मुस्लिम विधि में अभिभावकत्व (Guardianship) – प्रकार, अधिकार एवं दायित्व
1. परिचय
मुस्लिम विधि में अभिभावकत्व (Guardianship) वह कानूनी अधिकार और दायित्व है, जिसके अंतर्गत एक व्यक्ति नाबालिग के व्यक्ति, शिक्षा, विवाह और संपत्ति का देखभाल एवं प्रबंधन करता है।
नाबालिग (Minor) वह है, जिसने वयस्कता की आयु पूरी नहीं की है – मुस्लिम कानून में वयस्कता सामान्यतः प्यूबर्टी (यौवन) प्राप्त होने पर मानी जाती है, और यदि यह सिद्ध न हो तो 15 वर्ष की आयु मानी जाती है।
अभिभावकत्व की आवश्यकता इसलिए है क्योंकि नाबालिग कानूनी रूप से अपनी संपत्ति का प्रबंधन या अपने हित में महत्वपूर्ण निर्णय लेने में सक्षम नहीं होता।
2. मुस्लिम विधि में अभिभावकत्व के प्रकार
मुस्लिम कानून के अनुसार अभिभावकत्व तीन मुख्य प्रकार के होते हैं –
(A) प्राकृतिक अभिभावक (Natural Guardian)
- अर्थ – वह व्यक्ति जो जन्मसिद्ध अधिकार से नाबालिग का अभिभावक होता है।
- क्रम (सुन्नी विधि):
- पिता
- पिता के मनोनीत वसी अभिभावक
- पितामह (पिता का पिता)
- पितामह के मनोनीत वसी अभिभावक
- क्रम (शिया विधि):
- पिता
- पितामह
- पिता या पितामह द्वारा नियुक्त वसी अभिभावक
विशेषताएँ –
- पिता नाबालिग की संपत्ति के प्राकृतिक अभिभावक होते हैं।
- माता को मुस्लिम विधि में सामान्यतः संपत्ति की अभिभावकता का अधिकार नहीं है (सिर्फ व्यक्ति की देखभाल का अधिकार है)।
(B) न्यायालय द्वारा नियुक्त अभिभावक (Guardian appointed by Court)
- जब प्राकृतिक या वसी अभिभावक उपलब्ध न हो या अपने कर्तव्यों का निर्वहन न कर सके, तो गर्जियन एंड वार्ड्स एक्ट, 1890 के अंतर्गत न्यायालय अभिभावक नियुक्त कर सकता है।
- न्यायालय नाबालिग के हित और कल्याण को सर्वोपरि मानकर निर्णय लेता है।
- यह अभिभावक न्यायालय के पर्यवेक्षण और नियंत्रण में कार्य करता है।
(C) वसी अभिभावक (Testamentary Guardian)
- अर्थ – वसी अभिभावक वह होता है, जिसे प्राकृतिक अभिभावक (पिता या पितामह) अपनी मृत्यु से पूर्व वसीयत (Will) के माध्यम से नियुक्त करता है।
- सुन्नी कानून – पिता और पितामह को वसी अभिभावक नियुक्त करने का अधिकार है।
- शिया कानून – केवल पिता को यह अधिकार है, पितामह के पास यह अधिकार नहीं है।
- नियुक्त वसी अभिभावक नाबालिग की संपत्ति का प्रबंधन करता है और उसकी देखभाल करता है।
3. नाबालिग की संपत्ति में अभिभावक के अधिकार
मुस्लिम विधि में अभिभावक का नाबालिग की संपत्ति पर अधिकार सीमित और नियंत्रित होता है, ताकि संपत्ति का दुरुपयोग न हो।
(A) संपत्ति का प्रबंधन
- अभिभावक नाबालिग की संपत्ति का देखभाल और संरक्षण करेगा।
- आय का उपयोग नाबालिग की शिक्षा, भरण-पोषण और कल्याण के लिए किया जा सकता है।
(B) संपत्ति के हस्तांतरण का अधिकार
- प्राकृतिक अभिभावक (पिता/पितामह) कुछ विशेष परिस्थितियों में ही नाबालिग की अचल संपत्ति का विक्रय, विनिमय या गिरवी रख सकता है, जैसे –
- नाबालिग के भरण-पोषण के लिए धन की आवश्यकता।
- संपत्ति का रखरखाव असंभव या अत्यधिक खर्चीला हो।
- संपत्ति से होने वाली आय, रखरखाव के खर्च से कम हो।
- किसी कानूनी दायित्व का निर्वहन आवश्यक हो।
- न्यायालय द्वारा नियुक्त अभिभावक को संपत्ति के हस्तांतरण के लिए न्यायालय की अनुमति आवश्यक है।
(C) चल संपत्ति का प्रबंधन
- चल संपत्ति का विक्रय सामान्य प्रबंधन की आवश्यकता के अनुसार किया जा सकता है, परन्तु दुरुपयोग या हानि से बचना अनिवार्य है।
4. अभिभावक के दायित्व
(A) नाबालिग के सर्वोत्तम हित में कार्य
- सभी निर्णय नाबालिग के हित और कल्याण को ध्यान में रखकर लेने होंगे।
(B) संपत्ति की सुरक्षा
- संपत्ति को क्षति, हानि या अवैध कब्जे से बचाना।
(C) आय-व्यय का सही लेखा-जोखा
- संपत्ति से होने वाली आय और व्यय का स्पष्ट रिकॉर्ड रखना।
(D) अनावश्यक जोखिम से बचना
- नाबालिग की संपत्ति को ऐसे निवेश में न लगाना, जिससे अनावश्यक जोखिम उत्पन्न हो।
(E) न्यायालय के निर्देशों का पालन
- न्यायालय द्वारा नियुक्त अभिभावक को न्यायालय की अनुमति के बिना कोई बड़ा निर्णय नहीं लेना चाहिए।
5. अभिभावक के अधिकारों की सीमाएँ
- प्राकृतिक अभिभावक के अलावा अन्य किसी व्यक्ति को नाबालिग की संपत्ति का प्रबंधन करने का स्वाभाविक अधिकार नहीं है।
- वसी अभिभावक केवल उतना ही कर सकता है, जितना उसकी नियुक्ति में निर्दिष्ट है।
- न्यायालय द्वारा नियुक्त अभिभावक को कानून और न्यायालय की शर्तों का पालन करना होगा।
6. न्यायिक दृष्टांत
- Imambandi v. Mutsaddi (1918) 45 IA 73
- सिद्धांत: माता को नाबालिग की अचल संपत्ति की अभिभावकता का अधिकार मुस्लिम विधि में नहीं है, वह केवल व्यक्ति की देखभाल कर सकती है।
- Mohd. Amin v. Vakil Ahmad (1952 SCR 1133)
- सिद्धांत: अभिभावक द्वारा नाबालिग की संपत्ति का विक्रय तभी मान्य होगा जब यह नाबालिग के हित में हो और कानूनी आवश्यकता के आधार पर किया गया हो।
7. निष्कर्ष
मुस्लिम विधि में अभिभावकत्व का उद्देश्य नाबालिग के जीवन, शिक्षा और संपत्ति की सुरक्षा करना है। प्राकृतिक अभिभावक को प्राथमिकता दी जाती है, लेकिन आवश्यकता पड़ने पर न्यायालय या वसी अभिभावक को यह दायित्व सौंपा जा सकता है।
अभिभावक के अधिकार सीमित और उत्तरदायित्वपूर्ण होते हैं, जिससे नाबालिग की संपत्ति का दुरुपयोग न हो और उसका हित सर्वोपरि रहे।