“मथुरा श्रीकृष्ण जन्मभूमि–शाही ईदगाह विवाद: इलाहाबाद हाईकोर्ट ने ईदगाह को ‘विवादित ढांचा’ मानने से किया इनकार”
मथुरा स्थित श्रीकृष्ण जन्मभूमि और शाही ईदगाह मस्जिद से जुड़ा वर्षों पुराना विवाद एक बार फिर चर्चा में है। लेकिन इस बार इलाहाबाद हाईकोर्ट ने इस प्रकरण में एक महत्वपूर्ण और कानूनी दृष्टि से प्रभावशाली फैसला सुनाया है। जस्टिस राम मनोहर मिश्रा की एकलपीठ ने शाही ईदगाह मस्जिद को ‘विवादित परिसर’ मानने से स्पष्ट इनकार करते हुए याचिका खारिज कर दी।
मामले की पृष्ठभूमि:
- मथुरा में स्थित श्रीकृष्ण जन्मभूमि के समीप बनी शाही ईदगाह मस्जिद को लेकर लंबे समय से यह दावा किया जाता रहा है कि यह मस्जिद मूल रूप से श्रीकृष्ण मंदिर की भूमि पर बनी है।
- याचिकाकर्ता पक्ष का आरोप था कि 17वीं सदी में मुगल शासक औरंगजेब के आदेश पर श्रीकृष्ण मंदिर को ध्वस्त कर वहां शाही ईदगाह का निर्माण कराया गया।
- याचिका में यह मांग की गई थी कि मस्जिद को हटाकर जन्मभूमि की ‘मूल स्थिति’ बहाल की जाए।
कोर्ट का निर्णय:
इलाहाबाद हाईकोर्ट की बेंच ने कहा कि:
- याचिकाकर्ता द्वारा प्रस्तुत तथ्यों और दस्तावेज़ों के आधार पर यह सिद्ध नहीं होता कि ईदगाह मस्जिद एक विवादित या अवैध संरचना है।
- 1991 के प्लेसेज ऑफ वर्शिप एक्ट के अनुसार किसी धार्मिक स्थल की स्थिति को 15 अगस्त 1947 की स्थिति से बदला नहीं जा सकता।
- जब तक स्पष्ट प्रमाण और विधिक आधार प्रस्तुत न किए जाएं, तब तक ईदगाह को ‘विवादित ढांचे’ के रूप में स्वीकार नहीं किया जा सकता।
प्लेसेज ऑफ वर्शिप एक्ट, 1991 का प्रभाव:
यह कानून धार्मिक स्थलों की स्थिति को 1947 की स्थिति में स्थिर रखने की मंशा से बनाया गया था। इसके तहत:
- किसी धार्मिक स्थल की प्रकृति नहीं बदली जा सकती,
- कोई दावा या परिवर्तन की प्रक्रिया कोर्ट में नहीं लाई जा सकती (सिवाय अयोध्या के मामले को छोड़कर)।
इस अधिनियम के चलते कोर्ट ने स्पष्ट किया कि मौजूदा स्थिति में कानूनी दायरे से बाहर जाकर कोई हस्तक्षेप नहीं किया जा सकता।
इस फैसले के कानूनी और सामाजिक प्रभाव:
- यह निर्णय देश में धार्मिक सौहार्द और संवैधानिक व्यवस्था को बनाए रखने की दिशा में एक बड़ा कदम माना जा रहा है।
- अदालत ने भावनाओं के स्थान पर कानूनी प्रक्रिया और साक्ष्यों को प्रमुखता दी है।
- इससे भविष्य में धार्मिक स्थलों को लेकर की जाने वाली याचिकाओं में पुख्ता कानूनी आधार की आवश्यकता स्पष्ट हो गई है।
निष्कर्ष:
मथुरा जन्मभूमि और शाही ईदगाह विवाद एक संवेदनशील विषय रहा है। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने इस मामले में जो संतुलित रुख अपनाया है, वह भारत के संविधान, विधिशासन और धार्मिक सहिष्णुता की भावना को मजबूती प्रदान करता है। अदालत ने कानून को आधार बनाकर यह स्पष्ट कर दिया है कि केवल ऐतिहासिक दावों और धार्मिक विश्वास के आधार पर किसी धार्मिक स्थल को ‘विवादित’ नहीं कहा जा सकता, जब तक कि ठोस कानूनी प्रमाण न हों।