प्रश्न: भारत में मौलिक अधिकारों (Fundamental Rights) की प्रकृति और सीमा पर चर्चा कीजिए। क्या ये अधिकार निरपेक्ष हैं?
परिचय:
भारतीय संविधान में मौलिक अधिकारों को विशेष स्थान दिया गया है। ये अधिकार लोकतंत्र के आधारस्तंभ हैं और नागरिकों के जीवन को गरिमापूर्ण बनाने के लिए आवश्यक हैं। भारतीय संविधान के भाग-III (अनुच्छेद 12 से 35) में इन अधिकारों का उल्लेख है। इन्हें “मौलिक” इसलिए कहा गया है क्योंकि ये व्यक्ति की स्वतंत्रता, गरिमा, समानता और न्याय के संरक्षण हेतु आवश्यक हैं और न्यायालय द्वारा प्रवर्तनीय (enforceable) हैं।
मौलिक अधिकारों की प्रकृति (Nature of Fundamental Rights):
1. संवैधानिक गारंटी (Constitutional Guarantee):
मौलिक अधिकार संविधान द्वारा प्रदत्त होते हैं। इनका उल्लंघन होने पर व्यक्ति संविधान के अनुच्छेद 32 या 226 के अंतर्गत उच्चतम न्यायालय या उच्च न्यायालय में याचिका दायर कर सकता है।
2. न्यायालय द्वारा प्रवर्तनीय (Enforceable by Courts):
अनुच्छेद 32 को “संविधान की आत्मा” (Heart and Soul of the Constitution) कहा गया है। यह मौलिक अधिकारों के संरक्षण का विशेष उपाय प्रदान करता है।
3. निरंकुश नहीं (Not Absolute):
मौलिक अधिकार पूर्ण या निरपेक्ष नहीं हैं। इन पर कुछ तार्किक और न्यायसंगत प्रतिबंध लगाए जा सकते हैं, जो सार्वजनिक व्यवस्था, नैतिकता, राज्य की संप्रभुता और राष्ट्रीय सुरक्षा के हित में हों।
4. नकारात्मक और सकारात्मक अधिकार:
कुछ अधिकार सरकार के हस्तक्षेप से रक्षा करते हैं (जैसे – जीवन और स्वतंत्रता का अधिकार), जबकि कुछ राज्य को नागरिकों को विशेष सुविधाएँ प्रदान करने का निर्देश देते हैं (जैसे – शिक्षा का अधिकार)।
5. प्रभावशीलता (Reasonable Restrictions):
हर मौलिक अधिकार के साथ संविधान में उस पर प्रतिबंध की परिस्थितियाँ भी निर्धारित की गई हैं। ये प्रतिबंध “वाजिब” (reasonable) होने चाहिए और न्यायिक परीक्षण के अधीन होते हैं।
भारत में प्रमुख मौलिक अधिकार (Main Fundamental Rights in India):
- समानता का अधिकार (Right to Equality) – अनुच्छेद 14 से 18:
सभी व्यक्तियों को कानून के समक्ष समानता और अवसरों की समानता प्राप्त है।
➤ जाति प्रथा, ऊँच-नीच, उपाधियाँ, भेदभाव आदि को समाप्त करने हेतु विशेष प्रावधान। - स्वतंत्रता का अधिकार (Right to Freedom) – अनुच्छेद 19 से 22:
➤ अभिव्यक्ति, विचार, धर्म, आंदोलन, निवास, और पेशा अपनाने की स्वतंत्रता।
➤ अनुच्छेद 21 – जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता का अधिकार (Right to Life and Personal Liberty)। - शोषण के विरुद्ध अधिकार (Right against Exploitation) – अनुच्छेद 23-24:
➤ मानव तस्करी, जबरन श्रम और बाल श्रम पर रोक। - धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार (Right to Freedom of Religion) – अनुच्छेद 25-28:
➤ प्रत्येक व्यक्ति को अपने धर्म का पालन, प्रचार और अभ्यास की स्वतंत्रता। - संस्कृति और शिक्षा संबंधी अधिकार (Cultural and Educational Rights) – अनुच्छेद 29-30:
➤ अल्पसंख्यकों को अपनी संस्कृति, लिपि और भाषा को सुरक्षित रखने का अधिकार। - संवैधानिक उपचारों का अधिकार (Right to Constitutional Remedies) – अनुच्छेद 32:
➤ मौलिक अधिकारों के उल्लंघन पर न्यायालय में रिट याचिका का अधिकार।
मौलिक अधिकारों की सीमाएँ (Limitations on Fundamental Rights):
1. राज्य द्वारा लगाए गए प्रतिबंध:
जैसे अनुच्छेद 19 के अंतर्गत दी गई स्वतंत्रताओं (जैसे – अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता) पर राज्य सार्वजनिक व्यवस्था, शिष्टाचार, नैतिकता, राज्य की सुरक्षा आदि के आधार पर प्रतिबंध लगा सकता है।
2. आपातकाल के दौरान निलंबन:
अनुच्छेद 359 के अनुसार, राष्ट्रीय आपातकाल के समय मौलिक अधिकारों को स्थगित किया जा सकता है (विशेषतः अनुच्छेद 19)। हालांकि, अनुच्छेद 20 और 21 के अधिकार किसी भी परिस्थिति में निलंबित नहीं किए जा सकते।
3. न्यायिक व्याख्या और संतुलन:
सुप्रीम कोर्ट और उच्च न्यायालयों ने कई मामलों में स्पष्ट किया है कि मौलिक अधिकारों का प्रयोग समाज के अन्य अधिकारों के साथ संतुलन बनाए रखते हुए किया जाना चाहिए।
जैसे – K.S. पुट्टस्वामी बनाम भारत संघ (2017) में निजता के अधिकार को अनुच्छेद 21 का हिस्सा माना गया, परंतु सीमित परिस्थितियों में राज्य द्वारा हस्तक्षेप को न्यायोचित ठहराया गया।
4. अन्य व्यक्तियों के अधिकारों का संरक्षण:
किसी व्यक्ति के मौलिक अधिकारों का प्रयोग इस प्रकार नहीं होना चाहिए कि वह किसी अन्य व्यक्ति के अधिकारों का हनन करे। जैसे – धार्मिक स्वतंत्रता के अधिकार के तहत जबरन धर्म परिवर्तन को प्रतिबंधित किया जा सकता है।
क्या मौलिक अधिकार निरपेक्ष हैं? (Are Fundamental Rights Absolute?)
नहीं, भारतीय संविधान में प्रदत्त मौलिक अधिकार निरपेक्ष नहीं हैं। इनमें प्रतिबंध लगाने की व्यवस्था स्वयं संविधान में दी गई है। यह प्रतिबंध लोकतंत्र की स्थिरता, सामाजिक शांति, और नागरिकों के परस्पर अधिकारों के संतुलन को बनाए रखने के लिए आवश्यक हैं।
उदाहरण:
- अनुच्छेद 19(1)(a) – अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता एक मौलिक अधिकार है, लेकिन अनुच्छेद 19(2) के अनुसार, यह राष्ट्रीय सुरक्षा, सार्वजनिक व्यवस्था, शिष्टाचार आदि के अधीन है।
- अनुच्छेद 25 में धार्मिक स्वतंत्रता दी गई है, परंतु यह भी सार्वजनिक व्यवस्था, नैतिकता और स्वास्थ्य के अधीन है।
इसका उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि कोई भी अधिकार इतना विस्तृत न हो कि वह दूसरों के अधिकारों और समाज की व्यवस्था को बाधित करे।
निष्कर्ष:
भारतीय संविधान में दिए गए मौलिक अधिकार लोकतांत्रिक शासन का मूलभूत आधार हैं। ये नागरिकों को गरिमामय जीवन जीने की गारंटी प्रदान करते हैं। हालाँकि ये अधिकार अत्यधिक महत्त्वपूर्ण हैं, लेकिन ये पूर्णतः निरपेक्ष नहीं हैं। राज्य कुछ न्यायोचित परिस्थितियों में इन अधिकारों पर प्रतिबंध लगा सकता है, जिससे समाज में शांति, सुरक्षा और संतुलन बना रहे। इस प्रकार, मौलिक अधिकार व्यक्ति की स्वतंत्रता और समाज की स्थिरता दोनों के बीच संतुलन स्थापित करने का प्रयास करते हैं।