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भोपाल-इंदौर के श्रमोदय स्कूलों में अफसरों की मिलीभगत से हुआ 3.30 करोड़ का फर्जीवाड़ा

भोपाल-इंदौर के श्रमोदय स्कूलों में अफसरों की मिलीभगत से हुआ 3.30 करोड़ का फर्जीवाड़ा — फूड सप्लाई टेंडर में नाम बदलकर हुई गड़बड़ी, अब अधिकारी बचाव में


भूमिका (Introduction)

मध्यप्रदेश की शिक्षा व्यवस्था में भ्रष्टाचार और लापरवाही की एक और चौंकाने वाली कहानी सामने आई है। राजधानी भोपाल और औद्योगिक नगरी इंदौर के श्रमोदय स्कूलों (Shramodaya Schools) में बच्चों के लिए भोजन आपूर्ति (Food Supply) से जुड़ा 3.30 करोड़ रुपए का घोटाला सामने आया है।

यह घोटाला सिर्फ वित्तीय नहीं, बल्कि नैतिक और प्रशासनिक विफलता का प्रतीक भी है, क्योंकि यह मामला उन स्कूलों से जुड़ा है जो गरीब और श्रमिक वर्ग के बच्चों को शिक्षा और पोषण देने के लिए बनाए गए हैं।

पत्रिका के खुलासे ने बताया कि जिन कंपनी ने बच्चों को भोजन परोसा, उसे भुगतान नहीं मिला, बल्कि उसकी जगह एक दूसरी फर्जी कंपनी को पैसा ट्रांसफर कर दिया गया — और यह सब अधिकारियों की मिलीभगत से हुआ।

अब जब मामला उजागर हो गया है, तो अधिकारी एफआईआर दर्ज करने से बच रहे हैं और एक-दूसरे पर जिम्मेदारी टाल रहे हैं।


पृष्ठभूमि (Background)

श्रमोदय स्कूल मध्यप्रदेश सरकार की एक अनूठी पहल है, जिसका उद्देश्य श्रमिक वर्ग के बच्चों को निःशुल्क गुणवत्तापूर्ण शिक्षा, भोजन और आवास सुविधा देना है। भोपाल, इंदौर, ग्वालियर और जबलपुर जैसे प्रमुख शहरों में इन स्कूलों का संचालन होता है।

इन स्कूलों में हर दिन हजारों बच्चों के लिए भोजन तैयार किया जाता है। यह जिम्मेदारी निजी कंपनियों को टेंडर प्रक्रिया के माध्यम से दी जाती है।

इसी क्रम में, भोपाल और इंदौर के श्रमोदय स्कूलों में जुलाई 2024 से मार्च 2025 तक भोजन परोसने का ठेका कनका फूड मैनेजमेंट सर्विस प्राइवेट लिमिटेड (Kanaka Food Management Services Pvt. Ltd.) को मिला था।


घोटाले का खुलासा (Exposure of the Scam)

कंपनी के डायरेक्टर जगदीश शेट्टी के अनुसार, उनकी कंपनी ने दोनों शहरों के स्कूलों में बच्चों को नियमित रूप से भोजन परोसा और 3.30 करोड़ रुपये के बिल विभाग में जमा किए।

परंतु, लंबे इंतजार के बाद भी भुगतान नहीं हुआ। जब उन्होंने विभाग से संपर्क किया, तो बताया गया कि भुगतान प्रक्रिया में है। लेकिन महीनों गुजरने के बाद भी पैसे नहीं मिले।

जगदीश शेट्टी ने आखिरकार 17 सितंबर 2025 को श्रम विभाग में शिकायत दर्ज कराई, और यहीं से पूरा मामला खुला।

जांच में सामने आया कि भुगतान तो किया गया था — लेकिन कनका फूड मैनेजमेंट सर्विस के नाम से मिलते-जुलते नाम वाली एक फर्जी कंपनी को।


कैसे हुआ फर्जीवाड़ा (Modus Operandi of the Fraud)

  1. मूल कंपनी:
    कनका फूड मैनेजमेंट सर्विस प्राइवेट लिमिटेड को टेंडर मिला था।
  2. फर्जी कंपनी:
    कनका फूड मैनेजमेंट सर्विस नाम से एक दूसरी फर्म खोली गई, जिसमें ‘प्राइवेट लिमिटेड’ शब्द का इस्तेमाल नहीं किया गया।
  3. मुख्य आरोपी – गौरव शर्मा:
    जांच में पता चला कि यह फर्जी कंपनी गौरव शर्मा के नाम पर रजिस्टर्ड थी, जो मूल कंपनी में पहले मैनेजर के रूप में कार्यरत था।
  4. फर्जी खाता खोलना:
    गौरव शर्मा ने मूल कंपनी के नाम से मिलते-जुलते नाम पर बैंक में एक नया खाता खुलवाया और उसमें विभाग से आने वाले भुगतान ट्रांसफर करवा लिए।
  5. मिलीभगत का खेल:
    इस पूरी प्रक्रिया में दोनों स्कूलों के प्राचार्य और डीपीआई (Directorate of Public Instruction) के कुछ अधिकारी शामिल थे।
    उनके हस्ताक्षर और स्वीकृति के बिना भुगतान संभव ही नहीं था।

प्रशासनिक लापरवाही (Administrative Negligence)

प्राचार्य और डीपीआई के अधिकारियों पर गंभीर आरोप लगे हैं। नियमों के अनुसार, किसी भी भुगतान से पहले मूल कंपनी के डायरेक्टर या प्रतिनिधि से पुष्टि लेना अनिवार्य था।

लेकिन इस मामले में:

  • किसी भी स्तर पर सत्यापन नहीं किया गया।
  • फर्जी कंपनी के खाते में सीधे सरकारी भुगतान ट्रांसफर कर दिए गए।
  • स्कूलों के प्राचार्यों ने बिना जांच किए भुगतान पर हस्ताक्षर कर दिए।

यही लापरवाही करोड़ों के फर्जीवाड़े की जड़ बनी।


कंपनी के डायरेक्टर की शिकायत (Complaint by Original Contractor)

कंपनी के डायरेक्टर जगदीश शेट्टी ने बताया —

“हमारी कंपनी ने भोपाल और इंदौर के श्रमोदय स्कूलों में जुलाई 2024 से मार्च 2025 तक बच्चों को भोजन परोसा। हमने सभी बिल समय पर जमा किए। लेकिन हमें एक भी भुगतान नहीं मिला। जब पड़ताल की, तो पाया कि किसी दूसरी फर्म को हमारे नाम से भुगतान कर दिया गया।”

उन्होंने यह भी कहा कि,

“हमारे ही पूर्व कर्मचारी गौरव शर्मा ने हमारी कंपनी के नाम से मिलती-जुलती फर्म बनाकर यह पूरा खेल रचा। डीपीआई और प्राचार्यों की मिलीभगत के बिना यह संभव ही नहीं था।”


जांच और प्रशासन का रवैया (Investigation and Government Response)

श्रम विभाग ने इस गड़बड़ी की जानकारी स्कूल शिक्षा आयुक्त शिल्पा गुप्ता को दी। जांच शुरू की गई, लेकिन आश्चर्य की बात यह है कि अब तक एफआईआर दर्ज नहीं की गई है।

सूत्र बताते हैं कि कुछ अधिकारी एक-दूसरे को बचाने की कोशिश में हैं और कार्रवाई को टालने के लिए फाइलें आगे नहीं बढ़ा रहे हैं।

यह भी कहा जा रहा है कि कुछ अधिकारियों ने विभागीय स्तर पर आंतरिक जांच का हवाला देकर मामला ठंडे बस्ते में डालने का प्रयास किया है।


वित्तीय अनियमितता का विश्लेषण (Financial Irregularities in Detail)

विवरण विवरण (Detail)
कुल बिल राशि ₹3.30 करोड़
मूल कंपनी कनका फूड मैनेजमेंट सर्विस प्रा. लि.
फर्जी कंपनी कनका फूड मैनेजमेंट सर्विस (गौरव शर्मा के नाम पर)
भुगतान की संख्या 9 ट्रांजेक्शन
संबंधित शहर भोपाल एवं इंदौर
मुख्य आरोपी गौरव शर्मा (पूर्व मैनेजर)
मिलीभगत वाले अधिकारी डीपीआई के अफसर व दोनों स्कूलों के प्राचार्य
एफआईआर स्थिति अभी तक दर्ज नहीं

कानूनी पहलू (Legal Implications)

इस मामले में कई गंभीर अपराधों के तहत कार्रवाई की जा सकती है —

  1. भारतीय दंड संहिता की धारा 420 (धोखाधड़ी):
    सरकारी धन के गलत इस्तेमाल और धोखाधड़ी के लिए।
  2. धारा 409 (लोक सेवक द्वारा आपराधिक विश्वासघात):
    यदि अधिकारी इसमें शामिल पाए गए तो उनके खिलाफ यह धारा लागू होगी।
  3. धारा 467, 468, 471 (जालसाजी व दस्तावेज़ों की फर्जीवाड़ा):
    फर्जी खाते और दस्तावेज़ बनाने के लिए।
  4. भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम, 1988 (Prevention of Corruption Act):
    यदि सरकारी अधिकारियों की मिलीभगत सिद्ध होती है तो इस अधिनियम के तहत कड़ी कार्रवाई संभव है।

प्रशासन की चुप्पी पर सवाल (Silence of the Authorities)

मामले के उजागर होने के बाद भी प्रशासनिक स्तर पर चुप्पी बनी हुई है।
अफसर न तो मीडिया के सवालों का जवाब दे रहे हैं, और न ही कार्रवाई की ठोस योजना सामने रख रहे हैं।

स्थानीय सूत्रों के मुताबिक,

“फाइलें जानबूझकर रोकी जा रही हैं ताकि समय बीतने पर मामला कमजोर हो जाए।”


समाज पर प्रभाव (Impact on Society)

यह घोटाला केवल वित्तीय नहीं, बल्कि नैतिक पतन का उदाहरण भी है।
जो स्कूल श्रमिक परिवारों के बच्चों को शिक्षा और पोषण देने के लिए बने हैं, वहां भोजन आपूर्ति में भ्रष्टाचार यह दर्शाता है कि व्यवस्था कितनी संवेदनहीन हो चुकी है।

बच्चों का अधिकार छीनना सिर्फ कानून का उल्लंघन नहीं, बल्कि मानवता के खिलाफ अपराध है।


विश्लेषण (Analysis)

  1. यह मामला सरकार की भुगतान प्रणाली में पारदर्शिता की कमी को उजागर करता है।
  2. टेंडर प्रक्रिया में कंपनी की पहचान सत्यापित करने की प्रणाली कमजोर है।
  3. ऑडिट और निरीक्षण व्यवस्था यदि समय पर होती, तो इतना बड़ा फर्जीवाड़ा नहीं हो सकता था।
  4. यह घोटाला इस बात का प्रमाण है कि पूर्व कर्मचारी द्वारा अंदरूनी जानकारी का दुरुपयोग किस तरह हो सकता है।

क्या होनी चाहिए कार्रवाई (Suggested Actions)

  1. फर्जीवाड़ा करने वाले गौरव शर्मा और संबंधित अधिकारियों के खिलाफ तत्काल एफआईआर दर्ज की जाए।
  2. स्कूल शिक्षा विभाग में आंतरिक ऑडिट टीम गठित की जाए जो पूरे भुगतान रिकॉर्ड की जांच करे।
  3. भुगतान प्रणाली को डिजिटल व वेरिफिकेशन-आधारित बनाया जाए ताकि भविष्य में नाम की समानता से कोई धोखाधड़ी न हो सके।
  4. दोषी अधिकारियों को सेवा से निलंबित कर अनुशासनात्मक कार्रवाई की जाए।
  5. मूल कंपनी को उसका बकाया भुगतान ब्याज सहित लौटाया जाए।

निष्कर्ष (Conclusion)

भोपाल और इंदौर के श्रमोदय स्कूलों में हुआ यह 3.30 करोड़ का फर्जीवाड़ा मध्यप्रदेश की शिक्षा प्रणाली के लिए एक गंभीर चेतावनी है।
यह मामला केवल भ्रष्टाचार का उदाहरण नहीं, बल्कि शासन की जवाबदेही पर भी प्रश्नचिह्न लगाता है।

अधिकारियों की मिलीभगत से गरीब बच्चों के भोजन में गड़बड़ी करना नैतिक और कानूनी दोनों दृष्टि से निंदनीय है।

यदि इस मामले में सख्त कार्रवाई नहीं हुई, तो यह भविष्य में ऐसे और घोटालों को जन्म देगा।
अब यह सरकार और शिक्षा विभाग की जिम्मेदारी है कि सत्य को उजागर करे और दोषियों को दंडित करे।


🔖 सारांश:

भोपाल और इंदौर के श्रमोदय स्कूलों में भोजन आपूर्ति के नाम पर 3.30 करोड़ रुपये का फर्जीवाड़ा हुआ। मूल कंपनी कनका फूड मैनेजमेंट सर्विस प्रा. लि. को भुगतान नहीं किया गया, बल्कि मिलते-जुलते नाम वाली फर्जी फर्म को पैसा ट्रांसफर कर दिया गया। जांच में पाया गया कि यह सब गौरव शर्मा नामक व्यक्ति ने अफसरों की मिलीभगत से किया। अब तक एफआईआर दर्ज नहीं हुई है और अधिकारी जिम्मेदारी से बच रहे हैं।