“मूल आरोप पर बरी होने पर शस्त्र अधिनियम के तहत दोषसिद्धि अमान्य: मध्यप्रदेश हाईकोर्ट का महत्वपूर्ण निर्णय”

लंबा लेख शीर्षक:
“मूल आरोप पर बरी होने पर शस्त्र अधिनियम के तहत दोषसिद्धि अमान्य: मध्यप्रदेश हाईकोर्ट का महत्वपूर्ण निर्णय”


लेख:
मध्यप्रदेश उच्च न्यायालय (Madhya Pradesh High Court) ने दिनांक 28 दिसंबर 2023 को दिए गए एक महत्वपूर्ण निर्णय में स्पष्ट किया कि जब किसी अभियुक्त को प्राथमिक आरोप (Principal Charge) में बरी कर दिया जाता है, तो उस पर लगाया गया आर्म्स एक्ट (Arms Act, 1959) के तहत अनुषंगी आरोप (Incidental Charge) भी टिक नहीं सकता।

यह निर्णय रवि परिहार बनाम मध्यप्रदेश राज्य [Crl. Appeal No. 1107/2016] मामले में सुनाया गया।


⚖️ मामला संक्षेप में:

  • अभियुक्त रवि परिहार के विरुद्ध भारतीय दंड संहिता की धारा 307 (हत्या का प्रयास) और शस्त्र अधिनियम की धारा 25(1-b)(a) एवं धारा 39 के तहत अभियोजन चलाया गया।
  • उसके पास एक देसी पिस्टल (country-made pistol) बरामद होने का आरोप था।
  • आरोप था कि उसने उक्त हथियार से हत्या का प्रयास किया।

🧾 अभियोजन की विफलता:

  • न्यायालय ने पाया कि अभियोजन धारा 307 IPC (हत्या का प्रयास) के अंतर्गत अभियुक्त का दोष सिद्ध करने में असफल रहा।
  • इसके आधार पर, न्यायालय ने कहा कि जब प्राथमिक आरोप (हत्या का प्रयास) ही प्रमाणित नहीं हुआ, तो केवल हथियार रखने का आरोप भी कानूनी रूप से टिकाऊ नहीं रह जाता।

🧑‍⚖️ न्यायालय की टिप्पणी:

  • हाईकोर्ट ने सुप्रीम कोर्ट के निर्णय Sumersinh Umedsinh Rajput v. State of Gujarat (2008) का अनुसरण करते हुए कहा:

“जब अभियुक्त को मुख्य आरोप (Principal Offence) में दोषमुक्त कर दिया जाता है, तो केवल हथियार रखने की धारा 25 के तहत सजा देना न्यायोचित नहीं।”

  • अतः न्यायालय ने:

    धारा 25 के तहत दोषसिद्धि और सजा दोनों को रद्द (quashed) कर दिया।
    अभियुक्त को पूर्णतः बरी (Acquitted) कर दिया।


📚 कानूनी प्रावधान:

  • भारतीय दंड संहिता (IPC), 1860
    • धारा 307 – हत्या का प्रयास
  • शस्त्र अधिनियम, 1959 (Arms Act, 1959)
    • धारा 25(1-b)(a) – अवैध रूप से हथियार रखने पर दंड
    • धारा 39 – अभियोजन हेतु राज्य सरकार की अनुमति
  • दंड प्रक्रिया संहिता (CrPC), 1973
    • धारा 374(2) – सत्र न्यायालय के निर्णय के विरुद्ध अपील

🔍 निष्कर्ष:

यह निर्णय स्पष्ट करता है कि:

“जब मुख्य आपराधिक कृत्य सिद्ध ही नहीं हुआ, तब केवल सहायक आरोपों पर दोषसिद्धि टिकाई नहीं जा सकती।”

यह न्यायिक रुख ऐसे मामलों में बहुत महत्वपूर्ण है जहाँ हथियार बरामद होने मात्र से अभियुक्त को दोषी ठहरा दिया जाता है, भले ही कोई आपराधिक कृत्य सिद्ध न हो।