“मातृत्व स्वीकार या अस्वीकार करना महिला का अधिकार: इलाहाबाद हाईकोर्ट का मानवीय फैसला”
🔎 संदर्भ एवं पृष्ठभूमि:
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने एक महत्वपूर्ण निर्णय में यह स्पष्ट किया कि महिला को मातृत्व स्वीकारने या अस्वीकार करने का मौलिक और मानवीय अधिकार है। यह निर्णय एक 17 वर्षीय नाबालिग दुष्कर्म पीड़िता की याचिका पर सुनाया गया, जिसने मेडिकल रूप से गर्भ समापन (Medical Termination of Pregnancy) की अनुमति मांगी थी।
🧾 प्रकरण का संक्षेप विवरण:
- स्थान: भदोही, उत्तर प्रदेश
- पीड़िता की आयु: 17 वर्ष (नाबालिग)
- आरोप: बहला-फुसलाकर भगा ले जाने और दुष्कर्म का मामला
- गर्भ की स्थिति: 15 सप्ताह
- मेडिकल रिपोर्ट: पीड़िता गर्भ समाप्ति के लिए शारीरिक रूप से सक्षम पाई गई
- याचिका: पीड़िता के अधिवक्ता ने अदालत से गर्भ समापन की अनुमति मांगी
- प्रासंगिक कानून:
- चिकित्सकीय गर्भ समापन नियम, 2021 (Medical Termination of Pregnancy Rules, 2021)
- यह नियम यौन उत्पीड़न या बलात्कार की पीड़िताओं के लिए 24 सप्ताह तक गर्भ समापन की अनुमति देता है
⚖️ न्यायालय की टिप्पणी और निर्देश:
- न्यायमूर्ति महेश चंद्र त्रिपाठी एवं न्यायमूर्ति प्रशांत कुमार की खंडपीठ ने कहा:
“दुष्कर्म करने वाले व्यक्ति के बच्चे को जन्म देने के लिए पीड़िता को मजबूर करना, उसे अकल्पनीय दुख देना है।”
- न्यायालय ने कहा:
“महिला को मातृत्व के लिए ‘हां’ या ‘ना’ कहने का अधिकार है।”
- अदालत ने यह भी माना कि
“गर्भ समापन की अनुमति न देना, पीड़िता को सम्मानपूर्वक जीने के उसके मानवीय अधिकारों से वंचित करना होगा।”
- निर्देश:
- पीड़िता 12 फरवरी को अपने अभिभावक के साथ जिला अस्पताल में रिपोर्ट करे
- जिला चिकित्सा अधिकारी को 13 फरवरी तक गर्भ समापन सुनिश्चित करने का आदेश
📌 निर्णय का महत्व:
- महिला अधिकारों की पुष्टि: यह फैसला स्पष्ट करता है कि किसी महिला को अनिच्छित मातृत्व के लिए बाध्य नहीं किया जा सकता।
- यौन उत्पीड़न पीड़िताओं के लिए संवेदनशील दृष्टिकोण: विशेष रूप से नाबालिगों के मामलों में मानवीय और संवेदनशील निर्णय की आवश्यकता को स्वीकार किया गया।
- संविधान के अनुच्छेद 21 (जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता का अधिकार) के अंतर्गत न्यायालय ने पीड़िता के सम्मानपूर्वक जीवन जीने के अधिकार को प्राथमिकता दी।
- मानव गरिमा की रक्षा: मातृत्व को महिला की इच्छा से जोड़कर उसकी गरिमा की रक्षा की गई।
🔚 निष्कर्ष:
यह निर्णय केवल एक पीड़िता को राहत प्रदान करने का मामला नहीं है, बल्कि यह न्यायिक संवेदनशीलता और महिला अधिकारों की गूंज है। यह फैसला महिला की शारीरिक स्वायत्तता, गोपनीयता, और मूलभूत मानवीय गरिमा की रक्षा करने की दिशा में एक दृढ़ कदम है।