“मानसिक रोग से ग्रसित सैनिक को मिलेगा विकलांगता पेंशन: सुप्रीम कोर्ट का न्यायपूर्ण निर्णय — राजूमोन टी.एम. बनाम भारत संघ”

लेख शीर्षक:
“मानसिक रोग से ग्रसित सैनिक को मिलेगा विकलांगता पेंशन: सुप्रीम कोर्ट का न्यायपूर्ण निर्णय — राजूमोन टी.एम. बनाम भारत संघ”

लेख:
सुप्रीम कोर्ट ऑफ इंडिया ने राजूमोन टी.एम. बनाम यूनियन ऑफ इंडिया एवं अन्य (Rajumon T.M. vs. Union of India & Ors.) मामले में एक महत्वपूर्ण और मानवीय निर्णय सुनाते हुए आदेश दिया कि मानसिक बीमारी स्किज़ोफ्रेनिया (Schizophrenia) से पीड़ित पूर्व सैनिक को विकलांगता पेंशन (Disability Pension) प्रदान की जाए।

याचिकाकर्ता राजूमोन टी.एम., जो भारतीय सेना में सेवा कर चुके हैं, को सेवा के दौरान स्किज़ोफ्रेनिया, एक गंभीर मानसिक विकार, से पीड़ित पाया गया था और इसके परिणामस्वरूप उन्हें डिसचार्ज कर दिया गया था। रक्षा प्राधिकरणों ने उनकी पेंशन याचिका यह कहते हुए अस्वीकार कर दी थी कि यह मानसिक बीमारी सेवा के कारण नहीं बल्कि व्यक्तिगत कारणों से हुई थी।

सुप्रीम कोर्ट का दृष्टिकोण:
न्यायालय ने इस अस्वीकृति को अनुचित ठहराते हुए कहा कि:

“यदि कोई सैनिक सेवा के दौरान मानसिक रोग से ग्रसित होता है, तो यह माना जाएगा कि उसकी स्थिति सेवा की परिस्थितियों से उत्पन्न हुई है, जब तक कि यह स्पष्ट रूप से साबित न हो जाए कि बीमारी पूर्व-विद्यमान थी या जानबूझकर छिपाई गई थी।”

न्यायालय ने यह भी कहा कि सशस्त्र बलों में सेवा करना, विशेषकर तनावपूर्ण और कठोर स्थितियों में, मानसिक स्वास्थ्य पर गहरा प्रभाव डाल सकता है। इसलिए, यदि कोई सैनिक सेवा के दौरान किसी मानसिक बीमारी का शिकार होता है, तो उसे विकलांगता लाभ से वंचित नहीं किया जा सकता।

मुख्य निर्देश:

  • रक्षा मंत्रालय को आदेश दिया गया कि वह राजूमोन टी.एम. को विकलांगता पेंशन तत्काल प्रभाव से प्रदान करे
  • पेंशन की गणना सेवा समाप्ति की तिथि से की जाएगी।
  • यदि पूर्व सैनिक की स्थिति में और बिगड़ावट आती है, तो उसे उच्च विकलांगता रेटिंग के आधार पर पेंशन में संशोधन का अधिकार होगा।

निष्कर्ष:
यह निर्णय स्पष्ट करता है कि मानसिक स्वास्थ्य भी उतना ही महत्वपूर्ण है जितना शारीरिक स्वास्थ्य, विशेषकर सेना जैसे अनुशासित और जोखिमपूर्ण कार्यक्षेत्र में। राजूमोन टी.एम. बनाम भारत संघ में सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला न केवल पूर्व सैनिकों के अधिकारों की रक्षा करता है, बल्कि यह यह भी रेखांकित करता है कि न्यायपालिका मानसिक स्वास्थ्य को गंभीरता से ले रही है और उसे विकलांगता के समकक्ष मान रही है।

यह फैसला अन्य कई समान मामलों में मिशाल (precedent) बनेगा और मानसिक बीमारियों से जूझ रहे पूर्व सैनिकों को सम्मानजनक जीवन जीने का अवसर प्रदान करेगा।