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महिलाओं को जबरन तेज़ाब पिलाने के मामलों पर कठोर कानून पर विचार करेगी केंद्र सरकार : सॉलिसिटर जनरल ने सुप्रीम कोर्ट को दिया आश्वासन

महिलाओं को जबरन तेज़ाब पिलाने के मामलों पर कठोर कानून पर विचार करेगी केंद्र सरकार : सॉलिसिटर जनरल ने सुप्रीम कोर्ट को दिया आश्वासन

        भारत में महिलाओं के खिलाफ होने वाले अपराधों में एसिड अटैक (Acid Attack) सबसे क्रूर और भयावह अपराधों में से एक माना जाता है। अब तक एसिड अटैक के मामलों में अक्सर तेज़ाब फेंककर महिलाओं को घायल करने की घटनाएँ सामने आती थीं, लेकिन हाल के वर्षों में एक नया और अत्यंत घृणित रूप देखने को मिला है — महिलाओं को जबरन तेज़ाब पिलाना। यह अपराध न केवल शारीरिक रूप से अपूरणीय क्षति पहुँचाता है, बल्कि पीड़िता की आंतरिक अंग प्रणाली को स्थायी रूप से नष्ट कर देता है, जिससे मौत तक हो सकती है।

       इसी गंभीर विषय पर सुप्रीम कोर्ट में एक बेहद महत्वपूर्ण सुनवाई हुई, जिसमें केंद्र सरकार की ओर से सॉलिसिटर जनरल ने यह आश्वासन दिया कि केंद्र सरकार महिलाओं को जबरन तेज़ाब पिलाने जैसे अपराधों को रोकने के लिए आवश्यक विधायी कदमों (legislative steps) पर गंभीरता से विचार करेगी। अदालत ने भी इस मुद्दे पर गहरी चिंता व्यक्त की और इसे महिला सुरक्षा पर सीधे प्रहार बताया।

        इस लेख में हम इस मामले की पृष्ठभूमि, सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणियाँ, केंद्र सरकार का रुख, मौजूदा कानूनों की स्थिति, तेज़ाब पिलाने की बढ़ती घटनाओं के सामाजिक-कानूनी प्रभाव और भविष्य के संभावित विधायी उपायों पर विस्तृत विश्लेषण प्रस्तुत करेंगे।


1. मामला क्या था? सुप्रीम कोर्ट के समक्ष कौन-सी याचिका थी?

       सुप्रीम कोर्ट में पीड़िताओं के पक्ष में एक याचिका दायर की गई थी, जिसमें कहा गया कि:

  • महिलाओं को जबरन तेज़ाब पिलाने की घटनाएँ हाल के वर्षों में बढ़ी हैं।
  • मौजूदा कानून मुख्यतः एसिड अटैक (तेज़ाब फेंकने) को ही कवर करते हैं।
  • जबरन तेज़ाब पिलाने को कानून में विशेष रूप से परिभाषित अपराध नहीं माना गया है।
  • IPC और अन्य विधानों में इस कृत्य के लिए स्पष्ट दंड प्रावधान नहीं हैं।
  • पीड़िताओं को चिकित्सा, पुनर्वास, मुआवज़ा और न्याय के लिए संघर्ष करना पड़ता है।

       याचिकाकर्ताओं ने कहा कि यह अपराध सामान्य मारपीट या attempt to murder के समान नहीं है; यह महिलाओं की गरिमा, उनके जीवन और शारीरिक स्वायत्तता पर अत्यंत गंभीर आघात है। इसलिए इसके लिए अलग और कड़े प्रावधानों की आवश्यकता है।


2. सुप्रीम कोर्ट ने क्या कहा?

        सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने इस मुद्दे पर गहरा क्षोभ व्यक्त किया। कोर्ट ने कहा:

“महिलाओं को तेज़ाब पिलाना एक ऐसी क्रूरता है जिसकी कल्पना भी नहीं की जा सकती। मौजूदा कानून यदि इसे पर्याप्त रूप से कवर नहीं करते, तो संसद को उचित कदम उठाने चाहिए।”

न्यायालय ने स्पष्ट किया कि:

  • एसिड अटैक कानून 2013 में मजबूत किया गया था,
  • परंतु उसकी परिभाषा मुख्यतः चेहरे-पर-तेज़ाब-फेंकने जैसे मामलों पर अधिक केंद्रित थी,
  • तेज़ाब पिलाने का अपराध विशिष्ट रूप से वर्णित नहीं है।

सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार से यह भी पूछा कि—

  • इस प्रकार के अपराधों पर क्या कोई अलग अध्ययन या डेटा उपलब्ध है?
  • क्या राज्य सरकारों को इस संबंध में कोई दिशा-निर्देश जारी किए गए हैं?
  • पुनर्वास तथा चिकित्सा सहायता के वर्तमान उपाय क्या पर्याप्त हैं?

अदालत ने कहा कि यदि विशेष अपराध के रूप में इसे IPC में शामिल करने की आवश्यकता है, तो केंद्र सरकार को इस दिशा में कानून बनाना चाहिए।


3. केंद्र सरकार का रुख: “हम विधायी कदमों पर विचार करेंगे”

सॉलिसिटर जनरल (SG) ने केंद्र सरकार की ओर से सुप्रीम कोर्ट को आश्वासन दिया कि—

“महिलाओं को जबरन तेज़ाब पिलाने के मामलों की गंभीरता को देखते हुए केंद्र सरकार आवश्यक विधायी कदमों पर विचार करेगी।”

SG ने अदालत को यह भी बताया कि:

  • सरकार इस अपराध को गंभीरता से ले रही है।
  • कानून मंत्रालय तथा गृह मंत्रालय इस विषय पर विस्तृत अध्ययन करेंगे।
  • यदि IPC या अन्य कानूनों में संशोधन की आवश्यकता होगी, तो उस पर भी विचार किया जाएगा।
  • राज्य सरकारों और पुलिस तंत्र से भी इस संबंध में इनपुट लिया जाएगा।

यह आश्वासन महिलाओं की सुरक्षा के क्षेत्र में एक महत्वपूर्ण कदम माना जा रहा है।


4. मौजूदा कानून क्या कहते हैं? क्या यह अपराध इनमें शामिल है?

(1) IPC में एसिड अटैक की धाराएँ – 326A और 326B

2013 में बनाए गए कानून में तेज़ाब फेंकने को कवर किया गया:

  • धारा 326A — स्थायी विकृति, विकलांगता या जलन पैदा करने के लिए तेजाब का उपयोग
  • धारा 326B — तेज़ाब फेंकने का प्रयास

लेकिन इन धाराओं में “जबरन एसिड पिलाने” को स्पष्ट रूप से परिभाषित नहीं किया गया है।

(2) Attempt to Murder (धारा 307 IPC)

यह लागू हो सकती है, परंतु यह खासतौर पर तेजाब पिलाने के लिए नहीं बनाई गई।

(3) अन्य धाराएँ

  • 354 (महिला की गरिमा पर आघात)
  • 312–318 (गर्भपात और शारीरिक क्षति)
  • 323–325 (साधारण या गंभीर चोट)

लेकिन तेज़ाब पिलाने की क्रूरता के अनुरूप कोई विशेष दंड प्रावधान नहीं।

(4) Poisons Act और Drugs Rules

एसिड की बिक्री पर नियंत्रण है, परंतु प्रवर्तन कमजोर है।


5. तेज़ाब पिलाने का अपराध इतना गंभीर क्यों है?

तेज़ाब पिलाने से होने वाली क्षति तेज़ाब फेंकने से कहीं अधिक भयावह होती है।

अंदरूनी अंगों पर प्रभाव:

  • आंत, ग्रासनली, पेट, लीवर, गुर्दे को स्थायी क्षति
  • खाने-पीने की क्षमता समाप्त
  • लगातार ऑपरेशन
  • मृत्यु का उच्च जोखिम

मनौवैज्ञानिक प्रभाव:

  • आजीवन डर
  • मानसिक आघात
  • सामाजिक बहिष्कार

आर्थिक प्रभाव:

  • लाखों रुपये का इलाज
  • काम करने की क्षमता खोना
  • लंबी कानूनी प्रक्रिया

इसलिए इसे एक विभिन्न और विशिष्ट अपराध के रूप में देखना आवश्यक है।


6. सुप्रीम कोर्ट के निर्देश : पीड़िताओं का मुआवज़ा, इलाज और पुनर्वास

सुप्रीम कोर्ट ने राज्य सरकारों को याद दिलाया कि:

  • 2013 के फैसले में पीड़िताओं के लिए न्यूनतम 3 लाख रुपए मुआवज़ा निर्धारित किया गया था।
  • यह राशि कई राज्यों में अब भी ठीक से नहीं दी जा रही।
  • तेज़ाब हमले की पीड़िताओं का इलाज निःशुल्क होना चाहिए।
  • पुनर्वास के लिए विशेष केंद्रों की संख्या बढ़ाई जाए।

अदालत ने कहा कि तेज़ाब पिलाए जाने के मामलों में तो मुआवज़ा और भी अधिक होना चाहिए, क्योंकि अंदरूनी अंगों की क्षति आमतौर पर आजीवन रहती है


7. समाज में तेज़ाब पिलाने की घटनाएँ क्यों बढ़ रही हैं?

(i) घरेलू हिंसा

अक्सर पति या ससुराल पक्ष प्रताड़ना के दौरान तेजाब पिलाने की कोशिश करते हैं।

(ii) ऑनर-इश्यू और बदला

कुछ मामलों में प्रेम संबंध या असहमति पर अत्यधिक क्रूरता दिखाई जाती है।

(iii) अपराधियों को कड़ा दंड न मिलना

कमजोर कानूनी प्रावधान और धीमी न्यायिक प्रक्रिया अपराधियों को प्रोत्साहित करती है।

(iv) तेजाब की आसान उपलब्धता

हालाँकि कानून है, परंतु बिक्री में नियंत्रण कमजोर है।


8. क्यों आवश्यक है नया कानून?

1. अपराध की प्रकृति विशेष है

यह सामान्य मारपीट नहीं, बल्कि शरीर के भीतर तेजाब डालकर हत्या जैसा प्रयास है।

2. मौजूदा कानून स्पष्ट नहीं

IPC में तेजाब पिलाने का अलग offense न होने से पुलिस में भ्रम रहता है।

3. डिटेरेंस (भय पैदा करने) की आवश्यकता

कड़ा कानून अपराध दर कम करता है—यह सिद्ध हुआ है।

4. पीड़िताओं की स्थिति अधिक गंभीर

आजीवन चिकित्सा की आवश्यकता वाले मामलों के लिए अधिक कठोर दंड और बड़े मुआवज़े की आवश्यकता है।


9. संभावित विधायी कदम — भविष्य क्या हो सकता है?

सॉलिसिटर जनरल के बयान के बाद यह संभावना जताई जा रही है कि केंद्र सरकार निम्न कदम उठा सकती है:

(1) IPC में नई धारा जोड़ना

जैसे:

  • धारा 326C — Acid Forcing / Acid Ingestion
    • आजीवन कारावास या कठोर दंड
    • न्यूनतम सजा 10 से 20 वर्ष

(2) तेजाब की बिक्री पर सख्ती

  • दुकानदारों को लाइसेंस
  • CCTV, रजिस्टर
  • अवैध बिक्री पर जेल

(3) मुआवज़े में वृद्धि

  • तेज़ाब पिलाने की पीड़िताओं के लिए विशेष फंड
  • 10–20 लाख तक का अनिवार्य मुआवज़ा

(4) अस्पतालों में अनिवार्य प्रोटोकॉल

  • प्राथमिक उपचार
  • मुफ्त इलाज
  • राष्ट्रीय स्तर पर हेल्पलाइन

(5) फास्ट ट्रैक कोर्ट

  • 6 महीने में ट्रायल पूरा करने की व्यवस्था

10. सुप्रीम कोर्ट की भूमिका: मानवाधिकार और महिला सुरक्षा की रक्षा

सुप्रीम कोर्ट ने हमेशा कहा है कि—

“महिलाओं की सुरक्षा राज्य का सर्वोच्च दायित्व है।”

अदालत पहले भी कई फैसलों में सख्त रही है:

  • तेज़ाब की बिक्री पर नियंत्रण
  • पीड़िताओं का मुआवज़ा
  • चिकित्सा सुविधा
  • ट्रायल की गति तेज करने के निर्देश

इस बार अदालत ने यह सुनिश्चित किया कि सरकार कानून बनाने की दिशा में ठोस कदम उठाए।


11. क्या नया कानून अपराध रोक देगा?

कानून अपने आप अपराध नहीं रोकता, परंतु:

  • कठोर कानून
  • तेज़ कार्रवाई
  • सामाजिक जागरूकता
  • पुलिस सुधार
  • तेज़ न्याय

सभी मिलकर अपराध को कम करते हैं।
यदि कानून में स्पष्टता आएगी, तो:

  • FIR दर्ज करना आसान होगा
  • जांच मजबूत होगी
  • अदालतों में अभियोजन सरल होगा
  • अपराधियों में भय बढ़ेगा

12. निष्कर्ष

सॉलिसिटर जनरल द्वारा सुप्रीम कोर्ट में दिया गया यह आश्वासन—

“केंद्र सरकार महिलाओं को जबरन तेज़ाब पिलाने से बचाने के लिए आवश्यक विधायी कदमों पर विचार करेगी”

महिला सुरक्षा के क्षेत्र में एक अत्यंत महत्वपूर्ण और सराहनीय कदम है।
यह न केवल कानून की खामियों को दूर करेगा, बल्कि पीड़िताओं को न्याय दिलाने की दिशा में नई राह खोलेगा।

सुप्रीम कोर्ट की सक्रिय भूमिका, केंद्र सरकार की सकारात्मक प्रतिक्रिया, और समाज की जागरूकता—ये सब मिलकर महिलाओं के खिलाफ इस अमानवीय अपराध को रोकने में बड़ी भूमिका निभा सकते हैं।

हम उम्मीद करते हैं कि जल्द ही:

  • IPC में संशोधन
  • तेजाब नियंत्रण कानून
  • पीड़िताओं के लिए पुनर्वास नीति

सभी को अधिक मजबूती मिलेगी, ताकि भारत की हर महिला सुरक्षित और सम्मानजनक जीवन जी सके।