मुंबई की पुनर्निर्मित भूमि पर लैंडस्केपिंग हेतु रिलायंस इंडस्ट्रीज़ की नियुक्ति के प्रस्ताव को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती: कानूनी, पर्यावरणीय और प्रशासनिक पहलुओं की विस्तृत पड़ताल
मुंबई महानगरपालिका (BMC) द्वारा पुनर्निर्मित (reclaimed) जमीनों पर लैंडस्केपिंग एवं सौंदर्यीकरण के लिए रिलायंस इंडस्ट्रीज़ लिमिटेड (RIL) को नियुक्त करने के प्रस्ताव ने एक व्यापक विवाद को जन्म दिया है। इस प्रस्ताव के खिलाफ एक याचिका सुप्रीम कोर्ट में दायर की गई है, जिसमें इसे लोकहित, पारदर्शिता, प्रतिस्पर्धी प्रक्रियाओं तथा पर्यावरणीय मानकों के विरुद्ध बताया गया है। याचिका में मुख्य रूप से यह तर्क दिया गया है कि प्रस्तावित प्रक्रिया न केवल नगर प्रशासन के कार्यों में अस्पष्टता पैदा करती है, बल्कि यह पुनर्निर्मित भूमि के सार्वजनिक उपयोग, पर्यावरण संरक्षण तथा भूमि प्रबंधन की नीतियों पर भी गंभीर प्रश्न खड़े करती है।
यह मुद्दा इसलिए भी महत्वपूर्ण है क्योंकि मुंबई में भूमि अत्यंत महंगी व सीमित है। समुद्र से भूमि पुनर्निर्माण के बाद उसका उपयोग किस प्रकार किया जाए—यह नीति-निर्माण, पर्यावरणीय संतुलन, नगर नियोजन और नागरिक अधिकारों, सभी को प्रभावित करता है। इस लेख में इस मामले के सभी पहलुओं का विस्तृत अध्ययन प्रस्तुत किया गया है।
पृष्ठभूमि: मुंबई की पुनर्निर्मित भूमि और उनका महत्व
मुंबई भारत का आर्थिक केंद्र व सबसे घनी आबादी वाला शहर है। जनसंख्या वृद्धि और विकास परियोजनाओं की आवश्यकता के कारण शहर लगातार समुद्र से भूमि पुनर्निर्माण की प्रक्रिया पर निर्भर रहा है। कोस्टल रोड प्रोजेक्ट और अन्य समुद्री परियोजनाओं के दौरान बड़ी मात्रा में भूमि पुनर्निर्मित की गई है।
इन पुनर्निर्मित जमीनों का उपयोग पार्क, ग्रीन ज़ोन, पब्लिक स्पेस, साइक्लिंग ट्रैक, बीच वॉकवे तथा इको-फ्रेंडली प्रोजेक्ट्स के लिए किया जा सकता है। ऐसे में इन भूमि के सौंदर्यीकरण या लैंडस्केपिंग का महत्व बढ़ जाता है। लेकिन इस प्रक्रिया में पारदर्शिता, पर्यावरणीय नियमों, पब्लिक कंसल्टेशन और निविदा प्रक्रिया का पालन अनिवार्य माना जाता है।
रिलायंस को नियुक्त करने का BMC का प्रस्ताव क्यों विवादित हुआ?
याचिका में आरोप है कि BMC ने प्रतिस्पर्धी बोली प्रक्रिया (competitive bidding) अपनाए बिना ही रिलायंस इंडस्ट्रीज़ को इस कार्य के लिए ‘प्रत्यक्ष’ रूप से चुनने पर विचार किया है। याचिकाकर्ताओं का कहना है कि—
- यह कदम टेंडर प्रक्रिया के सिद्धांतों का उल्लंघन है।
- सार्वजनिक धन व सार्वजनिक भूमि के प्रबंधन में पारदर्शिता अनिवार्य है।
- निजी कंपनी को सीधे रूप से बड़ी परियोजना सौंपना पक्षपातपूर्ण निर्णय माना जा सकता है।
- यह अन्य योग्य कंपनियों व संस्थाओं के अधिकारों का हनन है।
याचिका में बीएमसी के इस कदम को “वितरण की शक्तियों का दुरुपयोग” भी कहा गया है।
याचिका में प्रमुख कानूनी तर्क
याचिकाकर्ताओं ने सुप्रीम कोर्ट के समक्ष निम्नलिखित कानूनी बिंदु उठाए हैं:
1. संविधान के अनुच्छेद 14 का उल्लंघन
अनुच्छेद 14 निष्पक्षता और समान अवसर की गारंटी देता है।
याचिकाकर्ता का कहना है कि—
- बिना बोली के एक कॉर्पोरेट संस्था को काम देना मनमानी और भेदभावपूर्ण है।
- सरकार और नगर निकायों की ओर से किसी भी अनुबंध में fair play आवश्यक है।
2. सार्वजनिक संसाधनों का गैर-पारदर्शी प्रबंधन
सार्वजनिक भूमि/संसाधन किसी निजी कंपनी को देना हो तो स्पष्ट और पारदर्शी प्रक्रिया अनिवार्य है।
- याचिकाकर्ता का तर्क है कि यह प्रस्ताव सार्वजनिक संसाधनों को “private favour” जैसा बनाता है।
3. पर्यावरण संरक्षण कानूनों का मुद्दा
यदि पुनर्निर्मित भूमि समुद्री तट या CRZ क्षेत्र से जुड़ी है, तो:
- CRZ Notification की शर्तें लागू होंगी।
- Environmental Impact Assessment (EIA) आवश्यक हो सकता है।
4. सार्वजनिक भागीदारी का अभाव
- मुंबई की reclaimed जमीनें पूरे शहर की हैं।
- नागरिकों, पर्यावरण विशेषज्ञों और नगर नियोजन विशेषज्ञों से सलाह किए बिना यह निर्णय लोकतांत्रिक प्रक्रिया के विरुद्ध बताया गया है।
BMC की ओर से संभावित बचाव तर्क
हालांकि अभी तक आधिकारिक तौर पर विस्तृत स्पष्टीकरण नहीं दिया गया है, लेकिन विशेषज्ञ मानते हैं कि BMC निम्न प्रकार के तर्क दे सकती है:
1. पब्लिक-प्राइवेट पार्टनरशिप (PPP) मॉडल का प्रयोग
नगर निकाय यह कह सकता है कि—
- रिलायंस बिना किसी आर्थिक लाभ के “CSR मॉडल” में यह कार्य करेगा।
- इससे नगरपालिका की लागत कम होगी और काम समय पर पूरा होगा।
2. विशेषज्ञता का मुद्दा
BMC यह तर्क दे सकती है कि—
- रिलायंस जैसी बड़ी कंपनियों को बड़े प्रोजेक्ट्स का अनुभव है।
- उनके पास उन्नत तकनीक व बेहतर प्रबंधन क्षमता है।
3. ‘टेंडर की आवश्यकता नहीं’ वाला अपवाद
नगरपालिका अधिनियम में कुछ स्थितियों में, जैसे—
आपातकाल, पब्लिक यूटिलिटी, CSR, या सार्वजनिक हित—
प्रत्यक्ष नियुक्ति की अनुमति होती है।
पर्यावरण विशेषज्ञों की प्रतिक्रिया
पर्यावरण विशेषज्ञों ने इस मामले पर अपनी चिंता जाहिर की है:
- reclaim land पर ecosystem बहुत नाज़ुक होता है।
- पेड़ों का चयन, मिट्टी का प्रकार, जल निकासी, समुद्री हवा का प्रभाव—
इन सबका वैज्ञानिक आकलन जरूरी है।
विशेषज्ञ कहते हैं कि यदि यह काम commercial landscaping की तरह किया गया तो—
- प्राकृतिक समुद्री वनस्पति का नष्ट होना,
- जमीन का क्षरण,
- जलभराव,
- समुद्री तट पर मानवीय दखल बढ़ना,
जैसी समस्याएं उत्पन्न होंगी।
नागर अधिकार समूहों की प्रतिक्रिया
सिविल सोसाइटी, नागरिक समूह और शहरी नियोजन विशेषज्ञों ने कहा है:
- मुंबई में पब्लिक स्पेस पहले ही कम हैं।
- यदि किसी कॉर्पोरेट संस्था को इनमें अधिकार मिलते हैं,
तो यह उन्हें “private control of public space” जैसा बना देता है। - लोकहित में निर्णय लेने के लिए stakeholder consultation आवश्यक है।
उनका कहना है कि— “पार्क और बीच जनता के लिए हैं, कॉर्पोरेट ब्रांडिंग का स्थल नहीं।”
सुप्रीम कोर्ट में उठे प्रमुख प्रश्न
सुप्रीम कोर्ट के समक्ष इस मामले में कुछ प्रमुख संवैधानिक एवं प्रशासनिक प्रश्न उठते हैं:
1. क्या सार्वजनिक भूमि पर कार्य हेतु ‘प्रत्यक्ष नियुक्ति’ उचित है?
कोर्ट यह देखेगा कि—
- क्या यह मामला किसी अपवाद श्रेणी में आता है?
- क्या इसमें ‘public interest’ वाकई सर्वोपरि है?
2. क्या बीएमसी ने कानूनन आवश्यक प्रक्रियाओं का पालन किया?
- क्या पर्यावरणीय अनुमतियां ली गईं?
- क्या भूमि उपयोग (Land Use) योजना में यह दर्ज है?
3. क्या यह प्रक्रिया पारदर्शिता और निष्पक्षता के मापदंडों पर खरी उतरती है?
सुप्रीम कोर्ट के कई निर्णयों में यह सिद्धांत तय हो चुका है कि— सरकारी अनुबंधों में निष्पक्षता और पारदर्शिता अनिवार्य है।
4. क्या यह मामला नागरिकों के मौलिक अधिकारों को प्रभावित करता है?
विशेषकर अनुच्छेद 14 और 21 के तहत
‘स्वच्छ पर्यावरण’ और ‘सार्वजनिक संसाधनों तक समान पहुंच’ के अधिकार की व्याख्या महत्वपूर्ण होगी।
सुप्रीम कोर्ट के संभावित हस्तक्षेप की दिशा
सुप्रीम कोर्ट इस मामले में निम्न दिशाओं में फैसला दे सकता है:
1. प्रस्ताव को अस्थायी रूप से रोकना
यदि कोर्ट को लगे कि प्रक्रिया में अनियमितता है,
तो वह इस प्रक्रिया पर स्टे लगा सकता है।
2. बीएमसी से विस्तृत जवाब तलब
कोर्ट पूछ सकता है:
- टेंडर क्यों नहीं जारी किया गया?
- रिलायंस को चुनने का आधार क्या है?
- पर्यावरणीय अध्ययन किए गए या नहीं?
3. पुनः-टेंडरिंग का आदेश
कोर्ट आदेश दे सकता है कि—
“समस्त इच्छुक कंपनियों के बीच प्रतिस्पर्धी प्रक्रिया अपनाई जाए।”
4. पर्यावरण विशेषज्ञ समिति गठित करना
यदि पर्यावरणीय खतरा पाया जाता है,
कोर्ट एक उच्चस्तरीय समिति नियुक्त कर सकता है।
भारत में इस तरह के निर्णयों का कानूनी इतिहास
भारत में सार्वजनिक संसाधनों को लेकर कई ऐतिहासिक निर्णय हुए हैं:
- 2G स्पेक्ट्रम केस – Supreme Court ने कहा कि प्राकृतिक संसाधनों का आवंटन पारदर्शी नीलामी से ही होना चाहिए।
- कोयला ब्लॉक आवंटन मामला – मनमानी प्रक्रिया रद्द की गई।
- कला घोड़ा क्षेत्र का सौंदर्यीकरण – सार्वजनिक यातायात व नागरिक हित सर्वोपरि माना गया।
इन निर्णयों के आधार पर सुप्रीम कोर्ट यह देखता है कि—
प्रक्रिया कितनी निष्पक्ष, पारदर्शी और न्यायसंगत है।
मुंबई के लिए भविष्य का महत्व
इस मामले का निर्णय भविष्य की शहरी नीतियों को प्रभावित करेगा:
- मुंबई के कोस्टल रोड के बाद भारी मात्रा में पुनर्निर्मित जमीन उपलब्ध होगी।
- यदि इस भूमि का निजी कंपनियों द्वारा प्रबंधन शुरू होता है,
तो यह मिसाल अन्य राज्यों में भी लागू हो सकती है।
इसलिए यह मामला सिर्फ एक परियोजना नहीं,
बल्कि “पब्लिक स्पेस पॉलिसी” के भविष्योन्मुख सवाल से जुड़ा हुआ है।
निष्कर्ष
याचिका में उठाए गए मुद्दे—
पारदर्शिता, सार्वजनिक संसाधनों का संरक्षण, पर्यावरणीय चिंता, और कानूनी प्रक्रियाओं का पालन—
भारत जैसे लोकतांत्रिक देश में अत्यंत महत्वपूर्ण हैं।
मुंबई महानगर की पुनर्निर्मित भूमि भावी पीढ़ियों के लिए एक बहुमूल्य संसाधन है।
ऐसे में, सुप्रीम कोर्ट का निर्णय न केवल इस मामले को प्रभावित करेगा,
बल्कि यह तय करेगा कि—
- सार्वजनिक भूमि का उपयोग किस मॉडल के तहत होगा?
- क्या निजी कंपनियों को बिना टेंडर बड़े पब्लिक स्पेस सौंपे जा सकते हैं?
- क्या पर्यावरण और सार्वजनिक हित सर्वोपरि रहेगा?
सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला निस्संदेह शहरी प्रशासन, पर्यावरण नीति और सार्वजनिक संसाधनों पर निजी नियंत्रण की सीमाओं से संबंधित एक महत्वपूर्ण न्यायिक मिसाल स्थापित करेगा।