“भौगोलिक अधिकार क्षेत्र से बाहर के आरोपी के विरुद्ध प्रक्रिया जारी करने से पहले जाँच अनिवार्य: बॉम्बे हाई कोर्ट का दिशा-निर्देशक निर्णय”

लेख शीर्षक:
“भौगोलिक अधिकार क्षेत्र से बाहर के आरोपी के विरुद्ध प्रक्रिया जारी करने से पहले जाँच अनिवार्य: बॉम्बे हाई कोर्ट का दिशा-निर्देशक निर्णय”
(Bombay High Court: Magistrate Must Hold Inquiry under Section 202(1) CrPC Before Issuing Process Against Accused Residing Outside Jurisdiction)


भूमिका:

आपराधिक मामलों में प्रक्रिया (Process) जारी करना एक गंभीर न्यायिक कार्य है, विशेषकर तब जब आरोपी अदालत की भौगोलिक सीमा से बाहर रहता हो। बॉम्बे उच्च न्यायालय ने LAWS(BOM)-2024-1-105 में यह स्पष्ट किया कि जब आरोपी अदालत की क्षेत्रीय सीमा से बाहर रहता हो, तो दंड प्रक्रिया संहिता (CrPC) की धारा 202(1) के अंतर्गत प्रारंभिक जाँच (preliminary inquiry) करना आवश्यक हो जाता है।

यह निर्णय न्यायिक विवेक, अभियुक्त के अधिकारों की सुरक्षा और प्रक्रिया की निष्पक्षता को संतुलित करता है।


मामले की पृष्ठभूमि:

  • वादी ने एक आपराधिक शिकायत दायर की थी जिसमें अभियुक्त अदालत की स्थानीय क्षेत्रीय सीमा (territorial jurisdiction) से बाहर निवास करता था।
  • मजिस्ट्रेट ने बिना 202(1) के तहत जाँच किए ही प्रक्रिया जारी कर दी।
  • मामला उच्च न्यायालय में चुनौती दिया गया कि क्या 202(1) का संशोधित प्रावधान केवल दिशानिर्देशक (directory) है या अनिवार्य (mandatory)।

प्रासंगिक विधिक प्रावधान:

  • CrPC § 202(1):
    यदि आरोपी मजिस्ट्रेट की स्थानीय अधिकारिता से बाहर निवास करता है, तो मजिस्ट्रेट को प्रक्रिया जारी करने से पहले प्रारंभिक जाँच करनी चाहिए।
    Proviso (संशोधित): जाँच को अब और अधिक महत्वपूर्ण बना दिया गया है ताकि झूठे, तुच्छ या उत्पीड़क मामलों को रोका जा सके।

उच्च न्यायालय का विश्लेषण और तर्क:

  1. जांच का उद्देश्य:
    • जब आरोपी बाहर निवास करता हो, तो सीधे समन या गिरफ्तारी वारंट जारी करना अनुचित हो सकता है, क्योंकि इससे आरोपी को बिना प्राथमिक जांच के परेशानी उठानी पड़ती है।
  2. न्यायिक विवेक की भूमिका:
    • मजिस्ट्रेट के पास प्रक्रिया अपनाने का विवेकाधिकार है, लेकिन उन्हें मौजूदा साक्ष्यों का सावधानीपूर्वक मूल्यांकन करना चाहिए और यह देखना चाहिए कि क्या शिकायत गंभीर और प्रथम दृष्टया सत्य है।
  3. अनुचित मामलों को रोकने की भूमिका:
    • धारा 202(1) का उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि फ्रिवोलस (frivolous) या झूठे आरोपों के आधार पर व्यक्ति को सम्मन जारी न हो।
  4. अनिवार्य बनाम दिशानिर्देशक प्रश्न:
    • अदालत ने कहा कि यह तय करना कि §202(1) का प्रावधान mandatory है या directory, मामले की परिस्थितियों पर निर्भर करेगा
    • हालांकि, जब आरोपी क्षेत्रीय सीमा से बाहर हो, तो जाँच करना आवश्यक माना गया।

न्यायालय का निष्कर्ष:

  • प्रक्रिया जारी करने से पूर्व, विशेषकर जब आरोपी बाहर का हो, तो मजिस्ट्रेट को धारा 202(1) के तहत जाँच करनी चाहिए।
  • यह जाँच आरोपों की सत्यता को प्रारंभिक स्तर पर परखने के लिए है और आरोपी के अधिकारों की रक्षा हेतु भी आवश्यक है।
  • इस प्रकार की जाँच न्यायिक संतुलन बनाए रखने में सहायक है।

न्यायिक महत्व:

यह निर्णय निम्नलिखित पहलुओं को स्पष्ट करता है:

  • मजिस्ट्रेट की जिम्मेदारी – प्रक्रिया जारी करने से पहले पर्याप्त आधार और साक्ष्य की पुष्टि।
  • अभियुक्त का संरक्षण – बिना आधार के उत्पीड़न से बचाव।
  • प्रक्रियात्मक पारदर्शिता – सशक्त न्यायिक प्रणाली की पहचान।

निष्कर्ष:

बॉम्बे उच्च न्यायालय ने इस निर्णय के माध्यम से स्पष्ट संदेश दिया है कि विधिक प्रक्रिया का दुरुपयोग रोका जाना चाहिए, और न्यायिक सतर्कता आवश्यक है, विशेषकर तब जब आरोपी अदालत के क्षेत्राधिकार से बाहर निवास करता हो। धारा 202(1) CrPC का पालन न्याय की गुणवत्ता और निष्पक्षता को सुनिश्चित करता है।