“भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम के तहत गैर-सरकारी व्यक्ति भी दोषी हो सकता है: सुप्रीम कोर्ट का ऐतिहासिक निर्णय – P. Shanthi Pugazhenthi v. State”

“भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम के तहत गैर-सरकारी व्यक्ति भी दोषी हो सकता है: सुप्रीम कोर्ट का ऐतिहासिक निर्णय – P. Shanthi Pugazhenthi v. State”


भूमिका:
भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम, 1988 (Prevention of Corruption Act, 1988) को भारत में सार्वजनिक जीवन में पारदर्शिता बनाए रखने और भ्रष्टाचार पर नियंत्रण करने के उद्देश्य से लागू किया गया था। परंतु एक लंबे समय से यह प्रश्न न्यायिक विवेचना का विषय रहा है कि क्या कोई गैर-सरकारी व्यक्ति (non-public servant) भी इस अधिनियम के तहत दोषी ठहराया जा सकता है, खासकर जब वह किसी सरकारी कर्मचारी को अवैध संपत्ति एकत्रित करने में मदद करता है

सुप्रीम कोर्ट ने इस संवेदनशील और महत्वपूर्ण प्रश्न का उत्तर P. Shanthi Pugazhenthi v. State में बड़े स्पष्ट और निर्णायक शब्दों में दिया।


मामले का संक्षिप्त विवरण:
इस केस में अभियोजन ने यह आरोप लगाया था कि एक सरकारी कर्मचारी ने भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम के प्रावधानों का उल्लंघन करते हुए अपने पद का दुरुपयोग कर अपनी सेवा अवधि में आय से अधिक संपत्ति अर्जित की, जो कि उसकी वैध आय के ज्ञात स्रोतों से परे थी। साथ ही यह भी कहा गया कि आरोपी की पत्नी (P. Shanthi Pugazhenthi), जो स्वयं सरकारी सेवक नहीं थीं, ने इन अवैध संपत्तियों को अपने नाम पर रखा और उन्हें छुपाने व प्रबंधित करने में सहायता की।


सुप्रीम कोर्ट की महत्वपूर्ण टिप्पणियाँ:

  1. गैर-सरकारी व्यक्ति भी दोषी हो सकता है:
    अदालत ने स्पष्ट किया कि यदि कोई गैर-सरकारी व्यक्ति जानबूझकर और सक्रिय रूप से किसी सरकारी कर्मचारी की अवैध गतिविधियों में भागीदारी करता है, विशेषकर अवांछनीय संपत्ति को छुपाने, रखने या संचालित करने में, तो वह व्यक्ति धारा 109 आईपीसी (abetment) और भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम की अन्य प्रासंगिक धाराओं के तहत दोषी ठहराया जा सकता है।
  2. “संपत्ति किसके नाम पर है, यह गौण है”:
    कोर्ट ने यह रेखांकित किया कि यदि यह साबित हो जाए कि संपत्ति सरकारी कर्मचारी की है, भले ही वह किसी अन्य के नाम पर दर्ज हो, तो वह “Disproportionate Assets” की श्रेणी में आती है और संबंधित व्यक्ति (जो उसे अपने नाम पर रखे हुए है) सह-अपराधी (co-conspirator) माना जाएगा।
  3. अभिप्राय और ज्ञान की भूमिका:
    कोर्ट ने यह भी कहा कि अभियोजन पक्ष को यह सिद्ध करना आवश्यक है कि गैर-सरकारी व्यक्ति को इन संपत्तियों की असलियत और स्रोत की जानकारी थी, और वह जानबूझकर उन्हें छुपाने या संरक्षित करने में सहायक बना।

महत्वपूर्ण कानूनी सिद्धांत जो पुष्ट हुए:

  • Prevention of Corruption Act, 1988 – Sections 13(1)(e) and 13(2):
    सार्वजनिक पद पर रहते हुए आय से अधिक संपत्ति रखने का अपराध।
  • Indian Penal Code – Section 109 (Abetment):
    यदि कोई व्यक्ति किसी अपराध को करने में सहायता करता है, तो उसे भी वही दंड मिल सकता है जो मुख्य अपराधी को मिलता है।

न्यायालय का निष्कर्ष:
सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट शब्दों में कहा कि:

एक गैर-सार्वजनिक व्यक्ति, यदि जानबूझकर किसी सार्वजनिक सेवक को भ्रष्ट तरीकों से संपत्ति अर्जित करने में सहायता करता है, तो उसे ‘उकसावे’ और ‘सह-अपराध’ के आधार पर दंडित किया जा सकता है।


निष्कर्ष:
यह निर्णय भ्रष्टाचार विरोधी कानूनों के विस्तार की दिशा में एक महत्वपूर्ण न्यायिक प्रगति है। यह स्पष्ट संकेत देता है कि भ्रष्टाचार केवल सरकारी कर्मचारियों का अपराध नहीं रह गया है, बल्कि वे सभी जो इस अपराध को सक्षम बनाते हैं या उसे छुपाने में मदद करते हैं, वे भी कानून के शिकंजे में आ सकते हैं।

P. Shanthi Pugazhenthi प्रकरण आने वाले वर्षों में भ्रष्टाचार मामलों की जांच और अभियोजन में एक मील का पत्थर साबित होगा।