मामला: Smt. Shashi Gupta बनाम Narinder Kumar Sood (2025) – मुकदमे की बहाली (Restoration of Suit) पर पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट का निर्णय

मामला: Smt. Shashi Gupta बनाम Narinder Kumar Sood (2025) – मुकदमे की बहाली (Restoration of Suit) पर पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट का निर्णय


परिचय

न्यायिक प्रक्रिया में मुकदमे की उपस्थिति और अनुपस्थिति का महत्वपूर्ण प्रभाव होता है। यदि कोई पक्ष निर्धारित तिथि पर उपस्थित नहीं होता, तो न्यायालय के पास यह अधिकार होता है कि वह मामला डिफॉल्ट (default) में खारिज कर दे। हालांकि, प्रक्रिया संहिता में यह भी प्रावधान है कि ऐसे आदेशों को उपयुक्त कारण दिखाकर बहाल (restore) किया जा सकता है।

Smt. Shashi Gupta बनाम Narinder Kumar Sood (PbHr CR-7210-2019, O&M, वर्ष 2025) में पंजाब एवं हरियाणा उच्च न्यायालय ने एक महत्वपूर्ण निर्णय दिया, जिसमें यह स्पष्ट किया गया कि केवल वकील की गलती या जानकारी न देना मुकदमा बहाल करने के लिए पर्याप्त नहीं है, खासकर जब आवेदक स्वयं लगातार अदालत में उपस्थित रही हो।


मामले की संक्षिप्त पृष्ठभूमि

  • आवेदिका: श्रीमती शशि गुप्ता
  • प्रतिवादी: नरेंद्र कुमार सूद
  • न्यायालय: पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट
  • संख्या: CR-7210-2019 (O&M)
  • निर्णय वर्ष: 2025
  • मुद्दा: मुकदमे की बहाली (Restoration of Suit under Order 9 Rule 9 CPC)

प्रमुख तथ्य और घटनाक्रम

  1. मूल मुकदमे की स्थिति:
    • मुकदमा Order 9 Rule 8 CPC के तहत डिफॉल्ट में खारिज कर दिया गया था, क्योंकि वादी या उसका वकील पेश नहीं हुआ।
  2. बहाली याचिका (Restoration Application):
    • याचिका 2 वर्ष और 3 महीने के लंबे अंतराल के बाद दायर की गई।
    • याचिका का मुख्य आधार यह था कि वकील ने वादी को अदालती कार्यवाही की जानकारी नहीं दी।
  3. वादिनी की नियमित उपस्थिति:
    • रिकॉर्ड से स्पष्ट था कि वादी 12.02.2002 से नियमित रूप से अदालत में पेश हो रही थी।
    • इससे यह निष्कर्ष निकाला गया कि वह मुकदमे की स्थिति से अनभिज्ञ नहीं हो सकती थी।

कोर्ट का निर्णय और तर्क

  1. स्वतंत्र जिम्मेदारी का सिद्धांत:
    • न्यायालय ने दो टूक कहा कि “किसी भी पक्ष का यह उत्तरदायित्व है कि वह स्वयं अपने मुकदमे की स्थिति पर नज़र रखे।”
    • वादी अपने वकील की विफलता का बहाना नहीं बना सकती, जब वह स्वयं नियमित रूप से कार्यवाही में भाग ले रही थी।
  2. विलंब और असावधानी:
    • 2 साल से अधिक की देरी और उचित कारणों की अनुपस्थिति को न्यायालय ने गंभीर माना।
  3. वादिनी को राहत न देने का कारण:
    • वादी को जानबूझकर या लापरवाही से मामले को छोड़ने का दोषी माना गया।
    • ऐसे में उसे वकील की चूक के पीछे छिपने की अनुमति नहीं दी जा सकती।
  4. आवेदन खारिज:
    • अदालत ने मुकदमे की बहाली हेतु याचिका को खारिज कर दिया।

महत्वपूर्ण कानूनी सिद्धांत जो इस निर्णय में उभरे:

  1. “Law helps the vigilant, not the negligent.”
    (कानून उनकी मदद करता है जो सजग होते हैं, न कि लापरवाह।)
  2. Order 9 Rule 9 CPC – जिसमें यह प्रावधान है कि डिफॉल्ट में खारिज मुकदमे को उपयुक्त कारणों के आधार पर बहाल किया जा सकता है।
  3. पार्टी का कर्तव्य – मुकदमे की स्थिति जानना, समय पर अदालत में उपस्थित होना और स्वयं सक्रिय रहना।

निष्कर्ष

Smt. Shashi Gupta बनाम Narendra Kumar Sood मामले में पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट ने यह स्पष्ट कर दिया कि मुकदमे की बहाली कोई अधिकार नहीं बल्कि एक विवेकाधीन राहत (discretionary relief) है, जिसे उचित और संतोषजनक कारणों पर ही प्रदान किया जा सकता है।

यह निर्णय उन litigants के लिए चेतावनी है जो अपने मामलों को केवल वकील पर छोड़ देते हैं और अदालत की प्रक्रिया से खुद को अनभिज्ञ मानते हैं।