“मिलावटी दवाओं का व्यापार: एक गंभीर अपराध और उससे जुड़ी विधिक सज़ाएं”

शीर्षक:
“मिलावटी दवाओं का व्यापार: एक गंभीर अपराध और उससे जुड़ी विधिक सज़ाएं”


भूमिका:
दवाएं मानव जीवन के स्वास्थ्य और सुरक्षा से सीधे जुड़ी होती हैं। इनकी शुद्धता, गुणवत्ता और प्रमाणिकता जीवन और मृत्यु के बीच का अंतर तय कर सकती है। लेकिन जब इन्हीं जीवनदायिनी औषधियों में मिलावट की जाती है या जानबूझकर नकली और मिलावटी दवाएं बाजार में बेची जाती हैं, तब यह न केवल चिकित्सा विज्ञान के साथ विश्वासघात है, बल्कि एक गंभीर आपराधिक कृत्य भी बन जाता है।

भारत में दवाओं की गुणवत्ता सुनिश्चित करने हेतु भारतीय दंड संहिता (IPC/BNS) और औषधि एवं प्रसाधन सामग्री अधिनियम, 1940 में कड़े प्रावधान किए गए हैं।


1. भारतीय दंड संहिता (IPC) और भारतीय न्याय संहिता (BNS) के अंतर्गत प्रावधान:
(i) दवाओं में मिलावट (Section 274 IPC / BNS Section 274):
  • अगर कोई व्यक्ति जानबूझकर किसी दवा में मिलावट करता है जिससे उसकी गुणवत्ता कम हो जाए या वह स्वास्थ्य के लिए हानिकारक बन जाए, तो:
    • सजा: एक वर्ष तक का कारावास,
    • जुर्माना: 5,000 रुपये तक,
    • या दोनों।
  • यह अपराध असंज्ञेय (Non-cognizable) और जमानतीय (Bailable) है।
(ii) मिलावटी दवाओं की बिक्री (Section 275 IPC / BNS Section 275):
  • यदि कोई व्यक्ति जानबूझकर मिलावटी दवाओं को बेचता है या विक्रय के लिए रखता है:
    • सजा: छह महीने तक का कारावास,
    • जुर्माना: 5,000 रुपये तक,
    • या दोनों।
  • यह भी असंज्ञेय और जमानतीय अपराध है।

2. औषधि एवं प्रसाधन सामग्री अधिनियम, 1940 के अंतर्गत दंडात्मक प्रावधान (Section 27):

(i) यदि मिलावटी दवा से मृत्यु या गंभीर चोट होती है:
  • सजा: कम से कम 10 वर्ष का कठोर कारावास, जिसे बढ़ाकर आजीवन कारावास तक किया जा सकता है।
  • जुर्माना: कम से कम 10 लाख रुपये या जब्त की गई दवा के मूल्य का तीन गुना, जो भी अधिक हो।
  • यह प्रावधान ऐसे मामलों में लागू होता है जहाँ दवा के सेवन से गंभीर परिणाम, जैसे मृत्यु या स्थायी चोट, उत्पन्न होते हैं।
(ii) अन्य सामान्य मामलों में:
  • सजा: 3 से 5 वर्ष तक का कारावास,
  • जुर्माना: कम से कम 1 लाख रुपये, या जब्त दवा के मूल्य का तीन गुना, जो भी अधिक हो।
  • यह उन मामलों में लागू होता है जहाँ दवा मिलावटी तो है लेकिन उसके सेवन से गंभीर परिणाम नहीं हुए।

3. अपराध की प्रकृति और सामाजिक प्रभाव:
  • दवाओं में मिलावट केवल कानून का उल्लंघन नहीं, बल्कि समाज और मानवता के प्रति अपराध है। यह सीधे तौर पर रोगियों के जीवन से खिलवाड़ करता है।
  • यह अपराध, उपभोक्ता संरक्षण, सार्वजनिक स्वास्थ्य, और विवेकपूर्ण चिकित्सा प्रणाली को खतरे में डालता है।
  • कई बार ये दवाएं जीवन रक्षक होती हैं और उनकी विफलता सीधे मृत्यु या स्थायी विकलांगता का कारण बनती है।

4. सरकार की भूमिका और विधायी कठोरता:
  • भारत सरकार ने समय-समय पर दवाओं की गुणवत्ता सुनिश्चित करने के लिए दवा परीक्षण प्रयोगशालाओं और औषधि नियंत्रकों की नियुक्ति की है।
  • Drug Controller General of India (DCGI) की निगरानी में दवाओं की स्वीकृति और गुणवत्ता परीक्षण किया जाता है।
  • इसके अलावा, दवा कंपनियों और वितरकों को दवाओं की बिक्री और वितरण के लिए विशेष लाइसेंसिंग और रजिस्ट्रेशन नियमों का पालन करना अनिवार्य है।

निष्कर्ष:

मिलावटी दवाओं का उत्पादन और विक्रय एक गहरा सामाजिक और विधिक अपराध है। यह न केवल कानून की अवहेलना करता है बल्कि मानव जीवन के प्रति संवेदनहीनता को भी दर्शाता है। भारत में इस अपराध को नियंत्रित करने के लिए सख्त दंडात्मक प्रावधान मौजूद हैं, लेकिन इन कानूनों के प्रभावी कार्यान्वयन और जनजागरूकता के माध्यम से ही इस खतरे पर नियंत्रण पाया जा सकता है।

सख्त कानून, जागरूक समाज और पारदर्शी दवा तंत्र ही मिलावट के विरुद्ध सबसे बड़ा उपाय हैं।