IndianLawNotes.com

“मृतक आश्रित योजना में पारिवारिक आय नहीं, वास्तविक आर्थिक स्थिति है मुख्य मानदंड: इलाहाबाद हाईकोर्ट का अहम निर्णय”

“मृतक आश्रित योजना में पारिवारिक आय नहीं, वास्तविक आर्थिक स्थिति है मुख्य मानदंड: इलाहाबाद हाईकोर्ट का अहम निर्णय”


🔹 प्रस्तावना

भारत में सरकारी नौकरी केवल आजीविका का साधन नहीं, बल्कि सामाजिक सुरक्षा का भी प्रतीक मानी जाती है। जब किसी सरकारी कर्मचारी की सेवा के दौरान मृत्यु हो जाती है, तो उसके परिवार पर आर्थिक और मानसिक दोनों ही संकट का पहाड़ टूट पड़ता है। इस संकट को कम करने के लिए सरकार ने “मृतक आश्रित नियुक्ति योजना” (Compassionate Appointment Scheme) लागू की है, जिसके अंतर्गत मृतक कर्मचारी के आश्रित को एक पद पर नियुक्ति दी जा सकती है ताकि परिवार की आर्थिक स्थिति संभल सके।

हालांकि, समय-समय पर यह योजना विवादों में रही है — खासकर इस बात को लेकर कि क्या पारिवारिक आय सीमा से अधिक होने पर आश्रित को स्वतः अपात्र माना जा सकता है, या फिर वास्तविक आर्थिक स्थिति का मूल्यांकन किया जाना चाहिए।

इसी मुद्दे पर इलाहाबाद हाईकोर्ट की न्यायमूर्ति अजय भनोट (Justice Ajay Bhanot) की एकलपीठ ने हाल ही में एक महत्वपूर्ण निर्णय दिया है। न्यायालय ने कहा — “मृतक आश्रित योजना एक कल्याणकारी प्रावधान है, इसलिए इसका यांत्रिक (mechanical) ढंग से प्रयोग नहीं किया जा सकता। परिवार की आर्थिक स्थिति का वास्तविक आकलन आवश्यक है।”

यह निर्णय न केवल मृतक आश्रितों के अधिकारों की रक्षा करता है, बल्कि सरकारी विभागों को भी यह संदेश देता है कि उन्हें ऐसे मामलों में संवेदनशीलता, न्याय और मानवीय दृष्टिकोण अपनाना चाहिए।


🔹 प्रकरण का संक्षिप्त विवरण

मामला टिंकू सिंह बनाम सिंडीकेट बैंक (अब कैनरा बैंक), जिला अमरोहा (जेपी नगर) से संबंधित था।

  • याची (Petitioner) टिंकू सिंह के पिता वीर सिंह सिंडीकेट बैंक में लिपिक (Clerk) के पद पर कार्यरत थे।
  • सेवा के दौरान उनकी अचानक मृत्यु हो गई।
  • पिता की मृत्यु के बाद टिंकू सिंह ने मृतक आश्रित कोटे में नियुक्ति के लिए आवेदन किया।

लेकिन बैंक ने उनके आवेदन को यह कहते हुए खारिज कर दिया कि परिवार की मासिक आय ₹55,783 है, जबकि मृतक आश्रित योजना के तहत निर्धारित आय सीमा ₹35,000 प्रति माह है।

बैंक का तर्क था कि इस आय सीमा से अधिक होने के कारण याची का परिवार “आर्थिक रूप से सक्षम” माना जाएगा, इसलिए उन्हें मृतक आश्रित योजना का लाभ नहीं मिल सकता।

इस आदेश के विरुद्ध याची ने इलाहाबाद हाईकोर्ट में याचिका दायर की।


🔹 न्यायालय का अवलोकन

न्यायमूर्ति अजय भनोट की एकलपीठ ने मामले की गहराई से पड़ताल करते हुए कई महत्वपूर्ण टिप्पणियाँ कीं —

(1) मृतक आश्रित योजना का उद्देश्य

न्यायालय ने कहा कि मृतक आश्रित योजना का मूल उद्देश्य परिवार के ऊपर अचानक आए आर्थिक संकट को दूर करना है, न कि रोजगार का वैकल्पिक साधन देना।

“यह योजना एक करुणामूलक (compassionate) प्रावधान है, जिसका उद्देश्य मृतक कर्मचारी के परिवार को उस समय सहारा देना है, जब वह अपने कमाऊ सदस्य को खोने के कारण आर्थिक कठिनाई में पड़ जाता है।”

अर्थात्, इसका मकसद समान अवसर आधारित प्रतियोगी भर्ती प्रणाली को प्रतिस्थापित करना नहीं, बल्कि एक अपवाद स्वरूप मानवीय राहत प्रदान करना है।

(2) पारिवारिक आय का आंकलन मात्र औपचारिकता नहीं

न्यायालय ने यह माना कि केवल आय के आधार पर पात्रता का निर्धारण करना पर्याप्त नहीं है।

“किसी परिवार की वास्तविक आर्थिक स्थिति का आकलन करने के लिए यह देखना जरूरी है कि परिवार का कोई सदस्य नौकरी में है तो क्या वह वास्तव में मृतक कर्मचारी के आश्रित परिवार की मदद कर रहा है या नहीं।”

इसका तात्पर्य यह हुआ कि — यदि परिवार में कोई सदस्य नौकरी में है, परंतु वह अलग रहता है या मृतक के परिवार की सहायता नहीं करता, तो उसकी आय को संपूर्ण परिवार की संयुक्त आय में नहीं जोड़ा जाना चाहिए।

(3) बैंक का दृष्टिकोण यांत्रिक था

कोर्ट ने कहा कि बैंक ने पारिवारिक आय की गणना करते समय केवल आंकड़ों पर आधारित निर्णय लिया और परिवार की वास्तविक आर्थिक जरूरतों का आकलन नहीं किया।

“सिर्फ यह कहना कि परिवार की कुल आय निर्धारित सीमा से अधिक है, इस योजना की भावना के अनुरूप नहीं है।”

अदालत ने इसे “यांत्रिक (mechanical)” और “संवेदनहीन” दृष्टिकोण करार दिया।

(4) संवैधानिक मूल्यों के अनुरूप व्याख्या

न्यायालय ने कहा कि कल्याणकारी राज्य के सिद्धांत (Welfare State Doctrine) के तहत ऐसी योजनाओं की व्याख्या संवेदनशील और मानवतावादी दृष्टिकोण से की जानी चाहिए।

“कल्याणकारी प्रावधानों की व्याख्या करते समय यह ध्यान रखना आवश्यक है कि प्रशासनिक निर्णय से किसी परिवार का जीवन स्तर न गिर जाए।”


🔹 न्यायालय का निर्णय (Order)

  • बैंक के आदेश को निरस्त (quash) किया गया।
  • कोर्ट ने कहा कि बैंक को परिवार की वास्तविक आर्थिक स्थिति का पुनः आकलन कर आश्रित कोटे में नियुक्ति पर पुनर्विचार करना होगा।
  • याची की याचिका स्वीकार (allowed) की गई।

कोर्ट ने साथ ही यह भी स्पष्ट किया कि भविष्य में सभी विभागों को ऐसे मामलों में पारदर्शी और न्यायसंगत मूल्यांकन प्रणाली अपनानी होगी।


🔹 कानूनी विश्लेषण

(A) मृतक आश्रित योजना की प्रकृति

भारतीय न्यायपालिका ने कई मामलों में यह स्पष्ट किया है कि मृतक आश्रित नियुक्ति कोई अधिकार (Right) नहीं है, बल्कि विवेकाधीन करुणामूलक राहत (Discretionary Relief) है।

परंतु इस राहत को देने में प्रशासन को न्यायसंगत, युक्तिसंगत और मानवीय दृष्टिकोण अपनाना होगा।

उदाहरण के लिए, सुप्रीम कोर्ट ने Umesh Kumar Nagpal v. State of Haryana (1994) में कहा था —

“Compassionate Appointment is not a vested right; it is to meet the immediate financial crisis facing the family of the deceased employee.”

इस निर्णय में भी हाईकोर्ट ने इसी सिद्धांत का पालन करते हुए कहा कि उद्देश्य आर्थिक संकट से उबारना है, न कि आय सीमा का कठोर अनुपालन करना।

(B) आय सीमा का प्रश्न

कई विभागों ने वर्षों से मृतक आश्रित योजना में “आय सीमा” का प्रावधान रखा है, ताकि योजना का दुरुपयोग न हो।

लेकिन आय सीमा का अर्थ यह नहीं कि यदि किसी परिवार की कुल आय थोड़ी अधिक है तो उसे स्वतः अपात्र ठहरा दिया जाए।

हाईकोर्ट ने कहा —

“आय सीमा मात्र एक मार्गदर्शक मानक (indicative guideline) है, निर्णायक तत्व नहीं।”

अर्थात्, प्रत्येक मामले में यह देखा जाना चाहिए कि —

  • क्या परिवार की आय वास्तव में पर्याप्त है?
  • क्या परिवार में कोई अन्य कमाऊ सदस्य परिवार की सहायता करता है?
  • क्या मृतक के परिवार की निर्भरता अब भी उसी पर थी?

यदि उत्तर “नहीं” है, तो परिवार को करुणामूलक नियुक्ति का लाभ मिलना चाहिए।

(C) कल्याणकारी न्यायशास्त्र (Welfare Jurisprudence)

यह निर्णय भारतीय कल्याणकारी न्यायशास्त्र के अनुरूप है, जो संविधान के अनुच्छेद 38 और 39 में निहित है —
राज्य को सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक न्याय को सुनिश्चित करने का दायित्व सौंपा गया है।

इसलिए, मृतक आश्रित योजना को केवल “नीति” नहीं, बल्कि संविधान की भावना के रूप में देखा जाना चाहिए।


🔹 इस निर्णय के व्यापक प्रभाव

(1) सरकारी विभागों के लिए दिशानिर्देश

अब विभागों को यह ध्यान रखना होगा कि वे मृतक आश्रित मामलों में केवल आय सीमा को देखकर आवेदन अस्वीकार न करें।
उन्हें यह देखना होगा कि —

  • परिवार की वास्तविक स्थिति क्या है,
  • क्या कोई अन्य सदस्य वास्तव में सहयोग कर रहा है,
  • क्या पारिवारिक संपत्ति या संसाधन परिवार के नियंत्रण में हैं या नहीं।

इससे भविष्य में ऐसे मामलों में पारदर्शिता और संवेदनशीलता दोनों बढ़ेंगी।

(2) आर्थिक रूप से सीमांत परिवारों के लिए राहत

कई बार ऐसा होता है कि मृतक कर्मचारी के परिवार में एक बेटा या भाई किसी नौकरी में होता है, लेकिन वह अलग रह रहा होता है या परिवार की सहायता नहीं करता।
ऐसे मामलों में बैंक या विभाग परिवार की संयुक्त आय गिनकर आवेदन खारिज कर देते हैं।

अब यह निर्णय ऐसे परिवारों को राहत देगा — क्योंकि अब यह पूछा जाएगा कि क्या वह सदस्य वास्तव में मदद कर रहा है या नहीं?

(3) प्रशासनिक निर्णयों में मानवीयता का समावेश

यह फैसला उन प्रशासनिक अधिकारियों के लिए भी एक संदेश है कि वे नियमों की अंधी व्याख्या न करें।
“नियमों का उद्देश्य न्याय है, न कि अन्याय को जन्म देना।”

(4) भावी न्यायिक दृष्टांत (Precedent)

यह निर्णय भविष्य में समान प्रकरणों में न्यायिक दृष्टांत (binding precedent) के रूप में उद्धृत किया जाएगा।
विशेषकर बैंकिंग संस्थाओं और सार्वजनिक उपक्रमों में यह निर्णय महत्वपूर्ण मार्गदर्शन देगा।


🔹 तुलनात्मक दृष्टिकोण

अन्य न्यायालयों ने भी समय-समय पर इसी प्रकार के विचार व्यक्त किए हैं —

  • मद्रास हाईकोर्ट ने T. Jayaraman v. State of Tamil Nadu (2019) में कहा —
    “आय सीमा का कठोर पालन योजना की भावना के विपरीत है। परिवार की वास्तविक स्थिति का मूल्यांकन आवश्यक है।”
  • मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने Sushma Shrivastava v. State of M.P. (2021) में कहा —
    “मृतक आश्रित योजना सामाजिक न्याय का साधन है, इसे यांत्रिक ढंग से लागू नहीं किया जा सकता।”

इलाहाबाद हाईकोर्ट का यह निर्णय उन्हीं सिद्धांतों को पुष्ट करता है, परंतु इसे और अधिक मानवीय दृष्टिकोण से परिभाषित करता है।


🔹 नीति सुधार की दिशा में सुझाव

इस निर्णय के आलोक में सरकार और सार्वजनिक संस्थाओं को निम्न कदम उठाने चाहिए —

  1. एक समान दिशा-निर्देश (Uniform Guidelines)
    सभी विभागों के लिए मृतक आश्रित मामलों में समान मानक तय किए जाएं ताकि भिन्न-भिन्न व्याख्याओं से बचा जा सके।
  2. “वास्तविक निर्भरता” (Actual Dependence) की परिभाषा
    स्पष्ट किया जाए कि कौन-सा सदस्य ‘आश्रित’ कहलाएगा और किसकी आय को शामिल किया जा सकता है।
  3. स्थानीय जांच समिति का गठन
    हर आवेदन में परिवार की सामाजिक व आर्थिक स्थिति की जांच स्थानीय स्तर पर की जाए।
  4. संवेदनशील प्रशिक्षण
    अधिकारियों को इस प्रकार के मामलों में मानवीय दृष्टिकोण अपनाने का प्रशिक्षण दिया जाए।

🔹 निष्कर्ष

इलाहाबाद हाईकोर्ट का यह निर्णय एक संवेदनशील और न्यायसंगत दृष्टिकोण का उत्कृष्ट उदाहरण है। इसने यह सिद्ध कर दिया कि मृतक आश्रित योजना का उद्देश्य केवल आंकड़ों का हिसाब-किताब नहीं, बल्कि मानवता के आधार पर राहत देना है।

न्यायालय ने यह स्पष्ट संदेश दिया है कि —

“आर्थिक स्थिति का आकलन केवल आय से नहीं, बल्कि परिवार की वास्तविक निर्भरता और जीवन स्थितियों से किया जाना चाहिए।”

यह फैसला न केवल एक व्यक्ति को न्याय दिलाने वाला है, बल्कि हजारों उन परिवारों के लिए उम्मीद की किरण है जो अपने प्रियजन को खोने के बाद प्रशासनिक जटिलताओं में उलझ जाते हैं।

वास्तव में, इस निर्णय ने एक बार फिर यह याद दिलाया है कि —
“कानून का सर्वोच्च उद्देश्य मनुष्य और समाज के बीच न्याय स्थापित करना है, न कि केवल नियमों का पालन कर लेना।”