भारतीय संविधान में “नैतिकता” – क्या यह एक कानूनी दायित्व है?
भारतीय संविधान न केवल एक कानूनी दस्तावेज है, बल्कि यह सामाजिक मूल्यों, नैतिक आदर्शों और राष्ट्रीय दृष्टिकोण का भी परिचायक है। संविधान में कई बार “नैतिकता” (Morality) शब्द का उल्लेख हुआ है, विशेषकर अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता, धार्मिक स्वतंत्रता और मूल कर्तव्यों के संदर्भ में। यह लेख इस प्रश्न की विवेचना करता है कि – क्या नैतिकता भारतीय संविधान में एक कानूनी दायित्व है?
1. नैतिकता की अवधारणा (Concept of Morality)
नैतिकता का तात्पर्य ऐसे मूल्यों और सिद्धांतों से है जो समाज में अच्छा या बुरा, उचित या अनुचित तय करते हैं। ये मानक समाज की सांस्कृतिक, धार्मिक और ऐतिहासिक धारणाओं पर आधारित होते हैं।
2. भारतीय संविधान में नैतिकता का उल्लेख
भारतीय संविधान में “नैतिकता” (Morality) शब्द निम्नलिखित संदर्भों में आता है:
(क) अनुच्छेद 19(2) – अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर प्रतिबंध
राज्य, सार्वजनिक व्यवस्था, शालीनता या नैतिकता, भारत की संप्रभुता और अखंडता के हित में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर युक्तियुक्त प्रतिबंध लगा सकता है।
(ख) अनुच्छेद 25(1) – धार्मिक स्वतंत्रता
यह स्वतंत्रता सार्वजनिक व्यवस्था, नैतिकता और स्वास्थ्य के अधीन है।
(ग) अनुच्छेद 26 – धार्मिक संप्रदायों के अधिकार
धार्मिक संस्थाओं के प्रबंधन के अधिकार भी नैतिकता और कानून के अधीन हैं।
3. नैतिकता: कानूनी दायित्व या सामाजिक मूल्य?
❖ कानूनी दृष्टिकोण से:
- संविधान में नैतिकता को एक नियमित करने वाले तत्व (Regulatory Factor) के रूप में प्रयोग किया गया है।
- यह राज्य को यह शक्ति देता है कि वह सार्वजनिक नैतिकता के आधार पर कुछ गतिविधियों को प्रतिबंधित या विनियमित कर सके।
- हालाँकि, यह सीधे किसी व्यक्ति पर कानूनी दायित्व नहीं डालता, बल्कि राज्य की शक्तियों को सीमित और निर्देशित करता है।
❖ न्यायिक दृष्टिकोण से:
- सुप्रीम कोर्ट ने कई मामलों में स्पष्ट किया है कि “नैतिकता” का तात्पर्य “संवैधानिक नैतिकता (Constitutional Morality)” से भी है, जो समानता, गरिमा और व्यक्ति की स्वतंत्रता जैसे मूल्यों पर आधारित होती है।
- उदाहरण के लिए, नवतेज सिंह जौहर बनाम भारत संघ (2018) में धारा 377 को रद्द करते हुए कोर्ट ने स्पष्ट किया कि व्यक्तिगत नैतिकता नहीं, बल्कि संवैधानिक नैतिकता ही निर्णायक होनी चाहिए।
4. संवैधानिक नैतिकता बनाम सामाजिक नैतिकता
पहलू | संवैधानिक नैतिकता | सामाजिक नैतिकता |
---|---|---|
आधार | संविधान के सिद्धांत | समाज की परंपराएँ |
महत्व | विधिक रूप से लागू | सामाजिक व्यवहार पर प्रभाव |
परिवर्तनशीलता | स्थिर और न्यायसंगत | समय व स्थान के अनुसार बदलती |
5. क्या नैतिकता का उल्लंघन दंडनीय है?
- प्रत्यक्ष रूप से नहीं। नैतिकता स्वयं कोई अपराध नहीं है जब तक कि वह किसी कानून का उल्लंघन न करे।
- उदाहरणतः, यदि कोई कार्य नैतिक रूप से अनुचित हो लेकिन कानूनन वैध हो, तो उस पर दंड नहीं लगाया जा सकता।
6. निष्कर्ष (Conclusion)
भारतीय संविधान में नैतिकता एक नियामक मानदंड के रूप में मौजूद है, जो कि राज्य की शक्ति और व्यक्तियों की स्वतंत्रता के बीच संतुलन बनाने का कार्य करता है। यह स्वयं कोई स्वतंत्र कानूनी दायित्व नहीं है, लेकिन इसका उल्लंघन तब महत्वपूर्ण हो सकता है जब वह सार्वजनिक व्यवस्था, शालीनता, या संवैधानिक मूल्यों को प्रभावित करता हो।
इसलिए, हम कह सकते हैं कि –
“भारतीय संविधान में नैतिकता सीधे तौर पर कानूनी दायित्व नहीं है, लेकिन यह कानूनी व्याख्या और संवैधानिक संतुलन का एक महत्वपूर्ण तत्व अवश्य है।”