लेख शीर्षक: मुजफ्फरपुर जेल में महिला बंदियों का यौन शोषण – प्रधानमंत्री कार्यालय ने बिहार सरकार से मांगी रिपोर्ट
बिहार के मुजफ्फरपुर महिला जेल से एक गंभीर और स्तब्ध कर देने वाली घटना सामने आई है, जिसमें एक महिला बंदी ने प्रधानमंत्री को पत्र लिखकर जेल में हो रहे यौन शोषण और अमानवीय व्यवहार की शिकायत की है। पत्र में आरोप लगाया गया है कि यदि महिला बंदी जेल कर्मियों की यौन इच्छाओं को पूरा नहीं करती, तो उन्हें भोजन नहीं दिया जाता और उन्हें बुरी तरह पीटा भी जाता है।
प्रधानमंत्री कार्यालय (PMO) ने इस मामले को गंभीरता से लेते हुए तत्काल बिहार सरकार से विस्तृत रिपोर्ट मांगी है। साथ ही, जिला प्रशासन ने महिला विकास पदाधिकारी (DPO) की अध्यक्षता में एक जांच समिति का गठन कर दिया है, जो पूरे प्रकरण की निष्पक्ष जांच करेगी। यह समिति जेल परिसर में जाकर महिला बंदियों के बयान दर्ज करेगी और सत्यता की पुष्टि करेगी।
क्या हैं महिला बंदी के आरोप?
पीड़िता महिला ने अपने पत्र में लिखा है कि जेल में उसे जबरन जेलकर्मियों या अधिकारियों के साथ शारीरिक संबंध बनाने के लिए मजबूर किया जाता है। विरोध करने पर उसे भूखा रखा जाता है और शारीरिक रूप से प्रताड़ित किया जाता है। इस पत्र की प्रतिलिपि प्रधानमंत्री के साथ-साथ मुख्यमंत्री, महिला आयोग, राज्य के मुख्य सचिव और जेल महानिरीक्षक (IG Prisons) को भी भेजी गई है।
प्रशासन की कार्रवाई
घटना की गूंज पूरे प्रदेश में सुनाई दी, जिसके बाद जिला प्रशासन तुरंत सक्रिय हो गया। जिला अधिकारी (DM) ने महिला विकास पदाधिकारी (DPO) की अध्यक्षता में एक विशेष जांच टीम बनाई है जिसमें अन्य महिला अधिकारियों को भी शामिल किया गया है। यह टीम जेल का निरीक्षण कर रही है और बंदियों से व्यक्तिगत रूप से मिलकर तथ्य जुटा रही है।
मानवाधिकार और महिला आयोग की निगरानी
राष्ट्रीय महिला आयोग (NCW) और बिहार राज्य महिला आयोग ने भी इस मामले को स्वतः संज्ञान में लेते हुए प्रदेश सरकार से रिपोर्ट मांगी है। महिला आयोग ने स्पष्ट किया है कि यदि आरोप सही पाए गए, तो जिम्मेदार अधिकारियों पर सख्त कार्रवाई की जाएगी।
क्या कहती है जेल प्रशासन?
मुजफ्फरपुर महिला जेल प्रशासन ने इन आरोपों को “बेबुनियाद” बताया है और कहा है कि जांच पूरी होने से पहले कोई निष्कर्ष निकालना उचित नहीं होगा। हालांकि, प्रशासन ने जांच में सहयोग देने की बात कही है।
निष्कर्ष
यह घटना न केवल बिहार की जेल व्यवस्था पर गंभीर सवाल खड़े करती है, बल्कि महिला बंदियों की सुरक्षा और गरिमा को लेकर पूरे देश में चिंता उत्पन्न करती है। यदि जांच में आरोप सही पाए जाते हैं, तो यह न सिर्फ जेलकर्मियों की संवेदनहीनता का प्रमाण होगा, बल्कि एक बड़ी प्रशासनिक विफलता भी मानी जाएगी।
सरकार और न्यायपालिका से अपेक्षा है कि वे इस मामले में त्वरित, निष्पक्ष और कठोर कदम उठाकर न्याय सुनिश्चित करें ताकि भविष्य में ऐसी घटनाओं की पुनरावृत्ति न हो।