शीर्षक:
“मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेंसी एक्ट, 1971: एक विस्तृत समीक्षा”
भूमिका
भारत में गर्भपात (Abortion) से जुड़े कानूनी प्रावधान, महिलाओं के स्वास्थ्य, सुरक्षा और प्रजनन अधिकारों की दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण हैं। गर्भपात एक संवेदनशील विषय है, जो न केवल चिकित्सा दृष्टिकोण से, बल्कि नैतिक, सामाजिक और कानूनी दृष्टिकोण से भी गहन विचार की मांग करता है। मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेंसी एक्ट, 1971 (Medical Termination of Pregnancy Act, 1971 – MTP Act) भारत में गर्भपात को विनियमित करने वाला प्रमुख कानून है। इसका उद्देश्य महिलाओं के स्वास्थ्य की रक्षा करते हुए, सुरक्षित और वैध गर्भपात की सुविधा उपलब्ध कराना है, ताकि असुरक्षित गर्भपात से होने वाली मृत्यु और स्वास्थ्य हानि को कम किया जा सके।
1. ऐतिहासिक पृष्ठभूमि
1971 से पहले भारत में गर्भपात भारतीय दंड संहिता (IPC) के तहत गैर-कानूनी था, सिवाय उस स्थिति के जब यह महिला की जान बचाने के लिए किया जाता था।
- गर्भपात को धारा 312-316 IPC के अंतर्गत दंडनीय अपराध माना जाता था।
- असुरक्षित और अवैध गर्भपात के कारण बड़ी संख्या में महिलाओं की मौत हो रही थी।
- 1960 के दशक में सरकार ने शांति लाल शाह कमेटी गठित की, जिसने 1966 में अपनी रिपोर्ट में सुरक्षित और नियंत्रित गर्भपात के लिए एक कानूनी ढाँचा तैयार करने की सिफारिश की।
- इसी आधार पर मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेंसी एक्ट, 1971 बनाया गया और 1 अप्रैल 1972 से लागू हुआ।
2. उद्देश्य
MTP Act, 1971 का मुख्य उद्देश्य:
- महिलाओं के जीवन और स्वास्थ्य की रक्षा – असुरक्षित गर्भपात से होने वाली मौतों को रोकना।
- कानूनी स्पष्टता – किन परिस्थितियों में गर्भपात वैध है, इसकी स्पष्ट परिभाषा।
- चिकित्सकीय नियंत्रण – गर्भपात केवल प्रशिक्षित और पंजीकृत चिकित्सकों द्वारा, मान्यता प्राप्त संस्थानों में कराया जाए।
- प्रजनन अधिकारों की सुरक्षा – महिला को अनचाहे गर्भ से मुक्ति का कानूनी रास्ता देना।
3. अधिनियम के मुख्य प्रावधान (1971 मूल स्वरूप)
3.1 गर्भपात की अनुमति किन परिस्थितियों में
गर्भपात तब कानूनी है, यदि:
- गर्भ धारण महिला के जीवन के लिए खतरा हो या उसके शारीरिक या मानसिक स्वास्थ्य को गंभीर नुकसान पहुँचा रहा हो।
- भ्रूण में गंभीर शारीरिक या मानसिक विकृति हो, जिससे जन्म के बाद उसका जीवन कठिन या असंभव हो।
- गर्भ बलात्कार के कारण ठहरा हो।
- गर्भनिरोधक असफलता (Contraceptive Failure) के कारण अवांछित गर्भ ठहर गया हो (विवाहित महिलाओं के लिए)।
3.2 गर्भपात की समय सीमा
- प्रारंभ में 20 सप्ताह तक गर्भपात की अनुमति थी।
- 12 सप्ताह तक – एक पंजीकृत चिकित्सक की राय आवश्यक।
- 12 से 20 सप्ताह – दो पंजीकृत चिकित्सकों की राय आवश्यक।
3.3 गर्भपात करने वाले की योग्यता
- केवल पंजीकृत और प्रशिक्षित चिकित्सा प्रैक्टिशनर ही गर्भपात कर सकते हैं।
3.4 गर्भपात का स्थान
- केवल सरकार द्वारा मान्यता प्राप्त अस्पताल या मान्यता प्राप्त निजी चिकित्सा संस्थान।
4. संशोधन और बदलाव
4.1 MTP (संशोधन) अधिनियम, 2002
- निजी क्लीनिकों को अनुमति देने के लिए प्रावधान।
- चिकित्सा तकनीक और प्रशिक्षित स्टाफ की परिभाषा स्पष्ट की गई।
4.2 MTP (संशोधन) अधिनियम, 2021 – महत्वपूर्ण सुधार
- समय सीमा में वृद्धि
- विशेष श्रेणी की महिलाओं (बलात्कार पीड़िता, नाबालिग, दिव्यांग, मानव तस्करी की शिकार) के लिए गर्भपात की सीमा 24 सप्ताह तक।
- चिकित्सकीय रूप से असामान्य भ्रूण के मामलों में समय सीमा से परे भी अनुमति (मेडिकल बोर्ड की सिफारिश पर)।
- विवाहित से अविवाहित तक विस्तार
- अब “गर्भनिरोधक असफलता” के आधार पर अविवाहित महिलाओं को भी गर्भपात का अधिकार।
- गोपनीयता प्रावधान
- गर्भपात से संबंधित महिला की पहचान बिना अनुमति सार्वजनिक नहीं की जा सकती। उल्लंघन पर दंड।
- मानसिक स्वास्थ्य की परिभाषा का विस्तार
- बलात्कार, वैवाहिक बलात्कार, और अन्य परिस्थितियों में मानसिक स्वास्थ्य पर प्रभाव को आधार माना गया।
5. न्यायिक दृष्टिकोण
Suchita Srivastava v. Chandigarh Administration (2009)
- सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि प्रजनन अधिकार Article 21 (जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता का अधिकार) का हिस्सा है।
X v. Union of India (2022)
- कोर्ट ने स्पष्ट किया कि अविवाहित महिलाओं को भी गर्भनिरोधक असफलता पर गर्भपात का अधिकार है।
Meera Santosh Pal v. Union of India (2017)
- 24 सप्ताह से अधिक गर्भावस्था में गंभीर भ्रूण असामान्यता पर गर्भपात की अनुमति।
6. अंतरराष्ट्रीय परिप्रेक्ष्य
- WHO के अनुसार, सुरक्षित और कानूनी गर्भपात महिलाओं की मृत्यु दर को काफी कम करता है।
- भारत का कानून कई विकासशील देशों की तुलना में अधिक प्रगतिशील है, लेकिन कुछ देशों जैसे कनाडा, यूके में समय सीमा और प्रतिबंध और भी उदार हैं।
7. चुनौतियाँ और आलोचनाएँ
- ग्रामीण क्षेत्रों में पहुंच की कमी – प्रशिक्षित डॉक्टर और मान्यता प्राप्त केंद्रों की संख्या सीमित।
- सामाजिक कलंक – अविवाहित और नाबालिग महिलाओं को अतिरिक्त भेदभाव का सामना करना पड़ता है।
- चिकित्सकीय बोर्ड की प्रक्रिया में देरी – समय सीमा पार होने का खतरा।
- अस्पष्ट क्रियान्वयन – कई बार अस्पताल या डॉक्टर कानून की सही जानकारी न होने के कारण अनुमति नहीं देते।
8. आगे की दिशा
- अवेयरनेस कैम्पेन – महिलाओं और स्वास्थ्यकर्मियों में कानून की जानकारी का प्रसार।
- इंफ्रास्ट्रक्चर सुधार – ग्रामीण और दूरदराज क्षेत्रों में मान्यता प्राप्त केंद्रों की संख्या बढ़ाना।
- प्रशिक्षण और संवेदनशीलता – डॉक्टरों और स्टाफ को कानूनी और नैतिक दोनों दृष्टिकोण से प्रशिक्षित करना।
- गोपनीयता की सख्त सुरक्षा – तकनीकी माध्यमों से डेटा सुरक्षा।
निष्कर्ष
मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेंसी एक्ट, 1971 महिलाओं को असुरक्षित गर्भपात से बचाने और उनके प्रजनन अधिकारों की रक्षा करने में एक मील का पत्थर साबित हुआ है। 2021 के संशोधनों ने इसे और अधिक समावेशी, प्रगतिशील और संवेदनशील बनाया है। लेकिन कानून के साथ-साथ सामाजिक दृष्टिकोण में भी बदलाव लाना आवश्यक है, ताकि हर महिला अपनी सेहत और भविष्य से जुड़े निर्णय स्वतंत्र रूप से और सुरक्षित तरीके से ले सके।