्च न्यायालय का यह निर्णय
आपराधिक न्याय प्रणाली में
डिस्चार्ज की सीमाओं को स्पष्ट करता है।

अदालत ने दो टूक शब्दों में कहा है कि—

  • केवल पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट के आधार पर
    आरोपी को गैर-इरादतन हत्या के मामले में
    मुकदमे से मुक्त नहीं किया जा सकता।

यह फैसला यह सुनिश्चित करता है कि—

  • गंभीर अपराधों में
    • सच्चाई ट्रायल के दौरान सामने आए,
  • और प्रारंभिक चरण में
    • तकनीकी आधारों पर
      न्याय की प्रक्रिया बाधित न हो।