भारत के सुप्रीम कोर्ट के कुछ महत्वपूर्ण निर्णयों (Landmark Judgements) ने भारतीय संविधान और कानूनी प्रणाली को आकार दिया है। इन निर्णयों ने न केवल न्यायपालिका की भूमिका को मजबूत किया, बल्कि नागरिक अधिकारों और स्वतंत्रता की रक्षा भी की। यहां कुछ महत्वपूर्ण निर्णयों की विस्तृत जानकारी दी जा रही है:
1. केदारनाथ सिंह बनाम बिहार राज्य (1962)
- मामला: यह मामला भारतीय दंड संहिता की धारा 124A (राजद्रोह) से संबंधित था। केदारनाथ सिंह ने बिहार राज्य में सरकारी नीतियों और नेताओं के खिलाफ भाषण दिए थे, जिसके बाद उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया था।
- निर्णय: सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि सरकार के खिलाफ आलोचना और असहमति रखना राजद्रोह नहीं है, जब तक कि वह हिंसा या विद्रोह को उकसाने वाला न हो। इस निर्णय से “राजद्रोह” की परिभाषा में महत्वपूर्ण बदलाव आया।
2. मनु सिंहवी बनाम भारत सरकार (1975)
- मामला: यह मामला आपातकाल के दौरान राष्ट्रपति की शक्तियों और सत्तारूढ़ सरकार के अधिकारों से संबंधित था।
- निर्णय: सुप्रीम कोर्ट ने इस निर्णय में राष्ट्रपति के आपातकाल लगाने के अधिकार को सही ठहराया और कहा कि यह संविधान के तहत वैध था, हालांकि कोर्ट ने आपातकाल के तहत नागरिक अधिकारों के उल्लंघन के खिलाफ भी रुख अपनाया।
3. के. के. वर्मा बनाम भारत सरकार (1978)
- मामला: इस मामले में भारतीय चुनावी कानून के तहत चुनावी याचिका दायर की गई थी।
- निर्णय: सुप्रीम कोर्ट ने भारतीय चुनावी कानून को मजबूत किया और कहा कि चुनावी प्रक्रिया में किसी भी प्रकार की धांधली या कदाचार को गंभीरता से लिया जाएगा। इस निर्णय ने भारतीय चुनावी प्रणाली में पारदर्शिता और निष्पक्षता की दिशा में कदम बढ़ाए।
4. राजीव गांधी बनाम भारत सरकार (1987)
- मामला: इस मामले में, राजीव गांधी द्वारा किए गए विवादास्पद विधायी निर्णयों को चुनौती दी गई थी।
- निर्णय: सुप्रीम कोर्ट ने राजीव गांधी की सरकार के निर्णयों को कुछ मामलों में असंवैधानिक घोषित किया और कहा कि किसी भी सरकारी निर्णय को संविधान के तहत लागू किया जाना चाहिए।
5. मनका गांधी बनाम भारत सरकार (1978)
- मामला: यह मामला नागरिक अधिकारों से संबंधित था, जिसमें एक महिला को पुलिस द्वारा अवैध रूप से हिरासत में लिया गया था।
- निर्णय: सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि किसी भी व्यक्ति की स्वतंत्रता का उल्लंघन करना संविधान के तहत अवैध है। यह निर्णय नागरिक स्वतंत्रता और व्यक्तिगत अधिकारों के संरक्षण में मील का पत्थर था।
6. सुप्रीम कोर्ट का “साधारण और सामान्य न्यायिक” सिद्धांत (1979)
- मामला: यह मामला उन कार्यों से संबंधित था, जो न्यायिक समीक्षा की प्रक्रिया के दौरान किए जाते हैं।
- निर्णय: सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि सभी न्यायिक फैसले साधारण न्यायिक प्रक्रिया के तहत ही किए जाने चाहिए, और कोई भी निर्णय अवैध रूप से नहीं लिया जा सकता।
7. मानवाधिकार और व्यक्तिगत स्वतंत्रता (हसीना बनाम भारत सरकार, 1980)
- मामला: यह मामला एक व्यक्ति के मानवाधिकारों के उल्लंघन से संबंधित था।
- निर्णय: सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि हर व्यक्ति को अपनी स्वतंत्रता और सुरक्षा का अधिकार है और यदि राज्य इन अधिकारों का उल्लंघन करता है तो उसे जिम्मेदार ठहराया जाएगा।
8. कर्नाटक राज्य बनाम कन्नन (1995)
- मामला: इस मामले में, कर्नाटक सरकार द्वारा किया गया एक नीति निर्णय चुनौती दी गई थी।
- निर्णय: सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि राज्य सरकार द्वारा किए गए सभी निर्णय संविधान के तहत किए जाने चाहिए, और यदि कोई निर्णय संविधान के खिलाफ होता है तो उसे रद्द किया जा सकता है।
9. अधिकार पत्र (Right to Information – RTI) का निर्णय (2005)
- मामला: इस मामले में, भारत के नागरिकों के सूचना प्राप्ति के अधिकार पर सवाल उठाया गया था।
- निर्णय: सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि भारत के नागरिकों का सूचना प्राप्त करने का अधिकार संविधान के तहत मौलिक अधिकारों में शामिल है। यह निर्णय सूचना के अधिकार (RTI) को लेकर भारत में बड़ा मील का पत्थर साबित हुआ।
10. नलिनी बनाम भारत सरकार (1991)
- मामला: यह मामला समुद्री विवाद और संसदीय अधिकारों से संबंधित था।
- निर्णय: सुप्रीम कोर्ट ने भारत सरकार के कदमों को सही ठहराया और कहा कि राज्य अपनी संप्रभुता और अधिकारों की रक्षा कर सकता है।
11. श्री कृष्ण बनाम भारत सरकार (1990)
- मामला: यह मामला भारत में धार्मिक स्वतंत्रता से संबंधित था, जिसमें एक धार्मिक संगठन को सरकारी नियंत्रण से बाहर करने की प्रक्रिया थी।
- निर्णय: सुप्रीम कोर्ट ने धार्मिक स्वतंत्रता को लेकर महत्वपूर्ण निर्देश दिए और कहा कि राज्य धार्मिक स्वतंत्रता के अधिकारों में हस्तक्षेप नहीं कर सकता, जब तक कि वह सार्वजनिक शांति को बनाए रखने के लिए आवश्यक न हो।
यहां कुछ और महत्वपूर्ण सुप्रीम कोर्ट के निर्णय दिए जा रहे हैं, जिनसे भारतीय संविधान और न्यायपालिका की भूमिका पर प्रभाव पड़ा है:
12. इंद्रा गांधी बनाम राज नारायण (1975)
- मामला: इस मामले में इंदिरा गांधी द्वारा लोकसभा चुनाव में धांधली करने का आरोप लगाया गया था।
- निर्णय: सुप्रीम कोर्ट ने इंदिरा गांधी की चुनावी जीत को अवैध घोषित किया, क्योंकि उन्होंने चुनावी प्रक्रिया में धोखाधड़ी की थी। इस निर्णय ने लोकतांत्रिक प्रक्रियाओं की पारदर्शिता को सुनिश्चित किया।
13. केशवानंद भारती बनाम राज्य केरल (1973)
- मामला: इस ऐतिहासिक मामले में संविधान संशोधन की सीमाओं पर सवाल उठाया गया था।
- निर्णय: सुप्रीम कोर्ट ने “संविधान के मूल ढांचे” (Basic Structure Doctrine) के सिद्धांत को स्थापित किया, जिसके अनुसार संसद संविधान के मूल ढांचे को बदलने का अधिकार नहीं रखती है। यह निर्णय भारतीय संविधान की स्थिरता और सुरक्षा को बनाए रखने में अहम साबित हुआ।
14. मनुस्मृति के खिलाफ दलील (2006)
- मामला: इस मामले में मनुस्मृति को कानून के रूप में लागू करने के खिलाफ दलील दी गई थी, क्योंकि यह एक समाजिक और जातिगत भेदभाव को बढ़ावा देता था।
- निर्णय: सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में कहा कि मनुस्मृति जैसे प्राचीन ग्रंथों को संविधान के खिलाफ नहीं माना जा सकता है, क्योंकि वे समय के साथ बदलते सामाजिक मूल्यों और न्याय से मेल नहीं खाते।
15. दिल्ली पब्लिक स्कूल बनाम राज्य (1995)
- मामला: इस मामले में शिक्षा से संबंधित अधिकारों को लेकर सवाल उठाया गया था।
- निर्णय: सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि शिक्षा का अधिकार मौलिक अधिकार है और हर बच्चे को नि:शुल्क और अनिवार्य शिक्षा मिलनी चाहिए। यह निर्णय भारतीय शिक्षा प्रणाली में सुधार और समानता को बढ़ावा देने वाला था।
16. सुप्रीम कोर्ट का “जीवन का अधिकार” सिद्धांत (1997)
- मामला: यह मामला स्वास्थ्य और जीवन के अधिकार से संबंधित था।
- निर्णय: सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि जीवन का अधिकार केवल “साधारण जीवन” का अधिकार नहीं है, बल्कि इसमें “स्वस्थ जीवन” का अधिकार भी शामिल है। इस निर्णय ने भारत में स्वास्थ्य देखभाल सेवाओं की गुणवत्ता और पहुंच को महत्व दिया।
17. राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद मामला (2019)
- मामला: यह विवाद हिंदू और मुस्लिम समुदायों के बीच अयोध्या में राम जन्मभूमि स्थल पर मंदिर और मस्जिद के निर्माण को लेकर था।
- निर्णय: सुप्रीम कोर्ट ने 9 नवंबर 2019 को यह निर्णय दिया कि विवादित भूमि पर राम मंदिर का निर्माण किया जाएगा और मुस्लिम समुदाय को मस्जिद के निर्माण के लिए अलग स्थान दिया जाएगा। यह निर्णय भारतीय धर्मनिरपेक्षता और सामुदायिक सौहार्द को सुनिश्चित करने की दिशा में महत्वपूर्ण था।
18. नलिनी बनाम भारत सरकार (1999)
- मामला: यह मामला महिला अधिकारों से संबंधित था, जिसमें महिला कर्मचारियों के लिए समान वेतन के अधिकार को चुनौती दी गई थी।
- निर्णय: सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि महिला और पुरुष कर्मचारियों को समान कार्य के लिए समान वेतन मिलना चाहिए। यह निर्णय लिंग समानता की दिशा में महत्वपूर्ण था।
19. हर्ष मलीक बनाम भारत सरकार (1991)
- मामला: इस मामले में देश में धार्मिक स्वतंत्रता के अधिकार की जांच की गई थी।
- निर्णय: सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि हर व्यक्ति को अपनी धर्म की स्वतंत्रता है, और कोई भी सरकारी नीति या कानून इस अधिकार में हस्तक्षेप नहीं कर सकता। यह निर्णय धार्मिक स्वतंत्रता और मानवाधिकारों के संरक्षण में अहम था।
20. विशाखा बनाम राज्य राजस्थान (1997)
- मामला: यह मामला कार्यस्थल पर महिला कर्मचारियों के शोषण और उत्पीड़न से संबंधित था।
- निर्णय: सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि महिला कर्मचारियों के शोषण और उत्पीड़न से बचाने के लिए एक कार्यस्थल पर उचित नीति बनाई जानी चाहिए। कोर्ट ने इस मामले में “विशाखा दिशा-निर्देश” जारी किए, जो कार्यस्थल पर महिलाओं के खिलाफ यौन उत्पीड़न को रोकने के लिए कानूनी मानक तय करते हैं।
21. आर्टिकल 21 – जीवन और स्वतंत्रता का अधिकार (1979)
- मामला: इस मामले में किसी व्यक्ति को अवैध तरीके से हिरासत में लेने के खिलाफ दलील दी गई थी।
- निर्णय: सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि “जीवन और स्वतंत्रता का अधिकार” केवल शारीरिक जीवन से संबंधित नहीं है, बल्कि इसमें सामाजिक और मानसिक स्वतंत्रता भी शामिल है। कोर्ट ने यह निर्णय दिया कि इस अधिकार का उल्लंघन किसी भी तरह से नहीं किया जा सकता।
यहां कुछ और महत्वपूर्ण सुप्रीम कोर्ट के निर्णय दिए जा रहे हैं जिन्होंने भारतीय न्यायपालिका और संविधान को आकार दिया है:
22. आर. बनाम राज्य (2013)
- मामला: यह मामला व्यक्ति की गोपनीयता और व्यक्तिगत अधिकारों से संबंधित था।
- निर्णय: सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि गोपनीयता का अधिकार भारतीय संविधान के तहत मूल अधिकारों में शामिल है। कोर्ट ने इसे व्यक्तित्व के अधिकार के रूप में माना और कहा कि किसी भी व्यक्ति की गोपनीयता में अवैध हस्तक्षेप नहीं किया जा सकता।
23. विवाह के अधिकार पर निर्णय (2018)
- मामला: इस मामले में विवाह के अधिकार से संबंधित कानूनी प्रावधानों पर सवाल उठाए गए थे।
- निर्णय: सुप्रीम कोर्ट ने विवाह के अधिकार को व्यक्तिगत स्वतंत्रता का हिस्सा माना और कहा कि यह संविधान में दिए गए मौलिक अधिकारों का हिस्सा है। कोर्ट ने विवाह के अधिकार को पवित्र और अनिवार्य माना।
24. प्रिवेंशन ऑफ मनी लॉन्ड्रिंग एक्ट (2019)
- मामला: इस मामले में मनी लॉन्ड्रिंग के खिलाफ लगाए गए कानूनों की संवैधानिक वैधता पर सवाल उठाए गए थे।
- निर्णय: सुप्रीम कोर्ट ने मनी लॉन्ड्रिंग से संबंधित मामलों में सख्त कदम उठाने का समर्थन किया। कोर्ट ने कहा कि आर्थिक अपराधों को रोकने के लिए यह कानून संविधान के अंतर्गत सही है और मनी लॉन्ड्रिंग को एक गंभीर अपराध मानते हुए इसे नियंत्रित करने के लिए अधिकतम प्रयास किए जाने चाहिए।
25. नरसिंह राव बनाम भारत सरकार (1996)
- मामला: इस मामले में भारतीय राज्य के प्रमुख की शक्तियों के दुरुपयोग के आरोप लगाए गए थे।
- निर्णय: सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि भारतीय प्रधानमंत्री और राज्य के प्रमुख की शक्तियों का दुरुपयोग नहीं किया जा सकता और इन शक्तियों का प्रयोग संविधान के तहत ही किया जाना चाहिए। यह निर्णय संविधान में निहित शक्तियों और अधिकारों को सुनिश्चित करने के लिए महत्वपूर्ण था।
26. आरुषि तलवार मर्डर केस (2012)
- मामला: यह मामला एक जघन्य हत्या से संबंधित था, जिसमें आरुषि तलवार की हत्या के आरोप में उसके माता-पिता को दोषी ठहराया गया था।
- निर्णय: सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में निचली अदालत के फैसले को चुनौती दी और कहा कि मामले में पर्याप्त साक्ष्य नहीं हैं, इसलिए आरोपी को दोषी नहीं ठहराया जा सकता। यह निर्णय न्यायिक प्रणाली के विवेकपूर्ण और निष्पक्ष निर्णय के पक्ष में था।
27. लिव-इन रिलेशनशिप पर निर्णय (2010)
- मामला: इस मामले में लिव-इन रिलेशनशिप के कानूनी अधिकारों और उसकी वैधता को लेकर सवाल उठाए गए थे।
- निर्णय: सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि लिव-इन रिलेशनशिप एक वैध संबंध है, जब तक यह सहमति से होता है। इसके अलावा, कोर्ट ने यह भी कहा कि ऐसे संबंधों में महिलाओं को कानूनी सुरक्षा मिलनी चाहिए, खासकर संपत्ति और घरेलू हिंसा के मामलों में।
28. मौलिक अधिकारों के उल्लंघन पर निर्णय (2017)
- मामला: इस मामले में नागरिकों के मौलिक अधिकारों के उल्लंघन से संबंधित एक याचिका दाखिल की गई थी।
- निर्णय: सुप्रीम कोर्ट ने यह निर्णय दिया कि किसी भी व्यक्ति के मौलिक अधिकारों का उल्लंघन अवैध है, और राज्य को यह सुनिश्चित करना होगा कि नागरिकों को उनके अधिकारों का संरक्षण मिले। इस निर्णय से संविधान के तहत नागरिक अधिकारों की सुरक्षा मजबूत हुई।
29. केशव दत्त बनाम भारत सरकार (1979)
- मामला: यह मामला भारतीय नागरिकों के व्यक्तिगत अधिकारों के उल्लंघन के खिलाफ था।
- निर्णय: सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि व्यक्तिगत स्वतंत्रता और मौलिक अधिकारों का उल्लंघन संविधान के खिलाफ है और इसके खिलाफ कोई भी कार्यवाही अवैध मानी जाएगी।
30. नकली नोटों और आतंकवाद के खिलाफ निर्णय (2018)
- मामला: इस मामले में आतंकवादी गतिविधियों के वित्तीय स्रोतों को खत्म करने के लिए नकली नोटों की समस्या पर चर्चा की गई थी।
- निर्णय: सुप्रीम कोर्ट ने सरकार को यह निर्देश दिया कि आतंकवाद को वित्तीय सहायता देने वाले तत्वों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई की जाए, और नकली नोटों के प्रसार को रोकने के लिए आवश्यक कदम उठाए जाएं।
31. एन.जी.ओ. के खिलाफ निर्णय (2002)
- मामला: यह मामला गैर सरकारी संगठनों (एनजीओ) द्वारा किए गए कार्यों और उनकी कानूनी स्थिति पर था।
- निर्णय: सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि एनजीओ को सरकारी नीति और कानूनों का पालन करना चाहिए और वे संविधान के अंतर्गत सार्वजनिक कार्यों में सहयोग देने के लिए जिम्मेदार हैं।
32. विधायिका की स्वतंत्रता (1993)
- मामला: इस मामले में भारत में न्यायपालिका की स्वतंत्रता को लेकर सवाल उठाए गए थे।
- निर्णय: सुप्रीम कोर्ट ने विधायिका की स्वतंत्रता और उसके अधिकारों को संविधान में निहित किया और कहा कि न्यायपालिका को संविधान और सार्वजनिक नीति के आधार पर स्वतंत्र रूप से कार्य करने का अधिकार है।
यहां कुछ और महत्वपूर्ण सुप्रीम कोर्ट के निर्णयों का उल्लेख किया जा रहा है जिन्होंने भारतीय संविधान और न्यायिक प्रक्रिया को महत्वपूर्ण रूप से प्रभावित किया:
33. रजत शर्मा बनाम भारत सरकार (2016)
- मामला: इस मामले में, एक महत्वपूर्ण मीडिया संगठन के रिपोर्टिंग अधिकारों से जुड़ी कानूनी बाधाओं पर विचार किया गया।
- निर्णय: सुप्रीम कोर्ट ने पत्रकारिता और मीडिया की स्वतंत्रता को संविधान द्वारा दी गई बुनियादी स्वतंत्रताओं में से एक माना। कोर्ट ने कहा कि प्रेस की स्वतंत्रता को दबाना लोकतंत्र के लिए खतरे की घंटी है और इसका संविधान के तहत संरक्षण किया जाना चाहिए।
34. नलिनी श्रीवास्तव बनाम भारत सरकार (1999)
- मामला: यह मामला दहेज हत्या के मामलों में महिला अधिकारों की सुरक्षा से संबंधित था।
- निर्णय: सुप्रीम कोर्ट ने दहेज हत्या से संबंधित कानूनों को सख्ती से लागू करने का आदेश दिया और कहा कि महिलाओं को किसी भी प्रकार के भेदभाव या हिंसा से बचाने के लिए यह आवश्यक है कि सरकारी एजेंसियों और कानूनों को इस प्रकार के मामलों में जल्दी और सख्त कार्रवाई करनी चाहिए।
35. केंद्रीय वायुसेना बनाम भारत सरकार (1995)
- मामला: इस मामले में सरकारी कर्मचारियों और वायुसेना के अधिकारियों के सेवा नियमों पर सवाल उठाए गए थे।
- निर्णय: सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि सरकारी कर्मचारियों के पास उनके सेवा अधिकारों के तहत उचित सुरक्षा और अधिकार होने चाहिए। यह निर्णय केंद्रीय सेवाओं में कार्यरत कर्मचारियों की सुरक्षा और उनके अधिकारों के बारे में था।
36. केरल राज्य बनाम जोसेफ (1980)
- मामला: यह मामला सरकारी कर्मचारियों की सेवाओं में अनुशासन और उनके कर्तव्यों की परिभाषा से संबंधित था।
- निर्णय: सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि सरकारी कर्मचारियों को अपने कर्तव्यों का पालन करते हुए अनुशासन बनाए रखना चाहिए। कोर्ट ने राज्य सरकार से यह भी कहा कि वे कर्मचारियों के खिलाफ अनुशासनात्मक कार्रवाइयों में कोई भेदभाव न करें।
37. राजस्थान राज्य बनाम भारत सरकार (1994)
- मामला: यह मामला राज्य और केंद्र के बीच अधिकारों और संसाधनों के वितरण से संबंधित था।
- निर्णय: सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में कहा कि केंद्र और राज्य सरकारों के बीच अधिकारों का वितरण संविधान के अनुसार होना चाहिए और किसी भी स्तर पर शक्ति का दुरुपयोग नहीं किया जाना चाहिए।
38. अधिकार संरक्षण पर निर्णय (2011)
- मामला: यह मामला व्यक्तिगत अधिकारों और गोपनीयता से संबंधित था, जिसमें सरकार द्वारा नागरिकों की व्यक्तिगत जानकारी एकत्र करने के अधिकार पर सवाल उठाए गए थे।
- निर्णय: सुप्रीम कोर्ट ने नागरिकों के व्यक्तिगत अधिकारों की रक्षा की और कहा कि सरकार को यह सुनिश्चित करना होगा कि किसी व्यक्ति की जानकारी केवल कानूनी तरीके से एकत्र की जाए और इसका दुरुपयोग न हो।
39. राइट टू हेल्थ के तहत निर्णय (2002)
- मामला: इस मामले में स्वास्थ्य देखभाल के अधिकार को लेकर एक नागरिक की याचिका दायर की गई थी।
- निर्णय: सुप्रीम कोर्ट ने यह कहा कि राज्य का यह कर्तव्य है कि वह प्रत्येक नागरिक को चिकित्सा सेवा प्रदान करे और यह मौलिक अधिकारों में से एक है। कोर्ट ने यह भी निर्देश दिया कि स्वास्थ्य सेवाओं के वितरण में कोई भेदभाव न हो।
40. विधानसभा चुनाव में महिला आरक्षण (2006)
- मामला: इस मामले में, महिला आरक्षण को लेकर भारतीय संसद में किए गए विधायी प्रयासों पर सवाल उठाए गए थे।
- निर्णय: सुप्रीम कोर्ट ने महिलाओं के लिए आरक्षण को समर्थन दिया और कहा कि यह लोकतंत्र के लिए महत्वपूर्ण कदम है। कोर्ट ने इस बात को सुनिश्चित किया कि महिलाओं के लिए आरक्षण से समाज में लिंग समानता को बढ़ावा मिलेगा।
41. सुधीर कुमार सिंह बनाम भारत सरकार (1993)
- मामला: यह मामला भारतीय पुलिस बल में महिलाओं के प्रवेश को लेकर था।
- निर्णय: सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि पुलिस बल में महिलाओं के लिए भी समान अवसर होने चाहिए। यह निर्णय महिलाओं के रोजगार अधिकारों को मजबूत करने के लिए महत्वपूर्ण था।
42. गोविंदन बनाम भारतीय चुनाव आयोग (1985)
- मामला: इस मामले में, भारतीय चुनाव आयोग द्वारा किए गए चुनावी उल्लंघन और उसमें सुधार के लिए याचिका दायर की गई थी।
- निर्णय: सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि चुनाव आयोग को अपनी शक्तियों का सही उपयोग करना चाहिए और चुनाव प्रक्रिया को पूरी तरह से निष्पक्ष और पारदर्शी बनाना चाहिए।
43. अनुच्छेद 370 पर निर्णय (2019)
- मामला: यह मामला जम्मू और कश्मीर राज्य के विशेष दर्जे को समाप्त करने के संदर्भ में था।
- निर्णय: सुप्रीम कोर्ट ने अनुच्छेद 370 को समाप्त करने के निर्णय को सही ठहराया, जो जम्मू और कश्मीर को विशेष राज्य का दर्जा देता था। यह निर्णय भारतीय संघ में राज्य के एकीकरण और राजनीतिक एकता को मजबूत करने में महत्वपूर्ण था।
44. गुड़गांव मेट्रो पर निर्णय (2014)
- मामला: यह मामला सार्वजनिक परिवहन प्रणालियों के विस्तार और प्रदूषण नियंत्रण से संबंधित था।
- निर्णय: सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि मेट्रो रेल और अन्य सार्वजनिक परिवहन प्रणालियाँ शहरों में प्रदूषण को कम करने के लिए एक प्रभावी उपाय हैं। कोर्ट ने इस परियोजना के लिए सरकार को मंजूरी दी और इसे प्रदूषण नियंत्रण में सहायक माना।
45. केरल माइनिंग केस (2009)
- मामला: यह मामला केरल राज्य में अवैध खनन गतिविधियों और उनके पर्यावरणीय प्रभाव से संबंधित था।
- निर्णय: सुप्रीम कोर्ट ने केरल में अवैध खनन गतिविधियों को अवैध घोषित किया और राज्य सरकार से इसे रोकने के लिए त्वरित कार्रवाई की मांग की। इस फैसले ने पर्यावरणीय नियमों और खनन के कानूनों को सख्त करने की दिशा में कदम बढ़ाए।
यहां कुछ और महत्वपूर्ण सुप्रीम कोर्ट के निर्णय दिए जा रहे हैं जिन्होंने भारतीय न्यायपालिका, संविधान और नागरिक अधिकारों को मजबूती प्रदान की है:
46. मैटर ऑफ एमसी.मेहता बनाम भारत सरकार (1987)
- मामला: यह मामला औद्योगिक प्रदूषण और पर्यावरण सुरक्षा से संबंधित था।
- निर्णय: सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि राज्य और सरकार का कर्तव्य है कि वे पर्यावरण की रक्षा करें और यदि कोई उद्योग पर्यावरण को नुकसान पहुँचाता है, तो उसे जिम्मेदार ठहराया जाएगा। इसके अलावा, कोर्ट ने “सामूहिक उपचार” के सिद्धांत को स्वीकार किया, जिसमें औद्योगिक प्रदूषण को रोकने के लिए समय सीमा तय की गई।
47. विवाह और तलाक (2001)
- मामला: इस मामले में विवाह और तलाक के अधिकारों पर विचार किया गया था, जिसमें एक व्यक्ति द्वारा अपनी पत्नी को तलाक देने की प्रक्रिया को चुनौती दी गई थी।
- निर्णय: सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि विवाह और तलाक दोनों पक्षों के लिए एक संवैधानिक अधिकार है, लेकिन इसे भारतीय समाज के धार्मिक और सांस्कृतिक संदर्भ में देखा जाएगा। कोर्ट ने महिलाओं के अधिकारों की सुरक्षा के लिए अतिरिक्त सुरक्षा की सिफारिश की।
48. नकली दवाइयों के खिलाफ निर्णय (2012)
- मामला: यह मामला भारतीय बाजार में नकली दवाइयों के फैलने से संबंधित था।
- निर्णय: सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि भारतीय दवाओं के बाजार में नकली दवाइयों की बिक्री को रोकने के लिए कड़ी कार्रवाई की जाए। कोर्ट ने सरकार से इन दवाइयों के उत्पादन और वितरण पर नकेल कसने के लिए ठोस कदम उठाने का आदेश दिया।
49. राजीव गांधी मामले में सीबीआई की कार्रवाई (1999)
- मामला: यह मामला राजीव गांधी की हत्या के बाद सीबीआई द्वारा किए गए जांचों से संबंधित था।
- निर्णय: सुप्रीम कोर्ट ने सीबीआई द्वारा किए गए जांचों को पुनः देखा और कुछ अपराधियों को दोषमुक्त करने का निर्णय दिया। यह निर्णय न्यायिक स्वतंत्रता और अभियोजन प्रक्रिया की निष्पक्षता का प्रतीक था।
50. कृषि और किसान के अधिकार (2015)
- मामला: इस मामले में भारतीय किसानों के अधिकारों और सरकारी नीतियों के तहत उन्हें मिलने वाली सहायता पर विचार किया गया था।
- निर्णय: सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि किसानों के अधिकारों का संरक्षण और कृषि से संबंधित समस्याओं का समाधान सरकार का कर्तव्य है। इसके साथ ही, कोर्ट ने कृषि भूमि के लिए उचित मुआवजे की सिफारिश की और कहा कि भूमि अधिग्रहण के दौरान किसानों के हितों का ध्यान रखा जाना चाहिए।
51. शाही इमाम का अधिकार (2016)
- मामला: इस मामले में शाही इमाम के धार्मिक अधिकारों और उसके कानूनी अधिकारों के उल्लंघन की याचिका दायर की गई थी।
- निर्णय: सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि किसी भी धार्मिक नेता के पास भी संविधान द्वारा दिए गए मौलिक अधिकार होते हैं और उन्हें स्वतंत्र रूप से अपने धर्म का पालन करने का अधिकार है, लेकिन यह अधिकार राज्य की नीतियों और कानूनी दायरे में होना चाहिए।
52. प्राकृतिक संसाधनों का वितरण (2012)
- मामला: यह मामला प्राकृतिक संसाधनों की बिक्री और उनके उपयोग में पारदर्शिता के बारे में था।
- निर्णय: सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि प्राकृतिक संसाधनों का वितरण पूरी पारदर्शिता के साथ किया जाना चाहिए और किसी भी प्रकार के भ्रष्टाचार या अनियमितताओं को रोकने के लिए कानूनों का पालन किया जाना चाहिए।
53. शराब की बिक्री पर प्रतिबंध (2017)
- मामला: इस मामले में राज्य सरकार द्वारा शराब की बिक्री पर प्रतिबंध लगाने की मांग की गई थी।
- निर्णय: सुप्रीम कोर्ट ने शराब की बिक्री पर नियंत्रण लगाने के लिए निर्देश दिए और कहा कि यह देश के स्वास्थ्य और सामाजिक कल्याण के लिए आवश्यक है। कोर्ट ने यह भी कहा कि शराब का अत्यधिक सेवन सार्वजनिक सुरक्षा के लिए खतरे का कारण बन सकता है।
54. दलितों के अधिकारों पर निर्णय (2018)
- मामला: इस मामले में अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के अधिकारों की रक्षा पर विचार किया गया था।
- निर्णय: सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अनुसूचित जाति और जनजाति के अधिकारों का उल्लंघन करने वालों को कड़ी सजा मिलनी चाहिए। कोर्ट ने यह भी कहा कि समाज में इन वर्गों के खिलाफ भेदभाव को समाप्त करने के लिए हर स्तर पर उपाय किए जाने चाहिए।
55. एडल्ट्री (व्यभिचार) पर निर्णय (2018)
- मामला: यह मामला भारतीय दंड संहिता (IPC) के तहत व्यभिचार से संबंधित था।
- निर्णय: सुप्रीम कोर्ट ने भारतीय दंड संहिता की धारा 497 को असंवैधानिक करार दिया और कहा कि महिला को व्यभिचार के मामले में आरोपी नहीं बनाया जा सकता। कोर्ट ने यह फैसला दिया कि व्यभिचार को अपराध के रूप में देखा जाना चाहिए, लेकिन इसे सिर्फ पुरुषों के खिलाफ नहीं लगाया जा सकता।
56. नागरिकता कानून पर निर्णय (2020)
- मामला: यह मामला नागरिकता संशोधन कानून (CAA) को लेकर था, जिसे सरकार ने 2019 में लागू किया था।
- निर्णय: सुप्रीम कोर्ट ने नागरिकता संशोधन कानून की संवैधानिक वैधता की जांच करने का आदेश दिया और यह कहा कि यह कानून धार्मिक आधार पर असमानता पैदा करता है। इस निर्णय ने नागरिकता और धर्मनिरपेक्षता के अधिकारों की रक्षा करने का संकेत दिया।
57. खगोलशास्त्र और विज्ञान में प्रगति (2009)
- मामला: यह मामला भारतीय अंतरिक्ष शोध संस्थान (ISRO) द्वारा किए गए कार्यों से संबंधित था।
- निर्णय: सुप्रीम कोर्ट ने ISRO द्वारा किए गए कार्यों को सराहा और कहा कि भारतीय वैज्ञानिक समुदाय ने विश्वभर में एक महत्वपूर्ण स्थान प्राप्त किया है। कोर्ट ने इस क्षेत्र में निवेश बढ़ाने और विज्ञान के क्षेत्र में प्रगति को बढ़ावा देने के लिए सरकारी नीति पर विचार करने की सिफारिश की।
यहां कुछ और सुप्रीम कोर्ट के महत्वपूर्ण निर्णयों का उल्लेख किया जा रहा है:
58. संविधान के तहत निजी सुरक्षा के अधिकार पर निर्णय (2013)
- मामला: इस मामले में, एक व्यक्ति ने अपनी सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए उच्च न्यायालय में याचिका दायर की थी।
- निर्णय: सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि प्रत्येक नागरिक को संविधान के तहत अपने जीवन और व्यक्तिगत सुरक्षा का अधिकार है। अदालत ने यह माना कि राज्य सरकार का कर्तव्य है कि वह नागरिकों को पर्याप्त सुरक्षा प्रदान करे।
59. शिक्षा के अधिकार पर निर्णय (2014)
- मामला: यह मामला 12वीं कक्षा के छात्रों द्वारा उनके स्कूल में शुल्क वृद्धि के खिलाफ दायर याचिका से संबंधित था।
- निर्णय: सुप्रीम कोर्ट ने शिक्षा के अधिकार को संविधान के तहत एक मौलिक अधिकार के रूप में स्वीकार किया। कोर्ट ने कहा कि सरकार को यह सुनिश्चित करना होगा कि छात्रों को गुणवत्तापूर्ण शिक्षा सस्ती दरों पर उपलब्ध हो।
60. भ्रष्टाचार पर निर्णय (2017)
- मामला: यह मामला सार्वजनिक जीवन में भ्रष्टाचार और सरकारी अधिकारियों के कर्तव्यों के उल्लंघन से संबंधित था।
- निर्णय: सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि भ्रष्टाचार से लड़ने के लिए आवश्यक है कि सरकार और न्यायपालिका दोनों मिलकर काम करें। कोर्ट ने सरकार को यह निर्देश दिया कि वह भ्रष्टाचार पर काबू पाने के लिए सख्त कदम उठाए।
61. न्यायिक पुनरीक्षण का अधिकार (2016)
- मामला: यह मामला न्यायिक पुनरीक्षण (judicial review) के अधिकार से संबंधित था, जिसमें एक संवैधानिक प्रश्न को लेकर याचिका दायर की गई थी।
- निर्णय: सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि न्यायपालिका के पास यह अधिकार है कि वह संसद और राज्य विधानसभाओं के पारित कानूनों की संवैधानिकता की जांच कर सके। इस निर्णय ने न्यायिक स्वतंत्रता को और मजबूत किया और संविधान के तहत न्यायिक समीक्षा की भूमिका को स्पष्ट किया।
62. अधिकारों के असंतुलन पर निर्णय (2012)
- मामला: इस मामले में एक राज्य ने एक प्राधिकृत अधिकारी को अधिकारों के वितरण में असंतुलन के कारण चुनौती दी थी।
- निर्णय: सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अधिकारों के वितरण में असंतुलन को संविधान के अनुरूप होना चाहिए, ताकि सभी नागरिकों के अधिकार सुरक्षित रहें। कोर्ट ने यह भी कहा कि राज्य को संविधान के प्रति अपनी जिम्मेदारी निभानी चाहिए।
63. नागरिकों के अधिकारों का संरक्षण (2015)
- मामला: यह मामला नागरिक अधिकारों के उल्लंघन से संबंधित था, जिसमें एक व्यक्ति ने पुलिस द्वारा उत्पीड़न के खिलाफ शिकायत दर्ज की थी।
- निर्णय: सुप्रीम कोर्ट ने नागरिकों के अधिकारों की रक्षा के लिए कड़े आदेश दिए और कहा कि पुलिस को अपनी शक्तियों का दुरुपयोग नहीं करना चाहिए। इस फैसले ने नागरिकों के अधिकारों के संरक्षण के लिए प्रभावी दिशा निर्देश दिए।
64. श्रमिकों के अधिकार पर निर्णय (2006)
- मामला: इस मामले में श्रमिकों के अधिकारों की सुरक्षा और उनके कामकाजी हालात पर विचार किया गया था।
- निर्णय: सुप्रीम कोर्ट ने श्रमिकों के अधिकारों को संवैधानिक रूप से सुरक्षित करने का निर्देश दिया। कोर्ट ने श्रमिकों के कामकाजी हालात सुधारने के लिए सरकार से ठोस उपाय करने का आदेश दिया।
65. मौलिक अधिकारों का विस्तार (2017)
- मामला: इस मामले में एक नागरिक ने मौलिक अधिकारों के उल्लंघन के संबंध में याचिका दायर की थी।
- निर्णय: सुप्रीम कोर्ट ने यह कहा कि मौलिक अधिकारों की सीमा केवल नागरिकों तक सीमित नहीं है, बल्कि यह प्रत्येक व्यक्ति पर लागू होते हैं, चाहे वह भारतीय नागरिक हो या विदेशी। इस निर्णय से भारतीय नागरिकों के मौलिक अधिकारों का दायरा विस्तृत हुआ।
66. राइट टू प्राइवेसी पर निर्णय (2017)
- मामला: यह मामला निजी जीवन और गोपनीयता के अधिकार पर था, जब सरकार ने नागरिकों की निजी जानकारी एकत्र करने के लिए एक योजना शुरू की थी।
- निर्णय: सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि राइट टू प्राइवेसी भारतीय संविधान के तहत मौलिक अधिकार है। यह निर्णय भारतीय नागरिकों के गोपनीयता अधिकार को मजबूत करने के लिए एक ऐतिहासिक कदम था।
67. प्राकृतिक आपदाओं में राहत के अधिकार पर निर्णय (2001)
- मामला: यह मामला प्राकृतिक आपदाओं से प्रभावित नागरिकों के लिए राहत कार्यों से संबंधित था।
- निर्णय: सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि सरकार का कर्तव्य है कि वह प्राकृतिक आपदाओं के दौरान प्रभावित नागरिकों को शीघ्र राहत प्रदान करे। इस फैसले में राज्य के कर्तव्यों की परिभाषा को स्पष्ट किया गया।
68. मौसम और पर्यावरणीय संरक्षण पर निर्णय (2015)
- मामला: यह मामला भारतीय सरकार द्वारा पर्यावरणीय संरक्षण और जलवायु परिवर्तन के लिए उठाए गए कदमों से संबंधित था।
- निर्णय: सुप्रीम कोर्ट ने सरकार से यह सुनिश्चित करने के लिए कहा कि पर्यावरणीय संरक्षण को सर्वोच्च प्राथमिकता दी जाए और जलवायु परिवर्तन के प्रभावों से निपटने के लिए ठोस योजनाएं बनाई जाएं।
69. बच्चों के अधिकारों का संरक्षण (2009)
- मामला: इस मामले में बच्चों के अधिकारों और उनके लिए उपयुक्त सुरक्षा व्यवस्था पर विचार किया गया था।
- निर्णय: सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि बच्चों को शिक्षा, सुरक्षा और विकास के अधिकारों के तहत पूरी तरह से संरक्षित किया जाना चाहिए। कोर्ट ने सरकार को बच्चों के लिए विशेष कानून बनाने की सिफारिश की।
70. धार्मिक स्वतंत्रता पर निर्णय (2004)
- मामला: यह मामला धार्मिक स्वतंत्रता और संबंधित अधिकारों से संबंधित था, जिसमें एक धार्मिक समुदाय ने अपनी धार्मिक परंपराओं के उल्लंघन की शिकायत की थी।
- निर्णय: सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि प्रत्येक व्यक्ति को अपनी धार्मिक विश्वासों और प्रथाओं को स्वतंत्र रूप से पालन करने का अधिकार है, बशर्ते वह सार्वजनिक सुरक्षा और सामूहिक शांति के खिलाफ न हो।
यहां कुछ और महत्वपूर्ण सुप्रीम कोर्ट के निर्णय दिए जा रहे हैं:
71. कश्मीर में पुनः राज्य के दर्जे पर निर्णय (2020)
- मामला: यह मामला जम्मू और कश्मीर राज्य के विशेष दर्जे को समाप्त करने के फैसले से संबंधित था, जिसे अनुच्छेद 370 के तहत संवैधानिक रूप से सुनिश्चित किया गया था।
- निर्णय: सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में दायर याचिकाओं की सुनवाई की और अनुच्छेद 370 को हटाने के संवैधानिक प्रावधानों पर विचार किया। अदालत ने सरकार के कदम को वैध बताया, हालांकि इस मामले पर विस्तृत विचार के लिए सुनवाई जारी रही।
72. धर्मनिरपेक्षता पर निर्णय (1994)
- मामला: इस मामले में, उच्चतम न्यायालय को यह विचार करना था कि धर्मनिरपेक्षता के सिद्धांत का संविधान में क्या अर्थ है।
- निर्णय: सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि धर्मनिरपेक्षता भारतीय संविधान का मूल आधार है और यह सुनिश्चित किया कि राज्य का कोई धर्म नहीं हो सकता है। इसे भारतीय लोकतंत्र और समाज की संरचना में एक महत्वपूर्ण स्तंभ के रूप में स्वीकार किया गया।
73. सशस्त्र बलों के अधिकार (1997)
- मामला: यह मामला भारतीय सशस्त्र बलों द्वारा नागरिकों पर किए गए अत्याचारों से संबंधित था।
- निर्णय: सुप्रीम कोर्ट ने सशस्त्र बलों के अधिकारों और उनके कार्यों की सीमा तय की। कोर्ट ने यह स्पष्ट किया कि सशस्त्र बलों को कानून के दायरे में रहकर ही कार्य करना चाहिए और नागरिक अधिकारों का उल्लंघन नहीं होना चाहिए।
74. मानवाधिकारों का संरक्षण (2016)
- मामला: इस मामले में मानवाधिकारों के उल्लंघन के खिलाफ दायर याचिकाएं थीं, जिनमें नागरिकों की निजी सुरक्षा और उनके अधिकारों का उल्लंघन किया गया था।
- निर्णय: सुप्रीम कोर्ट ने नागरिकों के मौलिक अधिकारों के संरक्षण की आवश्यकता पर बल दिया और कहा कि सरकार का कर्तव्य है कि वह अपने नागरिकों को बिना भेदभाव के सुरक्षा प्रदान करे।
75. बाल श्रम पर निर्णय (2012)
- मामला: यह मामला बाल श्रम और बच्चों के अधिकारों से संबंधित था, जिसमें एक बच्चा उच्चतम न्यायालय में बाल श्रम से मुक्त करने के लिए गया था।
- निर्णय: सुप्रीम कोर्ट ने भारत में बाल श्रम के खिलाफ कड़ी कार्रवाई करने का आदेश दिया। कोर्ट ने बच्चों के लिए शिक्षा, स्वास्थ्य, और रोजगार से संबंधित कानूनी सुरक्षा सुनिश्चित करने की आवश्यकता पर जोर दिया।
76. धारा 377 पर निर्णय (2018)
- मामला: यह मामला भारतीय दंड संहिता की धारा 377 से संबंधित था, जो समलैंगिक संबंधों को अपराध मानती थी।
- निर्णय: सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि समलैंगिक संबंधों को अपराध मानने वाली धारा 377 को असंवैधानिक करार दिया। इस फैसले ने समलैंगिकों के अधिकारों की रक्षा की और समानता के सिद्धांत को मजबूत किया।
77. विवाह की उम्र पर निर्णय (2017)
- मामला: इस मामले में विवाह की न्यूनतम आयु सीमा से संबंधित था, जिसमें महिलाओं के विवाह की उचित आयु तय करने के लिए याचिका दायर की गई थी।
- निर्णय: सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि विवाह के लिए न्यूनतम आयु सीमा को बढ़ाने की आवश्यकता है, ताकि बाल विवाह को रोका जा सके और महिला अधिकारों की रक्षा की जा सके। अदालत ने सरकारी नीतियों को इस दिशा में सुधारने का आदेश दिया।
78. निर्वाचन आयोग के अधिकार पर निर्णय (2010)
- मामला: इस मामले में चुनाव प्रक्रिया और निर्वाचन आयोग की शक्तियों पर विचार किया गया था।
- निर्णय: सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि चुनाव आयोग को स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव कराने का अधिकार है। चुनावी प्रक्रिया में किसी भी प्रकार के हस्तक्षेप को असंवैधानिक करार दिया गया।
79. लिव-इन रिलेशनशिप पर निर्णय (2018)
- मामला: इस मामले में लिव-इन रिलेशनशिप की वैधता और उससे जुड़ी कानूनी समस्याओं पर विचार किया गया था।
- निर्णय: सुप्रीम कोर्ट ने लिव-इन रिलेशनशिप को संवैधानिक रूप से मान्यता दी और कहा कि ऐसे रिश्तों में रहने वाले व्यक्तियों के पास समान अधिकार हैं, जैसे कि शादीशुदा जोड़ों को होते हैं। कोर्ट ने कहा कि लिव-इन रिलेशनशिप को एक सामाजिक वास्तविकता के रूप में स्वीकार किया।
80. काले धन और भ्रष्टाचार पर निर्णय (2014)
- मामला: इस मामले में काले धन के खिलाफ सरकार की नीतियों पर विचार किया गया था, जिसमें सरकार द्वारा विदेशों से काले धन की वापसी के लिए कदम उठाने के आदेश दिए गए थे।
- निर्णय: सुप्रीम कोर्ट ने सरकार से कहा कि वह काले धन की वापसी और भ्रष्टाचार को रोकने के लिए ठोस कदम उठाए। कोर्ट ने यह भी कहा कि भ्रष्टाचार के खिलाफ न्यायिक प्रक्रिया में तेजी लाई जानी चाहिए।
81. समान नागरिक संहिता पर निर्णय (2015)
- मामला: यह मामला भारत में समान नागरिक संहिता (Uniform Civil Code) की आवश्यकता पर था।
- निर्णय: सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि समान नागरिक संहिता भारत के लिए आदर्श है और इसे लागू करने के लिए सरकार को कदम उठाने चाहिए, ताकि सभी नागरिकों के लिए समान कानून लागू हो सके। हालांकि, कोर्ट ने यह भी कहा कि यह एक संवैधानिक मुद्दा है जिसे संसद द्वारा तय किया जाना चाहिए।
82. राष्ट्रव्यापी तालाबंदी के दौरान मजदूरों के अधिकार पर निर्णय (2020)
- मामला: कोविड-19 महामारी के दौरान मजदूरों के अधिकारों का उल्लंघन और उन्हें राहत प्रदान करने के मुद्दे पर एक याचिका दायर की गई थी।
- निर्णय: सुप्रीम कोर्ट ने सरकार को निर्देश दिया कि मजदूरों के लिए उचित सुविधा, रोजगार सुरक्षा, और राहत उपायों की व्यवस्था की जाए। कोर्ट ने यह सुनिश्चित करने के लिए कदम उठाने का आदेश दिया कि किसी भी मजदूर को संकट के समय बिना सहारा के न छोड़ा जाए।
83. संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता पर निर्णय (2020)
- मामला: इस मामले में, कोविड-19 के दौरान लोगों की स्वतंत्रता और उनके जीवन के अधिकारों का उल्लंघन करने पर याचिका दायर की गई थी।
- निर्णय: सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अनुच्छेद 21 के तहत जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता के अधिकारों का उल्लंघन नहीं किया जा सकता, और यह सुनिश्चित किया कि कोविड-19 महामारी के दौरान नागरिकों को पर्याप्त सुरक्षा और जीवन यापन की सुविधा मिले।
यहां कुछ और महत्वपूर्ण सुप्रीम कोर्ट के निर्णयों का उल्लेख किया जा रहा है:
84. पार्किंग शुल्क पर निर्णय (2001)
- मामला: यह मामला पार्किंग शुल्क और नागरिकों की स्वतंत्रता के उल्लंघन से संबंधित था, जिसमें कुछ व्यापारियों ने पार्किंग शुल्क वसूलने पर आपत्ति जताई थी।
- निर्णय: सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि जब कोई सार्वजनिक सुविधा दी जाती है, तो नागरिकों से उचित शुल्क लिया जा सकता है, बशर्ते कि वह शुल्क उचित और तार्किक हो। इस फैसले में नागरिकों के अधिकार और सरकारी नीतियों का संतुलन स्थापित किया गया।
85. समानता का अधिकार (2008)
- मामला: इस मामले में समानता के अधिकार की व्याख्या की गई थी, जिसमें एक व्यक्ति ने अपनी जाति के कारण भेदभाव का आरोप लगाया था।
- निर्णय: सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि भारतीय संविधान के तहत सभी नागरिकों को समानता का अधिकार प्राप्त है, और जाति, धर्म या लिंग के आधार पर भेदभाव नहीं किया जा सकता। कोर्ट ने भेदभाव के खिलाफ ठोस कदम उठाने का आदेश दिया।
86. आर्थिक अधिकारों का संरक्षण (2009)
- मामला: इस मामले में सरकारी नीतियों के तहत नागरिकों के आर्थिक अधिकारों के उल्लंघन की जांच की गई थी।
- निर्णय: सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि संविधान के तहत नागरिकों को अपने जीवनयापन के लिए उचित और पर्याप्त संसाधनों का अधिकार है। कोर्ट ने यह आदेश दिया कि सरकार को सुनिश्चित करना होगा कि गरीब और जरूरतमंद लोगों के अधिकारों की रक्षा की जाए।
87. सामाजिक न्याय पर निर्णय (2016)
- मामला: यह मामला सामाजिक न्याय और आरक्षण से संबंधित था, जिसमें एक व्यक्ति ने सरकारी आरक्षण नीति को चुनौती दी थी।
- निर्णय: सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि सरकारी आरक्षण नीति भारतीय संविधान के अनुच्छेद 15 और 16 के तहत उचित है, और यह सुनिश्चित करता है कि समाज के कमजोर वर्गों को सामाजिक और आर्थिक अवसर मिलें। अदालत ने सामाजिक न्याय की आवश्यकता को स्वीकार किया और इसे संविधान के अनुरूप माना।
88. सामाजिक सुरक्षा और पेंशन योजना पर निर्णय (2015)
- मामला: यह मामला सरकारी कर्मचारियों के लिए पेंशन योजना और अन्य सामाजिक सुरक्षा सुविधाओं से संबंधित था।
- निर्णय: सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि पेंशन और सामाजिक सुरक्षा सुविधाएं कर्मचारियों के अधिकार हैं और सरकार को इनका संरक्षण करना चाहिए। कोर्ट ने कर्मचारियों के हितों की रक्षा के लिए आदेश दिए और पेंशन योजनाओं में सुधार की आवश्यकता पर बल दिया।
89. शादीशुदा महिलाओं के अधिकार पर निर्णय (2007)
- मामला: यह मामला एक शादीशुदा महिला के संपत्ति अधिकारों से संबंधित था, जिसमें उसे पति की संपत्ति पर हक न मिलने की शिकायत की गई थी।
- निर्णय: सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि महिलाओं को शादी के बाद अपनी संपत्ति और संपत्ति पर समान अधिकार होना चाहिए। कोर्ट ने महिलाओं के अधिकारों को संविधान के तहत संप्रेषित करने का आदेश दिया और उनके संपत्ति अधिकारों का संरक्षण सुनिश्चित किया।
90. स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों के अधिकार पर निर्णय (2003)
- मामला: इस मामले में स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों को दिए जाने वाले सम्मान और भत्तों से संबंधित था।
- निर्णय: सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों को सम्मान और भत्ते देना भारतीय सरकार का कर्तव्य है। कोर्ट ने सरकार को यह निर्देश दिया कि स्वतंत्रता सेनानियों के योगदान को स्वीकार किया जाए और उन्हें उचित सम्मान दिया जाए।
91. संविधान के अनुच्छेद 14 के तहत समानता का अधिकार (2020)
- मामला: इस मामले में अनुच्छेद 14 के तहत समानता के अधिकार का उल्लंघन करने का आरोप था, जिसमें एक समुदाय ने सरकारी नीति को चुनौती दी थी।
- निर्णय: सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि समानता का अधिकार संविधान का मूल अधिकार है और यह सुनिश्चित करता है कि सभी नागरिकों को बिना भेदभाव के समान अवसर मिलें। अदालत ने भेदभावपूर्ण नीतियों को असंवैधानिक करार दिया।
92. राजनीतिक दलों पर निर्णय (2006)
- मामला: यह मामला राजनीतिक दलों के चुनावी खर्चों और उनके वित्तीय लेन-देन से संबंधित था।
- निर्णय: सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि राजनीतिक दलों को अपने चुनावी खर्चों का हिसाब रखना होगा और यह सुनिश्चित करना होगा कि उनका वित्तीय लेन-देन पारदर्शी हो। कोर्ट ने चुनाव आयोग से यह सुनिश्चित करने का आदेश दिया कि सभी दलों के चुनावी खर्चों पर निगरानी रखी जाए।
93. सामूहिक हिंसा पर निर्णय (2002)
- मामला: यह मामला सामूहिक हिंसा और धार्मिक आधार पर हिंसा के खिलाफ था।
- निर्णय: सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि सामूहिक हिंसा में शामिल व्यक्तियों और समूहों के खिलाफ सख्त कार्रवाई की जानी चाहिए। कोर्ट ने सरकार से कहा कि वह हिंसा रोकने के लिए प्रभावी कदम उठाए और हिंसा के शिकार लोगों को न्याय दिलाने के लिए ठोस उपाय करे।
94. स्वास्थ्य के अधिकार पर निर्णय (2018)
- मामला: इस मामले में नागरिकों के स्वास्थ्य अधिकार के उल्लंघन के खिलाफ याचिका दायर की गई थी।
- निर्णय: सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि प्रत्येक नागरिक को पर्याप्त और गुणवत्तापूर्ण स्वास्थ्य सेवाएं प्राप्त करने का अधिकार है। कोर्ट ने सरकार से कहा कि वह स्वास्थ्य सुविधाओं को सुनिश्चित करने के लिए प्रभावी नीतियां तैयार करे।
95. प्राकृतिक संसाधनों पर निर्णय (2014)
- मामला: यह मामला प्राकृतिक संसाधनों के सार्वजनिक उपयोग और उनके संरक्षण से संबंधित था।
- निर्णय: सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि प्राकृतिक संसाधनों का संरक्षण और उनके उपयोग की जिम्मेदारी सरकार और नागरिकों दोनों की है। कोर्ट ने सरकार को निर्देश दिया कि वह प्राकृतिक संसाधनों का विवेकपूर्ण उपयोग और संरक्षण सुनिश्चित करे।
यहां कुछ और महत्वपूर्ण सुप्रीम कोर्ट के निर्णय दिए गए हैं:
96. न्यायिक सक्रियता पर निर्णय (2006)
- मामला: यह मामला न्यायिक सक्रियता और अदालतों की भूमिका से संबंधित था, जब न्यायालय से यह पूछा गया कि क्या उसे संसद और सरकार के कार्यों में हस्तक्षेप करना चाहिए।
- निर्णय: सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अदालतों का कर्तव्य है कि वे संवैधानिक प्रावधानों और नागरिकों के अधिकारों की रक्षा करें, चाहे वह सरकार या संसद द्वारा किए गए निर्णयों के खिलाफ क्यों न हो। न्यायालय ने यह भी कहा कि न्यायिक सक्रियता संवैधानिक मूल्यों की रक्षा करने के लिए आवश्यक है।
97. वोटिंग अधिकार पर निर्णय (2013)
- मामला: यह मामला मतदाता के अधिकारों से संबंधित था, जिसमें कुछ व्यक्तियों ने यह दावा किया था कि उन्हें चुनावों में भाग लेने का अधिकार नहीं मिल रहा था।
- निर्णय: सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि भारत में हर नागरिक को अपने वोट का अधिकार है और इसे उचित तरीके से सुरक्षित किया जाना चाहिए। कोर्ट ने चुनाव आयोग से यह सुनिश्चित करने के लिए कहा कि सभी नागरिकों को मतदान का अधिकार मिले और उन्हें भेदभाव से बचाया जाए।
98. काला धन और बैंक खाता पर निर्णय (2016)
- मामला: यह मामला काले धन को रोकने के लिए बैंकों और वित्तीय संस्थाओं द्वारा किए गए उपायों से संबंधित था।
- निर्णय: सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि सरकार को काले धन के खिलाफ ठोस कदम उठाने चाहिए और यह सुनिश्चित करना चाहिए कि काले धन के रूप में बचत की जाने वाली राशि को वापस लाया जाए। कोर्ट ने बैंकों से भी कड़े नियम लागू करने का आदेश दिया और नागरिकों से अपील की कि वे अपने वित्तीय लेन-देन को पारदर्शी बनाएं।
99. आधार कार्ड पर निर्णय (2018)
- मामला: यह मामला आधार कार्ड के अनिवार्य उपयोग से संबंधित था, जिसमें लोगों ने यह सवाल उठाया था कि क्या यह संविधान के तहत नागरिकों की निजता का उल्लंघन करता है।
- निर्णय: सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि आधार कार्ड का उपयोग केवल उन क्षेत्रों तक सीमित किया जा सकता है जहां यह आवश्यक है, जैसे कि सरकारी योजनाओं में लाभ प्राप्त करने के लिए। हालांकि, कोर्ट ने यह भी कहा कि नागरिकों की निजता का अधिकार भी संवैधानिक रूप से संरक्षित है, और यह अधिकार आधार डेटा के संग्रहण और उपयोग के मामले में बनाए रखा जाएगा।
100. समाजवाद पर निर्णय (1994)
- मामला: यह मामला संविधान के संविधान संशोधन से संबंधित था, जिसमें भारतीय समाजवाद के सिद्धांत को संरक्षित करने की बात की गई थी।
- निर्णय: सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि समाजवाद भारतीय संविधान का मूल सिद्धांत है और इसे संरक्षित रखा जाएगा। कोर्ट ने यह सुनिश्चित किया कि भारतीय समाज के सभी वर्गों को समान अवसर मिले और संविधान के सिद्धांतों को लागू किया जाए।
101. नाबालिग अपराधियों पर निर्णय (2015)
- मामला: इस मामले में नाबालिगों द्वारा किए गए अपराधों और उनके लिए दंड के अधिकार पर विचार किया गया था।
- निर्णय: सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि नाबालिग अपराधियों के मामले में पुनर्वास और सुधार पर अधिक ध्यान केंद्रित किया जाना चाहिए। हालांकि, कोर्ट ने यह भी कहा कि कुछ गंभीर अपराधों के लिए विशेष नियम लागू हो सकते हैं, जिनमें नाबालिगों को सजा दी जा सकती है, लेकिन यह न्यायिक प्रक्रिया के अनुसार होना चाहिए।
102. महिला अधिकारों पर निर्णय (2019)
- मामला: इस मामले में महिलाओं के अधिकारों, विशेष रूप से उनके शारीरिक, मानसिक और सामाजिक अधिकारों से संबंधित कानूनी सवाल थे।
- निर्णय: सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि महिलाओं को समान अधिकार मिलने चाहिए, और किसी भी रूप में उनका शोषण नहीं किया जा सकता। कोर्ट ने महिलाओं के खिलाफ हिंसा, उत्पीड़न, और भेदभाव को असंवैधानिक करार दिया और सरकार को आदेश दिया कि महिला अधिकारों के संरक्षण के लिए कड़े कानून बनाएं।
103. राजनीतिक दलों की चुनावी घोषणाओं पर निर्णय (2020)
- मामला: यह मामला राजनीतिक दलों द्वारा चुनाव प्रचार में किए गए वादों और घोषणाओं से संबंधित था।
- निर्णय: सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि राजनीतिक दलों को अपने चुनावी वादों की जिम्मेदारी लेनी चाहिए और जनता से किए गए वादों को पूरा करना चाहिए। कोर्ट ने चुनावी घोषणाओं में पारदर्शिता और जिम्मेदारी की आवश्यकता को स्वीकार किया और चुनाव आयोग को इस दिशा में कार्रवाई करने का आदेश दिया।
104. लिव-इन रिलेशनशिप के अधिकार पर निर्णय (2015)
- मामला: यह मामला लिव-इन रिलेशनशिप के अधिकार और उसे कानूनी तौर पर स्वीकार करने से संबंधित था।
- निर्णय: सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि लिव-इन रिलेशनशिप को कानूनी रूप से मान्यता दी जानी चाहिए, और इससे जुड़े व्यक्तियों को उसी तरह के अधिकार और सुरक्षा मिलनी चाहिए जैसे शादीशुदा जोड़ों को मिलती है। कोर्ट ने यह कहा कि समाज में बदलाव के साथ यह एक वैध सामाजिक संबंध बन चुका है।
105. जमानत और सजा पर निर्णय (2017)
- मामला: यह मामला जमानत और सजा के प्रावधानों से संबंधित था, जिसमें आरोपित व्यक्ति के अधिकारों और न्यायिक प्रक्रिया का पालन सुनिश्चित करने के लिए याचिका दायर की गई थी।
- निर्णय: सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि जमानत एक बुनियादी अधिकार है और इसे लागू करते समय अदालत को न्यायिक विवेक का इस्तेमाल करना चाहिए। अदालत ने यह भी कहा कि सजा देने से पहले अपराधी की परिस्थितियों और अपराध की गंभीरता का ध्यान रखना चाहिए।
106. स्वच्छता और पर्यावरण संरक्षण पर निर्णय (2015)
- मामला: इस मामले में पर्यावरण संरक्षण और स्वच्छता से संबंधित कानूनी प्रावधानों पर विचार किया गया था।
- निर्णय: सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि प्रदूषण और पर्यावरणीय संकट से निपटने के लिए राज्य और नागरिकों दोनों को जिम्मेदार ठहराया गया। कोर्ट ने सरकार से कहा कि वह प्रदूषण की रोकथाम के लिए सख्त नियम और योजनाएं लागू करे।
इन फैसलों ने भारतीय न्याय व्यवस्था की निष्पक्षता और संविधान की सर्वोच्चता को प्रमाणित किया है। सुप्रीम कोर्ट ने अपने निर्णयों के माध्यम से नागरिकों के अधिकारों और स्वतंत्रताओं की रक्षा की है और समाज के विभिन्न पहलुओं पर सकारात्मक प्रभाव डाला है।