भारतीय संविदा अधिनियम के अंतर्गत ‘जमानत’ (Pledge) और ‘अमानत’ (Bailment)
1. प्रस्तावना
भारतीय संविदा अधिनियम, 1872 में Bailment और Pledge से संबंधित प्रावधानों का उल्लेख धारा 148 से 181 में किया गया है। इन दोनों में वस्तु का सुपुर्दगी (Delivery of Goods) एक समान तत्व है, किंतु उद्देश्य, अधिकार और दायित्वों में अंतर होता है। अमानत (Bailment) सामान्य रूप से वस्तु के किसी विशेष उद्देश्य के लिए सुपुर्दगी है, जबकि जमानत (Pledge) अमानत का एक विशेष प्रकार है, जिसमें वस्तु ऋण या दायित्व की सुरक्षा हेतु सुपुर्द की जाती है। जमानत अनुबंध लेन-देन में सुरक्षा का एक महत्वपूर्ण साधन है, जो ऋणदाता को यह आश्वासन देता है कि उधार दी गई राशि का पुनर्भुगतान न होने पर वह गिरवी रखी वस्तु के माध्यम से अपनी राशि वसूल सकता है।
2. अमानत (Bailment) की परिभाषा – धारा 148
भारतीय संविदा अधिनियम की धारा 148 के अनुसार –
“जब कोई व्यक्ति किसी वस्तु को किसी अन्य व्यक्ति को किसी विशेष उद्देश्य के लिए सुपुर्द करता है और यह सहमति होती है कि उद्देश्य पूर्ण होने पर वस्तु वापस की जाएगी, तो इसे अमानत कहते हैं।”
इसमें दो पक्ष होते हैं –
- अमानतकर्ता (Bailor) – वस्तु सुपुर्द करने वाला।
- अमानतधारी (Bailee) – वस्तु प्राप्त करने वाला।
3. जमानत (Pledge) की परिभाषा – धारा 172
भारतीय संविदा अधिनियम की धारा 172 के अनुसार –
“जब वस्तु ऋण या किसी अन्य दायित्व की सुरक्षा हेतु सुपुर्द की जाती है और यह सहमति होती है कि दायित्व पूरा होने पर वस्तु वापस दी जाएगी, तो इसे जमानत कहते हैं।”
इसमें भी दो पक्ष होते हैं –
- जमानतकर्ता (Pawnor) – वस्तु गिरवी रखने वाला।
- जमानतधारी (Pawnee) – वस्तु ग्रहण करने वाला।
4. अमानत और जमानत में अंतर
आधार | अमानत (Bailment) | जमानत (Pledge) |
---|---|---|
1. उद्देश्य | किसी विशेष कार्य हेतु वस्तु का सुपुर्दगी। | ऋण या दायित्व की सुरक्षा हेतु वस्तु का सुपुर्दगी। |
2. प्रतिफल | हो भी सकता है और नहीं भी। | हमेशा ऋण/दायित्व से जुड़ा होता है। |
3. अधिकार | वस्तु के सीमित उपयोग का अधिकार। | वस्तु रखने व डिफ़ॉल्ट पर बेचने का अधिकार। |
4. वापसी | उद्देश्य पूरा होने पर। | ऋण चुकाने पर। |
5. कानूनी प्रावधान | धारा 148–171 | धारा 172–181 |
6. प्रकृति | सामान्य कानूनी संबंध। | विशेष कानूनी संबंध – सुरक्षा हेतु। |
5. जमानतकर्ता (Pawnor) के अधिकार
- वस्तु की वापसी का अधिकार (Right to Redeem) – ऋण चुकाने पर वस्तु वापस पाने का अधिकार (धारा 177)।
- अधिभार का अधिकार – Pawnee द्वारा वस्तु बेचने पर, यदि प्राप्त राशि ऋण से अधिक हो, तो शेष राशि प्राप्त करने का अधिकार।
- नुकसान की क्षतिपूर्ति – Pawnee की लापरवाही से वस्तु को नुकसान होने पर मुआवजा पाने का अधिकार।
- बिक्री से पूर्व सूचना का अधिकार – Pawnee को बिक्री से पहले Pawnor को सूचना देना अनिवार्य है।
6. जमानतकर्ता (Pawnor) के दायित्व
- ऋण का भुगतान – तय समय पर ऋण या दायित्व का निर्वहन करना।
- व्यय की भरपाई – Pawnee द्वारा वस्तु की देखभाल में किए गए उचित खर्च की भरपाई करना।
- स्वामित्व की गारंटी – वस्तु का वैध स्वामित्व और गिरवी रखने का अधिकार होना।
- दोषपूर्ण वस्तु से हानि पर क्षतिपूर्ति – यदि दोषपूर्ण वस्तु के कारण Pawnee को हानि हो, तो उसकी भरपाई करना।
7. जमानतधारी (Pawnee) के अधिकार
- वस्तु रखने का अधिकार (Right of Retainer – धारा 173) – ऋण चुकाने तक वस्तु रखने का अधिकार।
- अन्य ऋण की सुरक्षा का अधिकार (धारा 174) – यदि अनुबंध में प्रावधान हो तो अन्य ऋणों के लिए भी वस्तु रखना।
- बिक्री का अधिकार (धारा 176) – Pawnor के डिफ़ॉल्ट पर, पूर्व सूचना देकर वस्तु बेचना।
- मुकदमा करने का अधिकार – Pawnor के खिलाफ ऋण वसूली हेतु।
- ब्याज वसूलने का अधिकार – यदि अनुबंध में ब्याज का प्रावधान हो।
8. जमानतधारी (Pawnee) के दायित्व
- वस्तु की उचित देखभाल (धारा 151) – वही सावधानी रखना जो एक सामान्य व्यक्ति अपनी वस्तु के लिए रखता है।
- अनधिकृत उपयोग से बचना (धारा 154) – वस्तु का उपयोग केवल अनुबंधित उद्देश्य के लिए करना।
- वस्तु लौटाना (धारा 160) – ऋण चुकाने पर वस्तु तुरंत लौटाना।
- लाभ लौटाना (धारा 163) – वस्तु से होने वाले लाभ Pawnor को देना।
- हानि न पहुँचाना – लापरवाही से वस्तु को नुकसान न पहुँचाना।
9. वैध जमानत की विशेष परिस्थितियाँ
- व्यापारी एजेंट (Mercantile Agent) द्वारा, सामान्य व्यवसाय में और स्वामी की सहमति से।
- अपूर्ण स्वामित्व होने पर भी, यदि Pawnor को वस्तु गिरवी रखने का अधिकार है।
- सह-स्वामी (Co-owner) द्वारा, अन्य सह-स्वामियों की सहमति से।
10. प्रमुख न्यायिक दृष्टांत
- Lallan Prasad v. Rahmat Ali (1967) – Pawnee के पास वस्तु बेचने का अधिकार है, परंतु अनुबंध की शर्तों का पालन करना आवश्यक है।
- Morvi Mercantile Bank Ltd. v. Union of India (1965) – Pawnee को वस्तु से प्राप्त लाभ Pawnor को लौटाने होंगे।
- Syndicate Bank v. Vijay Kumar (1992) – Pawnor के डिफ़ॉल्ट पर Pawnee को बिक्री से पूर्व सूचना देना अनिवार्य है।
11. निष्कर्ष
अमानत और जमानत दोनों में वस्तु की सुपुर्दगी का तत्व समान है, किंतु जमानत विशेष रूप से ऋण या दायित्व की सुरक्षा के लिए होती है। भारतीय संविदा अधिनियम, 1872 की धाराएं 172 से 181 जमानत के लिए एक व्यापक कानूनी ढांचा प्रदान करती हैं। इसमें जमानतकर्ता और जमानतधारी दोनों के अधिकार और दायित्व स्पष्ट रूप से निर्धारित हैं। सही तरीके से किया गया जमानत अनुबंध वित्तीय लेन-देन में सुरक्षा और विश्वास प्रदान करता है तथा विवाद की स्थिति में स्पष्ट कानूनी संरक्षण देता है।