भारत में स्वास्थ्य और कानून: अधिकार, चुनौतियाँ और सुधार की दिशा

“भारत में स्वास्थ्य और कानून: अधिकार, चुनौतियाँ और सुधार की दिशा “

भूमिका

स्वास्थ्य केवल व्यक्तिगत जीवन का विषय नहीं है, बल्कि यह एक मौलिक अधिकार है जिसे कानून द्वारा संरक्षित किया जाता है। भारतीय संविधान और विभिन्न अधिनियम नागरिकों को स्वास्थ्य सेवाएँ प्राप्त करने का अधिकार देते हैं। एक स्वस्थ नागरिक न केवल अपने जीवन को बेहतर बनाता है, बल्कि देश की सामाजिक और आर्थिक प्रगति में भी योगदान देता है। इसलिए, स्वास्थ्य और कानून का संबंध गहरा और अटूट है।


स्वास्थ्य का कानूनी आधार

संविधानिक प्रावधान

  1. अनुच्छेद 21 – जीवन का अधिकार
    • इसमें “जीवन के अधिकार” में “स्वास्थ्य का अधिकार” भी शामिल है।
    • सुप्रीम कोर्ट ने कई बार कहा है कि स्वास्थ्य सेवाएँ न देना, जीवन के अधिकार का उल्लंघन है।
  2. अनुच्छेद 47 – राज्य का कर्तव्य
    • राज्य का कर्तव्य है कि वह नागरिकों के पोषण स्तर और जीवन स्तर में सुधार करे तथा सार्वजनिक स्वास्थ्य को बेहतर बनाए।
  3. अनुच्छेद 39(e) और (f)
    • श्रमिकों के स्वास्थ्य और बच्चों के स्वस्थ विकास के लिए विशेष सुरक्षा।

भारत में स्वास्थ्य से जुड़े प्रमुख कानून

  1. क्लिनिकल एस्टैब्लिशमेंट्स (पंजीकरण और विनियमन) अधिनियम, 2010
    • अस्पतालों और क्लीनिकों का पंजीकरण अनिवार्य।
    • न्यूनतम मानकों का पालन करना आवश्यक।
  2. राष्ट्रीय चिकित्सा आयोग अधिनियम, 2019
    • डॉक्टरों की शिक्षा, प्रशिक्षण और मान्यता का नियमन।
  3. मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेंसी (MTP) अधिनियम, 1971 (संशोधित 2021)
    • गर्भपात के लिए कानूनी प्रावधान और शर्तें।
  4. मानसिक स्वास्थ्य देखभाल अधिनियम, 2017
    • मानसिक रोगियों के अधिकार और उपचार की व्यवस्था।
  5. खाद्य सुरक्षा और मानक अधिनियम, 2006
    • सुरक्षित और गुणवत्तापूर्ण खाद्य पदार्थ सुनिश्चित करना।
  6. कर्मचारी राज्य बीमा अधिनियम, 1948 (ESI Act)
    • श्रमिकों और उनके परिवार को स्वास्थ्य बीमा और चिकित्सा सुविधा।
  7. मोटर वाहन अधिनियम, 1988 (धारा 134)
    • सड़क दुर्घटनाओं में तत्काल चिकित्सा सहायता का प्रावधान।

न्यायालय के महत्वपूर्ण निर्णय

  1. Consumer Education and Research Centre v. Union of India (1995)
    • सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि स्वास्थ्य का अधिकार, जीवन के अधिकार का अभिन्न हिस्सा है।
  2. Parmanand Katara v. Union of India (1989)
    • हर डॉक्टर, चाहे सरकारी हो या निजी, को आपातकाल में किसी भी व्यक्ति का इलाज करना अनिवार्य है।
  3. Paschim Banga Khet Mazdoor Samity v. State of West Bengal (1996)
    • राज्य का दायित्व है कि वह पर्याप्त स्वास्थ्य सेवाएँ उपलब्ध कराए।

स्वास्थ्य क्षेत्र की प्रमुख चुनौतियाँ

  1. ग्रामीण क्षेत्रों में स्वास्थ्य सुविधाओं की कमी
  2. स्वास्थ्य बजट का कम होना (GDP का लगभग 2%)
  3. डॉक्टर और नर्सों की कमी
  4. असंक्रमणीय रोगों में वृद्धि
  5. स्वास्थ्य बीमा कवरेज का कम होना
  6. कुपोषण और स्वच्छता की कमी

सरकारी योजनाएँ और कानूनी पहल

  1. आयुष्मान भारत – प्रधानमंत्री जन आरोग्य योजना (PM-JAY)
    • 5 लाख रुपये तक का मुफ्त स्वास्थ्य बीमा।
  2. राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन (NHM)
    • ग्रामीण और शहरी स्वास्थ्य सेवाओं का विस्तार।
  3. मिशन इंद्रधनुष
    • बच्चों और गर्भवती महिलाओं का पूर्ण टीकाकरण।
  4. ई-संजीवनी
    • ऑनलाइन डॉक्टर परामर्श।
  5. पोषण अभियान
    • महिलाओं और बच्चों में कुपोषण की समस्या का समाधान।

भविष्य की दिशा और सुधार के सुझाव

  • स्वास्थ्य बजट बढ़ाना – GDP का कम से कम 5% स्वास्थ्य पर खर्च।
  • स्वास्थ्य बीमा अनिवार्य करना – सभी नागरिकों के लिए।
  • डिजिटल हेल्थ मिशन – टेलीमेडिसिन और ई-रिकॉर्ड सिस्टम को बढ़ावा।
  • स्थानीय स्तर पर चिकित्सा प्रशिक्षण – ग्रामीण क्षेत्रों में हेल्थ वर्कर्स की संख्या बढ़ाना।
  • स्वास्थ्य शिक्षा – स्कूलों में स्वास्थ्य और पोषण को अनिवार्य विषय बनाना।

निष्कर्ष

भारत में स्वास्थ्य और कानून एक-दूसरे के पूरक हैं। जहां कानून नागरिकों को स्वास्थ्य सेवाएँ प्राप्त करने का अधिकार देता है, वहीं स्वास्थ्य व्यवस्था उस अधिकार को धरातल पर लागू करती है। आने वाले समय में यदि सरकार, न्यायपालिका और नागरिक मिलकर स्वास्थ्य सुधार के लिए काम करें, तो “स्वस्थ भारत, सशक्त भारत” का सपना वास्तविकता बन सकता है।