भूषण पावर एंड स्टील लिमिटेड के परिसमापन पर सुप्रीम कोर्ट का रोक और PMLA के तहत संपत्ति संलग्नता पर निर्णय

महत्वपूर्ण आदेश और निर्णय: कल्याणी ट्रांसको बनाम भूषण पावर एंड स्टील लिमिटेड

शीर्षक: भूषण पावर एंड स्टील लिमिटेड के परिसमापन पर सुप्रीम कोर्ट का रोक और PMLA के तहत संपत्ति संलग्नता पर निर्णय


भूमिका:
भूषण पावर एंड स्टील लिमिटेड (BPSL) के दिवालियापन मामले में, सुप्रीम कोर्ट ने प्रवर्तन निदेशालय (ED) द्वारा मनी लॉन्ड्रिंग निवारण अधिनियम, 2002 (PMLA) के तहत कंपनी की संपत्तियों की अस्थायी संलग्नता को चुनौती देने वाले आदेशों पर विचार किया। कोर्ट ने राष्ट्रीय कंपनी कानून अपीलीय न्यायाधिकरण (NCLAT) द्वारा ED की संलग्नता पर रोक लगाने के आदेश को अस्वीकार किया और स्पष्ट किया कि PMLA के तहत संलग्न संपत्तियों की वैधता केवल PMLA की धारा 8 के तहत निर्धारित प्राधिकरण द्वारा ही जांची जा सकती है।


मामले की पृष्ठभूमि:
भूषण पावर एंड स्टील लिमिटेड पर ₹47,204 करोड़ के बैंक धोखाधड़ी और धन शोधन के आरोप लगे थे। ED ने अक्टूबर 2019 में कंपनी की ओडिशा स्थित संपत्तियों को ₹4,025 करोड़ की राशि के लिए संलग्न किया। इस दौरान, JSW स्टील ने BPSL के लिए समाधान योजना प्रस्तुत की, जिसे सितंबर 2019 में NCLT ने मंजूरी दी। हालांकि, ED की संलग्नता ने समाधान प्रक्रिया में बाधा उत्पन्न की।


सुप्रीम कोर्ट का निर्णय:

  1. NCLAT का अधिकार क्षेत्र:
    सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया कि NCLAT के पास PMLA के तहत संलग्न संपत्तियों को मुक्त करने का अधिकार नहीं है। इसकी वैधता केवल PMLA की धारा 8 के तहत निर्धारित प्राधिकरण द्वारा ही जांची जा सकती है।
  2. धारा 32A का प्रभाव:
    इन्सॉल्वेंसी एंड बैंकरप्सी कोड (IBC) की धारा 32A के तहत, यदि कोई समाधान योजना अनुमोदित हो जाती है और नए प्रबंधन द्वारा लागू की जाती है, तो कंपनी को पूर्ववर्ती अपराधों के लिए अभियोजन से छूट मिलती है। इस प्रावधान के तहत, सुप्रीम कोर्ट ने ED को संलग्न संपत्तियों को JSW स्टील को हस्तांतरित करने का निर्देश दिया।
  3. ED का रुख:
    सुप्रीम कोर्ट के समक्ष, ED ने धारा 32A के प्रभाव को स्वीकार करते हुए संलग्न संपत्तियों की बहाली के खिलाफ अपनी अपील वापस ले ली।

प्रभाव और महत्व:
यह निर्णय भारत में दिवालियापन और धन शोधन कानूनों के बीच संतुलन स्थापित करने में एक महत्वपूर्ण मील का पत्थर है। इससे यह स्पष्ट होता है कि एक बार समाधान योजना अनुमोदित हो जाने के बाद, कंपनी के नए प्रबंधन को पूर्ववर्ती अपराधों के लिए जिम्मेदार नहीं ठहराया जा सकता, और ED जैसी एजेंसियों को संलग्न संपत्तियों को मुक्त करना होगा।


निष्कर्ष:
कल्याणी ट्रांसको बनाम भूषण पावर एंड स्टील लिमिटेड मामले में सुप्रीम कोर्ट का निर्णय भारत के कॉर्पोरेट दिवालियापन ढांचे में पारदर्शिता और स्पष्टता लाने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है। इससे यह सुनिश्चित होता है कि समाधान योजनाओं को प्रभावी ढंग से लागू किया जा सके, और नए निवेशकों को पूर्ववर्ती अपराधों के लिए जिम्मेदार नहीं ठहराया जाएगा।