“मूल बिक्री विलेख प्रस्तुत न करने पर प्रतिकूल अनुमान: उड़ीसा उच्च न्यायालय ने जाली बिक्री विलेख को किया निरस्त”

“मूल बिक्री विलेख प्रस्तुत न करने पर प्रतिकूल अनुमान: उड़ीसा उच्च न्यायालय ने जाली बिक्री विलेख को किया निरस्त”
(Orissa High Court: Non-production of Original Sale Deed Leads to Adverse Inference and Nullification of Title Claim)


भूमिका:

भूमि विवादों में “मालिकाना अधिकार” (Ownership) और “बिक्री विलेख” (Sale Deed) की वैधता अत्यंत महत्वपूर्ण होती है। हाल ही में उड़ीसा उच्च न्यायालय ने LAWS(ORI)-2024-2-147 में एक ऐतिहासिक निर्णय में यह स्पष्ट किया कि यदि कोई पक्ष अपना दावा एक दस्तावेज़ के आधार पर करता है, किंतु उस मूल दस्तावेज़ (original document) को प्रस्तुत नहीं कर पाता, तो उसके विरुद्ध प्रतिकूल अनुमान (adverse inference) लगाया जा सकता है।


मामले की पृष्ठभूमि:

  • वादी (Plaintiff) ने अदालत में एक वाद दायर किया जिसमें उन्होंने:
    • भूमि पर स्वामित्व का घोषणा आदेश (Declaration of Ownership) मांगा
    • और एक बिक्री विलेख को निरस्त (Null and Void) घोषित करने की मांग की, जिसे उन्होंने जाली और प्रतिरूपण (impersonation) पर आधारित बताया।
  • प्रतिवादी (Defendant) ने अपना स्वामित्व उस विवादित बिक्री विलेख के आधार पर जताया, परंतु उन्होंने मूल बिक्री विलेख प्रस्तुत नहीं किया

प्रासंगिक विधिक प्रावधान:

  • Specific Relief Act, 1963 – Section 34:
    यह धारा किसी व्यक्ति को यह अधिकार देती है कि वह अपने वैध अधिकार या स्वामित्व की घोषणा (Declaration) के लिए सिविल कोर्ट में वाद दायर कर सकता है।

अदालत के प्रमुख अवलोकन एवं विश्लेषण:

  1. मूल दस्तावेज़ की अनुपस्थिति:
    • प्रतिवादी की पूरी दलील बिक्री विलेख पर आधारित थी, किंतु उन्होंने मूल दस्तावेज़ अदालत में पेश नहीं किया।
    • यह गंभीर संदेह उत्पन्न करता है कि दस्तावेज़ वास्तविक नहीं था या उसमें जालसाजी व प्रतिरूपण हुआ था।
  2. प्रतिकूल अनुमान (Adverse Inference):
    • भारतीय साक्ष्य अधिनियम (Indian Evidence Act) के सिद्धांतों के अनुसार, यदि कोई पक्ष ऐसा दस्तावेज़ प्रस्तुत करने में विफल रहता है जो उसके पक्ष में हो सकता है, तो यह माना जा सकता है कि वह दस्तावेज़ उसके खिलाफ जाता है
    • अदालत ने इसी सिद्धांत के आधार पर प्रतिवादी के विरुद्ध अनुमान लगाया।
  3. जांच और निष्कर्ष:
    • अदालत ने बिक्री विलेख की प्रामाणिकता की विस्तृत समीक्षा की।
    • दस्तावेज़ में कई अनियमितताएँ और असंगतियाँ पाई गईं, जिससे यह सिद्ध हुआ कि यह जाली और अवैध था।
  4. वादी का स्वामित्व सिद्ध:
    • वादी द्वारा प्रस्तुत गवाहियाँ और दस्तावेज़ी साक्ष्य विश्वसनीय पाए गए।
    • परिणामस्वरूप, अदालत ने वादी के स्वामित्व के दावे को स्वीकार कर लिया।

न्यायालय का निर्णय:

  • विवादित बिक्री विलेख को निरस्त (Declared Null and Void) कर दिया गया।
  • वादी के पक्ष में स्वामित्व की घोषणा (Declaration of Ownership) कर दी गई।
  • प्रतिवादी का दावा मूल दस्तावेज़ न होने और जाली दस्तावेज़ पर आधारित होने के कारण अस्वीकार कर दिया गया।

न्यायिक महत्व:

यह निर्णय निम्नलिखित कानूनी सिद्धांतों की पुष्टि करता है:

  • मूल दस्तावेज़ प्रस्तुत करना अनिवार्य होता है यदि किसी पक्ष का पूरा दावा उस पर आधारित है।
  • दस्तावेज़ी साक्ष्य न देने पर प्रतिकूल अनुमान लगाया जा सकता है।
  • जाली दस्तावेज़ों पर आधारित दावे न्यायालय में स्वीकार्य नहीं होते।

निष्कर्ष:

उड़ीसा उच्च न्यायालय का यह निर्णय भूमि स्वामित्व से जुड़े मुकदमों में दस्तावेज़ी साक्ष्य की महत्ता और सत्यता को उजागर करता है। यह स्पष्ट करता है कि यदि कोई व्यक्ति मूल बिक्री विलेख प्रस्तुत करने में असफल रहता है, तो उसकी वैधता पर प्रश्नचिन्ह लग जाता है, और अदालत उसे जाली मान सकती है। यह फैसला भविष्य में जालसाजी व प्रतिरूपण से जुड़े मामलों में एक मजबूत नज़ीर (precedent) के रूप में काम करेगा।