मानवाधिकार कानून (Human Rights Law) Part-2

51. मानवाधिकारों की न्यायिक व्याख्या क्या है?

उत्तर:
भारतीय न्यायपालिका ने समय-समय पर मानवाधिकारों की व्याख्या कर उन्हें विस्तृत रूप दिया है। उदाहरणस्वरूप, सुप्रीम कोर्ट ने अनुच्छेद 21 के तहत जीवन के अधिकार को केवल “जीवित रहने का अधिकार” न मानकर “गरिमापूर्ण जीवन का अधिकार” के रूप में परिभाषित किया है।
प्रसिद्ध मामलों जैसे मनु भंडारी बनाम भारत संघ, ओलगा टेलिस, और मनिका गांधी केस ने यह दिखाया कि मौलिक अधिकारों की न्यायिक व्याख्या मानवाधिकारों की रक्षा में अत्यंत महत्वपूर्ण है।


52. न्याय तक पहुंच और मानवाधिकार

उत्तर:
न्याय प्राप्त करना प्रत्येक व्यक्ति का मौलिक मानवाधिकार है। यह आवश्यक है कि सभी व्यक्तियों को सस्ती, समयबद्ध और निष्पक्ष न्याय प्रणाली उपलब्ध हो। भारत में अनुच्छेद 39A के तहत नि:शुल्क विधिक सहायता की व्यवस्था की गई है। राष्ट्रीय विधिक सेवा प्राधिकरण अधिनियम, 1987 के तहत जरूरतमंद लोगों को न्याय दिलाने के लिए संस्थागत ढांचा तैयार किया गया है।


53. कार्यस्थल पर यौन उत्पीड़न और मानवाधिकार

उत्तर:
कार्यस्थल पर यौन उत्पीड़न महिलाओं के सम्मान, स्वतंत्रता और गरिमा के अधिकार का सीधा उल्लंघन है। सुप्रीम कोर्ट ने विशाखा बनाम राजस्थान राज्य (1997) में दिशा-निर्देश जारी किए थे। बाद में इसे “कार्यस्थल पर महिलाओं का यौन उत्पीड़न (रोकथाम, निषेध एवं निवारण) अधिनियम, 2013” द्वारा कानून का रूप दिया गया। यह कानून कार्यस्थल को महिलाओं के लिए सुरक्षित बनाने का प्रयास है।


54. मानवाधिकार और दंड प्रक्रिया

उत्तर:
दंड प्रक्रिया में मानवाधिकारों की रक्षा अत्यंत आवश्यक है। अभियुक्त को निष्पक्ष सुनवाई, वकील की सहायता, जमानत का अधिकार, और अपील की सुविधा प्राप्त होनी चाहिए। भारतीय संविधान के अनुच्छेद 20, 21 और 22 इन अधिकारों को सुनिश्चित करते हैं। CrPC में भी गिरफ्तारी, जमानत, पूछताछ आदि के दौरान मानवाधिकारों की सुरक्षा के उपाय हैं।


55. आतंकवाद विरोधी कानून और मानवाधिकार

उत्तर:
आतंकवाद रोकने हेतु बनाए गए कानून जैसे UAPA (Unlawful Activities Prevention Act) का उद्देश्य राष्ट्रीय सुरक्षा है, लेकिन कभी-कभी इनका दुरुपयोग कर निर्दोष व्यक्तियों के मानवाधिकारों का उल्लंघन भी हो सकता है। अतः आवश्यक है कि कानून और मानवाधिकारों के बीच संतुलन बना रहे। सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि राष्ट्र की सुरक्षा के नाम पर नागरिकों के अधिकारों की उपेक्षा नहीं होनी चाहिए।


56. महिला सशक्तिकरण और मानवाधिकार

उत्तर:
महिला सशक्तिकरण का सीधा संबंध उनके मानवाधिकारों की रक्षा से है। महिलाओं को शिक्षा, स्वास्थ्य, कार्य, विरासत, और गरिमा से जीने का अधिकार प्राप्त होना चाहिए। भारतीय संविधान का अनुच्छेद 15(3) राज्य को महिलाओं के लिए विशेष प्रावधान करने की अनुमति देता है। दहेज निषेध अधिनियम, घरेलू हिंसा अधिनियम, और POSH अधिनियम महिला अधिकारों की रक्षा के कानूनी माध्यम हैं।


57. ट्रांसजेंडर अधिकार और मानवाधिकार

उत्तर:
ट्रांसजेंडर व्यक्तियों को भी गरिमा, पहचान और अवसर का अधिकार है। नालसा बनाम भारत संघ (2014) में सुप्रीम कोर्ट ने ट्रांसजेंडर को “थर्ड जेंडर” के रूप में मान्यता दी और उनके लिए समान अधिकारों की बात की। ट्रांसजेंडर व्यक्तियों (अधिकारों का संरक्षण) अधिनियम, 2019 इसके तहत बना है। यह मानवाधिकारों के समावेशी दृष्टिकोण को दर्शाता है।


58. यातना विरोधी कानून और मानवाधिकार

उत्तर:
यातना किसी भी सभ्य समाज में अस्वीकार्य है और यह मानवाधिकारों का गंभीर उल्लंघन है। भारत ने अब तक संयुक्त राष्ट्र यातना विरोधी सम्मेलन का अनुसमर्थन नहीं किया है, लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने कई मामलों में पुलिस की हिरासत में यातना को अवैध ठहराया है। डी.के. बसु केस में सुप्रीम कोर्ट ने गिरफ्तारी की प्रक्रिया में मानवाधिकारों की रक्षा हेतु दिशा-निर्देश दिए।


59. ग्रामीण क्षेत्रों में मानवाधिकारों की स्थिति

उत्तर:
ग्रामीण क्षेत्रों में मानवाधिकारों की स्थिति अक्सर कमजोर होती है। शिक्षा, स्वास्थ्य, रोजगार और न्याय तक पहुंच की कमी, सामाजिक भेदभाव, भूमि विवाद, और महिलाओं के साथ अत्याचार जैसी समस्याएं व्यापक रूप से पाई जाती हैं। सरकार की योजनाएं जैसे MGNREGA, स्वास्थ्य बीमा योजना, आदि मानवाधिकारों की पूर्ति के प्रयास हैं, किंतु प्रभावी क्रियान्वयन आवश्यक है।


60. आर्थिक उदारीकरण और मानवाधिकार

उत्तर:
आर्थिक उदारीकरण से विकास के अवसर बढ़े हैं, परंतु इससे गरीबों, श्रमिकों और किसानों के अधिकारों पर प्रतिकूल प्रभाव भी पड़ा है। भूमि अधिग्रहण, विस्थापन, न्यूनतम मजदूरी, और असंगठित क्षेत्र के शोषण से संबंधित अनेक मानवाधिकार संबंधी प्रश्न खड़े हुए हैं। विकास के साथ-साथ समानता और सामाजिक न्याय को बनाए रखना मानवाधिकारों की दृष्टि से अनिवार्य है।


61. भीड़ द्वारा हिंसा (Mob Lynching) और मानवाधिकार

उत्तर:
भीड़ द्वारा हिंसा या मोब लिंचिंग किसी भी लोकतांत्रिक समाज में कानून के शासन और मानवाधिकारों के लिए बड़ा खतरा है। यह न्यायिक प्रक्रिया के स्थान पर भीड़ के कानून को बढ़ावा देता है और निर्दोष नागरिकों के जीवन और गरिमा के अधिकार का हनन करता है। सुप्रीम कोर्ट ने तेहसीन पूनावाला केस (2018) में इसे रोकने हेतु दिशा-निर्देश जारी किए हैं।


62. नागरिकता और मानवाधिकार

उत्तर:
नागरिकता यह निर्धारित करती है कि व्यक्ति को किसी राष्ट्र में क्या अधिकार प्राप्त होंगे। परंतु मानवाधिकार नागरिकता की सीमाओं से ऊपर होते हैं और प्रत्येक व्यक्ति को केवल मानव होने के नाते मिलते हैं। हाल के वर्षों में नागरिकता से जुड़े कानूनों जैसे CAA/NRC ने मानवाधिकारों की बहस को पुनर्जीवित किया है, विशेषकर धार्मिक और सांप्रदायिक आधार पर भेदभाव के संदर्भ में।


63. शहरी गरीबों और स्लम निवासियों के मानवाधिकार

उत्तर:
शहरी गरीबों को आवास, स्वच्छता, पीने का पानी, और स्वास्थ्य सुविधाएं उपलब्ध कराना राज्य की जिम्मेदारी है। इन सुविधाओं का अभाव जीवन के अधिकार का उल्लंघन है। सुप्रीम कोर्ट ने ओल्गा टेलिस बनाम बॉम्बे नगर निगम (1985) में कहा कि फुटपाथ या झुग्गी में रहने वाले भी संविधान के तहत समान अधिकार रखते हैं और बिना वैकल्पिक व्यवस्था उन्हें हटाना गलत है।


64. ऑनलाइन अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और मानवाधिकार

उत्तर:
इंटरनेट के माध्यम से व्यक्त की गई अभिव्यक्ति भी अनुच्छेद 19(1)(a) के अंतर्गत आती है। परंतु यह स्वतंत्रता अनुच्छेद 19(2) के तहत कुछ प्रतिबंधों के अधीन है। सरकार द्वारा सोशल मीडिया पर निगरानी या सेंसरशिप मानवाधिकारों की सीमाओं को चुनौती देता है। सुप्रीम कोर्ट ने श्याम सुंदर बनाम भारत संघ में इंटरनेट को एक मौलिक अधिकार के रूप में भी माना है।


65. कोविड-19 वैक्सीनेशन और मानवाधिकार

उत्तर:
कोविड-19 वैक्सीन अभियान सार्वजनिक स्वास्थ्य और मानवाधिकार का मिलाजुला उदाहरण है। प्रत्येक व्यक्ति को स्वास्थ्य का अधिकार है, लेकिन किसी को जबरन टीका लगाना भी निजता और स्वतंत्रता का उल्लंघन हो सकता है। सुप्रीम कोर्ट ने 2022 में कहा कि टीकाकरण को अनिवार्य बनाना अनुचित है, लेकिन इसे प्रोत्साहित करना मानवहित में है। यह संतुलन ही मानवाधिकार दृष्टिकोण है।


66. मानवीय गरिमा का अधिकार

उत्तर:
मानवीय गरिमा का अधिकार मानवाधिकारों का मूल स्तंभ है। प्रत्येक व्यक्ति को सम्मानपूर्वक जीवन जीने का अवसर मिलना चाहिए, चाहे उसकी जाति, धर्म, वर्ग, लिंग या आर्थिक स्थिति कुछ भी हो। भारत में यह अधिकार अनुच्छेद 21 के तहत “जीवन के अधिकार” में निहित माना गया है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि “गरिमाहीन जीवन, जीवन नहीं है”। यह शिक्षा, रोजगार, स्वास्थ्य और सम्मान से जुड़ा अधिकार है।


67. खाद्य सुरक्षा और मानवाधिकार

उत्तर:
भोजन का अधिकार मानवाधिकार का एक महत्वपूर्ण पहलू है। हर व्यक्ति को पर्याप्त, पोषक और सुरक्षित भोजन प्राप्त होना चाहिए। भारत में राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम, 2013 इस अधिकार को विधिक स्वरूप देता है। यह विशेष रूप से गरीबों, महिलाओं और बच्चों को सस्ता अनाज उपलब्ध कराता है। “जीवन का अधिकार” में भोजन का अधिकार भी सम्मिलित है, जैसा कि सुप्रीम कोर्ट ने माना है।


68. चुनावी अधिकार और मानवाधिकार

उत्तर:
स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव में भाग लेना लोकतंत्र और मानवाधिकार का मूलभूत आधार है। मतदान का अधिकार, चुनाव लड़ने का अधिकार, और राजनीतिक अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता भी मानवाधिकारों से जुड़ी होती है। भारत में प्रत्येक 18 वर्ष से ऊपर का नागरिक मतदाता बन सकता है, जो समानता और भागीदारी के सिद्धांतों पर आधारित है।


69. नारी गरिमा और मानवाधिकार

उत्तर:
नारी गरिमा का अर्थ है – महिलाओं को सम्मान, सुरक्षा, स्वतंत्रता और आत्मनिर्णय का अधिकार मिलना। यह मानवाधिकारों का केंद्रीय विषय है। दहेज, घरेलू हिंसा, यौन उत्पीड़न, लैंगिक भेदभाव जैसे मुद्दे महिलाओं की गरिमा को ठेस पहुँचाते हैं। संविधान के अनुच्छेद 14, 15 और 21 तथा POSH Act, Domestic Violence Act आदि कानून नारी गरिमा की रक्षा हेतु बनाए गए हैं।


70. आदिवासी विस्थापन और मानवाधिकार

उत्तर:
विकास परियोजनाओं, खनन, बाँधों आदि के कारण आदिवासी समुदायों का विस्थापन होता है जिससे उनका जीवन, संस्कृति और जीविका प्रभावित होती है। यह मानवाधिकारों का उल्लंघन है। वन अधिकार अधिनियम, 2006 तथा सुप्रीम कोर्ट के विभिन्न निर्णयों में यह स्पष्ट किया गया है कि बिना पुनर्वास और सहमति के कोई विस्थापन न्यायोचित नहीं है।


71. प्रवासी मजदूरों के अधिकार

उत्तर:
प्रवासी मजदूर देश के एक हिस्से से दूसरे हिस्से में काम की तलाश में जाते हैं। इनके अधिकारों में आवास, उचित मजदूरी, कार्यस्थल पर सुरक्षा, और स्वास्थ्य सुविधाएं शामिल हैं। कोविड-19 लॉकडाउन के दौरान इनकी दुर्दशा ने मानवाधिकारों के प्रति संवेदनशीलता को उजागर किया। इंटर-स्टेट माइग्रेंट वर्कर्स एक्ट, 1979 इन्हें संरक्षण प्रदान करता है।


72. लोकतंत्र और मानवाधिकारों का संबंध

उत्तर:
लोकतंत्र और मानवाधिकार एक-दूसरे के पूरक हैं। लोकतंत्र में सरकारें जनता की इच्छानुसार चुनी जाती हैं और मानवाधिकारों की रक्षा का दायित्व निभाती हैं। यदि मानवाधिकारों का हनन होता है, तो लोकतंत्र खोखला हो जाता है। अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता, समानता, मतदान का अधिकार – ये सभी लोकतंत्र के साथ-साथ मानवाधिकार का भी हिस्सा हैं।


73. धार्मिक अल्पसंख्यकों के अधिकार

उत्तर:
धार्मिक अल्पसंख्यकों को अपनी आस्था, पूजा-पद्धति, परंपराएं और शिक्षण संस्थाएं चलाने का अधिकार प्राप्त है। भारत में संविधान के अनुच्छेद 25 से 30 तक इन अधिकारों का संरक्षण किया गया है। ये अधिकार समाज में सांस्कृतिक विविधता और धार्मिक सहिष्णुता को बढ़ावा देते हैं। इनकी उपेक्षा मानवाधिकारों की गंभीर अवहेलना होती है।


74. राष्ट्रीय सुरक्षा बनाम मानवाधिकार

उत्तर:
राष्ट्रीय सुरक्षा और मानवाधिकारों में संतुलन बनाए रखना आवश्यक है। आतंकवाद या विद्रोह जैसी स्थितियों में कठोर कानून बनाए जाते हैं, जैसे – UAPA, NSA आदि, लेकिन इनका दुरुपयोग मानवाधिकारों के उल्लंघन का कारण बन सकता है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि सुरक्षा की आड़ में व्यक्ति की गरिमा का हनन उचित नहीं।


75. निष्पक्ष सुनवाई का अधिकार

उत्तर:
हर व्यक्ति को न्यायालय में निष्पक्ष सुनवाई का अधिकार है, चाहे वह आरोपी हो या पीड़ित। यह अधिकार “नैसर्गिक न्याय के सिद्धांत” (Principles of Natural Justice) पर आधारित है – “Audi alteram partem” (दूसरे पक्ष को भी सुनो)। अनुच्छेद 21 के तहत इसे एक मौलिक अधिकार माना गया है। बिना सुनवाई के सजा देना मानवाधिकार का घोर उल्लंघन है।


76. ट्रैफिकिंग और बच्चों के मानवाधिकार

उत्तर:
बच्चों की तस्करी (Child Trafficking) शिक्षा, सुरक्षा और गरिमा के अधिकारों का घोर उल्लंघन है। यह एक अंतरराष्ट्रीय अपराध है। भारत में POCSO Act, 2012, Child Labour Act, और Immoral Traffic (Prevention) Act इसके विरुद्ध कार्रवाई करते हैं। UNICEF और अन्य अंतरराष्ट्रीय निकाय बच्चों के संरक्षण के लिए काम करते हैं।


77. मानवाधिकारों की शिक्षा का उद्देश्य

उत्तर:
मानवाधिकारों की शिक्षा का उद्देश्य है – व्यक्ति को अपने अधिकारों और कर्तव्यों के प्रति जागरूक करना, सामाजिक समरसता बढ़ाना, और असहिष्णुता, भेदभाव तथा हिंसा को कम करना। विद्यालयों और विश्वविद्यालयों में मानवाधिकार विषय पढ़ाया जाना एक सकारात्मक कदम है। यह लोकतांत्रिक और संवेदनशील समाज के निर्माण में सहायक है।


78. राजनीतिक बंदियों के मानवाधिकार

उत्तर:
राजनीतिक बंदी वे होते हैं जिन्हें सरकार के विरोध या विचार प्रकट करने के लिए गिरफ्तार किया जाता है। इन्हें भी भोजन, इलाज, वकील, संपर्क आदि बुनियादी अधिकार प्राप्त होते हैं। अंतरराष्ट्रीय स्तर पर ICCPR और भारत में अनुच्छेद 22 इनके संरक्षण के लिए बनाए गए हैं। विचारों के आधार पर दंड देना लोकतंत्र और मानवाधिकार दोनों का उल्लंघन है।


79. स्वास्थ्य सेवाओं में असमानता और मानवाधिकार

उत्तर:
स्वास्थ्य सेवाओं में अमीर-गरीब, शहरी-ग्रामीण, और लैंगिक आधार पर अंतर मानवाधिकारों के मूलभूत सिद्धांत – समानता और गरिमा – के विरुद्ध है। UN-HR Guidelines on Health कहती हैं कि स्वास्थ्य सेवा सुलभ, सस्ती और स्वीकार्य होनी चाहिए। भारत में जन आरोग्य योजना, आशा कार्यकर्ता योजना जैसे कार्यक्रम इस असमानता को दूर करने का प्रयास हैं।


80. असंगठित श्रमिकों के मानवाधिकार

उत्तर:
असंगठित श्रमिकों को उचित मजदूरी, सुरक्षित कार्यस्थल, सामाजिक सुरक्षा, बीमा, और अवकाश जैसे अधिकारों से अक्सर वंचित रहना पड़ता है। यह स्थिति मानवाधिकारों के विरुद्ध है। भारत सरकार ने श्रम कानून संहिताओं, ई-श्रम पोर्टल, और प्रधानमंत्री श्रम योगी मानधन योजना के माध्यम से इन्हें संरक्षित करने का प्रयास किया है।


81. पत्रकारों के अधिकार और मानवाधिकार

उत्तर:
पत्रकारों को सूचना तक पहुंच, अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता, और सुरक्षा का अधिकार होना चाहिए ताकि वे स्वतंत्र रूप से सच्चाई सामने ला सकें। यदि पत्रकारों को धमकाया जाए, गिरफ्तार किया जाए या उन पर हमला किया जाए, तो यह मानवाधिकारों का उल्लंघन है। भारत में पत्रकारों की सुरक्षा को लेकर स्पष्ट कानून नहीं हैं, लेकिन यह लोकतंत्र की रक्षा के लिए आवश्यक है।


82. विकलांगों के लिए सुगम्य वातावरण और मानवाधिकार

उत्तर:
विकलांग व्यक्तियों को शिक्षा, कार्यस्थल, सार्वजनिक स्थानों पर सुगमता (Accessibility) का अधिकार होना चाहिए। यह मानवाधिकार और समान अवसर का मुद्दा है। RPWD Act, 2016 इसके लिए विशेष प्रावधान करता है। Sugamya Bharat Abhiyan के माध्यम से सरकार सार्वजनिक स्थानों को विकलांगों के अनुकूल बना रही है।


83. यौन अल्पसंख्यकों के अधिकार और समाज की भूमिका

उत्तर:
यौन अल्पसंख्यकों को समानता, सुरक्षा, विवाह, और आत्मसम्मान का अधिकार प्राप्त होना चाहिए। सुप्रीम कोर्ट के फैसले (नालसा केस और जोहर केस) ने इन्हें कानूनी मान्यता तो दी है, लेकिन सामाजिक स्तर पर अभी भी भेदभाव, बहिष्कार और हिंसा होती है। समाज की सोच में बदलाव लाना मानवाधिकारों की वास्तविक जीत होगी।


84. बाल यौन शोषण और मानवाधिकार

उत्तर:
बाल यौन शोषण बच्चों की शारीरिक, मानसिक और नैतिक गरिमा का गंभीर उल्लंघन है। भारत में POCSO Act, 2012 इस अपराध को रोकने और पीड़ितों को न्याय दिलाने के लिए बनाया गया है। इसके तहत बच्चों के बयान की गोपनीयता, काउंसलिंग, और फास्ट-ट्रैक न्याय का प्रावधान है। यह मानवाधिकार संरक्षण का एक संवेदनशील पक्ष है।


85. वृद्धाश्रम और मानवाधिकार

उत्तर:
वृद्धावस्था में देखभाल, सम्मान और भावनात्मक समर्थन प्रत्येक व्यक्ति का मानवाधिकार है। जब परिवार साथ नहीं होता, तो वृद्धाश्रम एक विकल्प होता है, लेकिन यहां भी उपेक्षा, दुर्व्यवहार और अकेलापन मानवाधिकार हनन का कारण बन सकते हैं। सरकार और समाज को मिलकर गरिमापूर्ण वृद्धावस्था सुनिश्चित करनी चाहिए।


86. सूचना प्रौद्योगिकी और मानवाधिकार का भविष्य

उत्तर:
तकनीकी युग में डिजिटल गोपनीयता, डेटा सुरक्षा, साइबर सुरक्षा और सूचना तक पहुंच, मानवाधिकारों का नया क्षेत्र बन चुके हैं। सोशल मीडिया और AI जैसे प्लेटफॉर्म्स जहां अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता देते हैं, वहीं गलत सूचनाओं, निगरानी और दुरुपयोग का खतरा भी बढ़ गया है। आने वाले समय में मानवाधिकार कानून को तकनीक के साथ तालमेल बिठाना अनिवार्य होगा।


87. राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग की आलोचना

उत्तर:
राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (NHRC) को मानवाधिकारों की रक्षा हेतु स्थापित किया गया, परंतु इसकी कुछ सीमाएं हैं। आयोग की सिफारिशें बाध्यकारी नहीं होतीं, जिससे इसके निर्णयों का प्रभाव सीमित हो जाता है। साथ ही, पुलिस और सैन्य मामलों में इसकी भूमिका सीमित कर दी गई है। स्वतंत्र जांच एजेंसी के अभाव और संसाधनों की कमी भी इसकी कार्यक्षमता को प्रभावित करती है। फिर भी यह संस्था जनहित में आवश्यक है।


88. मानवाधिकार और न्यायिक समीक्षा

उत्तर:
न्यायिक समीक्षा का अर्थ है – संविधान के विरुद्ध बने किसी भी कानून या सरकारी कार्रवाई को न्यायालय द्वारा निरस्त करना। यह अधिकार उच्च न्यायालय और सुप्रीम कोर्ट को प्राप्त है। मानवाधिकारों के उल्लंघन की स्थिति में PIL (जनहित याचिका) के माध्यम से न्यायिक समीक्षा का सहारा लिया जा सकता है। यह संविधान के अनुच्छेद 13, 32 और 226 पर आधारित है।


89. सामाजिक सुरक्षा और मानवाधिकार

उत्तर:
सामाजिक सुरक्षा में पेंशन, स्वास्थ्य बीमा, मातृत्व लाभ, बेरोजगारी भत्ता जैसे प्रावधान आते हैं। यह मानवाधिकारों की भावना को मजबूत करते हैं। भारत में ई-श्रम योजना, प्रधानमंत्री श्रम योगी मानधन योजना, और आयुष्मान भारत जैसे कार्यक्रम सामाजिक सुरक्षा को बढ़ावा देने वाले कदम हैं। ये न्याय, गरिमा और समानता के अधिकार से जुड़े हैं।


90. प्राकृतिक आपदा और मानवाधिकार

उत्तर:
प्राकृतिक आपदा के समय भोजन, आश्रय, चिकित्सा और सुरक्षा का अधिकार प्रत्येक व्यक्ति को होना चाहिए। आपदा प्रबंधन की विफलता मानवाधिकारों का उल्लंघन हो सकती है। भारत में आपदा प्रबंधन अधिनियम, 2005 के तहत केंद्र और राज्य सरकारों की ज़िम्मेदारी होती है कि वे नागरिकों के जीवन और अधिकारों की रक्षा करें।


91. चिकित्सा लापरवाही और मानवाधिकार

उत्तर:
चिकित्सा सेवाओं में लापरवाही से मरीजों के जीवन और स्वास्थ्य के अधिकार का उल्लंघन हो सकता है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि चिकित्सा लापरवाही भी मानवाधिकार हनन के दायरे में आती है। मरीज को जानकारी, सहमति, गोपनीयता और उचित इलाज का अधिकार प्राप्त है। कंज्यूमर प्रोटेक्शन एक्ट के तहत भी चिकित्सा लापरवाही पर मुआवजा मिल सकता है।


92. मानवाधिकार और पर्यावरण का संबंध

उत्तर:
स्वस्थ पर्यावरण में जीने का अधिकार, मानवाधिकार का एक नया और महत्वपूर्ण पक्ष बन गया है। वायु, जल और भूमि प्रदूषण से मानव स्वास्थ्य, जीवन और गरिमा पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। सुप्रीम कोर्ट ने MC Mehta केस में कहा कि स्वस्थ पर्यावरण जीवन के अधिकार का अभिन्न अंग है। इस दिशा में NGT की भूमिका भी महत्वपूर्ण है।


93. मानसिक स्वास्थ्य और मानवाधिकार

उत्तर:
मानसिक रूप से अस्वस्थ व्यक्ति को भी गरिमा, उपचार, गोपनीयता और निर्णय लेने का अधिकार है। Mental Healthcare Act, 2017 इन अधिकारों की स्पष्ट रूपरेखा प्रस्तुत करता है। यह कानून कहता है कि मानसिक रोगी को भी अन्य नागरिकों की तरह समान अधिकार प्राप्त हैं, और उसे समाज से बहिष्कृत नहीं किया जा सकता।


94. मानवाधिकारों का अंतर्राष्ट्रीय महत्व

उत्तर:
मानवाधिकार वैश्विक मूल्यों पर आधारित हैं और सभी देशों के नागरिकों के लिए समान रूप से लागू होते हैं। 1948 की Universal Declaration of Human Rights (UDHR) ने मानवाधिकारों की वैश्विक मान्यता दी। आज संयुक्त राष्ट्र और विभिन्न अंतरराष्ट्रीय संस्थाएं जैसे UNHRC विश्वभर में मानवाधिकारों की निगरानी और संरक्षण का कार्य कर रही हैं।


95. युद्ध और मानवाधिकार

उत्तर:
युद्ध की स्थिति में भी नागरिकों के जीवन, चिकित्सा सहायता, और सम्मान के अधिकार की रक्षा करना आवश्यक होता है। जिनेवा सम्मेलन (Geneva Conventions) युद्धकालीन मानवाधिकारों को स्पष्ट करते हैं। युद्धबंदी, नागरिकों और घायलों से मानवीय व्यवहार अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार कानून का प्रमुख विषय है।


96. इंटरनेट शटडाउन और मानवाधिकार

उत्तर:
इंटरनेट आज अभिव्यक्ति, शिक्षा, व्यापार और सूचना तक पहुंच का माध्यम है। बार-बार इंटरनेट बंद करना नागरिकों के सूचना, अभिव्यक्ति और कार्य के अधिकार का उल्लंघन हो सकता है। सुप्रीम कोर्ट ने अनुराधा भसीन बनाम भारत संघ केस (2020) में कहा कि इंटरनेट बंदी सीमित, न्यायसंगत और समयबद्ध होनी चाहिए।


97. मानवाधिकार और आर्थिक विषमता

उत्तर:
आर्थिक असमानता से गरीब वर्ग शिक्षा, स्वास्थ्य और न्याय जैसी मूलभूत सेवाओं से वंचित रह जाता है। यह मानवाधिकारों के समानता और गरिमा के सिद्धांत के विरुद्ध है। भारत में गरीबी हटाने के लिए विभिन्न योजनाएं चलाई गई हैं, किंतु असमानता अब भी चिंता का विषय है। आर्थिक न्याय मानवाधिकारों की बुनियाद है।


98. संविधान और मानवाधिकारों का संबंध

उत्तर:
भारतीय संविधान ही भारत में मानवाधिकारों की नींव है। भाग 3 – मौलिक अधिकार, मानवाधिकारों के सबसे बड़े संरक्षक हैं। अनुच्छेद 14 (समानता), 19 (अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता), 21 (जीवन का अधिकार), और 25-28 (धार्मिक स्वतंत्रता) मानवाधिकारों की पुष्टि करते हैं। संविधान ही मानवाधिकारों को कानूनी रूप देता है।


99. बच्चों के अधिकार और मानवाधिकार

उत्तर:
बच्चों को शिक्षा, पोषण, सुरक्षा, स्वास्थ्य और प्यार से पालन-पोषण का अधिकार होना चाहिए। UN Convention on the Rights of the Child (1989) और भारत में Right to Education Act (2009) बच्चों के अधिकारों को सुनिश्चित करते हैं। बाल श्रम, तस्करी, शोषण आदि बच्चों के मानवाधिकारों का गंभीर हनन है।


100. मानवाधिकारों का भविष्य

उत्तर:
आधुनिक समय में मानवाधिकारों की चुनौतियां और स्वरूप दोनों बदल रहे हैं – जैसे डिजिटल अधिकार, AI और गोपनीयता, जलवायु परिवर्तन, वैश्विक महामारी आदि। भविष्य में मानवाधिकारों का क्षेत्र तकनीक, पर्यावरण और वैश्विक सहयोग पर अधिक निर्भर होगा। शिक्षा, जागरूकता और न्यायिक सक्रियता ही इन अधिकारों के भविष्य की रक्षा करेंगी।