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भारत के ऐतिहासिक कोडीन (Codeine) निर्णय: Hira Singh बनाम भारत संघ एवं E. Micheal Raj बनाम नारकोटिक कंट्रोल ब्यूरो

भारत के ऐतिहासिक कोडीन (Codeine) निर्णय: Hira Singh बनाम भारत संघ एवं E. Micheal Raj बनाम नारकोटिक कंट्रोल ब्यूरो


प्रस्तावना

भारत में नशीले पदार्थों से संबंधित अपराधों (Narcotic Offences) को नियंत्रित करने हेतु 1985 में “मादक द्रव्य एवं मन:प्रभावी पदार्थ (NDPS) अधिनियम” लागू किया गया था। यह अधिनियम अत्यंत कठोर प्रावधानों वाला कानून है, जिसके तहत न केवल मादक पदार्थों का अवैध उत्पादन, बिक्री, परिवहन और उपभोग अपराध माने जाते हैं, बल्कि इनके लिए सख्त दंड का भी प्रावधान है।
इसी अधिनियम के तहत वर्षों से यह महत्वपूर्ण विवाद रहा है कि जब किसी मिश्रित पदार्थ (mixture) में नशीले तत्व (जैसे कोडीन, हेरोइन, मॉर्फिन आदि) पाए जाते हैं, तो “कुल मात्रा” को आधार माना जाए या “शुद्ध नशीले तत्व” की मात्रा को।

इसी प्रश्न पर भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने दो ऐतिहासिक निर्णय दिए —
(1) E. Micheal Raj v. Intelligence Officer, NCB (2008) और
(2) Hira Singh v. Union of India (2020),
जिन्होंने भारतीय न्यायशास्त्र में “कोडीन मिश्रण” से संबंधित कानून की दिशा ही बदल दी।


E. Micheal Raj v. Intelligence Officer, NCB (2008): निर्णय की पृष्ठभूमि

E. Micheal Raj केस (2008) की उत्पत्ति तब हुई जब अभियुक्त के पास से हेरोइन युक्त मिश्रण (Heroin mixture) बरामद हुआ। जांच एजेंसियों ने यह माना कि बरामद कुल मिश्रण का वजन “व्यावसायिक मात्रा” (Commercial Quantity) के बराबर है, इसलिए कठोर सजा दी जानी चाहिए।
परंतु आरोपी का तर्क था कि मिश्रण में शुद्ध हेरोइन की मात्रा बहुत कम थी, इसलिए “कुल वजन” नहीं बल्कि शुद्ध नशीले पदार्थ की मात्रा के आधार पर सजा निर्धारित की जानी चाहिए।


E. Micheal Raj केस का मुख्य प्रश्न

प्रश्न यह था —

जब कोई नशीला पदार्थ किसी अन्य गैर-नशीले पदार्थ (neutral substance) के साथ मिला हुआ पाया जाता है, तो सजा निर्धारित करते समय क्या “कुल मिश्रण की मात्रा” देखी जाएगी या “शुद्ध नशीले तत्व” की मात्रा?


सुप्रीम कोर्ट का निर्णय (2008)

सुप्रीम कोर्ट ने अभियुक्त के पक्ष में निर्णय देते हुए कहा:

“जहाँ मादक पदार्थ किसी मिश्रण के रूप में पाया जाता है, वहाँ सजा तय करने के लिए केवल उस मिश्रण में शुद्ध नशीले पदार्थ की मात्रा को ही ध्यान में रखा जाएगा, न कि पूरे मिश्रण का वजन।”

इस निर्णय ने एनडीपीएस अधिनियम की व्याख्या को पूरी तरह बदल दिया।
इसका व्यावहारिक प्रभाव यह हुआ कि बहुत से अभियुक्त, जिनके पास नशीले तत्व की मात्रा कम थी, गंभीर अपराधों से राहत पाने लगे।


E. Micheal Raj निर्णय की आलोचना

हालांकि यह निर्णय “न्यायसंगत” प्रतीत हुआ, परंतु जांच एजेंसियों और सरकार ने इसे “कानून की भावना के विपरीत” बताया।
सरकार का तर्क था कि:

  • NDPS अधिनियम का उद्देश्य समाज को नशीली दवाओं के दुरुपयोग से बचाना है।
  • यदि केवल शुद्ध नशीले तत्व का वजन देखा जाएगा, तो अपराधियों को तकनीकी आधार पर राहत मिल जाएगी।
  • मिश्रण में नशीला पदार्थ बहुत कम होने पर भी उसका प्रभाव और खतरा बना रहता है।

इस प्रकार, यह विवाद वर्षों तक चलता रहा — कुल मिश्रण बनाम शुद्ध मात्रा


Hira Singh v. Union of India (2020): विवाद का समाधान

लगभग 12 वर्ष बाद, सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ (Constitution Bench) ने इस विवाद को सुलझाने के लिए Hira Singh v. Union of India (2020) में निर्णय सुनाया।
यह निर्णय NDPS कानून के इतिहास में “टर्निंग पॉइंट” माना जाता है।


Hira Singh केस के तथ्य

इस मामले में आरोपी हीरा सिंह पर NDPS अधिनियम की धारा 21 और 22 के तहत अपराध का आरोप था।
उसके पास से कोडीन युक्त सिरप (Codeine Syrup) और अन्य मिश्रण बरामद हुए थे।
ट्रायल कोर्ट ने उसे दोषी ठहराया, लेकिन आरोपी ने अपील में यह तर्क दिया कि मिश्रण में शुद्ध नशीला पदार्थ (कोडीन) बहुत कम मात्रा में था। इसलिए सजा “कम मात्रा” के अनुसार दी जानी चाहिए।


मुख्य प्रश्न

क्या NDPS अधिनियम में “छोटी, मध्यवर्ती और व्यावसायिक मात्रा” निर्धारित करते समय मिश्रण की कुल मात्रा देखी जाएगी या शुद्ध नशीले तत्व की मात्रा?


सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ का निर्णय (2020)

सुप्रीम कोर्ट ने E. Micheal Raj के फैसले को पलटते हुए कहा कि:

“जब कोई नशीला पदार्थ किसी मिश्रण या समाधान के रूप में पाया जाता है, तो NDPS अधिनियम के उद्देश्यों को देखते हुए पूरे मिश्रण का वजन ध्यान में रखा जाएगा — न कि केवल शुद्ध नशीले तत्व का।”


निर्णय के मुख्य बिंदु

  1. NDPS अधिनियम की धारा 21 और नोटिफिकेशन 2001 की संयुक्त व्याख्या से स्पष्ट है कि “कुल मिश्रण” को ही सजा निर्धारण का आधार माना जाएगा।
  2. यदि “शुद्ध मात्रा” का सिद्धांत अपनाया गया, तो अपराधी तकनीकी रूप से बच निकलेंगे।
  3. नशीले पदार्थों का मिश्रण भी समान रूप से हानिकारक होता है, क्योंकि इसका प्रयोग अवैध व्यापार और दुरुपयोग में होता है।
  4. अधिनियम का उद्देश्य “नशीले पदार्थों की पूरी श्रृंखला” पर नियंत्रण है — चाहे शुद्ध हो या मिश्रित।

Hira Singh निर्णय का प्रभाव

यह निर्णय NDPS कानून की व्याख्या में क्रांतिकारी बदलाव लेकर आया।
अब कोर्ट यह नहीं देखेगा कि कोडीन, हेरोइन या मॉर्फिन कितने प्रतिशत है — बल्कि यह देखेगा कि कुल बरामद वजन कितना है
इसका प्रभाव कई लंबित मामलों पर पड़ा, जहाँ अभियुक्तों को पहले “शुद्ध मात्रा” के आधार पर राहत मिल रही थी।


Codeine आधारित दवाओं पर प्रभाव

भारत में कोडीन युक्त दवाएँ जैसे Corex, Phensedyl, Codokuff आदि सामान्य रूप से खांसी की दवाओं में प्रयुक्त होती हैं।
लेकिन इनका दुरुपयोग (Abuse) व्यापक रूप से होता है, खासकर युवा वर्ग में।
Hira Singh निर्णय के बाद अब यदि किसी व्यक्ति के पास से कोडीन युक्त सिरप की “व्यावसायिक मात्रा” (उदाहरणतः 1 लीटर से अधिक) बरामद होती है, तो NDPS की कठोर धाराएँ लागू होंगी, चाहे शुद्ध कोडीन की मात्रा सीमित ही क्यों न हो।


कानूनी विश्लेषण: मिश्रण की अवधारणा

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि NDPS अधिनियम का उद्देश्य “नशीले पदार्थों का पूर्ण नियंत्रण” है, न कि केवल “शुद्ध रासायनिक तत्वों” का।
इसलिए, जब कोई व्यक्ति कोडीन या हेरोइन को अन्य पदार्थों में मिलाकर बेचता या रखता है, तो उसका अपराध समान रूप से गंभीर है।

यह व्याख्या “Doctrine of Purposive Interpretation” पर आधारित है —
अर्थात्, कानून की व्याख्या उसके उद्देश्य (Purpose) के अनुसार की जानी चाहिए, न कि केवल शब्दशः (Literal) अर्थ में।


E. Micheal Raj बनाम Hira Singh: तुलनात्मक अध्ययन

बिंदु E. Micheal Raj (2008) Hira Singh (2020)
आधार शुद्ध नशीले पदार्थ की मात्रा कुल मिश्रण की मात्रा
अधिकारियों पर प्रभाव अभियोजन को साक्ष्य साबित करने में कठिनाई अभियोजन को बल मिला
अभियुक्त के लिए परिणाम राहत की संभावना कठोर दंड की संभावना
कानून की व्याख्या शाब्दिक (Literal) उद्देश्यपरक (Purposive)
NDPS अधिनियम की भावना आंशिक रूप से कमजोर पूर्ण रूप से सुदृढ़

न्यायिक नीति (Judicial Policy) का दृष्टिकोण

सुप्रीम कोर्ट का यह रुख स्पष्ट संकेत देता है कि NDPS मामलों में न्यायपालिका अब “Zero Tolerance” की नीति अपना रही है।
साथ ही, कोर्ट ने यह भी कहा कि प्रत्येक मामले में वैज्ञानिक विश्लेषण रिपोर्ट (Forensic Report) को अवश्य देखा जाए, ताकि यह तय हो सके कि बरामद पदार्थ वास्तव में NDPS अधिनियम के तहत प्रतिबंधित श्रेणी में आता है या नहीं।


निष्कर्ष

Hira Singh और E. Micheal Raj के ये दो निर्णय भारतीय न्यायपालिका के लिए “Codeine Jurisprudence” के दो स्तंभ हैं।
जहाँ E. Micheal Raj ने अभियुक्तों को राहत देने वाली व्याख्या की, वहीं Hira Singh ने NDPS अधिनियम की कठोरता और उद्देश्य को पुनर्स्थापित किया।

अब भारत में NDPS मामलों में सजा निर्धारण के लिए “कुल मिश्रण” को ही निर्णायक आधार माना जाता है।
यह न केवल कानून की सख्ती को बनाए रखता है, बल्कि समाज में नशीले पदार्थों के विरुद्ध सरकार की नीति को भी सशक्त बनाता है।


अंतिम टिप्पणी

भारत में नशे का बढ़ता दायरा समाज के स्वास्थ्य, युवा वर्ग और कानून-व्यवस्था के लिए चुनौती बन चुका है।
सुप्रीम कोर्ट के ये निर्णय केवल कानूनी दृष्टिकोण नहीं, बल्कि सामाजिक चेतावनी भी हैं —
कि “मादक द्रव्यों से कोई समझौता नहीं।”
Hira Singh का निर्णय यह सुनिश्चित करता है कि कानून की पकड़ से कोई अपराधी तकनीकी बहाने से न बच सके, और न्याय का उद्देश्य — समाज को नशे के जाल से मुक्त करना — पूरी तरह साकार हो सके।