“मृतक पर वित्तीय आश्रितता का निर्धारण और मोटर वाहन दावा: क्लेमेंट के मामले में सुप्रीम कोर्ट का मार्गदर्शन”

“मृतक पर वित्तीय आश्रितता का निर्धारण और मोटर वाहन दावा: क्लेमेंट के मामले में सुप्रीम कोर्ट का मार्गदर्शन”


परिचय (Introduction):

मोटर वाहन अधिनियम, 1988 के अंतर्गत क्षतिपूर्ति दावों (Compensation Claims) में यह अत्यंत महत्वपूर्ण है कि मृतक के परिवारजन अथवा अन्य दावेदार उस पर वित्तीय रूप से आश्रित थे या नहीं। आश्रितता का निर्धारण ही क्षतिपूर्ति की राशि और वैधता का आधार बनता है। हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने “दीप शिखा बनाम नेशनल इंश्योरेंस कंपनी लिमिटेड” [Civil Appeal No(s). 6641-6642/2025, दिनांक 13 मई 2025] में इस संदर्भ में महत्वपूर्ण दिशा-निर्देश जारी किए हैं।


मामले की पृष्ठभूमि (Background of the Case):

इस केस में क्लेमेंट नामक व्यक्ति ने एक मोटर वाहन दुर्घटना में मारे गए व्यक्ति के विरुद्ध मुआवजा दावा दायर किया। क्लेमेंट का मृतक के साथ कोई प्रत्यक्ष वैधानिक संबंध (जैसे पत्नी, पुत्र, माता-पिता) नहीं था, किंतु वह पूर्ण रूप से मृतक की आय पर निर्भर था। क्लेमेंट ने दावा किया कि उसकी आर्थिक स्थिति अत्यंत दयनीय थी और वह मृतक की मदद से ही जीवन यापन कर रहा था।

प्रश्न यह उत्पन्न हुआ कि क्या ऐसा व्यक्ति जो मृतक का भाई, बहन, पुत्र या माता-पिता नहीं है, किन्तु आर्थिक रूप से आश्रित है, मुआवजा पाने का अधिकारी हो सकता है?


युवा अधिवक्ताओं के लिए मार्गदर्शन (Guidance for Young Advocates):

जो अधिवक्ता क्लेमेंट की ओर से अधिकरण (Tribunal) के समक्ष प्रस्तुत हो रहे हैं, उन्हें निम्नलिखित महत्वपूर्ण बिंदुओं पर ध्यान देना चाहिए:

  1. वित्तीय आश्रितता का प्रमाण प्रस्तुत करें:
    यह सिद्ध करना आवश्यक है कि क्लेमेंट मृतक पर पूरी तरह आर्थिक रूप से निर्भर था – भले ही वह उसका कानूनी उत्तराधिकारी न हो।
  2. न्यायालय द्वारा निर्धारित मापदंडों को रेखांकित करें:
    सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया है कि “वित्तीय आश्रितता” केवल पारंपरिक रिश्तों पर आधारित नहीं होती। यह वास्तविक जीवन की परिस्थितियों और निर्भरता की गहराई पर आधारित होती है।
  3. निर्भरता के कारणों को व्याख्यायित करें:
    क्लेमेंट का कोई आय स्रोत न होना, उसका मानसिक या शारीरिक रूप से काम करने में असमर्थ होना, मृतक द्वारा उसकी आजीविका की पूर्ण जिम्मेदारी लेना – ये सभी तत्व मुआवजे के दावे को मजबूत करते हैं।

प्रतिरक्षा पक्ष की दलीलें (Defense Perspective):

यदि अधिवक्ता बीमा कंपनी या उत्तरदायी वाहन चालक की ओर से उपस्थित हैं, तो उन्हें यह साबित करने का प्रयास करना चाहिए कि:

  1. क्लेमेंट स्वतंत्र एवं आय अर्जित करने में सक्षम था।
    • जैसे: वह नौकरी कर रहा था या स्वयं का व्यवसाय चला रहा था।
  2. मृतक से उसकी निर्भरता प्रतीकात्मक मात्र थी।
    • अर्थात क्लेमेंट की आर्थिक स्थिति इतनी खराब नहीं थी कि वह मृतक के बिना जीवित न रह सके।
  3. कोई विधिक या सामाजिक दायित्व नहीं था:
    • मृतक के ऊपर यह बाध्यता नहीं थी कि वह क्लेमेंट का पालन-पोषण करे।

दीप शिखा बनाम नेशनल इंश्योरेंस कंपनी लिमिटेड का महत्व:

सुप्रीम कोर्ट ने इस निर्णय में यह स्पष्ट किया:

  • धारा 166 और 168 का मुख्य उद्देश्य दावेदार और मृतक के बीच वित्तीय निर्भरता को पहचानना है
  • केवल पारंपरिक रिश्तों तक सीमित रहना न्याय की भावना के विरुद्ध होगा।
  • “आश्रितता का निर्धारण तथ्यों और परिस्थितियों पर आधारित प्रश्न है।”

इस निर्णय में कोर्ट ने कहा कि:

“यदि एक व्यक्ति की जीविका पूरी तरह से मृतक पर निर्भर थी, तो उसे आश्रित माना जाएगा चाहे उनका रिश्ता कोई भी हो।”


न्यायिक निष्कर्ष और विधिक सिद्धांत (Judicial Conclusion and Legal Principle):

  • मुआवजे के मामलों में न्याय की भावना सर्वोपरि होती है, न कि केवल वैधानिक संबोधन।
  • प्रत्येक केस की अपनी परिस्थितियाँ होती हैं और उनमें आश्रितता के निर्धारण हेतु व्यापक दृष्टिकोण अपनाना आवश्यक होता है।
  • आर्थिक निर्भरता यदि प्रमाणित हो जाए, तो किसी को भी मुआवजे का अधिकारी माना जा सकता है

निष्कर्ष (Conclusion):

क्लेमेंट के प्रकरण में सुप्रीम कोर्ट का निर्देश समस्त अधिवक्ताओं, विशेषकर युवा कानून विद्यार्थियों और वकीलों के लिए अत्यंत शिक्षाप्रद है। यह निर्णय बताता है कि:

  • विधि केवल शुष्क नियमों का संग्रह नहीं है, बल्कि न्याय की सेवा करने वाला जीवंत उपकरण है।
  • मृतक पर आश्रित प्रत्येक व्यक्ति, चाहे वह पारंपरिक उत्तराधिकारी हो या न हो, यदि उसके जीवन का आधार मृतक था, तो वह क्षतिपूर्ति का वैध दावेदार हो सकता है।

यह निर्णय न्यायिक दृष्टि से मानवता के मूल्य और विधिक न्याय के समन्वय का आदर्श उदाहरण है।