“मर्जी और कानूनः दोस्ती यौन सहमति का अधिकार नहीं देती – दिल्ली हाईकोर्ट का सख्त संदेश”

लेख शीर्षक:
“मर्जी और कानूनः दोस्ती यौन सहमति का अधिकार नहीं देती – दिल्ली हाईकोर्ट का सख्त संदेश”


परिचय
हाल ही में दिल्ली हाईकोर्ट ने एक महत्वपूर्ण निर्णय में यह स्पष्ट किया कि किसी लड़की से दोस्ती करना, किसी व्यक्ति को यह अधिकार नहीं देता कि वह उसकी मर्जी के बिना शारीरिक संबंध बनाए। कोर्ट ने एक नाबालिग लड़की से कथित बलात्कार के आरोपी की जमानत याचिका को खारिज करते हुए यह सख्त टिप्पणी की। यह फैसला यौन अपराधों की प्रकृति, सहमति की कानूनी व्याख्या और नाबालिगों की सुरक्षा के दृष्टिकोण से अत्यंत महत्वपूर्ण है।


मामले का सारांश
आरोपी ने एक नाबालिग लड़की से कथित रूप से शारीरिक संबंध बनाए थे। आरोपी की तरफ से यह दलील दी गई कि दोनों के बीच आपसी दोस्ती थी और यह संबंध सहमति से बने थे। लेकिन अदालत ने स्पष्ट रूप से कहा कि नाबालिग की तथाकथित सहमति का कोई कानूनी महत्व नहीं होता है, और कानून के तहत उसे एक अपराध ही माना जाएगा। इसलिए आरोपी की जमानत याचिका को यह कहते हुए खारिज कर दिया गया कि ऐसा आचरण न केवल अनैतिक है, बल्कि विधि के विपरीत भी है।


कानूनी स्थिति: नाबालिग की सहमति और बलात्कार की परिभाषा
भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 375 में बलात्कार की परिभाषा दी गई है, और यह स्पष्ट किया गया है कि यदि पीड़िता 18 वर्ष से कम उम्र की है, तो उसकी सहमति का कोई कानूनी महत्व नहीं है। बाल संरक्षण कानून यानी ‘पॉक्सो एक्ट, 2012’ (Protection of Children from Sexual Offences Act) भी स्पष्ट करता है कि किसी भी नाबालिग के साथ किया गया यौन संपर्क, चाहे सहमति से हो या नहीं, अपराध माना जाएगा।


कोर्ट की टिप्पणी का महत्व
दिल्ली हाईकोर्ट ने न सिर्फ आरोपी की जमानत याचिका को खारिज किया, बल्कि एक मजबूत सामाजिक संदेश भी दिया कि किसी भी रिश्ते — चाहे वह दोस्ती हो, प्रेम संबंध हो या विवाह से पहले का कोई जुड़ाव — यह किसी को शारीरिक संबंध बनाने का स्वतःसिद्ध अधिकार नहीं देता। अदालत ने दो टूक कहा कि “किसी लड़की से दोस्ती का अर्थ यह नहीं होता कि वह अपनी मर्जी के विरुद्ध शारीरिक संबंध बनाने की अनुमति दे रही है।” यह कथन न केवल बलात्कार के मामलों में सहमति की व्याख्या करता है, बल्कि युवाओं को भी चेतावनी देता है कि कानून केवल इरादे पर नहीं, कार्य के प्रभाव और पीड़िता की उम्र व मर्जी पर भी ध्यान देता है।


पॉक्सो एक्ट की भूमिका
POCSO Act के तहत, अगर कोई नाबालिग पीड़िता है, तो अभियोजन पक्ष को यह साबित करने की आवश्यकता नहीं होती कि वह बलपूर्वक या मर्जी के बिना कार्य हुआ था। सिर्फ यह सिद्ध करना पर्याप्त है कि पीड़िता की उम्र 18 वर्ष से कम थी और आरोपी ने उससे यौन संपर्क किया। यह कानून बच्चों की यौन हिंसा से रक्षा के लिए विशेष रूप से बनाया गया है, और इस प्रकार की घटनाओं में आरोपी को कठोर दंड का प्रावधान है।


सहयोग और मर्जी की सीमाएँ
कई बार अभियुक्त यह तर्क देते हैं कि पीड़िता ने सहमति दी थी या दोनों के बीच प्रेम संबंध था। परंतु कानून इस बात को स्पष्ट करता है कि केवल संबंधों का अस्तित्व सहमति का संकेत नहीं होता। “मर्जी” एक स्वतंत्र, जागरूक और स्पष्ट रूप से व्यक्त किया गया निर्णय होना चाहिए। जब पीड़िता नाबालिग हो, तब “मर्जी” की अवधारणा स्वतः अमान्य हो जाती है।


सामाजिक और नैतिक पहलू
इस निर्णय का सामाजिक प्रभाव भी अत्यंत महत्वपूर्ण है। आज के डिजिटल और सोशल मीडिया युग में किशोरों के बीच संबंध जल्दी बनते हैं, परंतु उनके बीच कानून की समझ की कमी होती है। यह फैसला समाज में यह जागरूकता फैलाता है कि रिश्ते में होना या दोस्ती करना, यौन संपर्क की कानूनी या नैतिक अनुमति नहीं देता। यह शिक्षकों, अभिभावकों, और किशोरों — सभी के लिए एक चेतावनी है कि भावनाओं की गरिमा के साथ-साथ कानूनी सीमाओं को भी समझना आवश्यक है।


महिलाओं और बच्चों की सुरक्षा की दिशा में न्यायपालिका की भूमिका
भारतीय न्यायपालिका समय-समय पर ऐसे मामलों में सख्त रुख अपनाकर यह स्पष्ट करती रही है कि महिलाओं और बच्चों की सुरक्षा सर्वोच्च प्राथमिकता है। चाहे वह सुप्रीम कोर्ट का निर्णय हो या हाईकोर्ट का, एक समान रेखा यह खींची गई है कि महिलाओं की मर्जी के बिना कोई भी यौन संबंध कानून की दृष्टि में अपराध है, और नाबालिगों के साथ ऐसा कोई भी व्यवहार ‘दुष्कर्म’ की परिभाषा में आता है।


निष्कर्ष
दिल्ली हाईकोर्ट का यह फैसला एक अहम कानूनी और नैतिक सन्देश लेकर आया है। यह निर्णय न केवल आरोपी को कानून की पकड़ में लाता है, बल्कि समाज को यह बताता है कि दोस्ती, प्रेम या रिश्ता, किसी को भी शारीरिक संबंध बनाने की अनुमति नहीं देता, विशेष रूप से तब जब पीड़िता नाबालिग हो। इस फैसले से यह उम्मीद की जा सकती है कि भविष्य में कानून के प्रति समझ बढ़ेगी, और बच्चों व महिलाओं की गरिमा व सुरक्षा को सर्वोच्च प्राथमिकता मिलेगी।


संदेश:
कानून की दृष्टि में मर्जी और उम्र के आधार पर सहमति का महत्व अत्यधिक है। समाज के सभी वर्गों को, विशेषकर युवाओं को यह समझना होगा कि भावनात्मक संबंधों की आड़ में किया गया कोई भी शारीरिक शोषण, न केवल अपराध है बल्कि मानवीय मूल्यों के भी विरुद्ध है।